रात की नींद में एक ख्वाब उनका था है कितना प्यार हमसे जब यह हमने पूछ लिया मर जायेंगे बिन तेरे यह जवाब उनका था।
ना जाने कौन सा पन्ना आखिरी हो जाये, जंग जीत गये तो किताब जरूर बनेंगे।
जो पढ़ा है उसे जीना ही नहीं है मुमकिन ज़िंदगी को मैं किताबों से अलग रखता हूँ
चेहरा खुली किताब है उनवान जो भी दो जिस रुख़ से भी पढ़ोगे मुझे जान जाओगे
जहां में ढूंढ रहे हो तो इसे भूल कहो फूल से लोग किताबों में मिला करते हैं।
लम्हों की खुली किताब है जिन्दगी, ख्यालों और साँसों का हिसाब है जिंदगी, कुछ जरूरते पूरी, कुछ ख्वाहिशे अधूरी इन्ही सवालों का जवाब है जिन्दगी.
रख दो किताबें छुपा के कहीं, धूल ज़रा चेहरों पे भी पड़ने दो।
इक उम्र हो गई है कि दिल की किताब में कुछ ख़ुश्क पत्तियों के सिवा कुछ नहीं रहा ~ख़ालिद शरीफ़
उसने पढ़ा मुझे महीनों तक, फिर कहा, मैं पढ़ने लायक नहीं।
किताबों की तरह होती है हम सब की जिन्दगी, ना तो लिखा है हमारा उस पर लेकिन लिखी किसी और ने होती है.
वो जिस ने देखा नहीं इश्क़ का कभी मकतब मैं उस के हाथ में दिल की किताब क्या देता
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले।
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किताबो से सारा ध्यान खत्म हो गया, कि मोबाइल पर ही सारा ज्ञान उपलब्ध हो गया, रातों को चलती रहती है मोबाइल पर उंगलिया सीने पर किताब रख के सोये काफी वक्त हो गया
मोहब्बत ही तो है लोग भूल जाते हैं दिल लगा के बड़े आराम से, अक्सर हमने देखा है सूखे गुलाब को गिरते हुए किताब से।
सामने जब उनके जाता हूँ, किताब सा बन जाता हूँ, बातें तो बहुत है कहने को मगर खामोश रह जाता हूँ.
किताबों सी हो गई है जिन्दगी हमारी, पढ़ हर कोई रहा है समझ कोई नहीं रहा।
जिन्दगी की रीत के बारें में कोई जान न सका, इसकी सच्चाई को कोई पहचान न सका किताबों में कई किस्से दफन है लेकिन पर हकीकत में हकीकत कोई जान न सका
हर इक वरक़ है तुझ से शुरू इस किताब का तू ही बता कहाँ से मैं अब इब्तिदा करूँ ~जावेद_नसीमी
इस मोहब्बत की किताब के दो ही सबक याद हुए, कुछ तुम जैसे आबाद हुए, कुछ हम जैसे बर्बाद हुए।
आज वो कोने में पड़ी किताब फिर से उठा ली मैंने, जिसमें कभी कुछ ख्वाब दबा के रखे थे, जी लिया उन ख़्वाबों को फिर से ख्वाब में ही वो ख्वाब भी तो बेचारे बेकार से पड़े थे.
किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के ~आदिल_
इश्क की किताब का ऊसूल है जनाब, मुड़ कर देखोगे तो मोहब्बत मानी जायेगी।
वो खुली किताब थी, मैंने उसे पूरे दिल से पढ़ा था, पर जब वो बेवफा निकली तो लगा दोस्तों ने सच कहा था.
तुम्ही ने साथ दिया ज़िंदगी की राहों में किताब-ए-उम्र तुम्हारे ही नाम करते हैं ~तारिक़_नईम
खुद ही पलट लेता हूँ… किताबे-जिन्दगी के पन्ने वो लोग अब कहाँ… जो मुझमें, मुझे तलाशते थे.
पढ़ता रहता हूँ आप का चेहरा अच्छी लगती है ये किताब मुझे ~इफ़्तिख़ार_राग़िब
किस्मत की किताब तो खूब लिखी थी खुदा ने, बस वही पन्ना गम था जिसमें इश्क़ का जिक्र था।
कलम है किताब है, हाथ में एक कप कॉफ़ी है, माना कि तू नहीं, पर मेरी जान तेरी याद काफी है.
