Essay On Sant Kabir Das In Hindi: संत कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था। संत कबीर दास जी जिन्होंने गरीब परिवार में जन्म लिया था। कबीर दास जी की सोच अन्य लोगों से अलग थी। कबीर दास जी के बारे में निबंध के रूप में जानकारी इस आर्टिकल में हम आप तक पहुंचाने वाले हैं।

इस आर्टिकल में आपको Essay On Sant Kabir Das In Hindi के बारे में संपूर्ण जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी। इसलिए इस आर्टिकल को अंत तक अवश्य पढ़ें।
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संत कबीर दास पर निबंध | Essay On Sant Kabir Das In Hindi
संत कबीर दास पर निबंध (250 शब्दों में)
संत कबीर दास का जन्म 1398 मे लहर तारा काशी मे हुआ था। कबीर जी के पिताजी का नाम नीरू और माताजी का नाम नीमा था। कबीर दास जी का जन्म ब्राह्मणी विधवा के परिवार मे हुआ था और वह समाज के लोगो के डर से वह तालाब के पास शिशु बालक कबीर दास जी को छोड़ आयी थी। तभी एक नीरू नाम का जुलाहे तालाब के पास से गुजर रहा था, तभी उसकी नज़र पड़ी कि तालाब के किनारे टोकरी एक शिशु देखा और उस शिशु कबीर जी को अपने घर लाया और उसका पालन-पोषण अपने संतान की तरह किया।
कबीरदास जी की परिस्थियां बहुत खराब थी इसलिये कबीर जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने मे असमर्थ रहे। कबीर जी ने अपनी शिक्षा गुरु स्वामी जी रामनंद से प्राप्त किया था। गुरु स्वामी जी रामनंद ने कबीर दास जी को अत्याचार, समाज मे फैले जाति-पात का अंधविश्वास के लिये विरोध करने की शिक्षा देते थे।
कबीर दास जी एक महान कवि थे और एक समाजसेवक सुधारक भी थे। कबीर दास जी ने अपना जीवन समाज सेवा मे निकाल दिया। समाज मे कुरीतियों, पाखंड, अत्याचार, छुआछूत के विरुद्ध अपने कदम आगे बढ़ाया और समाज के लिये सभी लड़ाई मे अपना सहयोगदान दिया। वह यही कहते थे कि कोई भी धर्म अलग नहीं होता है हम सब एक ही ईश्वर की देन है, हम सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है। फिर धर्म, जाति, छुआछूत पर अंधविश्वास नहीं करना चाहिये। हम सब एक ईश्वर की देन है और हिन्दू-मुस्लिम, ईसाई सब आपस मे भाई-भाई है।
कबीर दास जी ने कहा कि समाज मे हिंसा का विरोध करते हुए कहा कि जीव-जंतुओं को मार कर उनका मांस नहीं खाना चाहिये, क्योंकि किसी जीव का मांस खा कर पाप का भागदारी नहीं बनना चाहिये। कबीर दास जी ने कहा कि अगर भगवान की पत्थर की मूर्ति की पूजा करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है तो पहाड़ को भी पूजने के लिये सदैव तैयार हूँ। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होता पत्थर की मूर्ति पूजा करने से कोई भी व्यक्ति को ईश्वर नहीं मिलते है।
अगर आप ईश्वर की प्राप्ति करना चाहते है तो ईश्वर के प्रति सच्चे मन से पूजा, अर्चना करें और ईश्वर की भक्ति मे अपना सब कुछ समर्पित कर देना चहिये। ईश्वर की भक्ति मे मन लगा कर लीन होना चाहिये तभी हमें ईश्वर की प्राप्ति होती है।
संत कबीर दास पर निबंध (800 शब्दों में)
प्रस्तावना
संत कबीर दास जी हमारे हिंदी साहित्य के जाने-माने कवि होने के साथ साथ महान समाज सुधार भी थे। उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और कुरीतियों को खत्म करने की बहुत कोशिश की। इस कारण उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया। परंतु वह अपने निर्णय पर अटल रहे वह अपनी अंतिम सांस तक जनकल्याण मैं लगे रहे।
संत कबीर दास जी का जन्म काशी के लहरतारा नामक क्षेत्र में हुआ। इनका जीवन शुरु से ही संघर्ष से भरा हुआ था। उनकी माता एक ब्राह्मण विधवा थी उसने ॠषि मुनियो के आशीर्वाद से इनको जन्म तो दे दिया लेकिन लोक लाज के डर से इन्हें तालाब के पास छोड़ दिया। उनकी माता हिंदू थी। परंतु उनका लालन पालन एक मुस्लिम पति पत्नी ने किया। मुस्लिम दंपति में इनका लालन पालन बेटे की तरह किया।
