सर्वश्रेष्ठ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (Sanskrit Shlokas): संस्कृत भाषा विश्व की सबसे पुरानी भाषा है और इसका भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है। इसे देव भाषा भी कहा जाता है।
संस्कृत श्लोकों (Slokas in Sanskrit) का महत्व इतिहास से जुड़ा हुआ है, और यही वजह है कि आज भी ये श्लोक हमारे जीवन में उपयोगी हैं। प्रत्येक संस्कृत श्लोक में मनुष्य के जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत और उससे मिलने वाले लाभ और जीवन के नीतियों का वर्णन किया गया है।
ऋषि-मुनियों ने संस्कृत भाषा में कई बातें श्लोकों के माध्यम से जीवन से जुड़ी अमूल्य बातें व्यक्त की हैं जो सम्पूर्ण मानव जाति के लिए उपयोगी है।
इस पोस्ट में हमने आपके लिए संस्कृत श्लोक अर्थ सहित (sanskrit shlok with hindi meaning) सहित दिए है। जिसमें छोटे संस्कृत श्लोक अर्थ सहित भी बताएं है।
प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas
अन्यायोपार्जितं वित्तं दस वर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्ते चैकादशेवर्षे समूलं तद् विनश्यति।।
अर्थ– गलत तरीके से और अन्याय करके कमाया हुआ धन 10 वर्षों तक ही संचित किया हुआ रह सकता है। लेकिन वह धन अपने मूलधन सहित पूरा ग्यारहवें वर्ष नष्ट हो जाता है।
संस्कृत श्लोक – Sanskrit Shlok
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
अर्थ – व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन आलस्य होता है, व्यक्ति का परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र होता है। क्योंकि जब भी मनुष्य परिश्रम करता है तो वह दुखी नहीं होता है और हमेशा खुश ही रहता है।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।।
अर्थ – व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।
अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।।
अर्थ– हर विद्यार्थी में हमेशा कौवे की तरह कुछ नया सीखाने की चेष्टा, एक बगुले की तरह एक्राग्रता और केन्द्रित ध्यान एक आहत में खुलने वाली कुते के समान नींद, गृहत्यागी और यहाँ पर अल्पाहारी का मतबल अपनी आवश्यकता के अनुसार खाने वाला जैसे पांच लक्षण होते है।
ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीतिलक्षणम्।।
अर्थ – लेना, देना, खाना, खिलाना, रहस्य बताना और उन्हें सुनना ये सभी 6 प्रेम के लक्षण है।
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अनादरो विलम्बश्च वै मुख्यम निष्ठुर वचनम।
पश्चतपश्च पञ्चापि दानस्य दूषणानि च।।
अर्थ – अपमान करके देना, मुंह फेर कर देना, देरी से देना, कठोर वचन बोलकर देना और देने के बाद पछ्चाताप होना। ये सभी 5 क्रियाएं दान को दूषित कर देती है।
वाणी रसवती यस्य,यस्य श्रमवती क्रिया।
लक्ष्मी: दानवती यस्य,सफलं तस्य जीवितं।।
अर्थ – जिस मनुष्य की वाणी मीठी हो, जिसका काम परिश्रम से भरा हो, जिसका धन दान करने में प्रयुक्त हो, उसका जीवन सफ़ल है।
Shlok in Sanskrit
श्वः कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वान्हे चापरान्हिकम्।
न हि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्।।
अर्थ–जिस काम को कल करना है उसे आज और जो काम शाम के समय करना हो तो उसे सुबह के समय ही पूर्ण कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु कभी यह नहीं देखती कि इसका काम अभी भी बाकी है।
यस्तु संचरते देशान् यस्तु सेवेत पण्डितान्।
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि।।
