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मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी

Mirza Ghalib Shayari in Hindi: मिर्ज़ा ग़ालिब एक प्रसिद्ध भारतीय शायर हैं। ग़ालिब मिर्ज़ा उर्दू के एक महान शायर थे, उर्दू के अलावा इनके शेर हिन्दी और फारसी जबान में भी है। मिर्ज़ा ग़ालिब के शेर बहुत ही मुश्किल हुआ करते थे, इनके शेर बड़े-बड़े विद्वानों को भी समझ नहीं आ पाते थे।

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ग़ालिब की शायरी में प्यार का दर्द, जुदाई, मय शराब, गम, इश्क, रूह, खुदा, खुदी सबका अच्छे से जिक्र किया गया है। मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म उतरप्रदेश के आगरा में 27 दिसम्बर 1796 में हुआ था। ये मुग़ल शासक के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफ़र के दरबार के कवि थे। ग़ालिब मिर्ज़ा की मृत्यु 15 फरवरी 1869 को दिल्ली में हुई थी।

आज हम यहां पर Mirza Ghalib Sher और Mirza Ghalib Shayari शेयर करने जा रहे हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह Mirza Ghalib Shayari Collection in Hindi पसंद आएगा। इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।

मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी और शेर – Mirza Ghalib Shayari in Hindi

mirza ghalib shayari

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आप आते थे मगर कोई अनागीर भी था।

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रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।

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फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ।

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mirza ghalib shayari hindi

आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ
सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है।

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क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ।

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फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे।

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mirza ghalib shayari in hindi 2 lines

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।

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जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन,
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए।

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आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे।

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mirza ghalib shayari in hindi pdf

अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना।

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नसीहत के कुतुब-ख़ाने यूँ तो दुनिया में भरे हैं,
ठोकरें खा के ही अक्सर बंदे को अक़्ल आई है।

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इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं,
जी ख़ुश हुआ है राह को पुर-ख़ार देख कर।

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क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में।

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mirza ghalib love shayari

‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।

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है एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा था।

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बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे।

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उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।

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mirza ghalib shayari on love

हम महव-ए-चश्म-ए-रंगीं-ए-जवाब हुए हैं जबसे,
शौक़-ए-दीदार हुआ जाता है हर सवाल का रंग।

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कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता।

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mirza ghalib shayari sad

तमीज़-ए-ज़िश्ती-ओ-नेकी में लाख बातें हैं,
ब-अक्स-ए-आइना यक-फ़र्द-ए-सादा रखते हैं।

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आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती।

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एतिबार-ए-इश्क़ की ख़ाना-ख़राबी देखना
ग़ैर ने की आह लेकिन वो ख़फ़ा मुझ पर हुआ।

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अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा।

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Read Also

mirza ghalib shayari on life

जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई।

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‏मुहब्बत में उनकी अना का पास रखते हैं,
हम जानकर अक्सर उन्हें नाराज़ रखते हैं।

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अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो
जो मय ओ नग़्मा को अंदोह-रुबा कहते हैं।

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ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो।

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चाहें ख़ाक में मिला भी दे किसी याद सा भुला भी दे,
महकेंगे हसरतों के नक़्श* हो हो कर पाएमाल भी।

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mirza ghalib shayari collection in hindi

वो जो काँटों का राज़दार नहीं,
फ़स्ल-ए-गुल का भी पास-दार नहीं।

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क़त्अ कीजे न तअ’ल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही।

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तू मिला है तो ये अहसास हुआ है मुझको,
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है।

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mirza ghalib shayari pdf

एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब
ख़ून-ए-जिगर वदीअत-ए-मिज़्गान-ए-यार था।

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जिस ज़ख़्म की हो सकती हो तदबीर रफ़ू की,
लिख दीजियो या रब उसे क़िस्मत में अदू की।

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Ghalib Poetry

हम जो सबका दिल रखते हैं
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं।

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आ ही जाता वो राह पर ‘ग़ालिब’
कोई दिन और भी जिए होते।

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रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज,
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं।

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Mirza Ghalib sher

आज फिर पहली मुलाक़ात से आग़ाज़ करूँ,
आज फिर दूर से ही देख के आऊँ उस को।

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अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
उस दर पे नहीं बार तो का’बे ही को हो आए।

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ग़ालिब की शायरी हिंदी में

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी।
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है।।

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए।
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए।।

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता।।

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।

यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो।

वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं।

क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां।
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।।

galib ki shayari

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे।
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है।।

रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो ‘ग़ालिब’।
कहते हैं अगले ज़माने में कोई ‘मीर’ भी था।।

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता।
वगर्ना शहर में “ग़ालिब” की आबरू क्या है।।

मरते है आरज़ू में मरने की
मौत आती है पर नही आती,
काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुमको मगर नही आती।

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़।
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है।।

