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गणगौर क्यों और कब मनाई जाती है?, जाने इसका इतिहास

gangaur kyu manate hai

Gangaur Kyu Manate Hai: भारत विभिन्न संस्कृति वाला देश है। यहां पर विभिन्न राज्य और उनकी संस्कृति के रंग भरे हुए हैं। भारत के हर एक राज्य में कोई ना कोई विशेष त्यौहार मनाया जाता है। ऐसा ही एक त्यौहार गणगौर है, जो कि राजस्थान में बहुत ही प्रचलित है।

होली के बाद मनाया जाने वाला यह त्यौहार नव विवाहित महिलाएं और कुंवारी कन्याएं बहुत ही धूमधाम से मनाती हैं। वैसे भारत में हर एक त्योहार को मनाने के पीछे कुछ ना कुछ पौराणिक कथा और इतिहास जुड़ा होता है।

ठीक उसी तरह गणगौर त्यौहार को मनाने के पीछे भी पौराणिक कथा है। इसके साथ ही हर एक त्यौहार को मनाने की विधि भी अलग होती है। गणगौर त्यौहार मनाने की भी विधि अलग होती है।

इस लेख में गणगौर क्यों मनाई जाती है (gangaur kyu manate hai), गणगौर का इतिहास, गणगौर कब मनाई जाती है, गणगौर कैसे मनाई जाती है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

गणगौर पूजा क्या है?

हमारे देश की संस्कृति अलग-अलग राज्यों में रहने वाले लोगों के रीति रिवाज, वेशभूषा और उनके त्योहारों में दिखाई देता है। गणगौर त्यौहार से उत्तर भारत की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। यह त्योहार मारवाड़ियों का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसे वे बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

गणगौर दो शब्दों के मेल से बना हुआ है गण और गौर। गण शब्द का अर्थ होता है भगवान शंकर और गौर शब्द का अर्थ होता है उनकी पत्नी मां पार्वती। इस तरह यह त्यौहार भगवान शिव और माता पार्वती से जुड़ा हुआ है।

गणगौर को अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। यूं तो यह त्यौहार राजस्थान से जुड़ा हुआ है लेकिन यह उत्तर प्रदेश राज्य में भी मनाया जाता है। यह त्यौहार सुहागन स्त्री से जुरा होने के कारण मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में भी मनाया जाता है।

मध्य प्रदेश में निमाड़ी समुदाय के लोग भी मारवाड़ियों की तरह ही इस त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। हालांकि दोनों समुदायों में इस त्यौहार को मनाने की पूजा पद्धति अलग-अलग होती है, जहां पर मारवाड़ी 16 दिनों तक गणगौर मानते हैं तो वहीं निमाड़ी लोग 3 दिन गणगौर मनाते हैं।

गणगौर के अन्य नाम

राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को गणगौर पूजन के नाम से जाना जाता है और गणगौर पूजन को भारत के अन्य राज्यों में तीज के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय मान्यताओं के अनुसार तीज का त्यौहार केवल पतिव्रता स्त्री मनाती है। भारत के अन्य राज्यों में तो यह त्यौहार केवल 1 दिन के लिए मनाया जाता है, परंतु राजस्थान राज्य में इस त्यौहार को महिलाएं सामूहिक रूप से 16 दिनों तक मनाती है।

गणगौर क्यों मनाई जाती है?

गणगौर पूजन के पीछे एक अलग ही मान्यता है। यह एक ऐसी मान्यता है कि इस दिन लड़कियां और शादीशुदा महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के समृद्ध रूप को गणगौर कहते हैं, उनका पूजन करती है।

गणगौर का त्योहार कुंवारी लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उन्हें उनका मनचाहा वर प्राप्त हो सके और इस त्यौहार को विवाहित लड़कियां इसीलिए मनाती हैं ताकि उनके पति को लंबी उम्र की प्राप्ति हो सके और उन्हें सदैव उनके पति का प्रेम मिलता रहे। इस त्यौहार को राजस्थान में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।

बता दें कि गणगौर पूजा को लेकर के राजस्थान में एक बहुत ही प्रसिद्ध कहावत है “तीज तिवारा बावड़ी ले डूबी गणगौर।” इस कहावत का यही अर्थ है कि सावन की तीज से त्यौहार का आगमन शुरू हो जाता है और गणगौर के विसर्जन के साथ ही इस त्यौहार का समापन होता है।

गणगौर कब मनाया जाता है?