अर्थ – जो व्यक्ति भिन्न-भिन्न देशों में यात्रा करता है और विद्वानों से सम्बन्ध रखता है। उस व्यक्ति की बुध्दि उसी तरह होती है जैसे तेल की एक बूंद पूरे पानी में फैलती है।
श्रोत्रं श्रुतेनैव न कुंडलेन, दानेन पाणिर्न तु कंकणेन।
विभाति कायः करुणापराणां, परोपकारैर्न तु चन्दनेन।।
अर्थ – कानों में कुंडल पहन लेने से शोभा नहीं बढ़ती, अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है। हाथों की सुन्दरता कंगन पहनने से नहीं होती बल्कि दान देने से होती है। सज्जनों का शरीर भी चन्दन से नहीं बल्कि परहित में किये गये कार्यों से शोभायमान होता है।
प्रेम पर संस्कृत श्लोक
प्रदोषे दीपक: चन्द्र:, प्रभाते दीपक: रवि:।
त्रैलोक्ये दीपक: धर्म:, सुपुत्र: कुलदीपक:।।
अर्थ- संध्या काल में चन्द्रमा दीपक है, प्रभात काल में सूर्य दीपक है, तीनों लोकों में धर्म दीपक है और सुपुत्र कूल का दीपक है।
अश्वस्य भूषणं वेगो मत्तं स्याद् गजभूषणं।
चातुर्यम् भूषणं नार्या उद्योगो नरभूषणं।।
अर्थ- घोड़े की शोभा उसके वेग से होती है और हाथी की शोभा उसकी मदमस्त चाल से होती है।नारियों की शोभा उनकी विभिन्न कार्यों में दक्षता के कारण और पुरुषों की उनकी उद्योगशीलता के कारण होती है।
यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत्।
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति।।
अर्थ- जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता। ठीक उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है।
प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात तदैव वक्तव्यम वचने का दरिद्रता।।
अर्थ- प्रिय वाक्य बोलने से सभी जीव संतुष्ट हो जाते हैं, अतः प्रिय वचन ही बोलने चाहिए। ऐसे वचन बोलने में कंजूसी कैसी।
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संस्कृत के श्लोक (Sanskrit Shlok)
कृते प्रतिकृतं कुर्यात्ताडिते प्रतिताडितम्।
करणेन च तेनैव चुम्बिते प्रतिचुम्बितम्।।
अर्थ- हर कार्रवाही के लिए एक जवाबी कार्रवाही होनी चाहिए। हर प्रहार के लिए एक प्रति-प्रहार और उसी तर्क से हर चुम्बन के लिए एक जवाबी चुम्बन।
परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः।
अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम्।।
अर्थ- यदि कोई अपरिचित व्यक्ति आपकी मदद करें तो उसको अपने परिवार के सदस्य की तरह ही महत्व दें और अपने परिवार का सदस्य ही आपको नुकसान देना शुरू हो जाये तो उसे महत्व देना बंद कर दें। ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमार हो जाये तो वह हमें तकलीफ पहुंचती है। जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है।
शुभ प्रभात संस्कृत श्लोक
न देवा दण्डमादाय रक्षन्ति पशुपालवत।
यं तु रक्षितमिच्छन्ति बुद्धया संविभजन्ति तम्।।
अर्थ– देवता कभी मनुष्यों की रक्षा चरवाहों की भांति डंडा लेकर नहीं करते। जिसकी देवता रक्षा करना चाहते है, उसे उसकी रक्षा के लिए स्वरक्षा के लिए सद्बुद्धि प्रदान करते है।
सेवितव्यो महावृक्ष: फ़लच्छाया समन्वित:।
यदि देवाद फलं नास्ति,छाया केन निवार्यते।।
अर्थ- एक विशाल वृक्ष की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि वह फल और छाया से युक्त होता है। यदि किसी दुर्भाग्य से फल नहीं देता तो उसकी छाया कोई नहीं रोक सकता है।
मूर्खस्य पञ्च चिह्नानि गर्वो दुर्वचनं तथा।
क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः।।
अर्थ- एक मुर्ख के पांच लक्षण होते है घमण्ड, दुष्ट वार्तालाप, क्रोध, जिद्दी तर्क और अन्य लोगों के लिए सम्मान में कमी।
