Swami Vivekanand ka Jivan Parichay: 12 जनवरी, स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन पर पूरे भारत में युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे शुभ अवसर के लिए हम इस लेख में स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय लेकर आए हैं।
हालांकि इनका जीवन काल बेहद ही छोटा रहा लेकिन छोटे से जीवन काल में भी इन्होंने ऐसे ऐसे महान कार्य किये, जिसके कारण आज पूरी दुनिया उनकी मुरीद है, इनका अनुसरण करती है।
“उठो जागो और तब तक मत रुको तो जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए”। इनका एक मात्र यही विचार ही आज के युवा को प्रेरित करने के लिए काफी है।
यहां पर स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand ka Jivan Parichay) विस्तार से बताने के साथ ही इस जीवन परिचय में स्वामी विवेकानंद कौन थे, इनके परिवार, शिक्षा, मृत्यु, गुरु आदि के बारे में विस्तार से बताया है।
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand ka Jivan Parichay)
नाम | स्वामी विवेकानंद |
अन्य नाम | वीरेश्वर, नरेंद्र नाथ दत्त, नरेन |
जन्म और जन्मस्थान | 12 जनवरी 1863, कोलकाता |
पिता | विश्वनाथ दत्त |
माता | भुवनेश्वरी देवी |
गुरु | रामकृष्ण परमहंस |
शिक्षा | B.A. ग्रेजुएशन (1884) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिंदू |
मृत्यु और स्थान | 4 जुलाई 1902 (उम्र 39), बेलूर, पश्चिम बंगाल |
स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन
स्वामी विवेकानंद का जन्म कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को एक हिंदू बंगाली परिवार में हुआ था। यह अपने नौ भाई बहनों में से एक थे।
इनके माता ने बचपन में इनका नाम वीरेश्वर रखा था लेकिन बाद में इनका नाम बदलकर नरेंद्र नाथ दत्त कर दिया गया। प्यार से इन्हें नरेन भी पुकारा जाता था।
स्वामी विवेकानंद का परिवार और बचपन
नरेंद्र के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था, जो कि पेशे से कोलकाता हाईकोर्ट में एक प्रसिद्ध और सफल वकील थे। उनके वकालत के काफी चर्चे थे। इनके पिता को अंग्रेजी और फारसी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। इतना ही नहीं उन पर पाश्चात्य सभ्यता का भी गहरा प्रभाव था।
वहीं नरेंद्र की माता भुवनेश्वरी देवी एक धार्मिक विचारों वाली महिला थी, जिन्हें धार्मिक ग्रंथ जैसे रामायण, महाभारत का अच्छा ज्ञान प्राप्त था।
ऐसे में स्वामी विवेकानंद को अपने घर में पाश्चात्य अंग्रेजी भाषा का प्रारंभिक ज्ञान के साथ ही अपनी मां से हिंदू धर्म – संस्कृति को करीब से जानने और समझने का भी मौका मिला। उनकी मां का इन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा। अपने माता और पिता के अच्छे संस्कारों से ही इन्हें एक अच्छी विचार शक्ती मिली।
इन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, कुश्ती और तैराकी का काफी ज्यादा शौक था। वेद, पुराण, पूंजीवाद, साहित्य, संगीत, दर्शन, राजनीतिक शास्त्र, गुरु ग्रंथ साहिब, बाइबल, कुरान जैसे कई पवित्र धार्मिक ग्रंथो को पढ़ लिया था।
स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
विवेकानंद की प्रारंभिक शिक्षा मेट्रोपॉलिटन संस्थान से हुई थी। 1871 में इनका एडमिशन ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान में हुआ था। 1877 में किसी कारणवश इनका पूरा परिवार रायपुर चला गया, जिसके कारण तीसरी कक्षा की पढ़ाई में इन्हें बाधा पहुंची।
फिर 2 साल के बाद इनका परिवार कोलकाता वापस आ गया। उसके बाद नरेंद्र ने प्रेसीडेंसी कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा प्रथम अंकों के साथ पास की। 1884 में विवेकानंद ने कला विषय से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की।
उसी साल उनके पिता की मृत्यु हो जाने के कारण उनके 9 भाई बहनों की जिम्मेदारी उनके सर पर आ गई। लेकिन वह घबराएं नहीं। उन्होंने अपने जिम्मेदारियों को बहुत अच्छे से निभाया। विवेकानंद पढ़ाई के अतिरिक्त शारीरिक योग, खेल और अन्य गतिविधियों में भी भाग लिया करते थे।
