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शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? (महत्‍व, विशेषता, पूजा विधि, कथा)

Sharad Purnima Kyu Manaya Jata Hai: साल के प्रत्येक महीने पूर्णिमा आता है, जिस दिन आसमान पूरी तरीके से चांद की रोशनी से भर जाता है और चांद की रोशनी में पूरी धरती बहुत ही शीतल एवं सुंदर लगती हैं। लेकिन साल के कुछ ही पूर्णिमा की तिथि सबसे ज्यादा सुख और समृद्धिशाली मानी जाती है। उनमें से एक शरद पूर्णिमा भी है, जिसे धनदायक पूर्णिमा माना जाता है।

Sharad Purnima Kyu Manaya Jata Hai
Image: Sharad Purnima Kyu Manaya Jata Hai

यह पूर्णिमा आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इसी के बाद सर्दियों का आरंभ भी हो जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जाता है। इसीलिए इस दिन लोग मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं। तो चलिए इस लेख में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि शरद पूर्णिमा का क्या महत्व है, उसकी पूजा विधि क्या है और इस दिन कौन सी सावधानी रखनी चाहिए।

शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? (महत्‍व, विशेषता, पूजा विधि, कथा) | Sharad Purnima Kyu Manaya Jata Hai

शरद पूर्णिमा का महत्‍व क्या है?

शरद पूर्णिमा का धार्मिक रूप से विशेष महत्व है। क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि समुद्र मंथन में बहुत सारे रत्न निकले थे, उन रचनाओं में मां लक्ष्मी भी थी और इसी दिन मां लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकलती है। मां लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी है, इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती है।

ऐसे में जो लोग इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते हैं, उन पर विशेष रूप से मां प्रसन्न होती है और अपनी कृपा बरसाती है। इसीलिए इस दिन लोग मंदिर में जाकर मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने के अतिरिक्त घरों पर भी पूजा करते हैं।

शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण गोपियों के साथ रास रचाया करते थे और उस रास को देखते ही चंद्र भाव विभोर हो जाते हैं, जिससे अपनी शितलता से धरती पर अमृत की वर्षा करते हैं। इस कारण इस दिन चांद की रोशनी को बहुत ही फलदायक माना जाता है। इसीलिए चांद की रोशनी में खीर बनाकर रखा जाता है और दूसरे दिन सेवन किया जाता है।

इस दिन चंद्रमा की रोशनी बहुत ही प्रभावकारी होने के कारण आयुर्वेदाचार्य लोग भी जीवनदायिनी रोग नाशक जड़ी बूटियों को चांदनी में रखते हैं। जिसके बाद अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनाया जाता है तो वह रोगी के ऊपर तुरंत प्रभाव डालती है।

वेद पुराणों में चंद्रमा को मन के समान माना गया है। वेद पुराण में चंद्रमा को जल का कारक भी बताया गया है। चंद्रमा को औषधियों का स्वामी भी कहा गया है। ब्रह्म पुराण में लिखा गया है कि चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है तो उससे औषधि की उत्पत्ति होती है और औषधि 16 कला संपूर्ण हो तो उस दिन औषधियों को बहुत ज्यादा बल मिलता है। शरद पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण और पृथ्वी के सबसे पास होता है।

शरद पूर्णिमा की विशेषता

शरद पूर्णिमा का दिन मरीजों के लिए बहुत ही विशेष दिन होता है। क्योंकि इस दिन औषधियों और दवाइयों की स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है। शरद पूर्णिमा की रात को ऋषि-मुनियों एवं भक्तजन के द्वारा खुले आसमान में नीचे खीर बनाकर रखा जाता है।

हालांकि यह परंपरा धार्मिक रूप से निभाई जाती है। परंतु उसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है कि दूध में लैक्टिक अम्ल मौजूद होता है और जब चंद्रमा की किरणों में दूध से बनी खीर को रखा जाता है तो यह बहुत तेजी से ताकत को अवशोषित कर लेता है। जिसके बाद इस खीर को खाने से शरीर की कई प्रकार की समस्याओं से निजात भी मिलता है।

