Speech on Swami Vivekananda in Hindi: स्वामी विवेकानंद भारत के सबसे प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेताओं में से एक थे। इसके साथ साथ वो एक विपुल विचारक, महान वक्ता और परम देशभक्त थे।
साल 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद में उन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद पूरी दुनिया में उनको ख्याति मिली थी। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी साल 1863 को हुआ था और उनकी मृत्यु 4 जुलाई 1904 के दिन हुई थी।
हम इस आर्टिकल में आपको स्वामी विवेकानंद पर स्पीच (Speech on Swami Vivekananda in Hindi) के बारे में बेहद सरल भाषा में माहिति प्रदान करेंगे। यह भाषण हर कक्षा के विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होगा।
स्वामी विवेकानंद पर भाषण (500 शब्द)
आदरणीय महोदय और मेरे प्यारे साथियों,
सबको मेरा नमस्कार।
आप सभी ने मुझे इस मंच पर एक महान व्यक्तित्व स्वामी विवेकानंद के बारे में बोलने का मौका दिया। उसके लिए में आप सबका आभारी हूँ। आप सब भी स्वामी विवेकानंद के नाम से परिचित जरूर होंगे। स्वामी विवेकांनद वो महान हस्ती थे, जिन्होंने पूरी दुनिया को हिन्दू धर्म का परिचय करवाया और भारत का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया।
साल 1863 को 12 जनवरी के दिन कोलकाता में उनका जन्म हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेन्द्र था। बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो जाने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उनकी माता द्वारा घर में धार्मिक कार्य अधिक होते थे, इसलिए पढ़ाई से ज्यादा उनकी रूचि अध्यात्मिक की और ज्यादा थी।
उन्हें बचपन से ही परमात्मा को पाने की तीव्र इच्छा थी। विवेकानंदजी की बुद्धि बचपन से बड़ी तीव्र थी, इसलिए उन्होंने केवल 25 साल की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, गुरुग्रंथ साहिब, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य और संगीत तमाम का ज्ञान ले लिया था।
फिर भी उनके किसी प्रकार का संतोष प्राप्त नहीं हुआ। अंत में उन्हें रामकृष्ण परमहंस की शरण मिली। रामकृष्ण ने नरेंद्र को जीवन की सही दिशा दिखाई और उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। उन्होंने रामकृष्ण को अपना गुरु बना लिया और केवल 25 साल की उम्र में ही सन्यासी बनकर पूरी दुनिया में घूमने लगे।
साल 1983 के दौरान शिकागो में विश्व धर्म परिषद् हो रही थी, तब भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वामी विवेकानंदजी अपने विचार लोगों के सामने व्यक्त किये। भाईयों और बहनों शब्दों के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते हुए उन्होंने वहां के लोगों का दिल जीत लिया।
चारों ओर तालियों की गड़गड़ाट होने लगी। अमेरिका में इनके भक्तों का एक बड़ा समुदाय हो गया। उन्होंने पश्चिम में भी भारतीय आध्यात्मिकता का संदेश फैलाया।
खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें स्वामी विवेकांनद नाम दिया और ये नाम आज पूरी दुनिया में मशहूर हो गया। उन्होंने मानव जाति की सेवा के लिए और लोगों में आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में उजागर करने के लिए रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
स्वामी विवेकांनद वो महान संत थे, जिन्होंने राष्ट्रीय चेतना को नया आयाम दिया और हिंदुओं को एक धर्म में विश्वास करना सिखाया। उनका जन्म दिन देश भर में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी जी हमेशा कहा करते थे की उठो, जागो और ध्येय प्राप्ति तक रुको नहीं। अगर आपको खुद पर भरोसा नहीं है तो आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
