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गामा पहलवान का जीवन परिचय

Gama Pehlwan Biography in Hindi: भारत में कई ऐसे महान पहलवान हुए जिन्होंने पहलवानी के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया है। लेकिन पहलवानी के इतिहास में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध पहलवान जिसने अपने 50 से भी अधिक साल के पहलवानी करियर में एक बार भी पराजित नहीं हुआ।

वैसा आज तक कोई पहलवान नहीं हुआ और उस पहलवान का नाम गामा पहलवान है, जिसे शेर-ए-पंजाब की उपाधि दी गई थी। हालांकि आज यह पहलवान इस दुनिया में नहीं है लेकिन आज भी पूरी दुनिया इन्हें बहुत सफल और महान पहलवान के रूप में जानती हैं।

Gama Pehlwan Biography in Hindi

तो आज के इस लेख में हम इस महान गामा पहलवान जिसने दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवाया इनके प्रारंभिक जीवन से लेकर इनकी पहलवानी के सफर तक के बारे में जानेंगे।

गामा पहलवान का जीवन परिचय (Gama Pehlwan Biography in Hindi)

नामगामा पहलवान
वास्तविक नामगुलाम हुसैन बख्श
पेशाकुश्ती
जन्म22 मई 1878
जन्मस्थानगांव जब्बोवाल अमृतसर, पंजाब, ब्रिटिश भारत
माताज्ञात नहीं
पितामोहम्मद अजीज बख्श पहलवान
वैवाहिक जीवनविवाहित
पत्नीवज़ीर बेगम
बच्चेबेटी- 4 बेटा- 5
भाईइमाम बख्श पहलवान  
धर्ममुस्लिम
वजन110 कि०ग्रा०
लंबाईफीट इन्च- 5’ 8”
आंखों का रंगकाला
बालों का रंगकाला
छाती46 इंच
राष्ट्रीयताभारतीय
राशिमिथुन
उपनामरुस्तम-ए-हिंद, रुस्तम-ए-जमां, द ग्रेट गामा
मृत्यु23 मई 1960
मृत्यु कारणदिल और अस्थमा की पुरानी बीमारी

गामा पहलवान का प्रारंभिक जीवन

गामा पहलवान का जन्म भारत के उत्तरी राज्य पंजाब में स्थित अमृतसर में एक मुस्लिम कश्मीरी बट परिवार में सन 1980 में हुआ था। इनके पिता का नाम मोहम्मद अजीज था, जो खुद भी पेशे से पहलवान थे। अपने पिता से ही इन्हें भी पहलवान बनने की इच्छा जागी और आगे कुश्ती में ही अपने करियर को बनाने का निर्णय लिया।

गामा पहलवान के बचपन का नाम गुलाम मोहम्मद था। छोटी उम्र में ही इनके ऊपर से इनके पिता का साया चला गया, जिसके बाद इनके नाना और नून पहलवान ने इनकी देखभाल की। नून पहलवान की भी मृत्यु हो गई तब इनके चाचा ने इनकी देखभाल करनी शुरू की और इन्होंने ही गामा पहलवान को कुश्ती का पहला प्रशिक्षण दिया था।

गामा पहलवान सन 1888 में पहली बार जोधपुर में आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लिए थे, जिसमें इनका स्थान 15वां था। उस समय इनके अच्छे प्रदर्शन को देख जोधपुर के महाराज इनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुए थे। जिसके बाद उन्होंने गामा पहलवान को विजेता घोषित कर दिया था और बाद में इन्होंने ही गामा पहलवान को प्रशिक्षण देने के लिए अपने साथ भी रखा।

गामा पहलवान का वैवाहिक जीवन

गामा पहलवान की पत्नी का नाम वजीर बेगम था और शादी के पश्चात इन्हें पांच बेटे और चार बेटियां हुई थी।

कुश्ती करियर की शुरुआत

गामा पहलवान ने मात्र 10 साल की उम्र में ही अपने जिले स्तर में आयोजित कुश्ती में कई नामी पहलवानों को मात दी थी, जिसके बाद इनके जीत का सिलसिला शुरू होते ही धीरे-धीरे इनका नाम भी आसपास के राज्यों में फेलने लगा और धीरे-धीरे यह प्रख्यात भी हो गए।

