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हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है? (महत्व, इतिहास और कहानी)

हरतालिका तीज को संपूर्ण भारत की लड़कियां और महिलाओं द्वारा व्रत रखकर मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। कुंवारी कन्याएं ससुराल में अच्छा घर और मनपसंद पति की कामना करती हैं। जबकि शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और जीवन में सुख समृद्धि रखने की कामना करती है।

संपूर्ण भारत की स्त्रियां और लड़कियों द्वारा इस पर्व को उत्साह तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भारत की नारियों के लिए यह एक अत्यंत लोकप्रिय तथा महत्वपूर्ण पर्व है। सनातन धर्म में सदियों से ही लड़कियों और महिलाओं द्वारा अपने जीवन साथी की कामना के लिए व्रत रखे जा रहे हैं।

सनातन धर्म की नारियां अपने पति की लंबी आयु के लिए मनपसंद वर प्राप्त करने के लिए तथा ससुराल में अच्छे घर परिवार के सदस्य मिलने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती से इसकी कामना करती है। इसलिए वह व्रत रखती हैं और गौरी शंकर की पूजा करती है। गौरी शंकर उनकी इस मनोकामना को पूर्ण करने के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस तरह की परंपरा सदियों से चली आ रही है।

hartalika teej kyo manai jati hai

हरतालिका व्रत को विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस पर्व के अंतर्गत लड़कियां और महिलाएं निर्जला व्रत करती है। इस व्रत के अंतर्गत पूरे दिन भूखा रहना होता है जबकि अगले दिन व्रत संपन्न हो जाता है‌। इसीलिए यह अत्यंत कठोर व्रत है। इस पर्व को करवा चौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि करवा चौथ के व्रत के दौरान अंधेरा होने के बाद चांद देखकर उपवास खोल दिया जाता है।‌

जबकि इस व्रत के दौरान अगले दिन ही उपवास खोला जाता है। फिर भी भारत वर्ष की लड़कियां अपने मनपसंद के पति की कामना करने हेतु यह व्रत रखती हैं। जबकि महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और जीवन में सुख समृद्धि बनी रहने के लिए हरतालिका तीज व्रत रखती हैं।

हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है? (महत्व, इतिहास और कहानी)

हरतालिका तीज

हरतालिका तीज का व्रत भारतवर्ष के सनातन धर्म की महिलाएं अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए तथा जीवन में सुख समृद्धि बने रखने के लिए करती हैं। लड़कियां अपने मन अनुसार वर की प्राप्ति के लिए तथा जीवन में सुख समृद्धि बनी रहने के लिए ससुराल में अच्छा घर प्राप्त होने के लिए हरतालिका तीज का व्रत करती है। ताकि भगवान शिव और माता पार्वती उनसे प्रसन्न होकर उनकी मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद प्रदान कर दें।

कथा और कहानियों के अनुसार सबसे पहले हरतालिका तीज का व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव जी के लिए रखा था। इसी के उपलक्ष में तीज के दिन गौरी शंकर की पूजा की जाती है। हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली स्त्रियां इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके सिंगार करके स्वच्छ नए कपड़े पहन कर गौरी शंकर की प्रतिमा स्थापित करती है।‌ उ

सके बाद गोमूत्र तथा गंगाजल से गौरी शंकर की प्रतिमा को साफ किया जाता है और गाय के शुद्ध घी से दीपक जलाकर आरती की जाती है। व्रत रखने वाली महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन के लिए केले दूध और दूध से बने मिठाईयां तैयार करते हैं। दूध से बनी हुई मिठाइयां का भगवान शिव तथा माता पार्वती को भोग लगाते हैं। इस दौरान भगवान शिव की महिमा का आवरण के जाता है और माता पार्वती की आरती कहीं जाती हैं।

हरतालिका तीज का व्रत सनातन धर्म की कोई भी महिला तथा कुंवारी कन्याएं रख सकती हैं। लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि एक बार इस व्रत को रखने से जीवन पर उन्हें इस व्रत को रखना पड़ता है। अगर कोई महिला गर्भवती है या गंभीर रूप से बीमार है, तो उस स्थिति में उस महिला के स्थान पर कोई दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकता है।