ब्रह्म समाज से जुड़ना
स्वामी विवेकानंद बचपन से ही बड़े कुशाग्र और तीव्र बुद्धि के थे। बचपन से ही उनके मन में एक ही चीज की लालसा थी कि परमात्मा को देखना है, उन्हें अनुभव करना है।
वह बस चाहते थे कि उन्हें कोई ऐसा इंसान मिल जाए, जिन्होंने खुद भगवान को देखा हो। इसी आस में वे सबसे पहले ब्रह्म समाज से जुड़े लेकिन यहां भी उनकी जिज्ञासा शांत नहीं हो पाई।
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रामकृष्ण परमहंस की शरण में जाना
स्वामी विवेकानंद के मन में बस एक ही प्रश्न था कि क्या किसी ने भगवान को देखा है? वे अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ब्रह्म समाज के अलावा भी कई साधु संतों के पास भटके।
एक बार उन्होंने महर्षि देवेंद्र नाथ से भी यही सवाल पूछा कि क्या आपने कभी ईश्वर को देखा है? तब स्वामी ने उन्हें उनके जिज्ञासा को शांत करने के लिए रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी।
दक्षिणेश्वर मंदिर पर ही पहली बार रामकृष्ण परमहंस और नरेंद्र की मुलाकात हुई। उस समय नरेंद्र ने रामकृष्ण परमहंस को भजन भी सुनाया। उस दिन रामकृष्ण परमहंस समझ गए थे कि यह बालक अन्य बालक से काफी अलग है, जिनके साथ वे अपने हर एक विचार को साझा सकते हैं।
रामकृष्ण परमहंस के रहस्यमय व्यक्तित्व से नरेंद्र भी काफी प्रभावित हुए। उसके बाद उन्होंने उनसे वही प्रश्न पूछ दिया जिसका उत्तर जानने के लिए वे लंबे समय से हर जगह भटक रहे थे।
उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से पूछा कि क्या वे भगवान को देख सकते हैं? रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि “हां मैं भगवान को देख सकता हूं जैसे मैं तुम्हें देख सकता हूं, ठीक उसी तरह भगवान को भी देख सकता हूं। हर व्यक्ति भगवान को देख सकता है अगर वह सच्चे मन से भगवान को देखना चाहे तो।”।
रामकृष्ण परमहंस के जवाब ने नरेंद्र के जिज्ञासा को शांत किया। 1881 में नरेंद्र ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु बना लिया। उसके बाद नरेंद्र अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलने लगे। नरेंद्र रामकृष्ण परमहंस से इतना ज्यादा प्रभावित हुए कि अपने गुरु के प्रति उनकी श्रद्धा और कर्तव्य निष्ठ बढ़ती ही चली गई।
1885 में जब रामकृष्ण परमहंस कैंसर से पीड़ित हो गए, उस वक्त विवेकानंद ने अपने गुरु की बहुत सेवा की। उस दौरान गुरु और शिष्य के बीच का रिश्ता काफी ज्यादा गहरा हो गया।
जब रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु हो गई तब नरेंद्र ने वराहनगर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। उसी समय उन्होने ब्रहमचार्य त्याग का व्रत लिया, जिसके बाद वे नरेंद्र से स्वामी विवेकानंद हो गए।
विवेकानंद का देश भ्रमण
रामकृष्ण के निधन के बाद विवेकानंद ने अपने जीवन और कार्यों में नया मोड़ लाए। 25 वर्ष की अवस्था में गैरवा वस्त्र को धारण करके पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा पर निकल गए।
अपनी यात्रा में वे आगरा, अयोध्या, अलवर, वृंदावन, वाराणसी, समेत कई जगह की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने कई सामाजिक कुरीतियों को मिटाने की भी कोशिश की।
शिकागो में भारत का प्रतिनिधित्व और भाषण
जब भी स्वामी विवेकानंद का जिक्र होता है तो शिकागो में उनके द्वारा दी गई ऐतिहासिक भाषण याद आ जाती है। 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म परिषद में भारत के प्रतिनिधि के रूप में स्वामी विवेकानंद पहुंचे थे।
उसी सभा में उन्होंने जो ऐतिहासिक भाषण दिया था, उस पर आज भी सभी भारतीयों को बहुत ही गर्व है। कहते हैं कि उस धर्म परिषद में अमेरिका और यूरोप के देश के कई लोग अपने-अपने देश का प्रतिनिधित्व करने आए थे। वह लोग भारत वासियों को बहुत हीन दृष्टि से देखते थे।
वहां के लोगों ने स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद में बोलने का समय ना मिले, इसके लिए भी काफी प्रयत्न किया। लेकिन वहां के एक अमेरिकन प्रोफेसर के प्रयास से स्वामी विवेकानंद को 2 मिनट का समय मिल गया।