पुस्तकस्था तु या विद्या,परहस्तगतं च धनम्।
कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम्।।
अर्थ- किसी पुस्तक में रखी विद्या और दूसरे के हाथ में गया धन। ये दोनों जब जरूरत होती है तब हमारे किसी भी काम में नहीं आती।
छोटे संस्कृत श्लोक (sanskrit ke shlok)
देवो रुष्टे गुरुस्त्राता गुरो रुष्टे न कश्चन:।
गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता गुरुस्त्राता न संशयः।।
अर्थ – भाग्य रूठ जाये तो गुरू रक्षा करता है। गुरू रूठ जाये तो कोई नहीं होता। गुरू ही रक्षक है, गुरू ही शिक्षक है, इसमें कोई संदेह नहीं।
निरपेक्षो निर्विकारो निर्भरः शीतलाशयः।
अगाधबुद्धिरक्षुब्धो भव चिन्मात्रवासनः।।
अर्थ- आप सुख साधन रहित, परिवतर्नहीन, निराकार, अचल, अथाह जागरूकता और अडिग हैं। इसलिए अपनी जाग्रति को पकड़े रहो।
परस्वानां च हरणं परदाराभिमर्शनम्।
सचह्रदामतिशङ्का च त्रयो दोषाः क्षयावहाः।।
अर्थ– दूसरों के धन का अपहरण, पर स्त्री के साथ संसर्ग और अपने हितैषी मित्रों के प्रति घोर अविश्वास ये तीनों दोष जीवन का नाश करने वाले हैं।
Sanskrit Shlok with Hindi Meaning
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।
न च विद्यागमोऽप्यस्ति वासस्तत्र न कारयेत्।।
अर्थ– ऐसा देश जहाँ पर कोई सम्मान नहीं हो, जीने के लिए कोई आजीविका नहीं मिले, कोई अपना भाई और बन्धु नहीं रहता हो, जहाँ पर विद्या ग्रहण करने की संभवना नहीं हो, ऐसे स्थान पर रहना नहीं चाहिए।
विद्या मित्रं प्रवासेषु,भार्या मित्रं गृहेषु च।
व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च।।
अर्थ – विदेश में ज्ञान, घर में अच्छे स्वभाव और गुणस्वरूप पत्नी, औषध रोगी का तथा धर्म मृतक का सबसे बड़ा मित्र होता है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविन:।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलं।।
अर्थ – बड़ों का अभिवादन करने वाले मनुष्य की और नित्य वृद्धों की सेवा करने वाले मनुष्य की आयु, विद्या, यश और बल ये हमेशा बढ़ती रहती है।
छोटे संस्कृत श्लोक with meaning
यावद्बध्दो मरुद देहे यावच्चित्तं निराकुलम्।
यावद्द्रॄष्टिभ्रुवोर्मध्ये तावत्कालभयं कुत:।।
अर्थ- जब तक शरीर में सांस रोक दी जाती है तब तक मन अबाधित रहता है और जब तक ध्यान दोनों भौहों के बीच लगा है तब तक मृत्यु से कोई भय नहीं है।
सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।
अर्थ – हमें अचानक आवेश या जोश में आकर कोई काम नहीं करना चाहिए। क्योंकि विवेक हीनता सबसे बड़ी विपतियों का कारण होती है। इसके विपरीत जो व्यक्ति सोच समझकर कार्य करता है। गुणों से आकृष्ट होने वाली मां लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्।
परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते।।
अर्थ– संसार में जन्म मरण का चक्र चलता ही रहता है। लेकिन जन्म लेना उसका सफल है। जिसके जन्म से कुल की उन्नति हो।
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संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
Sanskrit Mein Shlok
मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।
अर्थ– मुर्ख शिष्यों को पढ़ाकर, दुष्ट स्त्री के साथ अपना जीवन बिताकर, रोगियों और दुखियों के साथ रहकर विद्वान भी दुखी हो जाता है।
दुर्जन: परिहर्तव्यो विद्यालंकृतो सन।
मणिना भूषितो सर्प: किमसौ न भयंकर:।।
अर्थ- दुष्ट व्यक्ति यदि विद्या से सुशोभित भी तो अर्थात् वह विद्यावान भी हो तो भी उसका परित्याग कर देगा। चाहिए जैसे मणि से सुशोभित सर्प क्या भयंकर नहीं होता?