इससे एक बात साफ हो जाती हैं कि एक बार इस व्रत का शुभारंभ करने के बाद जीवन भर इसे निभाना पड़ता है। इसीलिए कुंवारी कन्याओं और महिलाओं को अपने पति की लंबी आयु मनपसंद के वर की कामना हेतु तीज के व्रत का पालन करने से पहले इसके बारे में जरूर जान लेना चाहिए।

धर्म ग्रंथों के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली महिला और स्त्रियों को शयन का निषेध है। यानी कि हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली लड़कियों और महिलाओं को रात्रि के समय जागरण रखना पड़ता है। रात भर व्रत रखने वाली लड़कियां और महिलाएं अपने घर पर ही गौरी शंकर की प्रतिमा के आगे बैठकर उनके भजन कथा और कहानियों का वाचन करें।

इसके अलावा कुंवारी कन्याओं को मनपसंद वर की कामना करने हेतु दान पुण्य करना चाहिए। जबकि सुहागिन स्त्रियों को वस्त्र, फल, मिठाइयां, आभूषण और श्रृंगार की सामग्री दान करनी चाहिए। इससे उनके पति की लंबी आयु होती है और घर परिवार में हमेशा सुख समृद्धि बनी रहती हैं।

हरतालिका तीज कब है?

हरतालिका तीज का पर्व हर वर्ष भाद्रपद माह की शुक्ल तृतीया को संपूर्ण भारत में मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष हरतालिका तीज का पर्व 18 सितंबर 2023 सोमवार के दिन है।‌

इस दिन संपूर्ण भारत की महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करके नए वस्त्र पहन करके, श्रंगार करके देवी गौरी की और भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करते हैं‌। तथा उनकी पूजा करते हैं। ऐसा करने से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। इस पर्व को कुंवारी कन्याएं भी व्रत रखती हैं, ताकि उन्हें मनपसंद पति मिल सकें।

हरतालिका तीज कैसे मनाई जाती है?

हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली लड़कियां और महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं तथा नए और स्वच्छ कपड़े पहनती हैं। घर में तथा मंदिर में पूजा स्थल पर सभी जगह को साफ करके, जल और गोमूत्र का छिड़काव करते हैं।

उसके बाद गौरी शंकर की प्रतिभा या मिट्टी से बने हुए गौरी शंकर की मूर्ति को लाल कपड़े के ऊपर पूजा स्थल पर स्थापित करते हैं। गौरी शंकर की प्रतिमा के आसपास और उनके आगे पुष्प रखे जाते हैं। गौरी शंकर के आगे आंक के पत्ते और केले रखे जाते हैं।

हरतालिका तीज का व्रत रखने वाली स्त्रियां और लड़कियां सुबह से बिना कुछ खाए गौरी शंकर का गुणगान करती हैं और उनकी आरती उतारती है। माता पार्वती को सुहाग स्त्री द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सभी वस्तुएं चढाई जाती है और भगवान शिव को धोती अंगोछा अर्पित किया जाता है।

इसके अलावा भगवान शिव और माता पार्वती को दूध तथा दूध से बनी हुई मिठाइयां चढाई जाती है। इस दिन ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। पशु पक्षियों को दाना किया जाता है तथा कुंवारी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।

इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर सोलह सिंगार करके, सज धज का व्रत रखती हैं। केवल पानी पीकर ही पूरे दिन भर व्रत रखने वाली लड़कियों और महिलाओं को गुजारना होता है। दिन भर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करें। पुष्प अर्पित करें, उन्हें मिठाइयां चढ़ाएं तथा उनका गुणगान करें।‌

शाम के समय फिर से उनकी आरती उतारे, गाय के घी से दीपक जलाएं, धुप जलाएं तथा पूरी रात जागकर भगवान शिव पार्वती का जागरण करें। भगवान शिव पार्वती की कथा का वाचन करें। भगवान शिव एवं माता पार्वती की आराधना करें। इसके बाद दूसरे दिन सुबह जल्दी उठकर भगवान शिव के प्रसाद के साथ अपना व्रत खोल सकते हैं।

