Essay on Shivaji Maharaj in Hindi: हम यहां पर छत्रपति शिवाजी महाराज पर निबंध शेयर कर रहे है। इस निबंध में छत्रपति शिवाजी महाराज के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेअर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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छत्रपति शिवाजी महाराज पर निबंध | Essay on Shivaji Maharaj in Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज पर निबंध (250 Words)
शिवाजी महाराज एक बहुत ही बहादुर, दयालु, बुद्धिमान, शौर्यवीर और प्रसिद्ध शासक थे। छत्रपति शिवाजी महाराज जी का जन्म 19 फरवरी 1627 मराठा परिवार के महाराष्ट्र के शिवनेरी में हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज के पिताजी का नाम शाहजी था, और उनकी माता जी का नाम जीजाबाई था। उनकी माता जी जीजाबाई बहुत ही गुणवान, वीरंगना और धार्मिक नारी थी। शिवाजी भी अपनी माताजी जीजाबाई के जैसे ही एक कर्मवीर योद्धा बनाना चाहते थे।
उन्हें बचपन से ही उनको युद्ध करने और किला जितने का बहुत शौक था, शिवाजी बचपन से ही अपने उम्र के बच्चों को इकट्ठा करके रामायण, महाभारत में युद्ध होते थे,ठीक वैसे वह भी बालकों के साथ युद्ध करने के लिये खेल खेलते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक हुआ करते थे, उन्होंने एक मराठा साम्राज्य खड़ा किया था। इसीलिए शिवाजी को वीर और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में स्वीकार किया गया है।
शिवाजी महाराज जी की जयंती महाराष्ट्र में 19 फरवरी को मनाया जाता है। लेकिन कुछ लोग छत्रपति शिवाजी महाराज जी की जयंती कैलेंडर के अनुसार दिए हुये तारीख के हिसाब से मनाते है। छत्रपति शिवाजी महाराज जी को देश भर के सभी लोग उनको आदर्श और महान शास्त्र,राष्ट्रपुरुष के रूप में स्वीकार करते थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज जी जब रायगढ़ में थे, तब वहां उनकी कुछ दिनों से तबियत ख़राब होने के कारण 3 अप्रैल 1680 ई. को मृत्यु हो गई।
छत्रपति शिवाजी महाराज पर निबंध (850 Words)
प्रस्तावना
छत्रपति शिवाजी महाराज जी का विवाह 14 मई सन 1640 को साईबाई निबालकर के साथ हुआ था। दादाकोण देव शिवाजी को सभी प्रकार के सामाजिक युद्ध को पूरी ईमानदारी के साथ करना सिखाते थे । उन्होंने धर्म, संस्कृति, राजनीतिक के बारे में शिवाजी को अच्छी शिक्षा दिलवाई थी। कुछ समय बाद शिवाजी का परम संत रामदेव से संपर्क हुआ और उन्होंने शिवाजी को राष्ट्र के प्रति प्रेम का कर्तव्य समझाया और शिवाजी कर्मवीर योद्धा बनाया।
शिवाजी जैसे ही युवावस्था में आये तो उन्होंने कर्म वीर बनकर शत्रुओं से युद्ध किया और उन्होंने शत्रुओं को पराजित करके विजय प्राप्त किया। जैसे ही शिवाजी ने पूनदर और तोरण जैसे किला के लिये युद्ध करके किला को जीत विजय की प्राप्ति की और शिवाजी का नाम चारों दिशा में आग की तरह फ़ैल गया और उनके जीत की गूंज दिल्ली और आगरा तक पहुंच गई।
छत्रपति शिवाजी महाराज बचपन से ही साहसी
छत्रपति शिवाजी बचपन से ही बहुत साहसी थे। शिवाजी भारत के सबसे महान राजाओं में से एक महान राष्ट्रपुरुष थे। छत्रपति शिवाजी महाराज बचपन से रामायण, महाभारत और भी बहुत सारी गाथाओं का अध्ययन करते रहते थे, और उनकी माँ जीजाबाई भी शिवाजी को युद्ध वीर गाथाओं वाली कहानियाँ सुनाती रहती थी, जिससे उनको वीर गाथाओं की कहानी सुनकर उनको अच्छी प्रेरणा मिलती थी।
शिवाजी बचपन में जब भी अपने उम्र के बालको के साथ वीर योद्धा के खेल खेलते थे, उस में वह अक्सर नेता बनते थे और शिवाजी अपने साहसी होने का परिचय सबको देते थे। शिवाजी ने 14 साल की उम्र में निजामों से युद्ध करके किले को जीत कर उस किले में अपना अधिकार जताया था। शिवाजी इस युद्ध को जीतने के बाद उनके अंदर की वीरता जाग उठी और वह मराठा साम्राज्य के लिये उन्होंने काफ़ी लड़ाई लड़े।
छत्रपति शिवाजी जी की बहादुरी को देखकर मुग़ल साम्राज्य के लोग भी शिवाजी से मुकाबला करने में डरने लगे थे। औरंगजेब ने शिवाजी को हराने के लिये काफ़ी कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हुआ। शिवाजी औरंगजेब के कब्जे में आ गए थे लेकिन बहुत जल्द औरंगजेब के कब्जे से शिवाजी आज़ाद भी हो गये।
