कबीर के दोहे आप सब ने अपने जीवन में कभी ना कभी पड़े होंगे। कबीर एक बहुत बड़े लेखक, दार्शनिक और मुनि के रूप में जाने जाते है। कबीर के लिखे दोहे आज हिंदी साहित्य में पढ़ाए जाते है।
खुद अनपढ़ होने के बावजूद उन्होंने दुनिया को देख कर इतने बेहतरीन दोहे लिखे है, कोई भी व्यक्ति सीख लेकर अपनी जिंदगी बदल सकता है। मगर सबसे बड़ा सवाल है कि कबीर को यह सब किसने सिखाया।
आज इस लेख में हम कबीर के गुरु कौन थे के बारे मे बताएंगे और इस लेख से आपको पता चलेगा कि कबीर ने किस से यह सब सिखा। कबीर के गुरु कौन थे? इस सवाल पर अलग-अलग तरह की राय रखी जाती है।
मगर विशेषज्ञों के अनुसार कबीर के गुरु महाराज रामानंद जी थे। आज इस लेख में हम कबीर के गुरु के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी सरल शब्दों में जानेंगे।
कबीर दास का लघु जीवन परिचय
कबीर दास को हम कबीर के दोहे की वजह से जानते है। मगर इसके अलावा वह एक लेखक, कवि और हिंदुस्तान में भक्ति मूवमेंट की शुरुआत करने वाले एक महान सूफी संत थे। कबीरदास का जन्म 1398 में वाराणसी में हुआ।
यह वह दौर था जब वाराणसी में सैयद वंश का राज्य काल चल रहा था। महात्मा कबीर सिख, हिंदू और मुस्लिम तीनों तरह के धर्म पर विश्वास करते थे। जिस वजह से यह मूल रूप से किस धर्म से ताल्लुक रखते हैं, इसकी चर्चा कहीं नहीं की गई है।
इन्होंने अपने आसपास के जीवन को देखकर अलग-अलग तरीके से उनका अनुभव किया। अपने अनुभव के आधार पर कबीर दास ने अलग-अलग तरह के दोहे लिखे। कबीर दास के दोहे उनके भक्ति संवाद और हिंदुस्तान में सभी धर्मों को एकजुट करने के लिए भक्ति मूवमेंट की शुरुआत की। कबीरदास के कार्य की वजह से लोग उन्हें बहुत अधिक पसंद करते हैं।
कबीर दास की मृत्यु 1518 में मगहर नाम के स्थान पर हुई। कबीर दास की मृत्यु कैसे हुई उसके बारे में कहीं भी स्पष्ट रूप से नहीं लिखा हुआ है। कबीरदास अपने गुरु की सेवा करते हुए भक्ति मूवमेंट को भारत के सभी क्षेत्रों तक पहुंचाने का कार्य कर रहे थे और इसी दौरान उनकी मृत्यु हो गई। आगे चलकर रविंद्र नाथ टैगोर महात्मा कबीर दास से बहुत प्रभावित हुए और अपने अलग-अलग संवाद में उनकी चर्चा की।
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कबीर के गुरु कौन थे?
