Poem on Moon in Hindi: नमस्कार दोस्तों, चाँद की खुबसूरती का जितना बखान किया जाए उतना कम ही है। चाँद हमारी पृथ्वी पर सबसे खूबसूरत चीजों में से एक है। कई महान कवियों ने चाँद की खुबसूरती का वर्णन अपनी कविताओं में किया है।

यहां पर हमने चांद पर हिन्दी कविताओं का संग्रह किया है। उम्मीद करते हैं आपको यह कविताएं पसंद आएगी।
चांद पर कविता – Poem on Moon in Hindi
विषय सूची
ईद का चांद हो गया है कोई
ईद का चांद हो गया है कोई
जाने किस देस जा बसा है कोई
पूछता हूं मैं सारे रस्तों से
उस के घर का भी रास्ता है कोई
एक दिन मैं ख़ुदा से पूछूं गा
क्या ग़रीबों का भी ख़ुदा है कोई
इक मुझे छोड़ के वो सब से मिला
इस से बढ़ के भी क्या सज़ा है कोई
दिल में थोड़ी सी खोट रखता है
यूं तो सोने से भी खरा है कोई
वो मुझे छोड़ दे कि मेरा रहे
हर क़दम पर ये सोचता है कोई
हाथ तुम ने जहां छुड़ाया था
आज भी उस जगह खड़ा है कोई
फिर भी पहुंचा न उस के दामन तक
ख़ाक बन बन के गो उड़ा है कोई
तुम भी अब जा के सो रहो ‘रहबर`
ये न सोचो कि जागता है कोई
देख रहा तुझे
तू सफेद चाँद, उज्ज्वल चाँद रे
लग रहा आसमान का मोती है
नन्हा सा मैं छत से, देख रहा तुझे।
बड़े चाँद, ओ प्यारे चाँद रे
तेरी परछाई इस पानी में
नन्हा सा मैं छत से, देख रहा तुझे।
मुझे पता है तू कल फिर आएगा रे
दुवा मेरी है की तू ऐसे ही चमकता रहे
नन्हा सा मैं छत से, देख रहा तुझे।
यह चाँद नया है नाव नई आशा की
यह चाँद नया है नाव नई आशा की।
आज खड़ी हो छत पर तुमने
होगा चाँद निहारा,
फूट पड़ी होगी नयनों से
सहसा जल की धारा,
इसके साथ जुड़ीं जीवन की
कितनी मधुमय घड़ियाँ,
यह चाँद नया है नाव नई आशा की।
सात समुंदर बीच पड़े हैं
हम दो दूर किनारे,
किंतु गगन में चमक रहे हैं
दो तारे अनियारे,
मैं इनके ही संग-सहारे
स्वप्न तरी में बैठा
गाता आ जाऊँगा तुम तक एकाकी।
यह चाँद नया है नाव नई आशा की।
चाँद और कवि
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।
जानता है तू कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।
आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।
मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?
मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।
मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
“रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।”
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
आज अधर से अधर मिले हैं,
आज बाँह से बाँह मिली,
आज हृदय से हृदय मिले हैं,
मन से मन की चाह मिली,
चाँद-सितारों, मिलकर गाओ!
चाँद-सितारे, मिलकर बोले,
कितनी बार गगन के नीचे
प्रणय-मिलन व्यापार हुआ है,
कितनी बार धरा पर प्रेयसि-
प्रियतम का अभिसार हुआ है!
चाँद-सितारे, मिलकर बोले।
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ!
आज अधर से अधर अलग है,
आज बाँह से बाँह अलग
आज हृदय से हृदय अलग है,
मन से मन की चाह अलग,
चाँद-सितारों, मिलकर रोओ!
चाँद-सितारे, मिलकर बोले,
कितनी बार गगन के नीचे
अटल प्रणय का बंधन टूटे,
कितनी बार धरा के ऊपर
प्रेयसि-प्रियतम के प्रण टूटे?
चाँद-सितारे, मिलकर बोले।
चाँदनी में साथ छाया!
मौन में डूबी निशा है,
मौन-डूबी हर दिशा है,
रात भर में एक ही पत्ता किसी तरु ने गिराया!
चाँदनी में साथ छाया!
एक बार विहंग बोला,
एक बार समीर ड़ोला,
एक बार किसी पखेरू ने परों को फड़फड़ाया!
चाँदनी में साथ छाया!
होठ इसने भी हिलाए,
हाथ इसने भी उठाए,
आज मेरी ही व्यथा के गीत ने सुख संग पाया!
चाँदनी में साथ छाया!
बूढा चांद (Moon Poem in Hindi)
बूढा चांद
कला की गोरी बाहों में
क्षण भर सोया है।
यह अमृत कला है
शोभा असि,
वह बूढा प्रहरी
प्रेम की ढाल!
हाथी दांत की
स्वप्नों की मीनार
सुलभ नहीं,-
न सही!
ओ बाहरी
खोखली समते,
नाग दंतों
विष दंतों की खेती
मत उगा!
राख की ढेरी से ढंका
अंगार सा
बूढा चांद
कला के विछोह में
म्लान था,
नये अधरों का अमृत पीकर
अमर हो गया!
पतझर की ठूंठी टहनी में
कुहासों के नीड़ में
कला की कृश बांहों में झूलता
पुराना चांद ही
नूतन आशा
समग्र प्रकाश है!
वही कला,
राका शशि,-
वही बूढा चांद,
छाया शशि है!
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