निश्चित्वा यः प्रक्रमते नान्तर्वसति कर्मणः।
अवन्ध्यकालो वश्यात्मा स वै पण्डित उच्यते।।
अर्थ- जिसके प्रयास एक दृढ़ प्रतिबध्दता से शुरू होते हैं जो कार्य पूर्ण होने तक ज्यादा आराम नहीं करते हैं जो समय बर्बाद नहीं करते हैं और जो अपने विचारों पर नियन्त्रण रखते हैं वह बुद्धिमान है।
संस्कृत में सुविचार (Sanskrit Quotes With Meaning)
येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।
अर्थ- जिस मनुष्यों में विद्या का निवास है, न मेहनत का भाव, न दान की इच्छा और न ज्ञान का प्रभाव, न गुणों की भिव्यक्ति और न धर्म पर चलने का संकल्प, वे मनुष्य नहीं वे मनुष्य रूप में जानवर ही धरती पर विचरते हैं।
स्तस्य भूषणम दानम, सत्यं कंठस्य भूषणं।
श्रोतस्य भूषणं शास्त्रम, भूषनै: किं प्रयोजनम।।
अर्थ- हाथ का आभूषण दान है, गले का आभूषण सत्य है, कान की शोभा शास्त्र सुनने से है, अन्य आभूषणों की क्या आवश्यकता है।
यद्यत्संद्दश्यते लोके सर्वं तत्कर्मसम्भवम्।
सर्वां कर्मांनुसारेण जन्तुर्भोगान्भुनक्ति वै।।
अर्थ- लोगों के बीच जो सुख या दुःख देखा जाता है कर्म से पैदा होता है। सभी प्राणी अपने पिछले कर्मों के अनुसार आनंद लेते हैं या पीड़ित होते हैं।
दयाहीनं निष्फलं स्यान्नास्ति धर्मस्तु तत्र हि।
एते वेदा अवेदाः स्यु र्दया यत्र न विद्यते।।
अर्थ – बिना दया के किये गये काम में कोई फल नहीं मिलता, ऐसे काम में धर्म नहीं होता जहां दया नहीं होती। वहां वेद भी अवेद बन जाते हैं।
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा, शास्त्रं तस्य करोति किं।
लोचनाभ्याम विहीनस्य, दर्पण:किं करिष्यति।।
अर्थ- जिस व्यक्ति के पास स्वयं का विवेक नहीं है। शास्त्र उसका क्या करेगा? जैसे नेत्रहीन व्यक्ति के लिए दर्पण व्यर्थ है।
कर्म पर संस्कृत श्लोक (thought in sanskrit)
अपि मेरुसमं प्राज्ञमपि शुरमपि स्थिरम्।
तृणीकरोति तृष्णैका निमेषेण नरोत्तमम्।।
अर्थ- भले ही कोई व्यक्ति मेरु पर्वत की तरह स्थिर, चतुर, बहादुर दिमाग का हो लालच उसे पल भर में घास की तरह खत्म कर सकता है।
यत्र स्त्री यत्र कितवो बालो यत्रानुशासिता।
मज्जन्ति तेवशा राजन् नद्यामश्मप्लवा इव।।
अर्थ– जहां का शासन स्त्री, जुआरी और बालक के हाथ में होता है। वहां के लोग नदी में पत्थर की नाव में बैठने वालों की भांति विवश होकर विपत्ति के समुद्र में डूब जाते हैं।
आसान संस्कृत श्लोक
सत्यं रूपं श्रुतं विद्या कौल्यं शीलं बलं धनम्।
शौर्यं च चित्रभाष्यं च दशेमे स्वर्गयोनयः।।
अर्थ– स्तय, विनय, शास्त्रज्ञान, विद्या, कुलीनता, शील, बल, धन, शूरता
और वाक्पटुता ये दस लक्षण स्वर्ग के कारण हैं।
अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः।
उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम्।।
अर्थ – निम्न कोटि के लोग सिर्फ धन की इच्छा रखते हैं। मध्यम कोटि का व्यक्ति धन और सम्मान दोनों की इच्छा रखता है। वहीं एक उच्च कोटि के व्यक्ति के लिए सिर्फ सम्मान ही मायने रखता है। सम्मान से अधिक मूल्यवान है।
न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।
अर्थ- न कोई किसी का मित्र होता है, न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
श्लोक संस्कृत (sanskrit shlok)
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभ्य सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वाऽमृतमश्नुते।।
अर्थ – जो दोनों को जानता है, भौतिक विज्ञान के साथ-साथ आध्यात्मिक विज्ञान भी, पूर्व से मृत्यु का भय अर्थात् उचित शारीरिक और मानसिक प्रयासों से और उतरार्द्ध अर्थात् मन और आत्मा की पवित्रता से मुक्ति प्राप्त करता है।
व्यसने वार्थकृच्छ्रे वा भये वा जीवितान्तगते।
विमृशंश्च स्वया बुद्ध्या धृतिमान नावसीदति।।
अर्थ– शोक में, आर्थिक संकट में या प्राणों का संकट होने पर जो अपनी बुद्धि से विचार करते हुए धैर्य धारण करता है। उसे अधिक कष्ट नहीं उठाना पड़ता।
घमंड पर संस्कृत श्लोक
मूढ़ैः प्रकल्पितं दैवं तत परास्ते क्षयं गताः।
प्राज्ञास्तु पौरुषार्थेन पदमुत्तमतां गताः।।
अर्थ– भाग्य की कल्पना मूर्ख लोग ही करते हैं। बुद्धिमान लोग तो अपने पुरूषार्थ, कर्म और उद्द्यम के द्वारा उत्तम पद को प्राप्त कर लेते हैं।
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
अर्थ – ज्ञान विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से धन प्राप्त होता है, जिससे व्यक्ति धर्म के कार्य करता है और सुखी रहता है।