वाइज़!! तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिलाके देख।
नहीं तो दो घूंट पी और मस्जिद को हिलता देख।।

हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब।
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।।

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है।

हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे।
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और।।

मिर्जा गालिब दर्द शायरी

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन।
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है।।

मगर लिखवाए कोई उस को खत
तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और
घरसे कान पर रख कर कलम निकले।

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का।
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले।।

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन।
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।।

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है।

नज़र लगे न कहीं उसके दस्त-ओ-बाज़ू को।
ये लोग क्यूँ मेरे ज़ख़्मे जिगर को देखते हैं।।

तू ने कसम मय-कशी की खाई है ‘ग़ालिब’
तेरी कसम का कुछ एतिबार नही है।

कितना ख़ौफ होता है शाम के अंधेरों में।
पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते।।

हुई मुद्दत कि ‘ग़ालिब’ मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता।

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का।
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता।।

दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ।
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ।।

तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई।

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार।
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है।।

बना कर फकीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते है।

बिजली इक कौंध गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्न-ए-तक़रीर भी था।

तेरे ज़वाहिरे तर्फ़े कुल को क्या देखें।
हम औजे तअले लाल-ओ-गुहर को देखते हैं।।

हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा।
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है।।

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई।
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई।।

ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं।
कभी सबा को, कभी नामाबर को देखते हैं।।

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता।।

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता।
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता।।

इक ख़ूँ-चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं
पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की।

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ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे।

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मिर्जा गालिब दर्द शायरी

तुम से बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला
उसमें कुछ शाएबा-ए-ख़ूबिए-तक़दीर भी था।

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हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
कि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वा हो।

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हम हैं मुश्ताक़ और वो बे-ज़ार
या इलाही ये माजरा क्या है।।
जान तुम पर निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता दुआ क्या है।।

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शहरे वफा में धूप का साथी नहीं कोई
सूरज सरों पर आया तो साये भी घट गए।

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ज़िन्दग़ी में तो सभी प्यार किया करते हैं,
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा।

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मिर्जा गालिब की शायरी (shayari of mirza ghalib)

अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
हिलते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद मिरे अंदर कफ़न के पाँव।

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कुछ लम्हे हमने ख़र्च किए थे मिले नही,
सारा हिसाब जोड़ के सिरहाने रख लिया।।

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तू मुझे भूल गया हो तो पता बतला दूं
कभी फ़ितराक में तेरे कोई नख़्चीर भी था।

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कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता।

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मिर्जा गालिब हिन्दी शायरी

हम तो जाने कब से हैं आवारा-ए-ज़ुल्मत मगर,
तुम ठहर जाओ तो पल भर में गुज़र जाएगी रात।

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आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना ‘ग़ालिब’
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बअ’द।

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वो रास्ते जिन पे कोई सिलवट ना पड़ सकी,
उन रास्तों को मोड़ के सिरहाने रख लिया।

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उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है
न पूछा जाए है उस से न बोला जाए है मुझ से।

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Ghalib Ke Sher ग़ालिब के शेर

कहते हुए साक़ी से हया आती है वर्ना
है यूँ कि मुझे दुर्द-ए-तह-ए-जाम बहुत है।

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अब अगले मौसमों में यही काम आएगा,
कुछ रोज़ दर्द ओढ़ के सिरहाने रख लिया।

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आज हम अपनी परेशानी-ए-ख़ातिर उन से
कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं।

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कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब’ ग़ज़ल-सरा न हुआ।

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मिर्जा गालिब के शेर

इब्न-ए-मरयम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई।

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कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं।

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दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है।

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आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या।

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मिर्जा गालिब गजल – Ghalib whatsapp status in hindi

काँटों की ज़बाँ सूख गई प्यास से या रब
इक आबला-पा वादी-ए-पुर-ख़ार में आवे।

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कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हम-नशीं
इक तीर मेरे सीने में मारा कि हाए हाए।

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खार भी ज़ीस्त-ए-गुलिस्ताँ हैं,
फूल ही हाँसिल-ए-बहार नहीं।

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मिर्जा गालिब की गजल

दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ।

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Hindi Shayari of Ghalib

उस पे आती है मोहब्बत ऐसे
झूठ पे जैसे यकीन आता है।

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इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने।

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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक।

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मिर्जा गालिब दर्द शायरी in hindi

आँख की तस्वीर सर-नामे पे खींची है कि ता
तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत-ए-दीदार है।

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उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है ‘ग़ालिब’
हम भी गए वाँ और तिरी तक़दीर को रो आए।

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Ghalib hindi Status

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही।

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साज़-ए-दिल को गुदगुदाया इश्क़ ने
मौत को ले कर जवानी आ गई।

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मिर्जा गालिब की शायरी

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।

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Ghalib whatsapp status

भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी,
बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया।