इस दिन चांदी के बर्तन में खीर रखते हैं। इसका यह भी कारण होता है कि चांदी का प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक होती है, ऐसे में विषाणु का इसपर प्रभाव नहीं पड़ता है। जिस कारण इस बर्तन में रखें खीर पर जब चांद की रोशनी पडती है और उसका जब सेवन किया जाता है तो इससे बहुत बड़ा लाभ प्राप्त होता है।

ऐसा भी कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी के साथ इंद्रदेव भी अपने वाहन एरावत हाथी पर बैठकर धरती पर विचरण करने आते हैं और वे देखते हैं कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। जो लोग इस दिन रात में जाकर मां लक्ष्मी के साथ इंद्र देवता की पूजा अर्चना करता है, उन पर उनकी कृपा बरसती है।

कहा जाता है कि लंका का राजा रावण का वध भगवान श्रीराम ने किया था। वह हर साल शरद पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी को आईने के जरिए अपने नाभि पर लेता था, जिससे उसकी यौवन शक्ति बढ़ जाया करती थी। शरद पूर्णिमा के दिन सोम चक्र, आश्विन और क्षत्रिय चक्र का त्रिकोण बनता है, जिससे इस दिन उर्जा का बहुत ज्यादा संग्रह होता है।

शरद पूर्णिमा की पूजा विधि

  • शरद पूर्णिमा के दिन नदी में स्नान करने की परंपरा है और यदि नदी में स्नान नहीं कर सकते तो घर में ही सामान्य पानी में गंगा जल मिलाकर स्नान करना चाहिए और उसके बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनने चाहिए।
  • जिस स्थान पर पूजा करनी है, वहां पर अच्छे से साफ सफाई कर देनी चाहिए। उसके बाद वहां पर चौकी बिछाना चाहिए, जिस पर लाल कपड़ा या पीला कपड़ा बिछाना चाहिए।
  • अब इस चौकी पर लक्ष्मी माता और भगवान विष्णु की फोटो या प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। अब तांबे या फिर मिट्टी के कलश पर मां लक्ष्मी जी की स्वर्गीय में मूर्ति की स्थापना करनी चाहिए, जिन पर वस्त्र ढका होना चाहिए।
  • भगवान की प्रतिमा के सामने शुद्ध गाय के घी का दीपक जलाना चाहिए और धूप करना चाहिए। प्रतिमा को गंगाजल से स्नान करके अक्षत एवं रोली से तिलक लगाना चाहिए।
  • उसके बाद पीला या सफेद मिठाई से भोग लगाना चाहिए। अब भगवान को लाल या पीले पुष्प अर्पित करने चाहिए। मां लक्ष्मी को गुलाब का फूल विशेष रूप से अर्पित करने से फलदाई साबित होता है।
  • उसके बाद शाम के समय चंद्रमा के निकलते ही मिट्टी के 100 दिए जलाने चाहिए जैसे जिसकी क्षमता हो उसके अनुसार गाय के शुद्ध घी से ही दिये जलाने चाहिए।
  • शरद पूर्णिमा के दिन खीर भी बनाना चाहिए। इस दिन खीर बनाकर किसी छोटे बर्तन में रखकर छन्नी से ढककर चंद्रमा की रोशनी में रखना चाहिए।
  • इस दिन रात भर लोग जाग कर श्री कृष्ण मधुराष्टकम्, भगवान श्री कृष्ण की महिमा, विष्णु सहस्त्रनाम का जाप, श्रीसूक्त का पाठ और कनकधारा स्त्रोत का पाठ करते हैं ।
  • अगले दिन सुबह जल्दी स्नान करने के बाद रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखे। खीर को मां लक्ष्मी को अर्पित करना चाहिए और फिर प्रसाद स्वरूप उस खीर का वितरण अपने परिवार के सदस्यों में करना चाहिए।

शरद पूर्णिमा को क्यो कहते हैं “रास पूर्णिमा”

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसका संबंध भगवान श्री कृष्ण से जोड़ा गया है। माना जाता है कि इस रात भगवान श्री कृष्ण राधा रानी और अन्य गोपियों के साथ महा रास रचाते हैं। भगवान श्री कृष्ण रास रचाया करते थे तो चंद्रमा भी आसमान से उनकी रात को देखा करता था। एक बार तो चंद्रमा भगवान श्री कृष्ण के रास से इतने भाव विभोर हो गये, उन्होंने धरती पर अमृत वर्षा आरंभ कर दी।