उन्होंने ही इनका नाम कबीर रखा जिसका अर्थ होता है, श्रेष्ठ। मुस्लिम अभिभावको द्वारा इनका पालन पोषण किये जाने के बावजूद भी इन्होंने दोनों धर्म में से किसी को भी वरीयता नहीं दी। कबीरदास जी भारतीय इतिहास के महान कवि थे। उन्होंने भक्ति काल में जन्म लिया। उन्होंने कई रचनाएँ की और हमेशा के लिए अमर हो गए।
इन्होने निर्गुण ब्रह्म को अपनाया उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव हित व कल्याण में लगा दिया। उन्होंने बहुत अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह शुरू से ही साधु संतो के साथ साथ रहते थे। उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित थे। समाज मैं फैली कुरीतियों व अत्याचारों और धर्म के नाम पर किए जाने वाले पाखंडो का घोर विरोध करते थे। इसी कारण उन्होंने निर्गुण ब्रह्म को अपनाया। वह रामानंद जी से प्रभावित थे।
संत कबीर दास जी के बारे में
कबीर दास जी जो कि रामानंद जी के सबसे चहेते शिष्य थे। कबीर दास जी के दोहे व भजन आज भी घर घर में बजाये जाते है, वह बेहद ही ज्ञानी थे। उन्होंने स्कूली शिक्षा नहीं ली थी। परंतु हिंदी ,अवध, ब्रज, भोजपुरी भाषा पर इनकी पकड़ बहुत अच्छी थी और यह राजस्थानी, हरियाणवी जैसी खड़ी भाषाओं में महारथी थे।
इनकी रचनाओं में सब भाषाओं का मिश्रण मिलता हैं। इसीलिए इनकी भाषा को खिचडी भाषा कहा जाता था। कबीरदास जी ने आम भाषा में शिक्षा नहीं ली थी। इसलिए इन्होंने खुद कुछ नहीं लिखा। इनके शिष्य धर्मदास ने उनके बोल को संग्रहित करके बीजक नामक ग्रंथ की रचना की। बीजक ग्रंथ के तीन भाग है। पहला भाग साखी, दूसरा सबद, तीसरा रमैनी। सुखनिधन, होली आगम आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं थी।
कबीर दास जी का शिष्य
एक बार की बात है कबीरदास सीढ़ियों पर सो रहे थे तभी वहां से स्वामी रामानंद जी गुजरे और अनजाने में उन्होंने कबीरदास जी पर अपने पैर रख दिए। ऐसा करने के बाद उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और वहां राम राम कहने लगे और इस प्रकार उन्हें कबीरदास जी को अपना शिष्य बनाना पड़ा। इस प्रकार कबीरदास को रामानंद जी का सानिध्य प्राप्त हुआ।
रामानंद जी जो कुछ कहते कबीर दास जी उसे याद कर लेते और अपने जीवन में उस पर अम्ल करते थे। यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी हमारे समाज में बहुत सी कुरीतियां है। कबीर दास जी ने इसका पूरा विरोध किया था। उनका मानना था कि भगवान व्रत और उपवास से खुश नहीं होते। क्योंकि ऐसा व्रत करने से क्या फायदा जिसके बाद आप झूठ बोलते हैं। जीवहत्या करते हैं।
उन्होंने सभी धर्मों में इस विधान का विरोध किया। कबीर दास कहते थे। सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं है। इसे कोई झूठला नहीं सकता। सत बराबर तप नही झूठ बराबर नहीं पाप, उनका मानना था। सब ही धर्म एक हैं। हर किसी के मन में भगवान का वास है। खुद के विचार शुद्ध रखो यही सबसे बड़ी भक्ति हैं। तभी खुद दो धर्मों से संबंधित होने की पश्चात ही किसी धर्म विशेष को नहीं मानते थे।
संत कबीर दास जी द्वारा रचित दोहे और कविताएँ
कबीर दास जी का नाम बड़े-बड़े कवियों की लिस्ट में शामिल है। क्योंकि कबीर दास जी द्वारा लिखित दोहे और भजन आज भी लोगों के घरों में गूंजते हैं। कबीर दास जी की सोच अलग प्रकार की थी, उन्होंने कई अहम बातें लोगों को बधाई जिनसे लोगों की जिंदगी संवर गई कबीर दास जी के द्वारा लिखी गई बातों को यदि व्यक्ति अपने रियल लाइफ में उतार देता है तो उस व्यक्ति को लाइफ की कई प्रकार की बाधाएं से छुटकारा मिल जाता है।
निष्कर्ष
कबीर दास जी के बारे में हर कोई व्यक्ति जानता है। कबीर दास जी ने कई अहम रचनाएं की है। कबीर दास जी द्वारा लिखे गए दोहे आज भी लोकप्रिय है और लोग उन दोहों को अच्छे तरीके से मानते भी हैं। कबीर दास जी ने अपना जीवन गरीबी में गुजारा था। कबीर दास जी ने हर समय सकारात्मक सोच रखी और अन्य लोगों को भी आगे बढ़ने की सलाह दी कबीर दास जी ने एक बात कही थी कि जो व्यक्ति झूठ बोलता है वह सबसे बड़ा पाप करता है।
अंतिम शब्द
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