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Read Also: मौत पर शायरी

MIRZA GHALIB SHER ON LOVE

उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ जुरअत-ए-रिंदाना चाहिए।

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‏पड़िए गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार
और अगर मर जाइए तो नौहा-ख़्वाँ कोई न हो।

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कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी।

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Ghalib Hindi Shayari

खुद को मनवाने का मुझको भी हुनर आता है
मैं वह कतरा हूं समंदर मेरे घर आता है।

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मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी hindi font

अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही।

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selected Ghalib Shayari

कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से।

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इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया।

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mirza ghalib quotes

तेरे वादे पर जिये हम
तो यह जान,झूठ जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते
अगर एतबार होता।

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best Ghalib Shayari

मैं चमन में क्या गया गोया दबिस्ताँ खुल गया,
बुलबुलें सुन कर मिरे नाले ग़ज़ल-ख़्वाँ हो गईं।

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इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।

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quotes by mirza ghalib

काबा किस मुँह से जाओगे ‘ग़ालिब’
शर्म तुम को मगर नहीं आती।

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न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई।।
रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई।।

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quotes of mirza ghalib

मैं तो इस सादगी-ए-हुस्न पे सदक़े,
न जफ़ा आती है जिसको न वफ़ा आती है।।

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इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।

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Famous Ghalib Shayari

कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।

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यादे-जानाँ भी अजब रूह-फ़ज़ा आती है,
साँस लेता हूँ तो जन्नत की हवा आती है।।
है और तो कोई सबब उसकी मुहब्बत का नहीं,
बात इतनी है के वो मुझसे जफ़ा करता है।।

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mirza ghalib quotes on life in hindi

इक शौक़ बड़ाई का अगर हद से गुज़र जाए
फिर ‘मैं’ के सिवा कुछ भी दिखाई नहीं देता।

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हो उसका ज़िक्र तो बारिश सी दिल में होती है
वो याद आये तो आती है दफ’तन ख़ुशबू।

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Mirza galib ki shayari

अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की
तलाफ़ी की भी ज़ालिम ने तो क्या की।

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ज़रा कर ज़ोर सीने में कि तीरे-पुर-सितम निकले,
जो वो निकले तो दिल निकले, जो दिल निकले तो दम निकले।

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अदा-ए-ख़ास से ‘ग़ालिब’ हुआ है नुक्ता-सरा
सला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-दाँ के लिए।

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mirza ghalib quotes hindi

कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता,
तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता।

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MIRZA GHALIB SHER WITH MEANING

एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही।

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इक क़ैद है आज़ादी-ए-अफ़्कार भी गोया,
इक दाम जो उड़ने से रिहाई नहीं देता।

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तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है।

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mirza ghalib quotes in hindi

हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,
तुम मुस्कुरा दिए मेरे ज़माने बन गये।

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काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त।

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कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने।

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ghalib quotes in hindi

अपनी गली में मुझ को
न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को
क्यूँ तेरा घर मिले।

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एजाज़ तेरे इश्क़ का ये नही तो और क्या है,
उड़ने का ख़्वाब देख लिया इक टूटे हुए पर से।

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ghalib hindi

हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही।

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Ghalib Shayari

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था।

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आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग।

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आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाए
मुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का।

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काव काव-ए-सख़्त-जानी हाए-तन्हाई न पूछ
सुब्ह करना शाम का लाना है जू-ए-शीर का।

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आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
‘ग़ालिब’ सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है।

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आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे।

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आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक।

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और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है।

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नींद उस की है दिमाग़ उस का है रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं।

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ता फिर न इंतिज़ार में नींद आए उम्र भर,
आने का अहद कर गए आए जो ख़्वाब में।

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shayari of ghalib on ishq

क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन
हम को तक़लीद-ए-तुनुक-ज़र्फ़ी-ए-मंसूर नहीं।

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अफ़साना आधा छोड़ के सिरहाने रख लिया,
ख़्वाहिश का वर्क़ मोड़ के सिरहाने रख लिया।

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है उफ़ुक़ से एक संग-ए-आफ़्ताब आने की देर,
टूट कर मानिंद-ए-आईना बिखर जाएगी रात।

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फिर आबलों के ज़ख़्म चलो ताज़ा ही कर लें,
कोई रहने ना पाए बाब जुदा रूदाद-ए-सफ़र से।

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Ghalib Poetry in Hindi

इक आह-ए-ख़ता गिर्या-ब-लब सुब्ह-ए-अज़ल से,
इक दर है जो तौबा को रसाई नहीं देता।

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अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले।

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इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।

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मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी इन हिंदी पीडीएफ (Mirza Ghalib Shayari in Hindi PDF)

इन मिर्ज़ा ग़ालिब शायरी के विशाल संग्रह को आप पीडीऍफ़ के रूप में भी डाउनलोड कर सकते हैं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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