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संत रविदास जयंती पर भाषण

Ravidas Jayanti Speech in Hindi: भारत देश सदियों से ही महान साधु संत पीर फकीरों की जन्म भूमि रही है। अनेको महान संतों ने इस धरती पर जन्म लेकर समाज में फैली कुर्तियां, जातिवाद, बड़े छोटे का भेदभाव मिटाया है।

ऐसे ही महान पुरुषों में से एक संत रैदास (संत रविदास) थे, जिन्होंने अपने दोहे और पदों के माध्यम से समाज की धारा का रुख मोड़ दिया। कबीर के समकालीन रविदास ने समाज में फैले जातिवाद को दूर करने में अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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Image: Ravidas Jayanti Speech in Hindi

हर साल संत रविदास जयंती पर विद्यालयों में कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसमें भाषण प्रतिस्पर्धा होती है। अगर आप भी संत रविदास जयंती पर भाषण (speech on ravidas jayanti in hindi) देना चाहते हैं तो इस लेख में हम संत रविदास पर भाषण लेकर आए हैं, जो आपके लिए मददगार साबित हो सकती है।

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संत रविदास जयंती पर भाषण (Ravidas Jayanti Speech in Hindi)

माननीय प्रधानाचार्य, आचार्य, अतिथि महोदय और मेरे प्यारे मित्रों आप सभी को संत रविदास जयंती की ढेर सारी शुभकामनाएं।

आज हम सभी संत रविदास जी की जयंती समारोह पर एकत्रित हुए हैं। मुझे बहुत खुशी है कि मुझे इस अवसर पर ऐसे महान व्यक्ति पर दो शब्द कहने का अवसर मिला है।

संत रविदास 15वीं, 16वीं शताब्दी के दौरान भक्ति आंदोलन के प्रभावशाली कवी-संतों में से एक थे। भक्ति आंदोलन में संत रविदास की अहम भूमिका रही थी, जिन्होंने अपने दोहे और पदो के माध्यम से जन-जन में भक्ति भाव को जागृत करने में मदद की थी।

संत रविदास का जन्म 1433 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के बनारस के सीर गोवर्धन गांव में हुआ था। उनकी माता का नाम गुर्बीनिया देवी और पिता का नाम रघु था। संत रविदास जाति से हरिजन थे।

इनके द्वारा लिखा गया एक दोहा “जाके कुटुंब सब ढोर ढोवंत फिरहिं अजहुँ बानारसी आसपास” में इन्होंने डंके की चोट पर कहा है कि यह अछूत जात के हैं। इस दोहे का अर्थ है कि आज भी बनारस के आसपास के क्षेत्र में इनके कुटुंब मुर्दे ढोने का कार्य करते हैं।

इससे इनका आशय है कि ये शुद्र परिवार से संबंध रखते थे। हालांकि संत रविदास को कभी इस बात का दुःख नहीं था। वे हमेशा अपने कर्म में विश्वास रखते थे, कर्म को सबसे ऊंचा मानते थे।

जात-पात के भेदभाव को रोकने के लिए इनका एक प्रसिद्ध दोहा है:

जाति जाति में जाती है, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाती ना जात।

इस दोहे के माध्यम से रैदास ने जन समाज को बताने की कोशिश की है कि जिस तरीके से केले के तने को छीलते रहने से पत्ते के नीचे पत्ता, मिलते रहता है और इस तरह करते-करते पेड़ पूरी तरीके से खत्म हो जाता है।

ठीक उसी तरह इंसानों को जाति में बांट तो दिया है। एक समय के बाद इंसान खत्म हो जाते हैं लेकिन यह जात खत्म नहीं होती। यह जाति पाति का भेदभाव इंसान को कभी एक नहीं होने देता।

संत रविदास जयंती हिंदी कैलेंडर के माघ महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह फरवरी-मार्च के महीने में आती है। संत रविदास जयंती विशेष रूप से पंजाब में मनाया जाता है।

इस दिन संगीत, नृत्य के साथ सड़कों पर गुरु रविदास के चित्र के साथ जुलूस निकाला जाता है। इस दिन उनके भक्त भजन कीर्तन गाते हैं। मंदिरों में बड़े पैमाने पर भंडारे का भी आयोजन होता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। संत रविदास जयंती महत्वपूर्ण हिंदू उत्सवों में से एक है।

इसी के साथ में अपने वचन को यहीं पर समाप्त करता हूं। जाते-जाते मैं आप सभी से यही अनुरोध करना चाहूंगा कि संत रविदास जयंती को केवल एक उत्सव की तरह ना समझते हुए उनके वचनों का भी अपने जीवन में पालन करें और जात-पात के भेदभाव को रोकने में आप भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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