उनके विचार आज भी कई युवा के लिए पथप्रदर्शक बने है। केवल 39 साल की उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई। सच में स्वामी विवेकांनद एक असाधारण पुरुष थे। हमें उनके अधूरे कार्य को पूरे करने की कोशिश करनी चाहिए।
अंत में मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि हमें इस महापुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर अपनी जीवन को बहेतरीन बनाना चाहिए। अब मैं यहाँ मेरे शब्दों को विराम देना चाहता हूँ। मुझे शांति से सुनने के लिए आप सबका धन्यवाद।
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Speech on Swami Vivekananda in Hindi (500 शब्द)
आदरणीय प्राचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्यारे मित्रों,
सुप्रभात।
यहाँ उपस्थित सभी श्रोतागणों को मेरी तरफ से राष्ट्रीय युवा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। आज 12 जनवरी को सभी भारतीय राष्ट्रीय युवा दिवस मना रहे है। यह दिन आध्यात्मिक विचारों वाले और एक असाधारण व्यक्तित्व को धारण करने वाले स्वामी विवेकानंद को श्रद्धांजलि देने के रूप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद एक प्रसिद्ध संत विचारक, दार्शनिक और लेखक और हिंदू नेता थे। उनके विशाल ज्ञान और आकर्षक चरित्र की वजह से वो ना सिर्फ भारत में बल्कि पश्चिम संस्कृति में भी काफी मशहूर थे।
उनका जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता में दत्ता परिवार में हुआ था। बचपन में उनका नाम नरेंद्र दत्त था। उनकी माता काफी धर्मपरायण व्यक्ति थी। उनके घर में रोज़ पूजा पाठ और कीर्तन होता था। नरेंद्र के जीवन को आकार देने में उनकी माता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
बचपन से ही उन्हें परमेश्वर के बारे में जानने की भारी उत्सुकता थी। वह अक्सर पवित्र मठाधीशों और भिक्षुओं से सवाल करते थे कि क्या उन सभी ने कभी भगवान को देखा है।
लेकिन उन्हें सिर्फ रामकृष्ण ने सही मार्ग बताया और भगवान के प्रति उनकी शंकाओं को दूर किया और रामकृष्ण परमहंस ने नरेन से कहा कि कोई भी ईश्वर को नहीं देख सकता क्योंकि वह एक सर्वशक्तिमान प्राणी है, लेकिन वह ईश्वर को एक समान रूप में देख सकता है। मनुष्य केवल मानवता की सेवा करके ईश्वर का अनुभव कर सकता है।
महज 25 साल की उम्र में उन्होंने सन्यास ले लिया और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। अपने गुरु की याद में उन्होंने मई, 1897 को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन जरूरतमंदों और गरीबों को स्वैच्छिक कल्याण कार्य प्रदान करती है।
स्वामी विवेकानंद अमेरिका की यात्रा करने वाले पहले भारतीय और हिंदू भिक्षु भी थे। साल 1893 में उन्होंने शिकागो में आयोजित घर्म परिषद में हिन्दू धर्म के विचार को साझा किया। उनके विचार सुनकर वह मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। पहले दिन के संबोधन के बाद वो इतने मशहूर हुए कि अमरीका में भी उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी।
ज़रूरतमंदों की सेवा करने में स्वामी विवेकानंद इतना तल्लीन रहते थे कि वे अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं देते थे। अपने 39 साल के अल्प जीवन में उन्होंने लगभग 31 बीमारियों का सामना किया।
आखिर में 4 जुलाई, 1902 को उनका निधन हो गया। 39 वर्षों में, स्वामी विवेकानंद ने मानवता के लिए कई उत्कृष्ट कार्य किये, जिनकी वजह से आज भी उन्हें याद किया जाता है।
राष्ट्रीय युवा दिवस को मनाने के पीछे हमारा यह मकसद होता है कि हम स्वामी विवेकानंद को न सिर्फ याद करें, बल्कि उनके जीवन से हम कुछ गुण अपने जीवन में भी उतारें।
