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गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? (महत्व, इतिहास और कहानी)

हर वर्ष भारत में गणेश चतुर्थी बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। मध्य भारत और दक्षिण भारत में विशेष रूप से महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी को सनातन धर्म में पूरे वर्ष का सबसे बड़ा त्यौहार मना जाता है। इस बात से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यहां पर गणपति को लेकर कितनी उत्सुकता और लोगों में कितने दीवानगी होती है। गणेश चतुर्थी का उत्सव आने से पहले ही भारत में जगह-जगह तरह-तरह से तैयारियां की जाती हैं और धूमधाम से गणपति उत्सव मनाया जाता है। गणपति विसर्जन भारत में काफी बरसों से प्रचलित है।

सनातन धर्म की कथा और धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय जब माता पार्वती स्नान कर रही थी, तब उन्होंने दरवाजे पर अपने पुत्र गणेश को खड़ा किया कि किसी को अंदर नहीं आने दे, जब माता पार्वती नहाने के लिए गई तो भगवान शिव आ गए। गणेश ने भगवान शिव को भितर जाने से रोका।

इस बात से दोनों पिता-पुत्र में झगड़ा हो गया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि भगवान शिव ने अपने पुत्र गणेश की गर्दन काट दी। इस बात का जब पार्वती को पता चला तो, उन्होंने भगवान शिव को फिर से अपने पुत्र गणेश को जीवित करने के लिए विवश किया।

Ganesh Chaturthi Kyu Manai jati hai

भगवान शिव ने पार्वती के कहने पर हाथी की गर्दन लगाकर श्री गणेश को जीवित कर दिया, लेकिन देवलोक में भगवान श्री गणेश की रूप रंग और शरीर की बनावट अलग होने के कारण उन्हें कुछ विशेष महत्व देने का फैसला किया। जिसके बाद भगवान श्री गणेश को प्रथम देव के रूप में माने जाने लगा। भगवान श्री गणेश संपूर्ण पृथ्वी लोक पर प्रथम देव के रूप में जाने जाते हैं।

शादी-विवाह, लगन-प्रसंग जैसे शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है। उसके बाद ही दूसरे देवी देवताओं की पूजा अर्चना और शुभ मंगलम कार्य किए जाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि गणेश चतुर्थी कब है? गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? गणेश चतुर्थी का महत्व क्या है? आइए पूरी जानकारी विस्तार से प्राप्त करते हैं।

गणेश चतुर्थी कब है?

प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को धूमधाम से मनाया जाता है। सनातन धर्म की कथा कहानियां और धर्म शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। इसी उपलक्ष में पूरे देश में धूमधाम से श्री गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जाता है।

इस वर्ष अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार गणेश चतुर्थी 19 सितंबर 2023 को बुधवार को है। यानी कि 31 अगस्त बुधवार के दिन गणेश चतुर्थी हैं और इस दिन भगवान श्री गणेश की स्थापना की जाएगी, जिसके ठीक 10 दिन बाद भगवान श्री गणेश का विसर्जन कर दिया जाएगा।

विशेष रुप से 11 दिनों तक गणेश उत्सव चलता है जो बड़े पैमाने पर प्रचलित है। विशेष रूप से गणेश चतुर्थी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में धूमधाम से मनाई जाती है। इन राज्यों में गणेश चतुर्थी को वर्ष का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है।

यहां पर लोग हर रोज नए कपड़े पहनते हैं और हर रोज भगवान श्री गणेश की पूजा करने के लिए जाते हैं।‌ अपने घरों में भी भगवान श्री गणेश की स्थापना करते हैं तथा घर में सुख समृद्धि और जीवन में शांति बने रहने की भगवान श्री गणेश से कामना करते हैं। लोगों में श्री गणेश चतुर्थी के दिन अपार श्रद्धा और उत्साह देखने को मिलता है।

गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है ?

गणेश चतुर्थी 100 करोड़ से भी ज्यादा सनातन धर्म के लोगों की आस्था का उत्सव है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र भगवान श्री गणेश को अर्पित है। इस दिन लोग अपने घरों में, अपने शहर में, गांव में, कस्बों में और अपने आसपास के इलाकों में 3-4 इंच से लेकर 25-30 फीट ऊंची भगवान श्री गणेश की प्रतिमाओं का अनावरण करते हैं। बड़े-बड़े पंडाल लगाते हैं। अत्यंत साजो-श्रँगार करते हैं‌ और रंग-बिरंगे पुष्प और डेकोरेशन करके बेहतरीन गणेशोत्सव मंडल बनाते हैं।

