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चाबहार बंदरगाह का इतिहास व महत्त्व

Chabahar Port History in Hindi: चाबहार बंदरगाह भारत सरकार की महत्वकांक्षी परियोजनाओं में से एक गिना जाता है। साल 2015 में ही इस परियोजना को शुरू करने के लिए हस्ताक्षर कर दिए गए थे। इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत ने 20 अरब डॉलर निवेश करने का निश्चय किया।

दरअसल चीन भारत को स्ट्रिंग्स ऑफ पल्स प्रोजेक्ट के जरिए भारत को चारों तरफ से घेरने की इरादे से चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के विकास के लिए 46 अरब डॉलर रुपए का निवेश किया है। इसलिए भारत ने भी अमेरिका और चीन के विरोध करने के बावजूद ईरान के चाबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए निवेश किया।

हालांकि ऐसा नहीं है कि इस परियोजना से केवल भारत को ही लाभ होने वाला है बल्कि इसमें ईरान और अफगानिस्तान को भी काफी ज्यादा फायदा होगा। लेकिन इस बंदरगाह से भारत को आर्थिक रूप से बहुत लाभ पहुंचने वाले हैं।

Chabahar Port History in Hindi

आखिर चाबहार बंदरगाह परियोजना को शुरू करके भारत को क्या-क्या लाभ मिलेंगे और इस बंदरगाह की इतिहास क्या है इन तमाम चीजों की जानकारी आज के इस लेख में आपको मिलेगी। इसीलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

चाबहार क्या है? (Chabahar Kya Hai)

चाबहार का अर्थ 4 झरने होता है। यह ईरान में सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत का सबसे दक्षिणी शहर है, जो एक मुक्त बंदरगाह भी है और ओमान की खाड़ी के किनारे स्थित है। यह बंदरगाह भारत के पश्चिमी समुद्र तट से ईरान के दक्षिणी समुद्र तट को जोड़ता है। इस शहर के ज्यादातर लोग बलूच है, जिनकी भाषा भी बलूची है।

चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान में स्थित ग्वादर बंदरगाह से 72 किलोमीटर की दूरी पर पश्चिम दिशा में स्थित है। वैसे तो ईरान में एक और बंदरगाह है, जिसका नाम बंदर अब्बास है और यह बंदरगाह ईरान का सबसे बड़ा बंदरगाह है लेकिन इस बंदरगाह पर बड़े देशों के द्वारा ज्यादा चौकसी की जाती है।

क्योंकि यह यूनाइटेड अरब अमीरात और ओमान जैसे देशों के काफी करीब में स्थित है और इस बंदरगाह से मध्य पूर्वी देश, विभिन्न देशों को अपनी कीमती तेलों का निर्यात करती है।

ऐसे में भले ही है बंदर अब्बास ईरान में स्थित है, लेकिन ईरान के लिए यह स्वतंत्र एवं स्वायत्त बंदरगाह की तरह नहीं है। इसीलिए ईरान को एक अन्य स्वतंत्र बंदरगाह की जरूरत है, इसीलिए उसने चाबहार बंदरगाह को एक स्वतंत्र बंदरगाह के रूप में घोषित किया है।

चाबहार बंदरगाह का क्या महत्त्व है?

चाबहार बंदरगाह से भारत के लिए सबसे बड़ा फायदा यह है कि अब वह अफगानिस्तान के साथ अपने रिश्ते को और भी ज्यादा सुधार पाएगा। दरअसल अफगानिस्तान जाने के लिए भारत को जमीनी मार्ग की दूरी तय करनी पड़ती थी और यह मार्ग पाकिस्तान से होकर गुजरता था।

लेकिन इस परियोजना के शुरू हो जाने से भारत को पाकिस्तान से होकर गुजारना नहीं पड़ेगा। अब वह सीधे अफगानिस्तान से जुड़ पाएगा। केवल अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि इसके आगे रूस और यूरोप के अन्य देशों से भी अच्छे संबंध स्थापित हो पाएंगे।

