इस्लाम धर्म का इतिहास: पूरे दुनिया में कई तरह के धर्म का पालन करने वाले लोग रहते हैं। लेकिन विश्व की कुल जनसंख्या में 24% लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं। यहां तक कि भारत में भी हिंदू के बाद इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग रहते हैं।
हर एक धर्म का अपना इतिहास है। इस्लाम धर्म भी बहुत ही प्राचीन और प्रचलित एकेश्वरवादी धर्म है। इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ कुरान है और कुरान के अनुसार ही इस्लाम धर्म के लोग अपने धर्म का पालन करते हैं।
इस्लाम का अर्थ अल्लाह को समर्पण होता है। इस तरह जिन्होंने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया है, वह मुसलमान है।
इस लेख में इस्लाम धर्म का इतिहास, इस्लाम धर्म कितना पुराना है, इस्लाम धर्म के पांच सिद्धांत और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जानते हैं।
इस्लाम धर्म कितने साल पुराना है?
इस्लाम धर्म कितना पुराना है इसका आज तक कोई सटीक समय ज्ञात नहीं हो सका है। कहा जाता है कि इस्लाम धर्म की शुरुआत मक्का और मदीना में सातवीं शताब्दी में हुई थी। कहते हैं कि स्वर्ग दूध ग्रेबियल ने पैगंबर मोहम्मद को अल्लाह का संदेश दिया था, जिसके बाद उन्होंने घूम-घूम कर पूरी दुनिया में मुस्लिम धर्म का प्रचार किया था।
कुछ जगहों पर तो यह भी लिखा है कि इस्लाम धर्म की शुरुआत आदम के समय से हुई है। आदम जो कि धरती पर पहला इंसान था और वह मुस्लिम धर्म का पहला धारक था। कुछ इस्लामियों के अनुसार इस्लाम धर्म तकरीबन 1400 साल पुराना है।
यह भी कहा जाता है कि दुनिया का पहला आदमी हजरत आदम से लेकर पैगंबर मोहम्मद तक जितने भी नबी हुए वे सब मुसलमान हुए लेकिन आगे चलकर उन्होंने और भी नए-नए धर्म की स्थापना की या तो अपने धर्म को बदल दिया।
इस्लाम धर्म का संस्थापक
इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मोहम्मद साहब को माना जाता है। कुरान में भी हजरत मोहम्मद साहब को इस्लाम धर्म का आखरी पैगंबर कहा गया है। कहा जाता है कि इन्हीं के द्वारा फरिश्ते ने अल्लाह के वचन लोगों तक पहुंचाए थे, जो कि कुरान में दर्ज है।
हजरत मोहम्मद साहब का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। उनकी माता का नाम अमीना और पिता का नाम अब्दुल्ला था। जब वे 6 साल के थे, उसी समय उनके माता-पिता का देहांत हो गया। उसके बाद इनका पालन पोषण उनके चाचा चाची ने किया।
25 वर्ष की अवस्था में मोहम्मद साहब की शादी खदीजा नामक विधवा के साथ हुई थी। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम फातिमा था। हजरत मोहम्मद साहब बचपन से ही अल्लाह की प्रार्थना में लीन रहते थे। वे घंटो पर्वतों पर बैठकर अल्लाह की प्रार्थना करते थे।
40 साल की उम्र में उन्हें हीरा पर्वत की गुफा में अल्लाह से पहला इल्हाम प्राप्त हुआ। देवदूत जिब्रील के कहने पर पैगंबर मोहम्मद साहब ने अरबी भाषा में कुरान की रचना की और पूरी दुनिया में इस्लाम धर्म का प्रचार किया।
8 जून 632 ईस्वी में हजरत मोहम्मद साहब की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उन्हें मदीना में दफनाया गया। पैगंबर मोहम्मद साहब की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए।
इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ
इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ कुरान है, जिसमें अल्लाह के शब्द लिखे हुए हैं। इस्लाम धर्म कुरान पर आधारित है। इसमें इस्लाम धर्म के मूल सिद्धांत, कानून, नैतिकता और नियम का उल्लेख किया गया है।
हर मुसलमान के लिए यह पाक किताब है। उनके अनुसार यह अल्लाह के द्वारा भेजा गया संदेश है। इस ग्रंथ की रचना एंजेल जिब्रियल के माध्यम से पैगंबर मोहम्मद साहब ने अरबी भाषा में की थी।
कुरान को 653 ईस्वी में लिखा गया था। कुरान में कुल 114 अध्याय, 77439 वाक्य, 6236 छंद है। इसे 30 भागों में बांटा गया है।