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Shlok Arth Sahit
कार्यार्थी भजते लोकं यावत्कार्य न सिद्धति।
उत्तीर्णे च परे पारे नौकायां किं प्रयोजनम्।।
अर्थ – जब तक काम पूरे नहीं होते हैं तब तक लोग दूसरों की प्रशंसा करते हैं। काम पूरा होने के बाद लोग दूसरे व्यक्ति को भूल जाते हैं। ठीक उसी तरह जैसे नदी पार करने के बाद नाव का कोई उपयोग नहीं रह जाता है।
दुर्जन: स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
नोदर तृप्तिमायाती मूषक: वस्त्रभक्षक:।।
अर्थ- दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहा पेट भरने के लिए कपड़े नहीं कटता।
ज्ञान पर संस्कृत श्लोक (shlok sanskrit mein)
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
अर्थ- न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है, न इसका भाइयों के बीच बंट वारा होता है और न ही संभलना कोई भर है। इसलिए खर्च करने से बढ़ने वाला विद्या रुपी धन, सभी धनों से श्रेष्ठ है।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:।।
अर्थ- सत्य बोलो, प्रिय बोलो, अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिए प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।
मातृवत परदारांश्च परद्रव्याणि लोष्टवत्।
आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति स पश्यति।।
अर्थ– पराई स्त्री अर्थात किसी अन्य की पत्नी को अपनी मां के समान, दूसरे के धन को मिट्टी की तरह और सभी प्राणियों को अपने समान ही देखता है। असल में वो ही ज्ञानी है।
Sanskrit Shlok with Meaning
धृतिः शमो दमः शौचं कारुण्यं वागनिष्ठुरा।
मित्राणाम् चानभिद्रोहः सप्तैताः समिधः श्रियः।।
अर्थ– धैर्य, मन पर अंकुश, इन्द्रियसंयम, पवित्रता, दया, मधुर वाणी और मित्र से द्रोह न करना ये सात चीजें लक्ष्मी को बढ़ाने वाली हैं।
शतेषु जायते शूरः सहस्रेषु च पण्डितः।
वक्ता दशसहस्रेषु दाता भवति वा न वा।।
अर्थ – सौ लोगों में से एक शूरवीर होता है। हजार लोगों में एक विद्वान होता है। दस हजार लोगों में एक अच्छा वक्ता होता है। वही लाखों में बस एक ही दानी होता है।
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।
अर्थ- बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मुर्ख लोग निंद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थ- गुरू ही ब्रह्मा हैं, गुरू ही विष्णु हैं, गुरू ही शंकर है, गुरू ही साक्षात परमब्रह्म हैं। ऐसे गुरू का मैं नमन करता हूं
sanskrit shlok with meaning in hindi
पृथ्वियां त्रीणि रत्नानि जलमन्नम सुभाषितं।
मूढ़े: पाधानखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।
अर्थ – पृथ्वी पर तीन रत्न हैं जलअन्न और शुभ वाणी पर मुर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा देते हैं।
उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्तये।
पयःपानं भुजंगानां केवलं विषवर्द्धनम्।।
अर्थ– मूर्खों को दिया हुआ उपदेश उनके क्रोध को बढ़ाता ही है शांत नहीं करता। जिस प्रकार साँपों को पिलाया हुआ दुध हमेशा उनका विष ही बढ़ाता है।
Shlok in Hindi
न स्वल्पस्य कृते भूरि नाशयेन्मतिमान् नरः।
एतदेवातिपाण्डित्यं यत्स्वल्पाद् भूरिरक्षणम्।।
अर्थ– थोड़े के लिए अधिक का नाश न करे, बुद्धिमत्ता इसी में है। बल्कि थोड़े को छोड़कर अधिक की रक्षा करे।
विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते।।
अर्थ – एक विद्वान और राजा की कभी कोई तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि राजा तो केवल अपने राज्य में सम्मान पाता है वही एक विद्वान हर जगह सम्मान पाता है।
ज्ञान संस्कृत श्लोक (sanskrit ka shlok)
भूमे:गरीयसी माता,स्वर्गात उच्चतर:पिता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी।।
अर्थ – भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं, माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
अग्निना सिच्यमानोऽपि वृक्षो वृद्धिं न चाप्नुयात्।
तथा सत्यं विना धर्मः पुष्टिं नायाति कर्हिचित्।।
अर्थ – आग से सींचे गए पेड़ कभी बड़े नहीं होते। उसी प्रकार सत्य के बिना धर्म की स्थापना संभव नहीं है।
शैले शैले न माणिक्यं,मौक्तिम न गजे गजे।
साधवो नहि सर्वत्र,चंदन न वने वने।।
अर्थ – प्रत्येक पर्वत पर अनमोल रत्न नहीं होते, प्रत्येक हाथी के मस्तक में मोती नहीं होता। सज्जन लोग सब जगह नहीं होते और प्रत्येक वन में चंदन नही पाया जाता।