इसीलिए इस दिन गुजरात में लोग रास भी रचाते हैं, गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी भक्तजन भगवान श्री कृष्ण का रास रचाते हैं। यहां तक कि बंगाल और उड़ीसा में भी इस रात को महालक्ष्मी की विधि विधान के साथ पूजा होती हैं। ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

चूंकि शरद पूर्णिमा को चंद्रमा अमृत वर्षा करता है। इसीलिए इस दिन रात भर लोग जागकर महालक्ष्मी की पूजा करते हैं, जिससे उनकी कामना की पूर्ति होती है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान शिव जी और मां पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ था।

शरद पूर्णिमा से जुड़ी कथा

शरद पूर्णिमा को बहुत से लोग व्रत रखते हैं और इस व्रत से जुड़ा एक कथा भी है कि प्राचीन काल में किसी नगर में एक साहूकार रहता था, जिसकी दो बेटी हुआ करती थी और दोनों ही बेटी पूर्णिमा का व्रत रखती थी। बड़ी बेटी पूर्णिमा के व्रत को श्रद्धा भाव से विधि विधान से पूरा करती थी। लेकिन छोटी बेटी व्रत को अधूरे में छोड़ देती थी और वह श्रद्धा भाव से पूजा नहीं करती थी।

कुछ सालों के बाद दोनों बेटियों का विवाह हुआ। शादी के पश्चात बड़ी बेटी ने बहुत ही स्वस्थ और सुंदर संतान को जन्म दिया। परंतु छोटी बेटी को कोई संतान नहीं हुई। कई साल हो गए छोटी बेटी को कोई संतान नहीं हुई और यदि उसको संतान होता तो संतान तुरंत मर जाता था। इस कारण वह और उसके परिवार वाले चिंतित रहने लगे।

उसी समय एक बार नगर में कुछ ज्योतिषी आए थे। साहूकार की छोटी बेटी और उसके पति ने सोचा कि क्यों ना एक बार ज्योतिषी से पूछा जाए। उन्होंने ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाई। ज्योतिषी ने तुरंत बता दिया कि यह तुम्हारे पूर्णिमा के अधूरे व्रत रखने के परिणाम स्वरूप हो रहा है। ज्योतिषी ने सलाह दी कि यदि तुम संतान प्राप्ति चाहती हो तो तुम्हें पूर्णिमा के व्रत को विधि विधान से श्रद्धा भाव से पूर्ण करना होगा।

उसके बाद सावकार की छोटी बेटी पूर्णिमा के व्रत को बहुत ही श्रद्धा भाव से और विधि विधान से पूरा करती हैं। इस व्रत के परिणाम पश्चात कुछ समय के बाद उसे संतान की प्राप्ति होती है। परंतु अब तक उसने पूर्णिमा के व्रत को हमेशा से ही अधूरा किया था तो उसी के के प्रभाव से उसका पुत्र कुछ समय के बाद मृत हो जाता है।

छोटी बेटी बहुत ज्यादा घबरा जाती है। उसके बाद वह अपने पुत्र को पीढे पर लेटा कर उसके ऊपर कपड़ा ढक देती है और फिर वह अपनी बड़ी बहन को बुलाने जाती है। उसकी बड़ी बहन आती है और उसे वह बोलती है कि आप इस पीढे पर बैठ जाए।

जैसे ही उसकी बड़ी बहन पीढे पर बैठने जाती है कि उसकी बहन का घाघरा उस बच्चे को स्पर्श कर जाता है, जिस कारण वह बच्चा तुरंत रोने लगता है। यह देखते ही बड़ी बहन छोटी बहन पर क्रोधित हो जाती है कि तू अपने पुत्र के मृत्यु का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अभी मैं यहां बैठ जाती तो क्या होता है इसका।

छोटी बहन ने कहा कि यह तो पहले से ही मर चुका था। यह तो तुम्हारे ही प्रभाव और भाग्य से पुनः जीवित हो गया। जिसके बाद पूर्णिमा के व्रत के इस महिमा का ढिंढोरा पूरे नगर में पिटवा दिया जाता है। जिसके बाद नगर में हर औरतें पूर्णिमा का व्रत करना शुरू कर देती है।