यह भी पढ़े
- बौद्ध धर्म क्या है? इसका इतिहास तथा नियम
- जैन धर्म क्या है? इसका इतिहास तथा नियम
- जामा मस्जिद का इतिहास और वास्तुकला
इस्लाम धर्म के पांच सिद्धांत
इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान में इस्लाम धर्म के लिए पांच मूल स्तंभ का उल्लेख किया गया है। एक सच्चे इस्लामी को इन पांच चीजों का अनुसरण करना जरूरी होता है।
शहादा
इसका अर्थ होता है कि अल्लाह के अलावा किसी और धर्म, इंसान या भगवान को नहीं मानेंगे। इसमें गवाही देना होता है कि इस्लाम धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अल्लाह पर पूरा भरोसा है।
नमाज
इस्लाम धर्म में नमाज पढ़ना जरूरी होता है। हर एक मुसलमान नमाज पढ़ता है और पांच बार नमाज पढ़ा जाता है। वे पांच फर्ज की नमाज जोहर की नमाज, फजर की नमाज, असर की नमाज, मगरिब की नमाज और ईशा का नमाज होती है।
नमाज पढ़ने के लिए उन्हें कई नियम का पालन करना पड़ता है जैसे कि नमाज किबला की तरफ मुंह करके पढ़ना चाहिए। मक्का की ओर की दिशा को किबला कहा जाता है, जहां पर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था।
इसके अलावा धारण किए हुए कपड़े साफ सुथरे होने चाहिए। नमाज पढ़ने के बाद अल्लाह हू अकबर कहते हुए नमाज को खत्म करना चाहिए।
रोजा
इस्लाम धर्म के मूल पांच स्तंभों में से एक रोजा माना जाता है। इस नियम के अनुसार इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना रमजान कहलाता है, जिसमें 30 दिन के लिए रोजा (उपवास) रखा जाता है।
कहते हैं कि अल्लाह ने 50 दिन का रोजा रखने का फरमान किया था। लेकिन हजरत मोहम्मद के आग्रह पर 50 दिन के लंबे रोजा के बदले में अल्लाह ने 30 दिन का रोजा रखने का हुक्म दिया।
रोजा के दौरान मुसलमान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक भोजन, पानी ग्रहण नहीं करते हैं। वे आत्म अनुशासन का अभ्यास करते हुए आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
जकात
इस्लाम धर्म के पांच मूल स्तंभों में से एक महत्वपूर्ण स्थान जकात है। इसके अनुसार हर एक मुसलमान को जिनके पास सब कुछ है, जिन्हें अल्लाह ने सब कुछ दिया है, उन्हें गरीबों या जरूरतमंदों को अपने धन का कुछ हिस्सा दान करना चाहिए।
हज
कुरान में हज को इस्लाम धर्म का आखिरी सिद्धांत बताया गया है। इसके अनुसार अगर अल्लाह ने आपको नेक जिंदगी, कामयाबी और बरकत दी है तो हर एक मुसलमान को अपने जीवन काल में एक बार मक्का शरीफ हज करने जरूर जाना चाहिए।
इस्लाम धर्म से जुड़े रोचक तथ्य
- इस्लाम धर्म में 786 नंबर को बहुत ही पवित्र नंबर माना जाता है, जो अक्सर मुसलमान के घर हो या मस्जिद में देखने को मिलता है। इस नंबर को हिंदू धर्म का पवित्र शब्द ॐ का ही रूप माना जाता है।
- पैगंबर के मक्का से मदीना की यात्रा इस्लाम जगत का तीर्थ यात्रा माना जाता है। इसे हिजरी संवत के नाम से भी जाना जाता है।
- इस्लाम धर्म शुन्नी और सिया नामक दो पंथो में विभाजित है।
- शुन्ना पैगंबर मोहम्मद साहब के कथनों पर विश्वास करते हैं।
- सिया अली की शिक्षाओं में विश्वास करते हैं।
- इब्न ईशाक के द्वारा सबसे पहले पैगंबर मोहम्मद साहब का जीवन चरित्र लिखा गया।
- पैगंबर मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर इस्लाम धर्म हर साल ईद ए मिलाद उन नबी पर्व मनाया जाता है।
- भारत में अरबो के जरिए सबसे पहले इस्लाम का आगमन हुआ।
निष्कर्ष
इस लेख में आपने इस्लाम धर्म का इतिहास, इस्लाम धर्म कितना पुराना है, इस्लाम धर्म के संस्थापक, इस्लाम धर्म के पांच सिद्धांत और इस्लाम धर्म से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों के बारे में जाना।
हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरीए आपको इस्लाम धर्म से जुड़े सभी महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। यदि यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।