विद्यां ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्।।
अर्थ – विद्या हमें विनम्रता प्रदान करती है। विनम्रता से योग्यता आती है व योग्यता से हमें धन प्राप्त होता है और इस धन से हम धर्म के कार्य करते है और सुखी रहते है।
माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः।
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा।।
अर्थ – जो माता पिता अपने बच्चो को शिक्षा से वंचित रखते हैं, ऐसे माँ बाप बच्चो के शत्रु के समान है। विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह हंसो के बीच एक बगुले के सामान है।
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Sanskrit Shlokas
सर्वे क्षयान्ता निचयाः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः।
संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम्।।
अर्थ– सभी प्रकार के संग्रह का अंत क्षय है। बहुत ऊंचे चढ़ने के अंत नीचे गिरना है। संयोग का अंत वियोग है और जीवन का अंत मरण है।
न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति।।
अर्थ – लोगों की निंदा किये बिना दुष्ट व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है। परंतु गंदगी के बिना उसकी तृप्ति नहीं होती।
सुखार्थिनः कुतोविद्या नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।
अर्थ – सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ से, और विद्यार्थी को सुख कहाँ से, सुख की इच्छा रखने वाले को विद्या और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख का त्याग कर देना चाहिए।
बच्चों के लिए संस्कृत श्लोक
Shlok in Sanskrit
आयुर्वित्तं गृहच्छिद्रं मन्त्रमैथुनभेषजम्।
दानमानापमानं च नवैतानि सुगोपयेत्।।
अर्थ– हर व्यक्ति को अपनी आयु, गृह के दोष, मैथुन, मन्त्र, धन, दान, औषधि, मान-सम्मान, अपने अपमान, अपनी योग्यता को हमेशा सभी से छुपाकर ही रखना चाहिए अन्यथा कभी भी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
मूर्खा यत्र न पूज्यते धान्यं यत्र सुसंचितम्।
दंपत्यो कलहं नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागतः।।
अर्थ – जहाँ मूर्ख को सम्मान नहीं मिलता हो, जहाँ अनाज अच्छे तरीके से रखा जाता हो और जहाँ पति-पत्नी के बीच में लड़ाई नहीं होती हो, वहाँ लक्ष्मी खुद आ जाती है।
न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:।
काक:सर्वरसान भुक्ते विनामध्यम न तृप्यति।।
अर्थ – लोगों की निंदा (बुराई) किये बिना दुष्ट (बुरे) व्यक्तियों को आनंद नहीं आता। जैसे कौवा सब रसों का भोग करता है परंतु गंदगी के बिना उसकी संतुष्टि नहीं होती।
नीरक्षीरविवेके हंस आलस्यं त्वं एव तनुषे चेत।
विश्वस्मिन अधुना अन्य:कुलव्रतम पालयिष्यति क:।।
अर्थ – ऐ हंस, यदि तुम दूध और पानी में फर्क करना छोड़ दोगे तो तुम्हारे कुलव्रत का पालन इस विश्व मे कौन करेगा। यदि बुद्धिमान व्यक्ति ही इस संसार मे अपना कर्त्तव्य त्याग देंगे तो निष्पक्ष व्यवहार कौन करेगा।
र्जन: स्वस्वभावेन परकार्ये विनश्यति।
नोदर तृप्तिमायाती मूषक: वस्त्रभक्षक:।।
अर्थ- दुष्ट व्यक्ति का स्वभाव ही दूसरे के कार्य बिगाड़ने का होता है। वस्त्रों को काटने वाला चूहाकभी भी पेट भरने के लिए कपड़े नहीं काटता।
Sanskrit Shlokas
Shlok in Sanskrit
अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः।
यात्यनभ्यासतो दूरात्स्नेहो बन्धुषु तानवम्।।
अर्थ– बार बार मिलने से अपरिचित भी मित्र बन जाते हैं। दूरी के कारण न मिल पाने से बन्धुओं में स्नेह कम हो जाता है।
न कश्चित कस्यचित मित्रं न कश्चित कस्यचित रिपु:।
व्यवहारेण जायन्ते, मित्राणि रिप्वस्तथा।।
अर्थ – न कोई किसी का मित्र होता है। न कोई किसी का शत्रु। व्यवहार से ही मित्र या शत्रु बनते हैं।
भूमे: गरीयसी माता, स्वर्गात उच्चतर: पिता।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात अपि गरीयसी।।
अर्थ- भूमि से श्रेष्ठ माता है, स्वर्ग से ऊंचे पिता हैं। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ हैं।
काव्यशास्त्रविनोदेन कालो गच्छति धीमतां।
व्यसनेन च मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा।।
अर्थ – बुद्धिमान लोग काव्य-शास्त्र का अध्ययन करने में अपना समय व्यतीत करते हैं। जबकि मूर्ख लोग निद्रा, कलह और बुरी आदतों में अपना समय बिताते हैं।