गणेश उत्सव के पंडाल पर डीजे साउंड, डीजे वाली लाइटें, तरह-तरह के डेकोरेशन और कई प्रकार के कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। यहां पर अपने राज्य और इलाके से संबंधित संस्कृति का प्रचलन होता है और दूरदराज से लोग यहां पर गणपति बप्पा के दर्शन करने के लिए आते हैं।

भाद्रपद मास में गणेश उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। हर रोज गणेश उत्सव के दौरान भगवान श्री गणेश के पंडालों में मुहूर्त के अनुसार पूजा की जाती है। लोग अपने घरों में छोटी-छोटी गणेश प्रतिमा स्थापित करके उसकी हर रोज पूजा करते हैं। पंडालों में गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के साथ ही अपने घरों में रखी गणेश प्रतिमा का विसर्जन कर देते हैं।

गणेश चतुर्थी के दिन सनातन धर्म के अंतर्गत मंत्रों का उच्चारण करके गणेश भगवान की प्रतिमा को स्थापित करते हैं, इसे प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। इस प्राण प्रतिष्ठा के ठीक 10 दिन बाद यानी अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान श्री गणेश का विधिपूर्वक पूजन करके अपने नजदीकी स्वच्छ जलाशय में भगवान श्री गणेश का विसर्जन कर देते हैं। इस दौरान बड़े धूमधाम से भगवान श्री गणेश का विसर्जन किया जाता है।

ढोल ताशे, नगाड़े, डीजे, नाच गाने लगाए जाते हैं। लोग तरह-तरह के रंग बिरंगे वस्त्र पहनते हैं और नाच गानों के साथ खुशी और आंखों में आंसू लेकर भगवान श्री गणेश का विसर्जन कर देते हैं।

महाराष्ट्र में गणपति विसर्जन और गणेश चतुर्थी का बहुत बड़ा महत्व है क्योंकि माना जाता है कि गणेश चतुर्थी और गणेश विसर्जन का उत्सव महाराष्ट्र से ही शुरू हुआ था। इसीलिए यहां पर इन दिनों लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु शहरों में बड़े-बड़े गणेशोत्सव पंडालों में आते हैं और यहां पर कई तरह के गणपति उत्सव आयोजित करने जाते हैं।

यहां पर रथ और वाहनों पर गणेश की प्रतिमा को धूमधाम से गाजा बाजा के साथ, ढोल ताशों के साथ, डीजे और लोगों के गणपति के जयकारों के साथ शहरों में घूमने के बाद स्थापित की जाता है और 10 दिन बाद गणपति बप्पा मोरिया की गूंज के साथ बप्पा मोरिया का विसर्जन कर दिया जाता है।

महाराष्ट्र में लोग इस दिन अत्यंत उत्साह के साथ “गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया, पुर्ड‌चिया वर्षी लवकर या”, के जयकारों से गणपति विसर्जन करते हैं और 10 दिनों तक धूमधाम से गणेश उत्सव मनाते हैं। इस जयकारे का अर्थ है “हे गणेश परमेश्वर, मंगल करने वाले, अगले बरस जल्दी आना”। यह हिंदू धर्म का एक अत्यंत लोकप्रिय और बड़ा त्यौहार है जिसे उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक धूमधाम से मनाया जाता है। सभी राज्यों में थोड़ा थोड़ा अलग रीति रिवाज के अनुसार गणेश उत्सव मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी की कहानी

सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों के अनुसार जब महाभारत की रचना महर्षि देव व्यास ने की थी। तब महर्षि देव व्यास ने इस कार्य को पूर्ण करने के लिए महाराज गणपति देव गजानंद को याद किया। इस दौरान वहां पर भगवान गणेश प्रकट हुए और उन्होंने महाभारत की रचना करने का कार्य आरंभ किया। धर्म शास्त्र के अनुसार भगवान श्री गणेश को महाभारत की रचना का कार्य संपन्न करने में 10 दिनों का समय लग गया था।

लगातार 10 दिन उसने महाभारत की रचना के लेखन का कार्य किया था। इस दौरान महर्षि वेदव्यास ने गणपति के शरीर को तापमान के अनुसार नियंत्रित रखने के लिए उनके शरीर पर मिट्टी का लेप लगा दिया था।

धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश को लगातार 10 दिनों तक महाभारत की रचना करने के लिए लेखन का कार्य करना पड़ा था, जिस वजह से उनका शरीर धूल मिट्टी से भर गया और देव व्यास ने भी शरीर का तापमान नियंत्रण में रखने के लिए उनके शरीर पर मुलायम और चिकनी मिट्टी का लेप लगा दिया।

