Gangaur Kyo Manaya Jata Hai: सम्पूर्ण भारतवर्ष में अनेकों धर्म के लोग रहते हैं, सभी धर्मों के लोग यहाँ हर वर्ष कई प्रकार के त्यौहार बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। ऐसे ही कई त्यौहारों में से आज हम एक ऐसे त्यौहार के बारे में बात करने वाले है जो वैसे तो यह पूरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन विशेषकर राजस्थान के मूल निवासियों द्वारा इसे मनाया जाता है।

हम बात कर रहे हैं गणगौर पूजा त्यौहार की, राजस्थान के लोगों के लिए यह त्यौहार अहम होता, यहाँ से लोग इसे बड़े धूमधाम से मानते है। इस लेख के माध्यम से हम आपको गणगौर की पूजा क्या होती है, गणगौर पूजा कब मनाई जाती है, गणगौर पूजा कैसे मनाई जाती है, गणगौर पूजा क्यों मनाई जाती है (Gangaur Kyo Manaya Jata Hai), इसका क्या महत्व है और गणगौर की व्रत कहानी से संबंधित संपूर्ण जानकारी विस्तार से देने जा रहे है।
गणगौर क्यों मनाई जाती है, महत्त्व व इतिहास – Gangaur Kyo Manaya Jata Hai
गणगौर पूजा क्या है?
आपको बता दे कि गणगौर पूजा प्रेम एवं पारिवारिक सौहार्द का एक बहुत ही पावन पर्व माना जाता है। गणगौर पूजा कोभारत के विभिन्न राज्यों के लोगों द्वारा मनाया जाता है। यदि हम गणगौर का संधि विच्छेद करें तो हमारे सामने दो शब्द आते हैं, एक तो ‘गण’ और दूसरा ‘गौर’। यदि हम इन दोनों शब्दों के अलग-अलग अर्थ बताएं तो गण शब्द का अर्थ भगवान शिव जी से है। अर्थात गण शब्द भगवान शंकर जी के लिए प्रयोग किया जाता है। यही इसके विपरीत यदि हम गौर शब्द का अर्थ बताएं तो गौर शब्द का अर्थ माता पार्वती से होता है।
गणगौर पूजा राजस्थान के अन्य पर्वों में से सबसे महत्वपूर्ण पर्व है। गणगौर पर्व को न केवल राजस्थानी बल्कि भारत के अन्य राज्यों में भी मनाया जाता है। राजस्थान में इस त्यौहार की काफी मान्यता है। राजस्थान राज्य में गणगौर पूजा को आस्था के साथ मनाया जाता है और गणगौर व्रत के दिन भगवान शंकर और माता पार्वती का पूजन किया जाता है।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि सभी महिलाएँ इस दिन भगवान शंकर जी और पार्वती जी का पूजन करते हैं। राजस्थानी लोगों की यह मान्यता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती से संबंध में इस गणगौर पूजा को मनाया जाता है। यही कारण है कि गणगौर पूजा की हिंदू धर्म के लोगों में एक अलग मान्यता है। गणगौर पूजा के पीछे हिंदू धर्म देव महादेव और माता पार्वती के संबंध में एक बहुत ही अलग और विशेष प्रकार के रहस्य है।
गणगौर के अन्य नाम
राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को गणगौर पूजन के नाम से जाना जाता है और गणगौर पूजन को भारत के अन्य राज्यों में तीज के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। भारतीय मान्यताओं के अनुसार तीज का त्यौहार केवल पतिव्रता स्त्री मनाती है। भारत के अन्य राज्यों में तो यह त्यौहार केवल 1 दिन के लिए मनाया जाता है, परंतु राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती है।
गणगौर क्यों मनाई जाती है?
गणगौर पूजन को लेकर के बहुत से लोगों के मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि आखिर यह गणगौर पूजन मनाया क्यों जाता है? तो उन लोगों के सवालों का जवाब हम यहां पर विस्तार से जानेंगे। गणगौर पूजन के पीछे एक अलग ही मान्यता है। यह एक ऐसी मान्यता है कि इस दिन लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के समृद्ध रूप को गणगौर कहते हैं, उनका पूजन करती हैं।
गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके और इस त्यौहार को विवाहित लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उनके पति को लंबी उम्र की प्राप्ति हो सके और उन्हें सदैव उनके पति का प्रेम मिलता रहे। इस त्यौहार को राजस्थान में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
आपको बता दें कि गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।” इस कहावत का यही अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है।
गणगौर कब मनाया जाता है?
राजस्थान में इस पर्व को लगभग 16 दिनों तक लगातार मनाया जाता है और इसे महिलाओं के सामूहिक दल के रूप में मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि गणगौर की पूजा होली के दूसरे दिन से ही शुरू होती है और इसके उपरांत होली के समापन के लगभग 16 दिनों तक लगातार चलती।
इस त्यौहार को लगातार मनाया जाता ही है, इसके साथ-साथ इस त्यौहार को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार गणगौर का पूजन चैत्र पक्ष की तृतीया को शुरू होता है। पुराणों के अनुसार गणगौर पूजन का आरंभ पौराणिक काल से ही चलता आ रहा है, उसी समय से इस पर्व को प्रत्येक वर्ष बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
गणगौर का इतिहास क्या है?