हर शख़्स है इश्तिहार अपना हर चेहरा किताब हो गया है ~क़ैसरउलजाफ़री
यूँ ही नहीं जिंदगी के किताब को सबके सामने खोलता हूँ, हार हो या जीत हर खेल को बड़ी शिद्दत से खेलता हूँ।
तेरी यादें अब उस बंद किताब में रखे सूखे फूल सी है, जो न फेंक सकता हूँ आर न सम्भाल कर रख सकता हूँ।
इश्क की एक दास्ताँ लिखी जायेगी, कॉलेज में किसी ने फिर किताब माँगा है.
जो एक लफ़्ज़ की ख़ुशबू न रख सका महफूज़ मैं उस के हाथ में पूरी किताब क्या देता अश्कों में पिरो के उस की यादें पानी पे किताब लिख रहा हूँ
आज भी मैंने वो किताब छुपा रखी है, जिसमें मैंने तेरी याद को सजा रखी है.
अंधी हवा कहाँ से उड़ा लाई, क्या ख़बर क्या जाने ज़िंदगी है वरक़ किस किताब का हर साल की आख़िरी शामों में दो चार वरक़ उड़ जाते हैं अब और न बिखरे रिश्तों की बोसीदा किताब तो अच्छा हो
किताब सी शख्सियत दे ऐ मेरे खुदा, सब कुछ कह दूँ, खामोश रहकर।
किताबों में लिखे हुए पैगाम रह जाते है, सूखे हुए गुलाब में अहसास रह जाते है
अब जिन किताबों में मुहब्बत ढूँढ़ते हो तुम, वैसी किताबें मैं बहुत पहले ही लिख डाला।
वो कटी फटी हुई पत्तियां, और दाग़ हल्का हरा हरा, वो रखा हुआ था किताब में, मुझे याद है वो ज़रा ज़रा..! -गुलज़ार
वक़्त मिले तो प्यार की किताब पढ़ लेना, हर प्यार करने वाले की कहानी अधूरी होती है।
किसे सुनाएँ अपने गम के चन्द पन्नो के किस्से यहाँ तो हर शक्स भरी किताब लिए बैठा है…!!!
यूँ ना पढिये कहीं कहीं से हमे, हम इंसान है किताब नही।
भुला दीं हम ने किताबें कि उस परीरू के किताबी चेहरे के आगे किताब है क्या चीज़
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किताब-ए-दिल का कोई भी पन्ना सादा नहीं होता निगाह उस को भी पढ़ लेती है जो लिखा नही होता..
किताब ए दिल में जो नफरत का बाब रखता था वो चाहतों का मुकम्मल हिसाब रखता था। फरेब देता रहा मुझे वो दोस्ती के परदों में, वो शख्स अपने चेहरे पर कितने नक़ाब रखता था।।
Kitab Par Shayari in Hindi
जिंदगी को खुली किताब न बनाओ क्योंकि लोगों को पढ़ने में नहीं पन्ने फाड़ने मे मजा आता है ।
किधर से बर्क़ चमकती है देखें ऐ वाइज़, मैं अपना जाम उठाता हूँ तू किताब उठा।
कर्म के पास न कागज है और न किताब लेकिन फिर भी रखता है सारे जग का हिसाब ।
कागज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के, दीवाने बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गए।
ज़िंदगी की किताब में धैर्य का कवर होना बहुत जरूरी है, क्योंकि वही हर पन्ने को बांधकर रखता है ।
ये किताबी नहीं, जीवन का गणित है साहब , यहाँ दो में से एक गया तो कुछ नहीं बचता। चाहे जीवन साथी हो या दोस्त ।
एक कहानी है हर शख़्स यहाँ यूँ तो, बस हर क़िताब यहाँ खुली नहीं होती।
खुली किताब थी फूलों भरी ज़मीं मेरी किताब मेरी थी रंग-ए-किताब उस का था
कुछ पन्ने क्या फटे ज़िन्दगी की किताब के, ज़माने ने समझा हमारा दौर ही ख़त्म हो गया
रात भर चलती रहती हैं उंगलियाँ मोबाइल पर, किताब सीने पे रख कर सोये हुए जमाना हो गया
मुझको पढ़ पाना हर किसी के लिए मुमकिन नहीं, मै वो किताब हूँ जिसमे शब्दों की जगह जज्बात लिखे है।
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।