भगवान श्री गणेश ने चतुर्थी के दिन ही महाभारत की रचना करने का कार्य आरंभ किया था लेकिन कुछ दिन बीत जाने के बाद उनके शरीर पर लगाया गया मिट्टी का लेप सुख पर गिरने लगा और भगवान श्री गणेश के शरीर का तापमान बिगड़ने लगा। ऐसा करते करते महर्षि वेदव्यास उनकी देखभाल करते थे और 10 दिन में महाभारत के रचना के कार्य का समापन होने के बाद महर्षि वेदव्यास ने अपने नजदीकी सरोवर में गणपति को स्नान करवाया था।

सनातन धर्म के अनुसार उसी दिन से लोग भाद्रपद की चतुर्थी को गणपति की प्रतिमा अपने घर पर लाते हैं और चतुर्थी के दिन गणपति प्रतिमा को स्थापित करते हैं। जिसके 10 दिन बीत जाने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन भक्त हर्षोल्लास के साथ धूमधाम से गणेश विसर्जन करते हैं। भारत में गणेश विसर्जन बड़ी धूमधाम से किया जाता है।सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश को विशेष महत्व दिया गया है।

सर्वप्रथम देव के रूप में भगवान श्री गणेश को पूजा जाता है। उसके बाद दूसरे देवी देवताओं की आराधना की जाती है। लेकिन क्या आपको पता है? कि भारत में गणेश चतुर्थी और गणेश उत्सव मनाने की परंपरा कब शुरू हुई! आइए जानते हैं –

गणेश चतुर्थी का इतिहास

गणेश चतुर्थी का इतिहास इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश कालीन भारत में अंग्रेजों के जमाने में शुरू हुआ था क्योंकि उस समय लोगों को एकजुट करना, लोगों में जागरूकता पैदा करना अत्यंत आवश्यक था। लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ ज्यादा से ज्यादा मात्रा में खड़ा करना अत्यंत जरूरी था।

इसीलिए गणेश उत्सव का आयोजन करवाया गया, जो वर्तमान समय में हिंदू धर्म का एक बड़ा उत्सव बन चुका है और आज के समय में लोग धूमधाम से गणेश चतुर्थी मनाते हैं। इतिहासकार बताते हैं कि महाराष्ट्र के क्षत्रिय राजा छत्रपति शिवाजी महाराज ने सबसे पहले भगवान श्री गणेश की पूजा अपने कुल देवता के रूप में की थी।

इतिहासकारों के अनुसार गणेश चतुर्थी का पावन पर्व सबसे पहले 1630 से लेकर 1680 के दौरान शुरू हुआ था। उस दौरान सबसे पहले छत्रपति शिवाजी महाराज ने गणेश चतुर्थी का आयोजन करवाया था, जिसके बाद लोगों में भगवान श्री गणेश को लेकर आस्था और श्रद्धा प्रकट होने लगी। धीरे-धीरे समय बदलता गया और अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार के साथ ही देश में बड़े पैमाने पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह उठने लगा।‌

उसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को एकजुट करें, लोगों को जागरूक करें और ज्यादा से ज्यादा लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ खड़ा करें। महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी का आयोजन करवाया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इकट्ठा हो सकें।

पहले महाराष्ट्र के पेशवा शासकों ने इसकी शुरुआत की थी। इसके बाद यह पारंपरिक उत्सव बन गया, लेकिन महाराष्ट्र में श्री बाल गंगाधर तिलक ने एक बार फिर इस उत्सव को महा उत्सव के तौर पर बड़े पैमाने पर वर्ष 1893 में शुरू किया था। इस उत्सव का उद्देश्य ऊंच-नीच खत्म करना और लोगों को एकजुट करना था क्योंकि उस समय अंग्रेजों का राज था और अंग्रेजों से लड़ने के लिए अधिक से अधिक लोगों का एकजुट होना एवं लोगों में जन जागरूकता फैलानी अत्यंत आवश्यक हो चुकी थी।

इसलिए बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजो के खिलाफ लोगों को बड़े पैमाने पर एकजुट करने के लिए उत्सव के आधार पर गणेश चतुर्थी और गणेश उत्सव का आयोजन करवाया था। बाल गंगाधर तिलक द्वारा महाराष्ट्र में शुरू किया गया गणेश चतुर्थी का उत्सव पूरे भारत में जोर-जोर से आस्था का प्रतीक बनता गया और लोग श्रद्धा से गणेश चतुर्थी मनाने लगे।

गणेश उत्सव के दौरान बड़ी मात्रा में लोग इकट्ठे होते थे। बाल गंगाधर तिलक का उद्देश्य काम करने लगा और देखते ही देखते लाखों की संख्या में लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे। इस उत्सव के दौरान बल गंगाधर तिलक ने अंग्रेजो के खिलाफ लोगों को खड़ा किया और लोगों को जागरूक किया। अब महाराष्ट्र के लोगों में भगवान श्री गणेश को लेकर अत्यंत श्रद्धा बढ़ने लगी और देखते ही देखते गणेश चतुर्थी एवं गणेश उत्सव महाराष्ट्र का सबसे बड़ा त्यौहार बन गया।