सावधानियां

शरद पूर्णिमा के दिन शास्त्रों के अनुसार कई ऐसे शुभ काम है, जिसे किया जा सकता है, जिससे जीवन में सुख समृद्धि आती है। लेकिन इसके विपरीत ऐसे भी कुछ काम है, जिन्हें करने से जीवन में बहुत से नुकसान झेलने पड़ते हैं। इसीलिए शरद पूर्णिमा के दिन निम्नलिखित बातों की सावधानी रखनी चाहिए:

  • शरद पूर्णिमा के दिन काले रंग का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सफेद रंग के वस्त्र उस दिन धारण करना अच्छा माना जाता है।
  • शरद पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग व्रत रहते हैं, जो लोग व्रत नहीं भी रखते हैं। उन्हें इस दिन मांस, मछली, प्याज, लहसुन, मसालेदार भोजन जैसे तामसिक भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए।
  • इस दिन चंद्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है, जिस कारण शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स बहुत ज्यादा क्रियाशील हो जाता है। ऐसे में इंसान बहुत ज्यादा भावूक या उत्तेजित हो जाता है। ऐसे में व्यक्ति का भविष्य उनके भावनाओं के अनुसार ही बनता और बिगड़ता है। इसीलिए इस दिन जितना हो सके हर किसी को अपने आपको शांत रखने की कोशिश करना चाहिए, गुस्सा पर कंट्रोल रखने का प्रयास करना चाहिए।
  • शरद पूर्णिमा के दिन भूल से भी शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। जिन्हें शराब पीने की आदत है, उन्हें इस दिन अपने आप पर कंट्रोल रखना चाहिए। क्योंकि यदि इस दिन गलती से भी शराब पी लिया जाए तो उस व्यक्ति के भविष्य पर दुष्परिणाम होते हैं।
  • चंद्रमा का पृथ्वी के जल के साथ संबंध है। इसीलिए पूर्णिमा के दिन धरती पर समुद्र में ज्वार भाटा उत्पन्न होता है। इस दिन समुद्र का जल ऊपर की ओर खींचता है। मानव शरीर में भी लगभग पचासी प्रतिशत जल रहता है और इस दिन जल की गति और गुण बदल जाते हैं। इसीलिए इस दिन जल की मात्रा और उसकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

FAQ

शरद पूर्णिमा कब मनाया जाता है?

शरद पूर्णिमा हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पूर्णिमा को राष्ट्रीय कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है।

शरद पूर्णिमा विशेष क्यों है?

वैसे तो पूर्णिमा हर महीने आती है परंतु आश्विन मास में आने वाली पूर्णिमा जिसे शरद पूर्णिमा कहते हैं। यह बहुत खास हैं क्योंकि पूरे साल में केवल इसी दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है।

शरद पूर्णिमा की रात को क्या किया जाता है?

शरद पूर्णिमा की रात को भक्तजन नदी में डुबकी लगाकर परिवार के सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती है। इसीलिए रात भर लोग उनका आवाहन करते हैं। इस दिन लोग खीर भी तैयार करते हैं।

शरद पूर्णिमा पर कौन से देवता की पूजा करनी चाहिए?

पौराणिक कथा के अनुसार जब समुद्र मंथन हो रहा था तो समुद्र से कई सारे रत्न निकल रहे थे। उन रत्नों में मां लक्ष्मी भी निकली थी और मां लक्ष्मी समुद्र मंथन के दौरान शरद पूर्णिमा के दिन ही बाहर आई थी। इसीलिए इस दिन मां लक्ष्मी और उनके साथ भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।

शरद पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से क्या होता है?

शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को समर्पित व्रत रखा जाता है। मां लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी है, इसीलिए इस दिन जो भी पूजा-अर्चना करता है, उनके जीवन में आर्थिक और शारीरिक रूप से लाभ की प्राप्ति होती है।

क्या शरद पूर्णिमा के दिन सोना खरीदना चाहिए?

पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा किसी भी नए उद्योग को शुरू करने का या कुछ नया खरीदने के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इसीलिए इस दिन सोने के सामान की भी खरीदी करने के लिए अच्छा दिन है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने जाना कि शरद पूर्णिमा कब और क्यों मनाया जाता है, शरद पूर्णिमा का क्या महत्व है, शरद पूर्णिमा में, पूजा विधि क्या है और शरद पूर्णिमा के दिन किन किन बातों की सावधानी रखनी चाहिए।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।