1895 में इनका मुकाबला उस समय के सबसे बड़े पहलवान रहीम बक्स सुल्तानेवाला से हुआ था और रहीम की ऊंचाई 6 फीट 9 इंच थी। बल्कि गामा की ऊंचाई केवल 5 फीट 7 इंच थी। लेकिन इन दोनों के बीच बराबरी की टक्कर हुई और मैच आखिरकार ड्रॉ हो गया, जिसके बाद यह कुश्ती पूरे देश में चर्चित हो गया।

1910 तक गामा पहलवान ने तो कई बड़े-बड़े पहलवानों को हराकर विदेशी पहलवानों से लड़ने के लिए रास्ता खोल लिया था। उसके बाद इसी साल की बात है जब गामा 30 साल के थे और बंगाल के करोड़पति सेठ शरद कुमार मित्रा कुछ भारत पहलवानों को इंग्लैंड ले जा रहे थे, उस समय गामा पहलवान भी अपने भाई इमाम बख्श के साथ इंग्लैंड गए।

वहां उन्होंने विदेशी पहलवानों को खुली चुनौती दी। उन्होंने उन पहलवानों को यह दावा किया कि वे 30 मिनट में ही किसी भी वजन वर्ग में 3 पहलवानों को उठाकर फेंक सकते हैं। लेकिन किसी ने उनकी बातों पर विश्वास नहीं किया और वे सब यही समझ रहे थे कि गामा उन्हें बेवकूफ बना रहे हैं।

बेंजामिन रोलर के साथ कुश्ती

गामा के द्वारा लगातार अंग्रेज पहलवानों को चुनौती देने के बाद अंत में अमेरिका के पहलवान बेंजामिन रोलर ने उनकी चुनौती को पहली बार स्वीकार किया, जिसे गामा पहलवान ने मात्र 1 मिनट 40 सेकंड में पछाड़ दिया।

फिर इन दोनों के बीच में दोबारा मैच शुरू हुआ और इस बार रोलर गामा के सामने 9 मिनट 10 सेकंड तक टिक सका। अगले दिन रोलर ने 12 पहलवानों को हराकर आधिकारिक टूर्नामेंट में प्रवेश ले लिया।

जिबेस्को के साथ कुश्ती

इसी साल 10 सितंबर को गामा ने प्रख्यात अंग्रेज पहलवान स्टेनिसलास जिबेस्को को कुश्ती के लिए चुनौती दी। उन्होंने कहा कि या तो वे उनके साथ मुकाबला करें या पुरस्कार की राशि उन्हें दे दें। शुरुआत में जिबेस्को ने गामा को साधारण पहलवान समझ कर लड़ने के लिए तैयार हो गए। लेकिन, उन्हें क्या पता था कि यह पहलवान उन्हें ऐसा मात्त देंगे कि दोबारा वे इनके सामने मुंह नहीं दिखा पाएंगे।

इन दोनों के बीच मुकाबला शुरू हुआ और इस मुकाबले में मशहूर जॉन बुल बेल्ट और 250 पाउंड का इनाम भी रखा गया था। जिबेस्को गामा से काफी ज्यादा लंबा था लेकिन 2 घंटे 35 मिनट के प्रयास के बावजूद वह गामा पहलवान से आगे नहीं बढ़ सका। गामा पहलवान ने जिबेस्को को इतना थकया कि वह अंत समय में बेहोश होने लगा था। जिसके बाद उस दिन फैसला नहीं हो सका।

दूसरे दिन जब दोबारा यह मैच होना था तब जिबेस्को डर के मारे मैदान पर आया ही नहीं। उस समय उस कुश्ती को आयोजित करने वाले आयोजकों ने जिबेस्को की तलाश भी की लेकिन वह नहीं मिला, जिसके बाद गामा को विश्व चैंपियन घोषित किया गया।

उसके बाद 7 दिन के बाद फिर से इन दोनों के बीच में कुश्ती की घोषणा की गई। लेकिन जिबेस्को ने एक बार फिर धोखा दिया, वह डर के मारे गामा के सामने आया ही नहीं। जिसके बाद गामा को दोबारा विजेता घोषित कर उन्हें जॉन बुल बेल्ट का पुरस्कार दिया गया। उसके बाद तो गामा को विश्व केसरी, विश्व विजेता, रुस्तम ए जमा जैसे कई रूप में जाना जाने लगा।