गणेश चतुर्थी का महत्व

भगवान श्री गणेश की आराधना और भगवान श्री गणेश की पूजा करने के लिए बड़े पैमाने पर हर वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को बड़े पैमाने पर भारत में गणेश उत्सव मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्री गणेश का जन्म हुआ था। इसीलिए गणेश उत्सव मनाते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान श्री गणेश ने महाभारत की रचना करने के लिए लेखन का कार्य शुरू किया था। इसलिए भी गणेश चतुर्थी देश में बड़े पैमाने पर मनाई जाती है। विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में धूमधाम से गणेश चतुर्थी बनाने का रिवाज है।

गणेश चतुर्थी का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि भगवान श्रीगणेश को सनातन धर्म में प्रथम दिवस के रूप में पूजा जाता है। यानी कि किसी भी देवी देवता की पूजा प्रतिष्ठा, भजन संध्या, उत्सव या किसी भी कार्यक्रम, शादी विवाह,‌ मांगलिक कार्यक्रम से पहले भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है।

भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है। उसके बाद ही दूसरे देवी देवताओं का नंबर आता है। इसलिए भगवान श्री गणेश की जन्मोत्सव पर आधारित गणेश चतुर्थी का महत्व इतना है। लोग अपने घरों में भगवान श्री गणेश की पूजा करते हैं, भगवान श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित करते हैं तथा घर में सुख समृद्धि और जीवन में शांति बने रहने की मनोकामना करते हैं।

धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देव लोक के सभी देवी देवताओं ने भगवान महादेव को सृष्टि का प्रथम देव चुने जाने की बात कही, तो भगवान महादेव ने कहा कि इस सृष्टि का सबसे पहले चक्कर लगाने वाला ही सबसे बढ़ा देव होगा। भगवान महादेव की इस बात को सुनकर सभी देवी देवता अपने अपने वाहक को लेकर संपूर्ण सृष्टि के चक्कर लगाने लगें। लेकिन भगवान श्री गणेश शरीर में अत्यंत बड़े थे और उनकी सवारी चूहे की थी।

चूहा लंबे समय तक चलने में असमर्थ था। इसलिए भगवान श्रीगणेश ने अपनी बुद्धिमत्ता का प्रयोग किया और कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान महादेव और माता पार्वती के आगे पीछे परिक्रमा करके उनके चरणों में बैठ गए। महादेव द्वारा पूछे जाने पर भगवान श्री गणेश ने बताया कि माता-पिता की परिक्रमा करना ही सृष्टि की परिक्रमा है। इस पर भगवान महादेव ने गणेश जी को प्रथम देव बताया था। उस दिन से गणेश चतुर्थी के दिन भी प्रथम देव के रूप में भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है।

निष्कर्ष

आमतौर पर हम सभी लोग अपने घरों में शादी-विवाह, सगाई संबंध, ग्रह-प्रवेश, पूजन इत्यादि महत्वपूर्ण मांगलिक और शुभ कार्यों को शुरू करने से पहले भगवान श्री गणेश की पूजा करते हैं। भगवान श्री गणेश को याद करते हैं। भगवान श्री गणेश को भोग लगाते हैं। उनके लिए तरह-तरह के पकवान बनाते हैं क्योंकि हमारे सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम स्थान दिया गया है।

भगवान श्री गणेश रिद्धि सिद्धि के देव कहलाते हैं। धनसंपदा के देव कहलाते हैं। भगवान श्री गणेश की सनातन धर्म में अत्यंत महत्वता दी गई है। श्री गणेश सृष्टि के रचयिता तीनों लोगों के देव भगवान महादेव और माता पार्वती के पुत्र हैं, जिनकी गर्दन और मुख हाथी का लगाया हुआ है।

हमारे सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश की महत्वता को देखते हुए आज के इस आर्टिकल में हमने आपको पूरी जानकारी के साथ विस्तार से भगवान श्री गणेश के बारे में जानकारी प्रदान की है, जिसमें आपको बताया गया है कि गणेश चतुर्थी कब है? गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है? गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती हैं? गणेश चतुर्थी का महत्व क्या है? गणेश चतुर्थी का इतिहास क्या है? गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है? इत्यादि।

गणेश भगवान से संबंधित पूरी जानकारी विस्तार से इस आर्टिकल में आपको बता दी गई है। इसीलिए हम उम्मीद करते हैं कि यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। अगर आपका इस आर्टिकल से संबंधित कोई भी प्रश्न है? तो आप नीचे कमेंट करके पूछ सकते हैं।

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