फिर क्या था उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत जैसे ही “बहनों और भाइयों” से की वैसे ही पूरा हॉल तालियों की गड़गड़हर से गूंज उठा। जहां उन्हें 2 मिनट का भी समय भाषण के लिए मिलना मुश्किल हो रहा था, वहीं उनके भाषण ने इस तरीके से वहां उपस्थित विद्वानों को आचार्य चकित किया कि घंटो तक लोगों ने उनके भाषण को सुना।
उनके भाषण ने दुनिया में भारत की एक अलग ही छवि स्थापित की, जिसके बाद पूरी दुनिया भारत की मुरीद हो गई। विवेकानंद अमेरिका में 3 वर्षों तक रहे और उस दौरान उन्होंने वहां के लोगों को भारत की महिमा से अवगत कराया।
अमेरिका में भी इन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएं स्थापित की। विवेकानंद का मानना था कि अध्यात्म ज्ञान और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा।
अमेरिका में कई विद्वानों ने उन्हें अपना शिष्य माना। शिकागो से वापस आने के बाद 1899 में वे एक बार फिर अमेरिका गए और वहां पर भारतीय आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया।
स्वामी विवेकानंद का निधन
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु बेहद ही कम उम्र में मात्र 39 साल की उम्र में 4 जुलाई 1902 को हो गई। उनकी मृत्यु भी एक रहस्य है।
कुछ लोगों का कहना है कि स्वामी विवेकानंद का निधन तीसरी बार दिल का दौरा पड़ने से हुआ था। वहीं उनके शिष्यों के मुताबिक स्वामी विवेकानंद की मृत्यु ध्यान करने के दौरान हुई।
जिसका जिक्र राजगोपाल चट्टोपाध्याय की किताब और के. एस भारती के द्वारा लिखी एक अन्य किताब से मिलती है, जिसमें उन्होंने स्वामी विवेकानंद की मृत्यु के कारण को बताते हुए लिखा है कि तकरीबन शाम के 7:00 बजे स्वामी विवेकानंद ध्यान करने के लिए चले गए।
उस समय उन्होंने अपने सभी साथियों और शिष्यों को विशेष हिदायत देते हुए कहा कि उनके ध्यान में कोई विघ्न न डालें। ध्यान करते हुए ही उन्होंने महासमाधि ले ली।
स्वामी विवेकानंद का दाह संस्कार बेलूर में गंगा नदी के तट पर चंदन की लकड़ी पर किया गया। इसी स्थान पर 16 वर्ष पूर्व उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का भी अंतिम संस्कार हुआ था।
स्वामी विवेकानंद ने अपने मृत्यु की भविष्यवाणी पहले ही कर ली थी। वे जानते थे कि वे 40 वर्षों तक जीवित नहीं रहेंगे, इसीलिए उन्होंने महा समाधि ले ली।
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विवेकानंद का दर्शन
स्वामी विवेकानंद के जीवन पर गीता के कर्मवाद, बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग और वेदांत दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा था। इन्होंने इन तीनों के दर्शन को मिलाकर अपने दर्शन को गढा था।
विवेकानंद मूर्ति पूजा को महत्व नहीं देते थे लेकिन इन्होनें कभी इसका विरोध भी नहीं किया। उनका मानना था कि ईश्वर निराकार है लेकिन वे सभी तत्वों में निहित है। वह मानते थे कि ईश्वर एकत्व है। पूरा जगत ईश्वर की ही सृष्टि है।
निष्कर्ष
इस लेख में आपने जगतगुरु और विश्व प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय (Swami Vivekanand ka Jivan Parichay) के बारे में जाना।
हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख से स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी तमाम प्रश्नों का जवाब आपको मिल गया होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।
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लेखक महोदय … सबसे पहले तो इतने महान व्यक्तित्व का विस्तृत जीवन परिचय अपनी मातृभाषा हिंदी में अपने पाठको के सम्मुख रखने के लिए आप बधाई के पात्र है .. इसके साथ – साथ सबसे अच्छी और उपयोगी बात है , लेख के अंत में प्रश्न और उत्तरों की श्रृंखला .. निसंदेह आपके प्रयास सराहनीय और अनुकरणीय है .. आशा है की आगे भी आप इसी तरह से भारत के महान व्यक्तित्वों से अपने पाठकों का परिचय करवाते रहेंगे .. और नई पीढ़ी को एक सकारात्मक सन्देश देते रहेंगे ..
भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं ..
धन्यवाद