एक बार यदि यह परियोजना शुरू हो जाती है तो भारत के लिए बहुत से भू राजनीतिक और आर्थिक संभावनाओं का विकास होने लगेगा। भारत की कंपनियां अफगानिस्तान में भी बहुत सी व्यापारिक संभावना तलाश कर पाएगी और खनिजों का उपयोग कर पाएगी।

कहा जा रहा है कि चाबहार बंदरगाह और कांडला बंदरगाह के बीच की दूरी नई दिल्ली से लेकर मुंबई के बीच की दूरी से भी कम है। ऐसे में इस समझौते से भारत के लिए ट्रांसपोर्ट लागत और समय में भी कमी आ जाएगी। क्योंकि ऐसे में भारत पहले वस्तुएं ईरान तक तेजी से पहुंचा पाएगा और फिर नए रेल एवं सड़क मार्ग के जरिए अफगानिस्तान ले जाने में मदद मिलेगी।

चाबहार बंदरगाह अफगानिस्तान के लिए भी फायदेमंद है। अफगानिस्तान को अपने माल सामान भारत पहुंचाने के लिए पाकिस्तान के मार्ग का सहारा लेना पड़ता था। लेकिन अब उसे पाकिस्तान पर निर्भर होने की जरूरत नहीं पड़ेगी और अफगानिस्तान के लिए भी अन्य देशों के साथ उसके व्यापार सुगम होंगे।

परिणाम स्वरूप पाकिस्तान पर अफगान निर्भरता कम हो जाने पर अफगान घरेलू राजनीति पर पाकिस्तानी प्रभाव भी कम होगी और भारत को इसका रणनीतिक लाभ प्राप्त होंगे। चाबहार बंदरगाह चाइना के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में आऊं बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को वन बेल्ट वन रोड (OBOR) प्रोजेक्ट के अंतर्गत अकर्मक रूप से बढ़ाने का जवाब मिल जाएगा।

क्योंकि इस प्रोजेक्ट के माध्यम से चीन सड़क के माध्यम से अफगानिस्तान, इटली, रूस, तुर्क, केन्या और बांग्लादेश से होते हुए पूरे भारत को घेरने के फिराक में है। लेकिन भारत के पास अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए कोई माध्यम नहीं है, उसे पाकिस्तान के मार्ग का सहारा लेना पड़ता है।

लेकिन चाबहार बंदरगाह के शुरू हो जाने से भारत अफगानिस्तान के सड़क मार्ग से सीधे जुड़ पाएगा, उसे पाकिस्तान पर भी निर्भर होने की जरूरत नहीं होगी। यहां तक कि वह अन्य देशों के साथ भी व्यापारी स्थापित कर पाएगा।

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार चाबहार बंदरगाह के साथ भूमध्य स्वेज मार्ग की तुलना में 30% कम लागत पर आयात सक्षम हो पाएंगे। इस तरह यदि यह बंदरगाह चालू हो जाता है तो इससे भारत में तेल के आयात की लागत में भी पर्याप्त गिरावट आएगी और इसके साथ ही भारत में चीनी, चावल और लौह अयस्क के आयात में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो जाएगी।

भारत अफगानिस्तान, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं का भागीदारी है। ईरान पर पश्चिम द्वारा आरोपित प्रतिबंध को हटाए जाने के साथ भारत पहले से ही ईरान से कच्चे तेल की खरीदी को बढ़ा चुका है। ऐसे में बंदरगाह शुरू हो जाता है तो भारत में इसके आयात बढ़ जाएगी। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक गैस का भी निर्यात किया जा सकता है।

चाबहार बंदरगाह परियोजना की शुरुआत कैसे हुई?

