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मेरा बचपन पर निबंध

बचपन हमारे पूरे जीवन का वह खूबसूरत पल होता है, जिसको हम कभी जिंदगी भर नहीं भूल सकते। हम यहां पर मेरा बचपन निबंध हिंदी मे (My Childhood Essay in Hindi) शेयर कर रहे है।

इस निबंध में मेरा बचपन के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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बचपन का माहौल बहुत ही सुनहरा होता है। बचपन के माहौल में जीना हर कोई व्यक्ति पसंद करता है। हर इंसान ने अपने जीवन में बचपन के पल को कैसे व्यतीत किया है, वह उसे पूरी जिंदगी याद रहता है।

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मेरा बचपन पर निबंध (My Childhood Essay in Hindi)

मेरा बचपन पर निबंध 250 शब्द (Mera Bachpan Essay in Hindi)

हमारे बचपन में जब हम छोटे थे, तब यह सपने देखते थे कि हम जल्दी बड़े कब होंगे क्योंकि तब हमें बड़ों की लाइफ बहुत अच्छी लगती थी। उसके बाद जब बड़े हो गए, तब यह सोचने लगे कि हमारा बचपन ही कितना खूबसूरत हुआ करता था।

असल में सही मायनों में अगर देखा जाए तो बचपन वह खूबसूरत पल होता है, जो हम जिंदगी में कभी नहीं भुला सकते है। बचपन में खेल कूद, पढ़ाई और मस्ती भरे दिन हुआ करते थे। बचपन में बच्चे बिना किसी तनाव के अपने बचपन को जी सकते हैं। उनके पास कोई समस्या नहीं होती है।

बचपन में सभी के साथ ऐसी घटनाएं घटित होती है, जिनको कभी भूलाया नहीं जाता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था, जिसके कारण हमारे माता-पिता हमारे बचपन को हमेशा याद दिलाते है कि किस तरह से हमने धीरे-धीरे चलना सीखा, फिर वापस गिरकर उठना सीखा और इसके साथ ही बड़े होकर दौड़ लगाना सीखा।

बचपन में जब हम पिताजी के कंधों पर बैठकर मेले देखने जाए करते थे तब बहुत मजा आता था। बस उन पलों को याद करके अपने आप से हंसी आती है क्योंकि बचपन के दिन बहुत ही सुनहरी यादों की तरह हम सबके जीवन में आते हैं।

मेरे बचपन में पिता के द्वारा डांटने पर हम अपनी मां के आंचल में जाकर छुप जाया करते थे। मां की लोरियां को सुनकर मुझे अच्छी नींद आती थी। वह समय बहुत ही खुशी देने वाला होता था।

आज के इस भाग दौड़ भरी जिंदगी में अच्छी नींद भी नसीब नहीं होती, जो बचपन में मां की लोरियां सुनकर आती थी। बचपन की वो खूबसूरत यादें हुआ करती है, उनमें पता ही नहीं चलता था कि कब दिन हो जाता और कब रात हो जाती।

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मेरा बचपन पर निबंध (1200 शब्द)

प्रस्तावना

बच्चों का जीवन बहुत अच्छा होता है क्योंकि हमारे बचपन में बहुत चंचलता, थोड़ी शरारत और बहुत सी मिठास भरी होती है। हर कोई आदमी अपने बचपन को वापस से जीने की सोचता है।

बचपन में तोतली भाषा मे बोलना, धीरे-धीरे लड़खड़ा के चलना, गिरना, पढ़ना और भी हमारी कुछ मीठी मीठी शरारत सब की बहुत याद आती है।

अपनी दादी से कहानियां सुनना और अपने मां-बाप से छूपके दादा जी के साथ बाजार में जाकर चुपके से चीजें खरीद के खाना, सब बातें बहुत याद आती है। बचपन खूबसूरत सपने की तरह है। कब हम बड़े हो जाते है हमें पता ही नहीं चलता।