स्वामी जी को युवा पर काफी विश्वास था उनका मानना था कि युवा में वो शक्ति होती है, जो देश की पूरी स्थिति बदल देती है। वो युवा को हमेशा यही कहते थे कि तुम जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाओगे। जितना कठिन तुम्हारा संघर्ष होगा तुम्हारी जीत उतनी ही शानदार होगी।
अब में यहाँ अपने शब्दों को विराम देना चाहता हूँ। आप सब ने मेरे भाषण को शांति से सुना इसके लिए मैं आप सबका शुक्रियां अदा करना चाहता हूँ। धन्यवाद।
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स्वामी विवेकानंद पर भाषण (500 शब्द)
आदरणीय अतिथि और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,
सबको मेरा नमस्कार।
हमारे देश में समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार संतों और महापुरूषों ने जन्म लिया है और अपने देश की दुखद परिस्थितियों से मुक्ति दिलाकर पूरे विश्व को एक सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की भूमि गौरवान्वित और गौरवशाली हो गई है। इसने पूरी दुनिया में एक सम्मानजनक स्थान अर्जित किया है।
स्वामी विवेकानंद का नाम उन महापुरुषों में है, जिन्होंने देश को प्रतिष्ठा के शिखर पर पहुँचाया है, जो संपूर्ण मानव जाति के जीवन के अर्थ के सबसे मधुर दूतों में से एक हैं। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 फरवरी 1863 को महानगर कलकत्ता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ था। बचपन के दिनों में वो बहुत नटखट थे।
उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। पांच साल की उम्र में, लड़के नरेंद्रनाथ को मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट स्कूल में भेज दिया गया था। लेकिन पढ़ाई में रुचि न होने के कारण बालक नरेंद्रनाथ पूरा समय खेलकूद में ही व्यतीत करते थे। 1879 में, नरेंद्रनाथ को जनरल असेंबली कॉलेज में भर्ती कराया गया था।
स्वामी जी अपने पिता से नहीं लेकिन माता श्री के भारतीय धार्मिक लोकाचार का गहरा प्रभाव था। यही कारण है कि स्वामी जी अपने जीवन के शुरूआती दिनों से ही धार्मिक प्रवृत्ति में उलझे रहे और धर्म के प्रति आस्थावान बने रहे।
ईश्वर के ज्ञान की लालसा में अपने बेचैन मन की शांति के लिए उन्होंने तत्कालीन संत-महात्मा रामकृष्ण परमहंस जी के ज्ञान की छाया ग्रहण की। परमहंस ने स्वामी जी की योग्यता की परीक्षा ली।
उनसे साफ-साफ कहा- ‘आप कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। ईश्वर ने आपको केवल सभी मानव जाति के कल्याण के लिए भेजा है।’ स्वामी रामकृष्ण के इस उत्साही भाषण को सुनकर नरेंद्रनाथ ने अपनी भक्ति और श्रद्धा को ही अपना कर्तव्य समझ लिया। परिणामस्वरूप, वे परमहंस जी के परम शिष्य और अनुयायी बन गए।
पिता श्री की मृत्यु के बाद परिवार का भार संभालने के बजाय, नरेंद्र ने संन्यास के मार्ग पर चलने का विचार किया। लेकिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें कहा की, “साधारण तपस्वियों की तरह अपना कीमती जीवन एकांत में व्यर्थ न गवाएं।
ईश्वर को देखना है तो मनुष्य की ही सेवा करो।” और स्वामी जी ने इस आदेश का पालन करते हुए अपने कर्तव्य पथ को उचित माना। वे ज्ञान और ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए विदेश भी घूमे।
1881 में नरेंद्रनाथ का त्याग करके स्वामी विवेकानंद बने। अमेरिका के शिकागो में धर्म सम्मेलन की घोषणा सुनकर वहां पहुंचे और अपनी अद्भुत विवेक क्षमता से सभी को चकित कर दिया।
11 सितंबर, 1883 को जब सम्मेलन शुरू हुआ और जब स्वामीजी सभी धर्माध्यक्षों और धर्माध्यक्षों के सामने बोलने लगे, भाइयों और बहनों, तो वहाँ का सारा माहौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
स्वामी विवेकानंद का जीवन और शिक्षाएं भारत के साथ-साथ दुनिया के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। वह आध्यात्मिकता, शांति और सार्वभौमिक भाईचारे के प्रवर्तक थे। ऐसे महान व्यक्तित्व का अगर एक गुण भी हम अपने जीवन में उतार ले तो हमारा जीवन भी धन्य बन जायेगा। धन्यवाद।