बहुत ही पुराने समय की बात है, प्राचीन समय में माता पार्वती ने भगवान शिव जी को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या और कठिन साधना के साथ-साथ व्रत भी रखा था। माता पार्वती ने इतनी कठोर तपस्या की थी कि भगवान शिव जी इन सब के फलस्वरूप माता पार्वती की तपस्या से बहुत ही प्रसन्न हो गए और वे माता पार्वती के समक्ष प्रकट हो गए।
माता पार्वती ने भगवान शिव जी के कहे अनुसार एक वरदान मांगा। माता पार्वती भगवान शिव से वरदान नहीं मांग रही थी, परंतु भगवान शिव ने उन पर जोर डाला कि आप वरदान मांगिए। माता पार्वती ने भगवान शिव से वरदान स्वरूप उन्हें अपने पति के रूप में मांग लिया। भगवान शिव के वरदान के रूप में माता पार्वती की इच्छा पूर्ण हो गई और इसके पश्चात माता पार्वती जी का विवाह शिव शंभू भोलेनाथ जी के साथ हो गया।
इन सभी के पश्चात यह माना जाता है कि भगवान शिव जी ने इस दिन माता पार्वती जी को इस वरदान के साथ-साथ अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान दिया था। माता पार्वती ने यह वरदान न केवल अपने तक ही सीमित रखा, बल्कि माता पार्वती ने यह वरदान उन सभी महिलाओं को दे दिया जो इस दिन मां पार्वती और शंकर भगवान की पूजा पूरे विधि विधान से कर रही थी। ऐसा माना जाता है कि तब से ही गणगौर की पूजा लोगों के द्वारा मनाई जाने लगी और इन सभी के पश्चात गणगौर की पूजा इतनी प्रसिद्ध हो गई कि भारत के अन्य राज्यों में भी मनाई जाने लगी।
गणगौर व्रत रखने की विधि (Gangaur Puja Vidhi in Hindi)
- गणगौर की पूजा मनाने के लिए सबसे पहले हमें चौकी लगा करके उस पर साखिया बनाया जाता है और पूजन की विधियां शुरू की जाती हैं।
- इसके बाद आपको पानी से भरे कलश के ऊपर पान के 5 पत्ते रखने होते हैं और सबसे ऊपर एक नारियल रखना होता है। इस कलश को चौकी के दाहिनी तरफ रखा जाता है।
- इसके पश्चात चौकी पर पैसे और सुपारी रखी जाती है।
- इन सभी के पश्चात दीवार पर एक पेपर लगा करके कुंवारी कन्या 8-8 और विवाहित कन्या 16-16 टिकी लगाती हैं।
- इन सभी के पश्चात गणगौर पूजन का गीत गाया जाता है। पानी का कलश साथ रखकर हाथ में घास लेकर के हाथ जोड़कर के 16 बार गणगौर का गीत गाया जाता है।
- इन सभी प्रक्रियाओं को क्रमशः पूरे 16 दिन की जाती है। इस दिन औरतें भगवान श्री गणेश जी की कहानियां कहती हैं और इसके पश्चात गीत गाया करती है।
- इस त्यौहार को अष्टमी की तीज तक प्रत्येक सुबह बिजोरा जो कि फूलों का बना होता है, उससे की जाती है।
गणगौर के गीत (Gangaur Puja Geet in Hindi)
गणगौर पूजने का गीत
गोर रे, गणगौर माता खोल ये, किवाड़ी
बाहर उबी थारी पूजन वाली,
पूजो ये, पुजारन माता कायर मांगू
अन्न मांगू धन मांगू, लाज मांगू लक्ष्मी मांगू
राई सी भोजाई मंगू।
कान कुवर सो, बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू।
16 बार गणगौर पूजन का गीत
गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे
करता करता, आस आयो मास आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे, किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे, गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो, आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे।
पाटा धोने का गीत
पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये, भाभी तेरो बाप जाये
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये
दूध मे डोरों, म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा, म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी।
गणगौर का अरग के गीत
अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक, दो, तीन, चार, पांच, छ:, सात,
आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह,
तेरह, चौदह, पंद्रह, सोलह।
पानी पिलाने का गीत
म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो।
(इसमें परिवार के पुरुषो के क्रमशः नाम लिए जाते है।)
निष्कर्ष
आज के इस लेख के माध्यम से हमने आपको गणगौर पूजा से संबंधित सभी जानकारियों के विषय में बहुत ही विस्तार पूर्वक से बताया है। गणगौर पूजा राजस्थान में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार के दिन सभी औरतें अपने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं।
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