गणगौर पर्व एक पौराणिक पर्व है, जो पौराणिक काल से ही मनाया जा रहा है। हर वर्ष यह पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार चेत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।

जैसे हमने आपको पहले ही बताया कि राजस्थान में गणगौर का त्योहार 16 दोनों का मनाया जाता है और यह त्यौहार होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है। साल 2024 में गणगौर त्यौहार 11 अप्रैल 2024 को मनाया जाएगा।

गणगौर का इतिहास क्या है?

हर त्यौहार की तरह गणगौर त्यौहार को मनाने के पीछे भी पौरानीक कथा जुड़ी हुई है। गणगौर का त्योहार भगवान शिव और मां पार्वती के आराधना से जुड़ा हुआ है।

पौराणिक कथा के अनुसार मां पार्वती ने अखंड सौभाग्य की कामना हेतु कठोर तपस्या की थी। उसी तप परिणाम स्वरूप उन्हें भगवान शिव प्राप्त हुए थे, जिनसे उनका विवाह हुआ था।

जिस दिन मां पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाया, उसी दिन को गणगौर त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। गणगौर त्यौहार के दिन औरतें गणगौर व्रत को रखती है, जिससे उन्हें सदा सुहागन होने का वरदान मिलता है।

गणगौर कैसे मनाया जाता है?

गणगौर का त्यौहार राजस्थान की महिलाएं बहुत ही धूमधाम से मनाती हैं। होली के दूसरे दिन ही सभी महिलाएं होली के राख को गाती बजाती हुई अपने घर लेकर जाती है। उसके बाद वे मिट्टी को गला कर उससे 16 पिंडिया बनाती हैं।

उसके बाद वे दीवारों पर 16 बिंदिया कुमकुम की, 16 बिंदिया मेहंदी की और 16 बिंदिया काजल की हर दिन लगाती हैं। औरतें व्रत भी रखती है और यह व्रत औरतें अपने मायके में बिना अपने पति को बताएं रखती हैं। नव विवाहित महिलाएं प्रथम वर्ष अपने मायके में गणगौर व्रत रखती हैं।

उसके बाद से प्रतिवर्ष वह अपने ससुराल में ही इस त्यौहार को मनाती हैं। अपने ससुराल में विवाहित महिलाएं अपने सास को बायना, कपड़े, सुहागन का सारा समान देती है। इसके साथ ही 16 सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को श्रृंगार की वस्तुएं देती हैं।

दोपहर के बाद गणगौर माता को ससुराल विदा किया जाता है। यानी कि उस दिन सभी महिलाएं गणगौर की प्रतिमा को किसी कुंए या तालाब में जाकर विसर्जित करती हैं।

गणगौर 16 दिनों तक मनाया जाता है। इसके अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ सुसज्जित हाथी घोड़े का जुलूस निकाला जाता है, जो बहुत ही आकर्षक होता है। नाथद्वारा में 7 दिन तक लगातार सवारी निकलती है।

इस सवारी में सैकड़ो लोग भाग लेते हैं और वह गणगौर के पोशाक के रंग में ही खुद के पोषक को भी रंगवाते हैं। गणगौर की प्रतिमा एक लकड़ी की बनी होती है, जिसे जेवर और वस्त्र पहानकर सजाया जाता है।

इस दिन महिलाएं गीत गाती हैं। बुजुर्ग औरतें शंकर पार्वती के प्रेम, उनके दांपत्य जीवन से जुड़े किस्सा-कहानी सुनाती हैं। यह पर्व न केवल भारत बल्कि देश-विदेश में भी फेमस है। इसीलिए इस पर्व को देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं।

गणगौर की प्रतिमा का विसर्जन होने के बाद सभी औरतें पूजा में जो भी प्रसाद अर्पित होता है, उन्हें ग्रहण करती है। यह व्रत सुहागन स्त्रियों के लिए होता है, इसलिए केवल सुहागन स्त्रियां ही उन प्रसाद को ग्रहण करती है। पुरुष को प्रसाद नहीं मिलता है।

गणगौर व्रत रखने की विधि (Gangaur Puja Vidhi in Hindi)