विदेश में रहने के दौरान गामा पहलवान ने संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉक बेंजामिन रोलर, फ्रांस के मॉरिस देरिज़, स्वीडन के जॅसी पीटरसन और स्विट्जरलैंड के जोहान लेम जैसे कई प्रतिष्ठित पहलवानों को हराया।

इन तमाम लोगों को हराने के बाद गामा पहलवान ने विश्व चैंपियन की शीर्षक प्राप्त कर चुके पहलवानों को चुनौती दी। जापान का जूडो पहलवान ‘तारो मियाकी’, रूस का ‘जॉर्ज हॅकेन्शमित’ और अमरीका का ‘फ़ॅन्क गॉश’ जैसे पहलवान विश्व चैंपियन का दावा करते थे लेकिन इनमें से कोई भी गामा पहलवान की चुनौती को स्वीकार नहीं किया।

इस चुनौती के बाद जब किसी ने इनके निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया तब गिमा पहलवान ने 20 पहलवानों से एक के बाद एक लड़ने की चुनौती दी। लेकिन किसी ने भी इनकी चुनौती को स्वीकार नहीं किया, जिसके बाद गामा पहलवान भारत लौट आए।

भारत लौटने के बाद इलाहाबाद में गामा पहलवान का दोबारा रहीम बक्श सुल्तानीवाला के साथ कुश्ती हुई, जिसमें गामा पहलवान ने उन्हें हरा दिया। हालांकि कुश्ती तो काफी देर तक चली थी। इस कुश्ती को जीतने के बाद गामा पहलवान को रुस्तम-ए-हिंद का खिताब दिया गया।

सन 1916 में गामा पहलवान का मुकाबला भारत के मशहूर पहलवान पंडित बिद्दू के साथ हुआ लेकिन गामा पहलवान ने उनको भी हरा दिया। वर्ष 1922 में इंग्लैंड के ‘प्रिंस ऑफ़ वेल्स’ ने भारत की यात्रा की थी, जिसके दौरान उन्होंने गामा उपहार स्वरूप चाँदी का एक बेशक़ीमती ‘गदा’ प्रदान किया था।

लगभग 1927 तक गामा पहलवान को किसी ने भी चुनौती नहीं थी। लेकिन बाद में बहुत जल्द फिर से गामा पहलवान और जिबेस्को के बीच मुकाबला की घोषणा की गई, जिसमें यह दोनों दोबारा पटियाला में एक दूसरे के आमने सामने आए। जिसमें 1 मिनट के अंदर ही गामा पहलवान ने जिबेस्को को हरा दिया और विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के विजेता बन गए।

इस मुकाबले के बाद खुद जिबेस्को ने हीं गामा पहलवान को टाइगर के रूप में संबोधित किया। उसके बाद फरवरी 1929 में गामा पहलवान का मुकाबला  ‘जेसी पीटरसन’ के साथ हुआ जिसे इन्होंने डेढ़ मिनट में ही पछाड़ दिया।

सन 1940 में गामा पहलवान को हैदराबाद के निजाम ने खुद के पहलवानों के साथ मुकाबला करने के लिए निमंत्रित किया। जिसके बाद गामा पहलवान ने निजाम के सभी पहलवानों के साथ मुकाबला किया और उन सभी पहलवानों को हरा दिया। जिसके बाद निजाम ने बलराम हरमन सि यादव नाम के पहलवान जिसने अपने जीवन के किसी भी कुश्ती मुकाबले में हारा नहीं, उसके साथ मुकाबला करने को कहा।

हालांकि यह मुकाबला लंबे समय तक चला लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला। आखिरकार यह मुकालबा ड्रा हो गया। 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो गया तब गामा पहलवान पाकिस्तान चले गए।

गामा पहलवान का रिटायरमेंट

वर्ष 1952 में गामा पहलवान ने कुश्ती से सेवानिवृत्ति ले ली। रिटायरमेंट के बाद गामा पहलवान ने अपने भतीजे भोलू को पहलवानी का प्रशिक्षण देना शुरू किया, जो 20 वर्ष तक पाकिस्तानी कुश्ती के चैंपियन रहे।