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Speech on Swami Vivekananda in Hindi (500 शब्द)
मेरे प्यारे श्रोतागणों,
सबको मेरा प्यार भरा नमस्कार।
आज मैं आपके साथ स्वामी विवेकांनद के बारे में कुछ विचार साझा करना चाहती हूँ। भारत में एक नई जागृति की शुरुआत करने वाले लोगों में स्वामी विवेकानंद का नाम प्रमुख है। हर भारतीय स्वामी विवेकानंद का नाम आज भी मान सम्मान के साथ लेते है।
उनका जन्म वर्ष 1863 में कलकत्ता में हिन्दु परिवार में हुआ था। माता पिता ने उनका नाम नरेन्द्र रखा था। नरेन्द्र बचपन से ही काफी जिज्ञासु प्रकार का बालक था। बुद्धिमान दिमाग और उच्च सोच जैसे उसे उपहार में मिला था।
उनके पिता विश्वनाथ दत्ता अंग्रेजी और फारसी के अच्छे जानकार थे। वह कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक सफल वकील थे। उनकी मां एक करिश्माई महिला थी, जिन्होंने बचपन से ही नरेन को प्रभावित किया था। उन्होंने पहले नरेन को अंग्रेजी का पाठ पढ़ाया, फिर उन्हें बंगाली वर्णमाला से परिचित कराया।
उन्होंने बी.ए. करने के बाद कानून का अभ्यास किया। उनकी माता उन्हें वकील बनाना चाहती थी। लेकिन नरेन्द्र को अध्यात्मिक की ओर ज्यादा रूचि थी। पिता की मृत्यु के बाद उनके घर की स्थितिअच्छी नहीं थी। इसलिए वो आगे पढ़ाई नहीं कर पाया।
आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने की चाह में नरेन्द्र सबसे अधिक समय साधु-संतों के साथ व्यतीत करते थे, जिसके दौरान वो स्वामी रामकृष्ण के संपर्क में आए। स्वामी रामकृष्ण ने नरेन्द्र को काफी प्रभावित किया। नरेन्द्र उनका अनुयायी बन गया।
स्वामी रामकृष्ण ने नरेन्द्र को बताया कि ईश्वर दर्शन के लिए एक मात्र उपाय मानवजाति की सेवा है। उन्होंने अपने गुरु के अंतिम समय तक उनकी सेवा की और उनकी याद में 1897 वर्ष को रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
रामकृष्ण मिशन एक ऐसे साधुओं और सन्यासियों का संगठन है, जो रामकृष्ण परमहंस के उपदेशों को आम जनता तक पंहुचा सके और दु:खी और ज़रूरतमंदों की नि:स्वार्थ सेवा कर सकें। विश्व सर्व धर्म सम्मलेन, 1883 में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने के लिए स्वामी विवेकानंद जी शिकागो गये।
लेकिन उन्हें वहां तुच्छ माना गया। काफी प्रयासों के बाद उन्हें मंच पर बोलने का मौका मिला। ‘मेरे भाइयों और बहनों’ सुनते ही वहां उपस्थित करीब 7 हज़ार लोगों ने उनके लिए जोरों से तालियां बजायी।
स्वामी विवेकानंद एक बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने कर्म योग, राज योग, वेदांत शास्त्र और भक्ति योग जैसी किताबें लिखी, जिसे लोग आज भी बड़ी दिलचस्पी के साथ पढ़ते है।
ज़रूरतमंदों की सेवा करने में स्वामी विवेकानंद इतना मशगूल हो गए थे कि वो अपनी सेहत का ध्यान नही रख पा रहे थे। जिसके चलते वो महज 39 वर्ष की आयु में ही 31 बीमारियों से ग्रसित हो गये थे।
उन्होंने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि वे 40 वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर सकेंगे और उनकी यह बात सच हो गई। 4 जुलाई 1902 के दिन उनकी मृत्यु 39 वर्ष की आयु में हुई।
स्वामी विवेकानंद जैसे महान व्यक्तित्व को श्रद्धांजलि देने के रूप में भारत में उनका जन्म दिवस राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हमें इस दिवस को सार्थक बनाने के लिए स्वामी विवेकानंद के अधूरे काम को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। मैं यही मेरे विचार समाप्त करना चाहती हूँ। शुक्रिया।
निष्कर्ष
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