एक कवि की शायरी पर बचपन की दास्तान

एक बहुत बड़े कवि सुदर्शन फाकिर ने बचपन की यादों पर एक शायरी को लिखा। उसने कुछ लाइनों में हमारे बचपन की यादे झलकती हैं कि किस तरह हम देश दुनिया के झगड़ों से दूर बच्चे अपने बचपन में किस प्रकार से मगन हो जाते हैं।

इस शायरी में जो लेखक है, वह यही कामना करता है कि बच्चों के बचपन के वह दिन वापस से लौट आए। इसके लिए उनको सारी दौलत और शोहरत को ही क्यों ना वापस देना पड़े। वह सब कुछ दे देंगे पर उनका बचपन उनको उन्हें लौटा दे। शायर कि वह पंक्तियां –

”चाहे दौलत भी ले लो, चाहे शोहरत भी ले लो, चाहे छीन लो मुझसे मेरी जवानी,
मगर मुझको लौटा दो मेरा वह बचपन, वह कागज की कश्ती और वो बारिश का पानी।”

कहने को यह दो पंक्तियां हैं लेकिन इनमें हमारे बचपन का बहुत बड़ा रहस्य सा छुपा है।

मेरे बचपन की कुछ खास यादें

मेरा बचपन मुझे बहुत अधिक प्रिय है क्योंकि मैं अपने घर में सबसे छोटा होने के कारण मुझे सभी लोगों का अधिक प्यार मिलता था। मैं घर में नटखट और शरारती हुआ करता था और सभी को मैं बहुत परेशान करता था।

लेकिन सभी मुझसे बहुत प्यार करते थे। इस कारण मेरी सभी गलतियों को नजरअंदाज करते रहते थे। मेरे बचपन में मैं कभी अपनी दादी का चश्मा छुपा दिया करता, कभी दादा जी की धार्मिक किताबों को छुपा देता था। घर के सभी सदस्यों को किसी न किसी रूप से में बहुत परेशान किया करता था।

लेकिन छोटा था इसीलिए सभी लोग मुझे कुछ नहीं कहते थे। अब जब बड़ा हो गया हूं, तो वो सब बातें मुझे बहुत याद आती है। मैं किसी चीज से भी नहीं डरता था, बस स्कूल जाने के नाम पर मुझे बहुत डर लगता था।

जब मैं कोई भी शरारत करता तो घरवाले मुझे स्कूल में टीचर के पास भेजने की बात कहकर डांट दे देते, इसीलिए मैं टीचर्स की वजह से बहुत डर जाता था और इस प्रकार मैंने धीरे-धीरे घर के सभी लोगों को परेशान करना छोड़ दिया।

मेरे स्कूल के कुछ मीठी यादें

गांव में हमारा स्कूल मेरे घर से बहुत दूरी पर हुआ करता था। स्कूल जाने के लिए हम सभी दोस्त आपस में एक साथ मिलकर जाया करते थे।

स्कूल बहुत दूरी पर था तो रास्ते में हम और मस्ती करते हुए जाते थे, सड़क पर बहुत शोर मचाते हुए और बहुत मस्ती करते हुए जाते थे। उसके बाद हम स्कूल जाते हैं। स्कूल में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली -डंडा, छुपन-छुपाई, दौड़ लगाना और भी बहुत प्रकार के खेल हुआ करते थे।

इन सभी में पूरा टाइम कब निकल जाता था, हमें पता ही नहीं चलता था। स्कूल जाने पर भी हम ज्यादा मस्ती करते थे। क्योंकि स्कूल में सभी दोस्त मिल जाए करते थे।

मेरी क्लास में जो मेरे कक्षा टीचर है, वो मुझे बहुत अच्छे लगते थे। क्योंकि वह मुझे बहुत अच्छे से पढ़ाई करवा देते और किसी भी चीज में कोई परेशानी होने पर वह मुझे वापस से समझा देते थे।