जीवन का अंतिम चरण

गामा पहलवान 1960 के दशक में लंबी बीमारी से ग्रसित थे, उन्हें इतनी भयानक बीमारी हो गई थी कि इस बीमारी के इलाज के लिए इन्हें काफी धन खर्च करने पड़े थे। हालांकि आर्थिक रूप से पंजाब सरकार ने कुछ जमीन और मासिक पेंशन देकर इनकी मदद की।

इसके अतिरिक्त जीडी बिरला ने भी इन्हें ₹2000 समर्थन के रूप में दिए ₹300 मासिक पेंशन भी देना जारी रखा। यहां तक कि कुछ भारतीय प्रशंसकों ने भी व्यक्तिगत रूप से इनकी सहायता के लिए दान दिया। पटियाला के महाराज ने भी इनकी मदद की लेकिन वे इस बीमारी से निजात नहीं पा पाए और 23 मई 1960 को पाकिस्तान में इनका निधन हो गया।

गामा पहलवान की वर्कआउट रूटीन (Gama Pehalwan Diet in Hindi)

सूत्रों के अनुसार बताया जाता है कि गामा पहलवान अपने प्रशिक्षण के दौरान हर दिन 40 पहलवानों के साथ अखाड़े में कुश्ती किया करते थे और हर दिन 5000 उठक बैठक और 3000 दंड किया करते थे। भोजन भी यह बहुत ज्यादा करते थे। खुराक में 10 लीटर दूध, आधा किलो घी और छ देसी मुर्गियां 1 दिन में ही खा जाते थे।

गामा पहलवान के बारे में रोचक तथ्य (Gama Pehalwan Facts in Hindi)

  • गामा पहलवान के द्वारा कसरत में इस्तेमाल होने वाला एक 95 किलोग्राम डोनट आकार का चक्र पटियाला के ‘नेशनल इस्टीटूयट ऑफ़ स्पोर्टस’ में रखा हुआ है।
  • 1902 में गामा पहलवान 1200 किलो का एक पत्थर उठाकर बड़ौदा में कुछ दूरी तक चले थे।
  • बड़ौदा संग्रहालय के एक रिपोर्ट के अनुसार बताया जाता है कि ब्रूसली भी गामा पहलवान के दिनचर्या का पालन किया करते थे।
  • गामा पहलवान ने अपने कुश्ती कैरियर में 50 विदेशी नामी पहलवानों से कुश्ती लड़े और उन्हें पराजित किया। अपने करियर में 5000 बार अखाड़े में उतरे थे।
  • गामा पहलवान को अपने 50 साल के कुश्ती कैरियर में कोई भी पहलवान हरा नहीं पाया था, इसीलिए इन्हें विश्व चैंपियनशिप प्राप्त हुआ था।

FAQ

गामा पहलवान ने किन किन नामी पहलवानों को हराया था?

गामा पहलवान पश्चिमी देशों के दौरे के दौरान कई प्रतिष्ठित पहलवानों को हराया था, जिनमें फ्रांस के मॉरिस देरिज़, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉक” बेंजामिन रोलर, स्वीडन के जॅसी पीटरसन और स्विट्जरलैंड के जोहान लेम का नाम प्रमुख है।

गामा पहलवान ने बेंजामिन रोलर को कितने मिनट में हराया था?

गामा पहलवान ने बेंजामिन रोलर को कुश्ती के मुकाबले में 15 मिनट में 13 बार फेका था।

गामा पहलवान किस लिए ज्यादा प्रसिद्ध है?

गामा पहलवान एकमात्र ऐसे पहलवान है, जिन्होंने कुश्ती के करियर में कभी भी हार का सामना नहीं किया। इसीलिए इन्हें विश्व कुश्ती में द ग्रेट गामा के नाम से जाना जाता है।

गामा पहलवान के पिता क्या थे?

गामा पहलवान के पिता का नाम मोहम्मद अजीज बक्श था, जो खुद भी पेशे से पहलवान थे।

गामा पहलवान मृत्यु के समय आयु में कितने थे?

गामा पहलवान मृत्यु के समय आयु में 82 वर्ष के थे।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने एक नामी पहलवान गामा पहलवान बायोग्राफी (Gama Pehlwan Biography in Hindi) के बारे में जाना। हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा।

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Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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