छत्रपति शिवाजी महाराज की शिक्षा
शिवाजी महाराज एक महान वीर योद्धा सम्राट बनने के लिये हर युद्ध के विषय में पूरे मन लगाकर अध्ययन करते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज की शिक्षा दिलवाने के पीछे उनकी माता जी जीजाबाई और दादकोण देव ने अपने-अपने माध्यम से शिवाजी को युद्ध से संबंधित सारे पाठयों का अध्ययन करवाया था।
दादकोण देव छत्रपति शिवाजी महाराज को धर्म, संस्कृति, राजनीति से सम्बन्धित सभी युद्ध के बारे मे शिक्षा दिलाते थे। और उनकी माताजी जीजाबाई शिवा जी को रामायण, महाभारत, वीर गाथाओं के बारे मे अध्ययन करवाती थी, जिससे उनको वीरता के प्रति अच्छी शिक्षा मिले ताकि वह एक महान बहादुर कर्म वीर योद्धा बने और वही दूसरी तरफ संत रामदेव जी ने शिवाजी को देश के प्रति प्रेम करने की शिक्षा दी।
बीजापुर मे छत्रपति शिवाजी की जीत
छत्रपति शिवाजी महाराज युद्ध करने के लिये हमेशा तैयार रहते थे, क्योंकि वो युद्ध से सबंधित सारी शिक्षा प्राप्त कर चुके थे, इसलिए शिवाजी युद्ध करने में काफी माहिर हो गये थे। उन्होंने बीजपुर राज्यों में अपने शत्रुओं से युद्ध करके बीजपुर के छोटे किलो को जीतकर विजय प्राप्त किया। उनकी जीत को देख कर बीजपुर के राजा गुस्से से तिलतीला उठा।
बीजपुर के राजा शिवाजी की युद्ध की जीत देख कर सोच रहे थे, शिवाजी ने तो हमारे बीजपुर के किले को कब्जा कर लिया। उनका एक ही मकसद था कि शिवाजी को कैसे पराजित किया जाये और भी उनके मकसद थे कि शिवाजी को अपने रास्ते से हटाने के लिये बीजपुर के राजा ने शिवाजी के लिये षड्यंत्र रचा कि उनको धोखे से जाल में फसाकर उनको समाप्त कर सके लेकिन वह इस बनाये षडयंत्र मे कामयाब नहीं हुए।
छत्रपति शिवाजी महाराज के पिताजी कि गिरफ्तारी
छत्रपति शिवाजी महाराज की बीजपुर किला के युद्ध को जीतकर उन्होंने जीत प्राप्त की थी, इस बात को लेकर बीजपुर का राजा आदिलशाह क्रोध में आकर शिवाजी को बंदी बनने में नाकामयाब रहा। तभी उसने शिवाजी के पिता शहजी को गिरफ्तार किया। शिवाजी को गिरफ्तारी का पता लगते ही वह बहुत क्रोधित होते है।
शिवाजी ने नीति और साहस की मदद लेकर अपने पिता की गिरफ्तारी की जगा छापा मारकर अपने पिता जी को इस गिरफ्तारी से आज़ाद करवाया। तभी बीजपुर के राजा आदिलशाह के मन यह बात खटकती है कि शिवाजी और उसके पिता दोनों हमारे कैद से आजाद हो गये। उन्होंने अपने सेनापति मुक्कार अफजल खा को आदेश दिया कि उसको शिवाजी जिन्दा या मुर्दा लाकर मेरे सामने पेश किया जाये।
तभी मुक्कार अफजल खा शिवाजी से भाईचारा, मित्रता का बहाना करके शिवाजी को मारने का षडयंत्र रचा और शिवाजी को घेरकर मारने कि कोशिश की। लेकिन शिवाजी के हाथो उल्टा मारा गया, और आदिलशाह अपने सेनापति को मरा हुआ देख कर वहां से दुम दबाकर गायब हो गया।आदिलशाह का सेनापति अफजल खान अन्य सेनापतियों की तुलना में काफ़ी ताकतवर था, लेकिन फिर भी शिवाजी हाथों मारा गया।
निष्कर्ष
शिवाजी महाराज बहुत ही बहादुर, धार्मिक और कर्मवीर योद्धा थे।छत्रपति शिवाजी महाराज की किसी धर्म से उनकी किसी भी प्रकार की कोई लड़ाई नहीं थी। मुग़ल शासनकाल के द्वारा लोगों पर अन्याय किया जाता था, जब मुगलों का शासन था, तब वह हिन्दु धर्म के लोगों से कुछ भुगतान करवाते थे। यह सब शिवाजी से देखा नहीं जाता था।
वह अपनों को इस तरह की तकलीफ में और उनके प्रति हो रहे अन्याय को सहन नहीं कर पा रहे थे, तभी उन्होंने एक संकल्प लिया की वो मुग़ल शासन से युद्ध करके मुग़ल शासकों को उखाड़कर फेंक देंगे।
सन 1674 में शिवाजी को मराठा साम्राज्य का शासक बनाया गया और छत्रपति शिवाजी को महाराष्ट्र के रायगढ़ में उनको ताज पहना कर सम्मानित किया गया। अगर शिवाजी हमारे बीच जिन्दा होते तो हो रहे अन्याय के खिलाफ सभी को न्याय जरूर दिलवाते। हमें शिवाजी का सच्चे दिल से शुक्रिया करना चाहिये क्योंकि उन्होंने हमारे देश में हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ काफी लड़ाइयां लड़ी।
अंतिम शब्द
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