कशिश तो बहुत है मेरे प्यार मैं, लेकिन कोई है पत्थर दिल जो पिघलता नहीं, अगर मिले खुदा तो माँगूंगी उसको, सुना है ख़ुदा मरने से पहले मिलते नहीं।
मैंने अपने आप को हँमेशा बादशाह समझा, पर तुझे खुदा से माँगा अकसर फकीरों की तरह.
खुदा की रहमत में अजियाँ नहीं चलतीं, दिलों के खेल में खुदगरजियाँ नहीं चलती, चल ही पड़े हैं तो ये जान लीजिए हुजुर, इश्क़ की राह में मनमरजियाँ नहीं चलतीं!
ज़रा ये धूप ढल जाए तो उनका हाल पूछेंगे, यहाँ कुछ साए अपने आपको खुदा बताते हैं.
हमें इस चिस्त से उम्मीद क्या थी और क्या निकला, कहाँ जाना हुआ था तय कहाँ से रास्ता निकला, खुदा जिनको समझते थे वो शीशा थे न पत्थर थे, जिसे पत्थर समझते थे वही अपना खुदा निकला।
हम ख़ुदा के कभी काबिल ही न थे, उन को देखा तो ख़ुदा याद आया.
मुझे जरूरत नहीं इंसानों की, जो मतलब के लिए साथ हो, मैं खुश हूं अपने खुदा के साथ, जो बिना मतलब के मेरे साथ है।
मोहब्बत की आजमाइश दे दे कर, थक गया हूँ ऐ खुदा, किस्मत मे कोई ऐसा लिख दे, जो मौत तक वफा करे।
अच्छा यक़ीं नहीं है तो कश्ती डुबा के देख, इक तू ही नाख़ुदा नहीं ज़ालिम ख़ुदा भी है.
खुदा की कसम तुम बहुत खुबसूरत हो, खुदा की कसम तुम बहुत खुबसूरत हो, दुनिया की नज़र से खुद को बचा लो, काजल का एक टिका तुम्हारे लिए कम है, एक काला तवा अपने गले में लटका लो।
सुनकर ज़माने की बातें तू अपनी अदा मत बदल यकीं रख अपने खुदा पर यूँ बार बार खुदा मत बदल।
छोड़ा नहीं ख़ुदी को दौड़े ख़ुदा के पीछे, आसाँ को छोड़ बंदे मुश्किल को ढूँडते हैं.
आज तो उस खुदा से भी हमने कह दिया, किस्मत में जो लिखा है, वो तो सबको मिलना ही है, देना ही है तो वो दे जो मेरी किस्मत में नहीं।
ज़रुरत भर का तो खुदा, सबको देता है, परेशां है लोग इस वास्ते कि, बेपनाह मिले.
हैरान हूँ तेरा इबादत में झुका सर देखकर, ऐसा भी क्या हुआ जो खुदा याद आ गया।
कहते हैं लोग खुदा की इबादत है, ये मेरी समझ में तो एक जहालत है, चैन न आए दिल को , रात जाग के गुजरे, जय बताओ दोस्तों क्या यही मोहब्बत है!
तेरे आजाद बन्दों की न ये दुनिया न वो दुनिया, यहाँ मरने की पाबन्दी, वहाँ जीने की पाबन्दी
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दिलों में नज़दीकियाँ हो तो, रिश्तों मैं खुदा बसता हैं.
कभी खुद से कभी खुदा से शिकायत करते हैं हम, किस कम्बखत ने कोनसी, किताब के किस पन्ने पे मोहब्बत, का नाम जन्नत रख दिआ.!
Khuda Shayari in Hindi
बस ये कहकर टाँके लगा दिये उस हकीम ने कि, जो अंदर बिखरा है उसे खुदा भी नहीं समेट सकता.
अपना तो आशिकी का किस्सा-ए-मुख़्तसर है, हम जा मिले खुदा से दिलबर बदल- बदल कर।
मेरी आँखों में मत ढूंढा करो खुद को, पता है ना दिल में रहते हो खुदा की तरह.
जब मुझे यकीन है, की खुदा मेरे साथ है, इससे कोई फर्क न पड़ता कि, कौन…कौन मेरे खिलाफ है।
लौट आती है हर बार दुआ मेरी खाली, जाने कितनी ऊंचाई पर खुदा रहता है।
खुदा को दोष देना, समझ नहीं आया है आज़तक, हम इंसान, खुद को ही नहीं समझ पाया है अबतक।
एक बार भूल से ही कहा होता की हम किसी और के भी है, खुदा कसम हम तेरे साये से भी दूर रहते.
खुदा से प्यारा कोई नाम नहीं होता, उसकी इबादत से बड़ा कोई काम नहीं होता, दुनिया की मोहब्बत में है रुसवाईयां बड़ी, पर उसकी मोहब्बत में कोई बदनाम नहीं होता।
ज़मीं को ऐ ख़ुदा वो ज़लज़ला दे, निशाँ तक सरहदों के जो मिटा दे.
खुदा ने बङे अजीब से दिल के रिश्ते बनायें हैं, सबसे ज्यादा वही रोया जिसने ईमानदारी से निभाये है.
हम मुतमईन है उस की राजा के बगैर भी, हर काम चल रहा है खुदा के बगैर भी।
पुछेगा अगर खुदा तो कहूँगी, हाँ हूई थी मोहब्बत, मगर जिसके साथ हूई वो उसके काबिल ना था.
मोहब्बत कर सकते हो तो खुदा से करो, मिटटी के खिलौनों से कभी वफ़ा नहीं मिलती।
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैंने, बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला.
दामन पे मेरे, सैकड़ों पैबंद हैं ज़रूर, लेकिन खुदा का शुक्र है,धब्बा कोई नहीं.
Khuda Shayari in Hindi
दुनिया से दिल लगाकर दुनिया से क्या मिलेगा, याद-ए-खुदा किये जा तुझ को खुदा मिलेगा, दौलत हो या हुकूमत ताक़त हो या जवानी, हर चीज़ मिटने वाली हर चीज़ आनी जानी।
देता सब कुछ है खुदा हमें, पर जिसे चाहो उसे छोड़कर.
लाख ढूंढें गौहर-ए-मक़सूद मिल सकता नहीं, हुक्म गर तेरा न हो पत्ता भी हिल सकता नहीं।
तक़दीर के लिखे से सिवा बन गए हैं हम, बंदा न बन सके तो ख़ुदा बन गए हैं हम.
खुदा को भूल गए लोग फ़िक्र-ए-रोज़ी में, तलाश रिजक की है राजिक का ख्याल नहीं।
क्या बताये मेरे लिए क्या हो तुम, खुदा का डर है वर्ना खुदा हो तुम.
करम जब आला-ए-नबी का शरीक होता है, बिगढ़ बिगढ़ कर हर काम ठीक होता है।
मत सोचना मेरी जान से जुदा है तू, हकीकत में मेरे दिल का खुदा है तू.
तेरा करम तो आम है दुनिया के वास्ते, मैं कितना ले सका ये मुकद्दर की बात है।
खुदा का मतलब है खुद में आ तू, खुद आगाही है खुदा शनासी, खुदा को खुद से जुदा समझ कर, भटक रहा है इधर उधर क्यूँ।
मशरूफ थे सब अपनी जिंदगी की उलझनों में, ऐ दोस्त ज़रा सी जमींन क्या हिली सबको खुदा याद आ गया.
मिट जाए गुनाहों का तसवुर ही जहाँ से, अगर हो जाये यकीन के खुदा देख रहा है।
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।