साल 2002 में ईरान और भारत के तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हसन रूहानी और बृजेश मिश्रा के मध्य बातचीत हुई थी, जिसमें उन्होंने चाबहार बंदरगाह के विकास के बारे में भी जिक्र किया था। ऐसे में भारत के द्वारा भी इस बंदरगाह के विकास के लिए नींव रखी गई।

हालांकि उस समय इस परियोजना के लिए हस्ताक्षर नहीं किए गए थे, लेकिन अगले साल 2003 में 26 जनवरी के दिन दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में मुख्य अतिथि के रूप में ईरान के राष्ट्रपति खाते में आए थे।

उस समय अटल बिहारी वाजपेई भारत के प्रधानमंत्री थे और उसी दौरान उन्होंने इस परियोजना पर हस्ताक्षर किया था, जो भारत के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है। दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप को पर्सियन खाडी, अफगानिस्तान, यूरोप और मध्य एशिया से जोड़ने के उद्देश्य से हस्ताक्षर किए गए इस परियोजना की शुरुआत तो हो गई थी लेकिन किसी कारण से सही दिशा नहीं पकड़ पाई, जिसके कारण काम रुक गया।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार भारत में आने पर उन्होंने साल 2015 में इस परियोजना को पुनः जीवित किया और अगले ही साल 23 मई को प्रधानमंत्री ईरान के दौरे पर गए थे, जहां पर अफगानिस्तान, भारत और ईरान के त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किया था।

उसके बाद इस समझौते में किए गए अनुबंधन के अनुसार भारत और ईरान के इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियों के मध्य होने वाले व्यापारिक सौदे इस बंदरगाह के माध्यम से होंगे। बात करें इस अनुबंधन में क्या लिखा गया है तो इसके अनुसार यह बंदरगाह 10 साल के लिए किराए पर दिए जाने की बात की गई है, जिसे पारस्परिक सहमति से आगे वापस नया भी बनाया जा सकता है।

घाट को 85.21 मिलियन डालर के विनियोग से स्पेशल पर्पस वेहिकल (SPV) के अंतर्गत कंटेनर टर्मिनल और मल्टी पर्पज टर्मिनल कार्गो टर्मिनल में बदलकर इसका विकास किया जाएगा। भारत की तरफ से कान्दिला पोर्ट ट्रस्ट और जवाहर नेहरु पोर्ट ट्रस्ट मुंबई द्वारा यह करवाया जायेगा।

इतना ही नहीं जापान भी अपना भागीदारी देने वाला है। जापान एशिया अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर का हिस्सा होने के कारण वह चाबहार के विकास में भारत का सहयोग देना चाहता है। इस तरह चाबहार को सुदृढ़ बनाने में जापानी तकनीक की सहायता ली जाएगी। इतना ही नहीं जापान इसके लिए आर्थिक सहायता भी देगा।

इस तरीके से इस परियोजना का विकास करके पहले जहां 2.5 मिलियन टन तक के सामान ढोने की क्षमता थी, वहीं अब भारत, ईरान और अफगानिस्तान मिलकर 80 मिलियन टन तक सामान ढोने की क्षमता वाला चाबहार बंदरगाह विकसित करने की योजना बना रहा है।

कहा जा रहा है कि भारत अफगानिस्तान के बामियन प्रांत के खनिज सम्पन्न हजिगाक क्षेत्र को चाबहार बंदरगाह से जोड़ने के लिए 900 किलोमीटर की रेल लाइन भी बनाने पर विचार किया जा रहा है।

जिसमें अफगानिस्तान और ईरान के लिए 5 बिलियन डॉलर तक का खर्चा आ सकता है और इसमें भारत में आर्थिक रूप से मदद कर सकती हैं। यदि यह रेल नेटवर्क बनेगा तो भारत को एशिया के कई राज्य जैसे कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान और किर्गिस्तान तक अपनी पहुंच बनाने में आसानी होगी।

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चाबहार बंदरगाह का इतिहास (Chabahar Port History in Hindi)

बात करें चाबहार बंदरगाह के इतिहास की तो 1017 में भारत भ्रमण करने वाले पर्शियन विद्वान अलबरूनी ने अपनी एक किताब तारीख-ए-हिंद जिसका हिंदी अर्थ “भारत का इतिहास” होता है में पहली बार चाबहार बंदरगाह का जिक्र किया है।