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात न ब्रूयात सत्यं प्रियम।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात एष धर्म: सनातन:।।
अर्थ- सत्य बोलो, प्रिय बोलो, अप्रिय लगने वाला सत्य नहीं बोलना चाहिये। प्रिय लगने वाला असत्य भी नहीं बोलना चाहिए।
पृथ्वियां त्रीणि रत्नानि जलमन्नम सुभाषितं।
मूढ़े: पाधानखंडेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।।
अर्थ- पृथ्वी पर तीन रत्न हैं- जल,अन्न और शुभ वाणी। पर मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्न की संज्ञा देते हैं।
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Sanskrit Slokas with Meaning in Hindi
यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते निर्घषणच्छेदन तापताडनैः।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा।।
जिस प्रकार सोने का परिक्षण घिसने, काटने, तापने और पीटने जैसे चार प्रकारों से होता है। ठीक उसी प्रकार पुरूष की परीक्षा त्याग, शील, गुण और कर्मों से होती है।
प्रथमेनार्जिता विद्या द्वितीयेनार्जितं धनं।
तृतीयेनार्जितः कीर्तिः चतुर्थे किं करिष्यति।।
जिसने पहले आश्रम अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या को अर्जित नहीं की, द्वितीय आश्रम (ग्रहस्थ) में धन को अर्जित नहीं किया हो, तीसरे आश्रम (वानप्रस्थ) में कीर्ति अर्जित नहीं की तो वह चतुर्थ (सन्यास) आश्रम में क्या करेगा?
shlok in sanskrit with meaning in hindi
षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।।
नींद, तन्द्रा (ऊँघना), डर, क्रोध, आलस्य और दीर्घ शत्रुता इन 6 दोषों को वैभव और उन्नति प्राप्त करने के लिए पुरूष को त्याग करना चाहिए।
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दु:ख भाग्भवेत्
।।संसार में सभी सुखी हो, निरोगी हो, शुभ दर्शन हो और कोई भी ग्रसित ना हो।
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षनति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः।।
जो पुरूष न कभी हर्षित होता है, न कभी द्वेष करता है, न कभी शोक करता है, न कामना करता हैं और जो शुभ और अशुभ सभी कर्मों का त्यागी हो, वह भक्तियुक्त मनुष्य मेरे को प्रिय है।
Shlok in Sanskrit
न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्।
विश्वासाद् भयमभ्येति नापरीक्ष्य च विश्वसेत्।।
अर्थ– जो विश्वसनीय नहीं है, उस पर कभी भी विश्वास न करें। परन्तु जो विश्वासपात्र है, उस पर भी आंख मूंदकर भरोसा न करें। क्योंकि अधिक विश्वास से भय उत्पन्न होता है। इसलिए बिना उचित परीक्षा लिए किसी पर भी विश्वास न करें।
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय।।
हे प्रभु, हम सभी को असत्य से दूर सत्य की ओर ले चलो घोर अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।
sanskrit shlok on life
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत्।।
जो जोखिम लेता हो (उधम), साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जैसे ये 6 गुण जिस व्यक्ति के पास होते हैं, उसकी मदद भगवान भी करता है।
अष्टादस पुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयम्।
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम्।।
अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन ही है। पहला परोपकार ही पुण्य है और दूसरा औरों को दुःख पहुंचाना पाप है।
प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक (Famous Sanskrit Shlok)
सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्।।
उस संसार में सत्य ही ईश्वर है धर्म भी सत्य के ही आश्रित है, सत्य ही सभी भाव-विभव का मूल है, सत्य से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।
मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा।
सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।
भाई अपने भाई से कभी द्वेष नहीं करें, बहन अपनी बहन से द्वेष नहीं करें, समान गति से एक दूसरे का आदर-सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें।
किन्नु हित्वा प्रियो भवति। किन्नु हित्वा न सोचति।।
किन्नु हित्वा अर्थवान् भवति। किन्नु हित्वा सुखी भवेत्।।
किस चीज को छोड़कर मनुष्य प्रिय होता है? कोई भी चीज किसी का हित नहीं सोचती? किस चीज का त्याग करके व्यक्ति धनवान होता है? और किस चीज का त्याग कर सुखी होता है?