  • गणगौर की पूजा मनाने के लिए सबसे पहले चौकी लगा करके उस पर साखिया बनाया जाता है और पूजन की विधियां शुरू की जाती है।
  • इसके बाद पानी से भरे कलश के ऊपर पान के 5 पत्ते रखने होते हैं और सबसे ऊपर एक नारियल रखना होता है। इस कलश को चौकी के दाहिनी तरफ रखा जाता है।
  • इसके पश्चात चौकी पर पैसे और सुपारी रखी जाती है।
  • इन सभी के पश्चात दीवार पर एक पेपर लगा करके कुंवारी कन्या 8-8 और विवाहित कन्या 16-16 टिकी लगाती है।
  • इन सभी के पश्चात गणगौर पूजन का गीत गाया जाता है। पानी का कलश साथ रखकर हाथ में घास लेकर के हाथ जोड़कर के 16 बार गणगौर का गीत गाया जाता है।
  • यह प्रक्रियाएं क्रमशः पूरे 16 दिन की जाती है। इस दिन औरतें भगवान श्री गणेश जी की कहानियां कहती हैं और इसके पश्चात गीत गाया करती है।
  • इस त्यौहार को अष्टमी की तीज तक प्रत्येक सुबह बिजोरा जो कि फूलों का बना होता है, उससे की जाती है।

गणगौर के गीत (Gangaur Puja Geet in Hindi)

गणगौर पूजने का गीत

गोर रे, गणगौर माता खोल ये, किवाड़ी
बाहर उबी थारी पूजन वाली,
पूजो ये, पुजारन माता कायर मांगू
अन्न मांगू धन मांगू, लाज मांगू लक्ष्मी मांगू
राई सी भोजाई मंगू।
कान कुवर सो, बीरो मांगू इतनो परिवार मांगू।

16 बार गणगौर पूजन का गीत

गौर-गौर गणपति ईसर पूजे, पार्वती
पार्वती का आला टीला, गोर का सोना का टीला
टीला दे, टमका दे, राजा रानी बरत करे
करता करता, आस आयो मास आयो, खेरे खांडे लाडू लायो,
लाडू ले बीरा ने दियो, बीरों ले गटकायों
साडी मे सिंगोड़ा, बाड़ी मे बिजोरा,
सान मान सोला, ईसर गोरजा
दोनों को जोड़ा ,रानी पूजे राज मे,
दोनों का सुहाग मे
रानी को राज घटतो जाय, म्हारों सुहाग बढ़तों जाय
किडी किडी किडो दे, किडी थारी जात दे,
जात पड़ी गुजरात दे, गुजरात थारो पानी आयो,
दे दे खंबा पानी आयो, आखा फूल कमल की डाली,
मालीजी दुब दो, दुब की डाल दो
डाल की किरण, दो किरण मन्जे।

पाटा धोने का गीत

पाटो धोय पाटो धोय, बीरा की बहन पाटो धो
पाटो ऊपर पीलो पान, म्हे जास्या बीरा की जान
जान जास्या, पान जास्या, बीरा ने परवान जास्या
अली गली मे, साप जाये, भाभी तेरो बाप जाये
अली गली गाय जाये, भाभी तेरी माय जाये
दूध मे डोरों, म्हारों भाई गोरो
खाट पे खाजा, म्हारों भाई राजा
थाली मे जीरा म्हारों भाई हीरा
थाली मे है, पताशा बीरा करे तमाशा
ओखली मे धानी छोरिया की सासु कानी।

गणगौर का अरग के गीत

अलखल-अलखल नदिया बहे छे
यो पानी कहा जायेगो
आधा ईसर न्हायेगो
सात की सुई पचास का धागा
सीदे रे दरजी का बेटा
ईसरजी का बागा
सिमता सिमता दस दिन लग्या
ईसरजी थे घरा पधारों गोरा जायो,
बेटो अरदा तानु परदा
हरिया गोबर की गोली देसु
मोतिया चौक पुरासू
एक, दो, तीन, चार, पांच, छ:, सात,
आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह,
तेरह, चौदह, पंद्रह, सोलह।

पानी पिलाने का गीत

म्हारी गोर तिसाई ओ राज घाटारी मुकुट करो
बिरमादासजी राइसरदास ओ राज घाटारी मुकुट करो
म्हारी गोर तिसाई ओर राज
बिरमादासजी रा कानीरामजी ओ राज घाटारी
मुकुट करो म्हारी गोर तिसाई ओ राज
म्हारी गोर ने ठंडो सो पानी तो प्यावो ओ राज घाटारी मुकुट करो।
(इसमें परिवार के पुरुषो के क्रमशः नाम लिए जाते है।)

निष्कर्ष

यहां गणगौर क्यों मनाई जाती है (gangaur kyu manate hai), गणगौर का इतिहास, गणगौर कब मनाई जाती है, गणगौर कैसे मनाई जाती है आदि के बारे में विस्तार बताया है।

हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए गणगौर त्यौहार से जुड़ी सभी जानकारी आपको मिल गई होगी। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ भी जरूर शेयर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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