इसमें उन्होंने चाबहार बंदरगाह को “तिस” नाम से उल्लेख किया है और लिखा है कि भारत एक कस्बे से शुरू होता है, जिसका नाम “तिस” है। हालांकि इसे बाद में तीज किया गया। 326 ईसा पूर्व में अलेग्जेंडर ने भी भारत जाते समय अपने सैन्य बल के साथ इस तीज को पार किया था।

1970 में यही तीज आधुनिक चाबहार के रूप में अस्तित्व में आया। 1980 में जब ईरान और इराक युद्ध हो रहा था, उस समय तेहरान के लिए यह बंदरगाह महत्वपूर्ण बंदरगाह बन गया और बाद में इसे आर्थिक बंदरगाह के रूप में भी विकसित किया गया।

FAQ

चाबहार बंदरगाह परियोजना की शुरुआत किसने की।

हालांकि चाबहार बंदरगाह को भारत के द्वारा विकास में योगदान की नींव रखने की बात साल 2002 में ही हो चुकी थी। लेकिन इस परियोजना के लिए हस्ताक्षर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के द्वारा जनवरी 2003 में किया गया था। लेकिन साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना को फिर से जीवित किया।

चाबहार बंदरगाह सामान ढोने की क्षमता कितनी है?

वैसे तो पहले चाबहार बंदरगाह की क्षमता महज 2.5 मिलियन टर्न सामान ढोने की थी। लेकिन जब से भारत के द्वारा इस परियोजना के लिए निवेश किए गए हैं तब से इसे 80 मिलियन टन तक बढ़ाने की योजना है।

चाबहार बंदरगाह किस किस को जोड़ता है?

चाबहार बंदरगाह ओमान की खाड़ी में स्थित ईरान के दक्षिणी पूर्वी समुद्र किनारे पर है, जो ईरान के दक्षिणी समुद्री तट को भारत के पश्चिमी समुद्री तट से जोड़ता है।

चाबहार बंदरगाह किस तरीके से भारत को अफगानिस्तान से जोड़ेगा?

बात करें इस बंदरगाह के भौगोलिक स्थिति की तो भारत अफगानिस्तान के साथ थल मार्ग से ही जुड़ा हुआ है और यह मार्ग पाकिस्तान से होकर गुजरता है। अफगानिस्तान सब तरफ से थल से घिरा हुआ है। यहां तक पहुंचने के लिए कोई समुद्री मार्ग नहीं है। ऐसे में यदि इस परियोजना को शुरू किया जाता है तो भारत के लिए इरान का यह बंदरगाह न केवल ईरान बल्कि अफगानिस्तान के साथ भी संबंधों को सुधारने का एक मौका देता है।

अलबरूनी ने भारत और चाबहार को लेकर क्या कहा है?

चाबहार बंदरगाह के बारे में पर्शियन विद्वान अलबरूनी ने इसे भारत का प्रवेश द्वार कहा है।

चाबहार बंदरगाह ईरान के लिए किस तरह महत्वपूर्ण हो सकता है?

दरअसल ईरान का सबसे बड़ा बंदरगाह बंदर अब्बास है, जहां से मध्य पूर्व देश अन्य देशों को तेल की सप्लाई करता है और इस बंदरगाह पर यूएस और ओमान की नजदीकी काफी ज्यादा है। ऐसे में ईरान के लिए यह बंदरगाह स्वतंत्र बंदरगाह नहीं है। इसीलिए चाबहार बंदरगाह ईरान के लिए एक स्वतंत्र बंदरगाह के रूप में महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने भारत सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना चाबहार बंदरगाह के बारे में जाना। इस बंदरगाह के इतिहास (Chabahar Port History in Hindi) एवं इस परियोजना से भारत को क्या-क्या लाभ मिलने वाले हैं इसके बारे में आपने जाना। हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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