मेरे बचपन का प्रिय खेल

मुझे बचपन में छोटे-छोटे जानवरों से बहुत लगाव होता था। उनमें सबसे प्रिय कुत्तों के बच्चे हुआ करते थे। उन छोटे पिल्लों के साथ मैं बहुत खेला करता था, साथ ही मुझे मिट्टी के खिलौने बनाकर उनसे खेलना भी बहुत पसंद था।

इन खेलों की वजह से मुझे घर में भी बहुत डांट पड़ती थी, लेकिन मैं क्या करूँ मुझे ये खेल बहुत ज्यादा अच्छे लगते थे। इनको मैं अकेले ही बिना किसी के साथ ही खेल लिया करता था।

वो बचपन के शरारत भरे दिन

बचपन में हम गांव में खेतों में चले जाया करते थे। वहां पर हम भैंस के ऊपर बैठकर बहुत मस्ती करते हैं, कभी बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते तो कभी कुत्तों की पूछ को खींचते और घर में जो गाय थी, उसके बछड़े को खोल देते हैं, जिससे वह बछड़ा गाय का दूध पी जाता था।

इस तरह से बचपन में बहुत मस्ती भरे दिन हुआ करते थे। अपने दोस्तों के साथ बाहर मिट्टी में खूब खेलते, जिसके कारण हमारे कपड़े बहुत गंदे हो जाते इससे हमको अपनी मम्मी की बहुत डांट सुननी पड़ती थी।

क्योंकि कपड़ों के साथ-साथ हमारी चकले भी पहचान में नहीं आती थी, बहुत गंदी हो जाती थी। इस वजह से हमको घर वालों की सबसे ज्यादा मम्मी की डांट सुननी पड़ती थी।

मेरे बचपन के कुछ फेवरेट दोस्त

दोस्ती का रिश्ता एक वह खूबसूरत रिश्ता होता है, जो खून के रिश्ते से भी बढ़कर होता है। यदि किसी को सच्चा दोस्त मिल जाए तो उससे बड़ा कोई भाग्यशाली व्यक्ति नहीं होता।

मैं भी बहुत भाग्यशाली हूं क्योंकि बचपन में जिस लड़के के साथ मेरी गहरी दोस्ती हो गई थी, उसका नाम पवन है। पवन के साथ मेरी दोस्ती कक्षा दो से हुई थी।

वह बहुत ही प्यारा और सीधा सा बच्चा हुआ करता था। हम दोनों मित्र एक साथ एक ही बेंच पर बैठते, अपना लंच शेयर करते तथा दोनों को पढ़ाई में किसी भी प्रकार के परेशानी होती तो हम आपस में एक दूसरे की समस्या को सुलझा लेते थे पढ़ाई से संबंधित।

एक बार मेरा एक्सीडेंट हो गया था। उस समय मेरे दोस्त ने मेरी बहुत मदद की। वो कहते हैं ना कि दोस्ती की सही पहचान मुसीबत में ही की जाती है तो मेरे दोस्त ने भी मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था तो मेरी बहुत मदद की थी। मैं उसकी दोस्ती को कभी नहीं भूल सकता।

निष्कर्ष

मेरा बचपन बहुत ही खूबसूरत यादों के साथ में गुजरा मैं उसको कभी भी नहीं भूल सकता। बचपन का जो समय होता है, सभी लोगों के लिए बहुत ही यादगार और सुनहरा होता है। खूब कभी मिली बुलाए भुला जा सकता है।

सबका मन करता है कि काश मैं फिर से बचाव बन जाऊं और वापस अपने बचपन को जी लूँ। पर बचपन तो चला जाता है, रह जाती है तो सिर्फ यादें।

अंतिम शब्द

हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख मेरा बचपन निबंध (My Childhood Essay in Hindi) पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरुर करें। यदि आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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