हरतालिका तीज कथा

भगवान शिव माता पार्वती को उनके पुनर्जन्म की याद दिलाते हैं। इसी दिन हरतालिका तीज मनाई जाती है।‌ भगवान शिव ने माता-पिता को कहा कि तुमने अपने 12 वर्ष के बाल्यावस्था में ही मुझे अर्थात भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय के तट पर घोर तप किया था।

इस दौरान तुमने केवल पेड़ों के पत्ते खाकर ही जीवन व्यतीत किया और केवल जल पीकर ही तप किया था। माता पार्वती ने अपने 12 वर्ष के बाल्यावस्था में ही खुले आसमान में मूसलाधार बारिश सर्दी और भयंकर गर्मी में ही लगातार केवल जल पीकर के ही घोर तपस्या की थी।

माता पार्वती की घोर तपस्या की वजह से उनके पिता दुखी हो गए। इसीलिए 1 दिन नारद जी देवलोक से पृथ्वी लोक पर माता पार्वती की तपस्या तथा उनके पिता को निराश देखकर उनके घर पधारे। घर पधारने पर माता सीता के पिता गिरिराज ने भगवान नारद जी का स्वागत किया और उन्हें अतिथि के रूप में स्थान ग्रहण करवाया। जिसके बाद नारद जी ने कहा कि मैं भगवान विष्णु के द्वारा भेजने पर आपके सामने उपस्थित हुआ हूं।

आप की कन्या अत्यंत कठोर तपस्या कर रही है, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु आप की कन्या से विवाह करना चाहते हैं। इस बात पर माता पार्वती के पिता ने कहा कि “भगवान खुद मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं, इससे बड़ी प्रसंता मेरे लिए क्या हो सकती हैं।” ऐसा कहते हुए उन्होंने विवाह के लिए हां कह दी।

एक तरफ जहां पार्वती भगवान शिव से विवाह करने के लिए घोर तपस्या कर रही थी। वहां दूसरी तरफ उनके पिता ने नारद जी को भगवान विष्णु के साथ अपनी पुत्री पार्वती का विवाह करने के लिए हां कह दिया था। अब माता पार्वती कठिन परिस्थिति में खड़ी हो गई।

अब उनके पास कोई भी रास्ता नहीं बचा। ऐसी स्थिति में उनकी सखी ने कहा कि “आप जिसे मन से चाहती हैं” उसके लिए ही तपस्या करें, आपकी मनोकामना जरुर पूर्ण होगी”।  ऐसा कहने पर माता पार्वती घने जंगलों में चली गई और वहां पर फिर से घनी तपस्या करने लग गई।

माता पार्वती के पिता ने पार्वती की खोज के लिए सैनिकों की टुकड़ी तैयार की और हर जगह माता का आरती को ढूंढने लगे लेकिन मवे कहीं पर भी नहीं मिली। इससे उनके पिता बहुत दुखी हुए। लेकिन उनकी तपस्या पूर्ण होने पर भगवान शिव खुद प्रकट हुए और माता पार्वती से कहा कि आपने मेरी इतनी कठोर तपस्या की है।

आप मुझसे क्या चाहती हैं कहिए, इस पर पार्वती ने  कहा कि “मैंने आपकी तपस्या केवल आपको अपना पति मारने के लिए की है, अगर आप खुद प्रकट हुए हैं और मेरी मनोकामना पूर्ण करना चाहते हैं? तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करें”।

ऐसा कहने पर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने और तपस्या के कारण माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस बात का पता चलने पर माता पार्वती के पिता ने भी सहमति से जता‌ई एवं भगवान शिव तथा पार्वती का विवाह धूमधाम से करवा दिया।

इस बात की खबर भगवान विष्णु तक पहुंचने पर भगवान विष्णु की शांत हो गए और उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया। इस कथा को भगवान शिव ने माता पार्वती को उसके पिछले जन्म के रूप में सुनाई थी। इसी के उपलक्ष में हरतालिका तीज मनाई जाती है।