कबीर के महाराज रामानंद जी थे। वैसे तो कबीर दास को किसी गुरु की आवश्यकता नहीं थी। अगर ज्ञान की दृष्टि से देखें तो महात्मा कबीर दास हर तरह के ज्ञान में निपुण थे। केवल 5 साल की उम्र में उन्हें गीता, कुरान, बाइबल, महाभारत जैसे विभिन्न धर्म और भाषा के किताबों को कंठस्थ कर लिया था।
मगर इस दुनिया में बिना गुरु के किसी व्यक्ति को मार्गदर्शन प्राप्त नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने संत रामानंद जी को अपना गुरु बनाया।
यह उस जमाने की बात हो रही है जब केवल ऊंची जाति के लोगों को पढ़ाया जाता था। महात्मा कबीर दास निचली जाति से संबंध रखते थे। यही कारण था कि महाराज रामानंद जी उन्हें अपना शिष्य नहीं बनाना चाहते थे।
मगर कबीर दास रामानंद जी के ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए और उनसे जीवन में अलग-अलग ज्ञान की दीक्षा प्राप्त करना चाहते थे। इसी वजह से महात्मा कबीर बनारस के एक मंदिर की सीढ़ी पर लेट गए। उसी मंदिर में रामानंद जी भी रहते थे।
1 दिन सुबह-सुबह रामानंद जी गंगा नदी में स्नान के लिए जा रहे थे तभी उनका पैर कबीर दास पर पड़ा। रामानंद जी के मुंह से राम राम का उच्चारण निकलने लगा। तभी कबीरदास खड़े हुए और कहने लगे कि मुझे राम नाम के उच्चारण की दीक्षा देने के लिए धन्यवाद, आपने मुझे यह सिखाया इस वजह से आप मेरे गुरु हुए। रामानंद जी इस बच्चे में सीखने की चाह को देखकर बहुत प्रभावित हुए और कबीर दास को अपना शिष्य बनाया।
उन्होंने महात्मा कबीर को लिखना और अलग-अलग तरह के ज्ञान को समझाया। इसके अलावा महात्मा कबीर के दोहे को एक सटीक श्रेणी और सही तरीके से व्यक्त करने की कला भी सिखाई। अंत में कबीर एक ऐसे शिष्य के रूप में उभर कर आए हैं, जिनका गुरु बनने का सौभाग्य रामानंद जी को प्राप्त हुआ।
कबीर दास के कुछ दोहे
कबीर दास को मुख्य रूप से उनके दोहों की वजह से जाना जाता है। इस वजह से कबीर दास के प्रचलित दोहे की एक सूची नीचे संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत की गई है।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा ना कोई।।
इस दोहे में कबीर बताते हैं कि एक व्यक्ति इस दुनिया में बुरा खोजने चला था। जब वह दुनियाभर में घुमा तो अंत में उसे पता चला कि उस आदमी से बुरा कोई है ही नहीं, जो दूसरे में बुरा देखता हो।
ऐसी बानी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को भी शीतल करे आपहु शीतल होय।।
इस दोहे में कबीर बताना चाहते हैं कि हमेशा व्यक्ति को ऐसी भाषा बोलनी चाहिए, जो दूसरों को खुश कर दे। उससे आपको भी बहुत अच्छा महसूस होगा और आपके सामने वाले को भी बहुत अच्छा लगेगा।
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।।
इस वाक्य के जरिए कबीरदास कहना चाहते हैं कि जो आपकी बुराई करता हो उसे अपने पास रखना चाहिए। बुराई करने वाले इंसान के बहुत पास रहिए ताकि वह आपकी बुराई करें और आपको अपनी कमियों के बारे में पता चले, जिसे सही करके अब बिना पानी और बिना साबुन के खुद को साफ बना लेंगे।
बड़े हुए तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
इस दोहा में कबीर कहना चाहते हैं कि अगर आप बड़े हो जाएं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि ताल और खजूर का पेड़ भी बहुत बड़ा होता है, लेकिन ना तो वह किसी को छाया देने लायक होता है और ना ही उसका फल कोई तोड़ कर खा जाता है। इस वजह से अगर आप किसी दिन जीवन में बड़े बन जाए तो थोड़ा झुक कर रहिए ताकि आपकी वजह से किसी को फायदा हो सके, वरना लोग आपकी इज्जत नहीं करेंगे।
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निष्कर्ष
आज के इस लेख में हमने आपको बताया कि कबीर के गुरु कौन थे। आपको कबीर के जीवन परिचय के साथ उनके कुछ शानदार दोहे के बारे में भी जानने का अवसर मिला। इस लेख के जरिए हम कबीर के गुरु और कबीर के जीवन का एक अनछुआ आपके समक्ष सरल शब्दों में रखने का प्रयास किया गया।
अगर इस लेख को पढ़ने के बाद आप महान संत कबीर और उनके गुरु के बारे में जान पाए हैं तो इसे अपने मित्रों के साथ भी साझा करें। साथ ही अपने सुझाव विचार या किसी भी प्रकार के प्रश्न को कमेंट में बताना ना भूलें हम आपके किसी भी सवाल का तुरंत जवाब देने का प्रयास करेंगे।
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