तानसेन का जीवन परिचय: तानसेन मुगल काल में अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक महान भारतीय संगीतकार थे, जिन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगशदान दिया।
तानसेन जो कि एक गायक और वादक थे। शुरू में राजा रामचंद्र के दरबारी गायक हुआ करते थे। लेकिन उनके असाधारण संगीत कौशल को सुनकर राजा अकबर इस तरीके से उन पर मोहित हुए कि उन्होंने तानसेन को अपने दरबार के संगीतकारों में श्रेष्ठ स्थान दिया।
इस लेख में तानसेन की जीवनी (Tansen Ka Jivan Parichay) लेकर आए हैं। इसके माध्यम से तानसेन का जन्म, उनकी शिक्षा, उनका बचपन, उनका परिवार और उनके जीवन के बारे में सब कुछ जानेंगे।
तानसेन का जीवन परिचय (Tansen Ka Jivan Parichay)
नाम | तानसेन |
बचपन का नाम | रामतनु |
पेशा | संगीतकार |
पिता | मुकुंद मिश्रा |
पत्नी | हुसैनी ब्राह्मणी |
संतान | तानरास खान, हमीरसेन, सुरतसेन, बिलास खान, और सरस्वती देवी |
गुरु | स्वामी हरिदास, सूफी संत मोहम्मद गौस |
कौन से वाद्य यंत्र को बजाते थे? | तानपुरा नामक वाद्य यंत्र |
मृत्यु | 1586, आगरा |
तानसेन का प्रारंभिक जीवन
तानसेन का जन्म सन 1506 में वर्तमान समय के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर जिले में एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम रामतनु था, जो कि बाद में तानसेन कर दिया गया।
तानसेन एक धनी परिवार से थे। उनके पिता का नाम मुकुंद मिश्रा था, जो कि एक प्रसिद्ध कवि थे। कहा जाता है कि तानसेन बचपन में काफी शरारती बच्चे थे।
किसी भी पशु, पंछी और जानवरों की पूरी तरीके से नकल कर सकते थे और ऐसा करके वह जंगलों से गुजरने वाले पंडित पुरोहित को डराया करते थे।
तानसेन का वैवाहिक जीवन
तानसेन का विवाह हुसैनी ब्राह्मणी नामक महिला से हुआ था। एक बार तानसेन का परिचय राजा मान सिंह की विधवा पत्नी रानी मृगनैनी से हुआ था, जो कि बहुत ही मधुर और विदुषी गायिका थी।
वह तानसेन के मधुर आवाज से काफी ज्यादा प्रभावित हुई थी। हुसैन ब्राह्मणी मृगनयनी के संगीत मंदिर में शिक्षा लेती थी। मृगनयनी ने ही तानसेन का विवाह हुसैन ब्राह्मणी से किया था।
तानसेन की पत्नी का वास्तविक नाम प्रेमकुमारी था, जो कि एक ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखती थी। लेकिन बाद में उनका परिवार मुस्लिम धर्म में परिवर्तित हो गया, जिसके कारण उनका इस्लामी नाम हुसैन रखा गया।
लेकिन एक ब्राह्मण परिवार से होने के कारण उन्हें हुसैन ब्राह्मणी कहकर बुलाया जाता था और उन्हीं से तानसेन का घराना हुसैनी घराना के नाम से जाना गया।
तानसेन की शिक्षा
तानसेन ने बेहद ही कम उम्र में संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी थी। उनके गुरु स्वामी हरिदास हुए। कहा जाता है कि जब तानसेन बचपन में पशु, पंछी और जानवरों की आवाज का नकल करके जंगल से गुजरने वाले लोगों को डराते थे तब एक बार स्वामी हरिदास ने तानसेन के कौशल को पहचान और उन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार लिया।
लगभग 10 वर्षों तक तानसेन ने स्वामी हरिदास से संगीत की शिक्षा ग्रहण की। स्वामी हरिदास गायन के ध्रुपद शैली में माहिर थे और उनके कारण ही तानसेन में भी द्रुपद के प्रति रुचि विकसित हुई।
मोहम्मद गौस से शिक्षा
यूं तो तानसेन ने अपनी प्रारंभिक संगीत की शिक्षा स्वामी हरिदास से ली थी। लेकिन उनके पिता की मृत्यु के बाद अपने पिता की अंतिम इच्छा के अनुसार मोहम्मद घोष से शिक्षा लेने का विचार किया।