हरतालिका तीज का इतिहास

धर्म शास्त्रों के अनुसार कई वर्षों तक माता पार्वती ने बाल्यावस्था में भगवान शिव की तपस्या की थी। माता भक्तों ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में चुनने के लिए घोर तपस्या की। उनकी तपस्या पूर्ण होने पर भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को भगवान शिव प्रकट होकर माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी मान लिया और दोनों ने विवाह कर लिया। इसीलिए भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है।

हरतालिका तीज का इतिहास भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह से शुरू होता है क्योंकि भगवान शिव ने कहा कि “इस दिन मैंने तुम्हें अपनाया है, अगर कोई कन्या या महिला इसी दिन व्रत रखकर अपने मनपसंद वर तथा पति की लंबी आयु की कामना करेंगी, तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी”।

इसी के उपलक्ष में हर वर्ष भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कुंवारी कन्याएं मनपसंद वर एवं शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए तथा जीवन में सुख समृद्धि बनी रखने के लिए पूरे दिन व्रत रखकर हरतालिका तीज मनाती हैं।

हरतालिका तीज का महत्व

सनातन धर्म में देवी देवताओं का विशेष महत्व है जिसमें सभी देवी देवताओं को अलग-अलग स्वरूप और अलग-अलग कारणों के लिए महत्व दिया गया है। इसी उपलक्ष में हरतालिका तीज का पर्व लड़कियों और महिलाओं के लिए महत्व रखता है क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने माता पार्वती की तपस्या को पूर्ण होने पर अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लिया था।

इसीलिए भारतीय समाज में कुंवारी कन्याएं अपने मनपसंद पति की कामना करने के लिए तथा ससुराल में अच्छे घर परिवार के लोग मिलने के लिए भगवान शिव से मनोकामना की पूर्ति हेतु व्रत रखकर हरतालिका तीज का पर्व मनाते हैं।

शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए, अखंड जीवन की पूर्ति के लिए तथा अपने संपूर्ण घर परिवार की सुख समृद्धि के लिए सुखी से जीवन यापन करने के लिए और हमेशा धनसंपदा की आपूर्ति बनाए रखने के लिए हरतालिका तीज के दिन निर्जला व्रत रखकर गौरी शंकर की पूजा करती हैं।

उनकी उपासना करती हैं ताकि भगवान शिव और गौरी मां खुश होकर आशीर्वाद के रूप में उनकी मनोकामना को पूर्ण कर दें। इसी महत्व के आधार पर सदियों से ही भारत की नारियों और लड़कियां द्वारा हरतालिका तीज का पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व सनातन धर्म के अंतर्गत लड़कियां और महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।

निष्कर्ष

भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित हरतालिका तीज का त्योहार भारतवर्ष की संपूर्ण नारियां मनाती है। विशेष रुप से ऐसी नारियां जो अपने पति की दीर्घायु की कामना करना चाहती हैं या फिर ऐसी लड़कियां जो मनपसंद के पति और अच्छे ससुराल की कामना करती है। एक बार इस व्रत को शुरू करने के बाद जीवन भर उसे निभाना पड़ता है। इसीलिए इस व्रत को शुरू करने से पहले इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। आज के इस आर्टिकल में हम आपको पूरी जानकारी के साथ विस्तार से बता चुके हैं।

हरतालिका तीज कब है? हरतालिका तीज कैसे मनाई जाती हैं? हरतालिका तीज की कथा क्या है? हरतालिका तीज का इतिहास क्या है? तथा हरतालिका तीज का महत्व क्या है? यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। अगर आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई भी प्रश्न है, तो आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके पूछ सकते हैं। हम पूरी कोशिश करेंगे कि आपके द्वारा पूछे गए प्रश्न का जल्द से जल्द उत्तर दे सकें। इस आर्टिकल को आप अपने दोस्तों के साथ भी जरूर शेयर करें, ताकि उन्हें भी इस महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में पता चल सकें।

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