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः।
यत्र तास्तु न पूज्यंते तत्र सर्वाफलक्रियाः।।
जहाँ पर हर नारी की पूजा होती है वहां पर देवता भी निवास करते हैं और जहाँ पर नारी की पूजा नहीं होती, वहां पर सभी काम करना व्यर्थ है।
Motivational Sanskrit Shlok
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।
तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हे नमस्कार है।
अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम्।।
आलसी व्यक्ति को विद्या कहां, मुर्ख और अनपढ़ और निर्धन व्यक्ति को मित्र कहां, अमित्र को सुख कहां।
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
जिनका हृदय बड़ा होता है, उनके लिए पूरी धरती ही परिवार होती है और जिनका हृदय छोटा है, उनकी सोच वह यह अपना है, वह पराया है की होती है।
Sanskrit Motivational Shlok
स्वगृहे पूज्यते मूर्खः स्वग्रामे पूज्यते प्रभुः।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान्सर्वत्र पूज्यते।।
एक मुर्ख की पूजा उसके घर में होती है, एक मुखिया की पूजा उसके गाँव में होती है, राजा की पूजा उसके राज्य में होती है और एक विद्वान की पूजा सभी जगह पर होती है।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम्,
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्!
गायत्री मंत्र का अर्थ है कि हम सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा का ध्यान करते हैं, परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
प्रभु आप ही इस सृष्टि के निर्माता हो, आप ही हम सब के दुःख हरने वाले हो, हमारे प्राणों के आधार हे परम पिता परमेश्वर, सृष्टि निर्माता मैंने आपका वर्ण कर रहा हूं।
यानि उस प्राण स्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरुप श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरुप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। परमात्मा हमारी बुद्धि को सत्मार्ग पर प्रेरित करें।
हे परम पिता परमेश्वर मैं आपसे यही प्रार्थना करता हूं कि मुझे सदबुद्धि देना और हमेशा सही मार्ग पर चलता रहूं।
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संस्कृत श्लोक विडियो
जब भी धर्म या अध्यात्म की बात आती हैं, पूरी दुनिया भारत की तरफ अपना रुख करती हैं। विज्ञान धर्म और ज्ञान में पूरी दुनिया में भारत से अधिक समृद्धिशाली दूसरा कोई देश नहीं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि पूरी दुनिया में अध्यात्म और धर्म की शुरुआत भारत से ही हुई हैं।
भारत के ही प्राचीन ज्ञान की बदौलत दुनियाभर के लोग अपना जीवन स्तर सुधार रहे हैं। आज हम बेहतरीन संस्कृत श्लोकों का संग्रह लाये हैं, जो आपको जरूर पसंद आएगा।
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भवतः प्रस्तुतिः अतीव महत्त्वपूर्णा उपयोगी च अस्ति। आशासे यत् भवान् एतत् कार्यं निरन्तरं निरन्तरं करिष्यति। भवान् मम सदृशानां संस्कृतछात्राणां मार्गदर्शकः असि। धन्यवाद:
BAHUT ACHCHHA
Nice collection , getting peace and calmness after hearing,
बहुत अच्छा
Thank you
धन्यवाद
Its was good
Most useful all of this
I want more slok for learning
जय म सरस्वती जय भारती गर्व सनातन संस्कृती एवं सनातन हिंदू धर्म?
aaj ke english daur me itne ati sundar sanskrit sloks likhne waale kaha milte hain.
aapke in sloks ko padhke accha laga.
Thanks
Sahi bole
उत्कृष्ट लेखन। उत्तम अनुवाद।
धन्यवाद
Thanku very much
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने आपको कोटि कोटि धन्यवाद।
धन्यवाद
बहुत ही सुंदर और सार्थक संकलन है ।
अति सुन्दर । कोटिशः धन्यवाद । ऐसे साहित्य की नितान्त आवश्यकता थी । प्रायः में अपने विज्ञ साथियों से किसी न
किसी प्रकार के श्लोक जानने हेतु इच्छुक रहता था
प्रिय बंधु, तुमने मेरा कार्य आसान कर दिया ।