उससे पहले उन्होंने अपने पहले गुरु स्वामी हरिदास से आज्ञा भी ली। तानसेन ने मोहम्मद गौस से 3 वर्षों तक संगीत की शिक्षा ली और उस दौरान अपने संगीत के प्रतिभा को और भी ज्यादा सुधारा।
मोहम्मद गौस तानसेन को शिक्षा देने के दौरान ग्वालियर के राजा के पास मिलाने ले जाते थे और उनके दरबार में तानसेन अक्सर आते-जाते थे।
कहा जाता है कि मोहम्मद घोष ने मरने से पहले अपनी सभी धन दौलत तानसेन के नाम कर दी थी। उनकी मृत्यु के बाद तानसेन का पूरा परिवार मोहम्मद गौस के घर में आकर बस गया।
अकबर के नवरत्न में तानसेन का शामिल होना
तानसेन राजा अकबर के दरबार में विभिन्न कौशल वाले और असाधारण लोग जिन्हें नवरत्न के नाम से जाना जाता था, उनमें से एक थे।
अकबर के दरबार में दरबारी गायक से पहले तानसेन रीवा राज्य के राजा रामचंद्र के दरबार में गायक थे। उसी दौरान उनके संगीत की प्रशंसा चारों तरफ होती थी।
उनके प्रतिभा की कहानी फैलते फैलते सम्राट अकबर के कानों तक भी पहुंची। वह भी तानसेन के संगीत को सुनना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने तानसेन को अपने दरबार में आमंत्रित किया।
पहली बार में ही तानसेन की मधुर गायन को सुन राजा अकबर इस तरह मोहित हुए कि उन्होंने तानसेन को इनाम के तौर पर एक लाख सोने के सिक्के दे दिए और उन्हें अपने राज दरबार में नवरत्नों में शामिल कर दिया।
कहा जाता है कि अकबर तानसेन के संगीत की बहुत प्रशंसा करते थे, इसीलिए उन्होंने तानसेन को मियां की उपाधि दी थी। उसके कारण तानसेन को मियां तानसेन के नाम से पुकारा जाता था।
भारतीय संगीत में तानसेन का योगदान
तानसेन को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का संस्थापक माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने ही दरबारीकानाडा, मल्हार, भैरव, दरबारीरोडी, सारंग और रागेश्वरी जैसे कई रागो की रचना की थी।
यह भी कहा जाता है कि उनके और उनके गुरु के द्वारा ही ध्रुपद शैली की शुरुआत हुई। तानसेन ने रागो को सरलता से समझने के लिए उनका वर्गीकरण भी किया था। संगीत में उनके अनमोल योगदान दे।
तानसेन की मृत्यु
तानसेन की मृत्यु वर्ष 1586 ई में आगरा में हुई थी। ऐसे उनकी मृत्यु का कोई भी स्पष्ट कारण नहीं पता चल पाया। उनकी कब्र उनके सूफी गुरु मोहम्मद गौस की कब्र के पास ग्वालियर में बनाई गई है।
कुछ इतिहासिक सूत्रों की माने तो तानसेन की मृत्यु दिल्ली में 26 अप्रैल 1586 को हुई थी। तानसेन की अंतिम यात्रा में सभी दरबारी और अकबर शामिल थे।
कुछ अन्य सूत्रों की माने तो 6 मई 1589 को तानसेन की मृत्यु हुई थी। बाद में ग्वालियर के पास उनकी जन्मभूमि बेहात में दफनाया गया।
तानसेन सम्मान
तानसेन सम्मान भारत सरकार के द्वारा हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के उत्कृष्ट प्रतिपादकों को संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदानों के लिए दिया जाता है।
हर साल दिसंबर में ग्वालियर में तानसेन के समाधि स्थल के पास तानसेन समारोह आयोजित होता है, जिसमें देश के महान संगीतकार अपने प्रतिभा को दिखाते हैं। इसी समारोह में तानसेन अवार्ड दिया जाता है।
निष्कर्ष
इस पोस्ट में आपने महान भारतीय संगीतकार और वादक तानसेन का जीवन परिचय (Tansen Biography in Hindi) के बारे में जाना।
हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख से आपको तानसेन के जीवन से जुड़े सभी तरह के प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा। यदि यह लेख आपको अच्छा लगा हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।
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