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संत रविदास जयंती पर निबंध

Essay On Sant Ravidas Jayanti In Hindi: संत रविदास भारत के एक महान व्यक्ति माने जाते है। रविदास जंयती का आयोजन प्रतिवर्ष 27 जनवरी को किया जाता है।

Essay On Sant Ravidas Jayanti In Hindi
Image: Essay On Sant Ravidas Jayanti In Hindi

यहाँ पर हम रविदास जी के बारे में एक निबन्ध के माध्यम से जानेंगे। यह निबन्ध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार होगा।

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संत रविदास जयंती पर निबंध | Essay On Sant Ravidas Jayanti In Hindi

संत रविदास जयंती पर निबंध (250 शब्दों में)

संत रविदास जी की जयंती, माघ महीने में पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन अमृतवाणी गुरु रविदास जी को पढ़ी जाती है और गुरु के चित्र के समक्ष नगर में एक संकीर्तन जुलूस निकाला जाता है। इसके अलावा श्रद्धालु पूजा पाठ करने के लिए नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं। तत्पश्चात उनकी छवि पूजा करते हैं। प्रत्येक वर्ष गुरु रविदास जन्म स्थान गोवर्धनपुर, वाराणसी में एक भव्य उत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। संत रविदास जयंती 27 फरवरी के दिन मनाई जाती है।

इस वर्ष 2021 में इनकी 644 वी वर्षगांठ है। संत रविदास जी के यदि बचपन की बात की जाए तो इनके पिता जूते बनाने का कार्य किया करते थे। रविदास जी भी कभी-कभी अपने पिता की जूते बनाने में मदद किया करते थे। यह कार्य उनका पैतृक व्यवसाय था, जिसे उन्होंने खुशी के साथ अपनाया और पूरी लगन के साथ कार्य किया करते थे।

जब भी इनके दरबार पर कोई साधु संत या फकीर बिना जूते चप्पल के आता था तो यह उन्हें बिना पैसे लिए ही जूते चप्पल दे दिया करते थे। संत रविदास जी ने समाज में फैले भेदभाव छुआछूत एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों का जमकर विरोध किया। उन्होंने आजीवन लोगों को अमीर-गरीब, हर व्यक्ति के प्रति सम्मान रखने की सीख दी वे बहुत ही दयालु और दूसरों की मदद करने वाले व्यक्ति थे।

रविदास जी ने जाति प्रथा के उन्मूलन में भी प्रयास किया था। उन्होंने भक्ति आंदोलन में भी योगदान दिया एवं यह कबीर जी के मित्र के रूप में जाने जाते हैं। संत रविदास जी की शिक्षाएं आज भी प्रेरणा दायक है। उनकी शिक्षाओं में से कुछ प्रमुख शिक्षाएं हैं- मन चंगा तो कठौती में गंगा, यह प्रसंग आज भी बहुत लोकप्रिय है, जिसका अर्थ है कि यदि मन पवित्र है और जो अपना कार्य करते हुए ईश्वर में तल्लीन रहते हैं, उनके लिए उस से बढ़कर कोई भी तीर्थ स्थान नहीं है।

इसी प्रकार एक अन्य शिक्षा में संत रविदास जी का कथन है कि कोई भी व्यक्ति छोटा या बड़ा अपने जन्म के कारण नहीं बल्कि अपने कर्मों के कारण होता है। व्यक्ति के कर्म ही उसे ऊंचा या नीचा बनाते हैं। इस प्रकार संत रविदास जी समभाव की भावना का प्रचार प्रसार करते हैं।

संत रविदास जयंती पर निबंध (800 शब्दों में)

प्रस्तावना

माघ महीने की शुक्ल पूर्णिमा के दिन संत रविदास की जयंती मनाई जाती हैं। संत रविदास जयंती के जन्म की प्रमाणिक तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद है लेकिन अधिकतर विद्वान 1398 मे माघ महिने की शुक्ला पूर्णिमा को उनके जन्म तिथि मानते हैं। कुछ विद्वान इस तिथि को 1388 बताते हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं हर वर्ष माघ महीने की पूर्णिमा को संत रविदास जी की जयंती मनाई जाती हैं।

संत रविदास जयंती समारोह

संत रविदास जी की जयंती खूब धूमधाम से मनाई जाती हैं। इस दिन लोग भजन कीर्तन करते हैं, जुलूस निकालते हैं। इस दिन गीत, संगीत, दोहे, भजन आदि मंदिरों में गाए जाते हैं। संत रविदास जी के भक्त इस दिन घर या मंदिर मे संत रविदास जी की छवि की पूजा करते हैं। माघ मास की पूर्णिमा को जब संत रविदास जी ने जन्म लिया, उस दिन रविवार था, इसलिए उनका नाम रविदास रखा गया। उनका जन्म काशी में हुआ था।

उनकी माता का नाम कर्मा देवी पिता का नाम संतोष दास था। चर्मकार कुल से होने की वजह से जूते बनाने का व्यवसाय उन्होंने अपने दिल से अपनाया। जूतों को इतनी लगन व मेहनत से बनाते थे जैसे कि भगवान के लिए बना रहे हो वो पूरी लगन से अपना कार्य करते थे। उस समय के संतों की खास बात थी वे अपने घर-परिवार को बिना छोड़ें सहज व सरल भाव से अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए भक्ति का मार्ग अपनाते थे।

संत रविदास के बारे में

अपने काम के प्रति बहुत जिम्मेदार थे। इस बात के कई उदाहरण है एक बार की बात है संत रविदास जी जूते बनाने में लीन थे तभी किसी ने उन्हें अपने साथ गंगा स्नान के लिए चलने के लिए कहां तो संत रविदास जी ने उसे कहा कि उन्हें किसी को जूते बनाकर देने है। यदि मैं तुम्हारे साथ चला तो मैं अपना काम नहीं कर पाऊंगा और मेरा वचन झूठा हो जाएगा और फिर मन सच्चा हो तो कठौती में भी गंगा होती हैं।

आप ही जाए मुझे फुर्सत नहीं है यहीं से यह कहावत बनी मन चंगा तो कठौती में गंगा। संत रविदास जी ने दोहो के जरिए समाज में जागरूकता लाने का कार्य किया। संत रविदास जी जातिगत भेदभाव के सख्त विरोधी थे, उनका मानना था कि सभी ईश्वर के द्वारा बनाए गए हैं, सभी एक जैसे हैं हम सब ईश्वर की संतान है। जन्म से कोई इंसान जात लेकर पैदा नहीं होता।

संत रविदास जयंती मनाने का कारण

वह एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे, जहां कोई भेदभाव ऊंच-नीच ना हो। एक बार एक ब्राह्मण गंगा स्नान के लिए जा रहा था। संत जी ने उन्हें एक मुद्रा दी और कहां कि इसे मेरी ओर से गंगा जी में अर्पण कर देना। जब ब्राह्मण गंगा जी में स्नान करके मुद्रा को गंगा जी को अर्पण करने लगा तो गंगा जी में उसके हाथ से मुद्रा ले ली और उसे सोने का कंगन दे दिया।

ब्राह्मण कंगन लेकर नगर के राजा से मिलने चला गया। फिर उसने सोचा क्यों ना मैं यह कंगन राजा को दे दू? वह कितने प्रसन्न हो जाएंगे, उसने वह कंगन राजा को दे दिया राजा ने उसके बदले में बहुत सारा धन दिया। राजा ने वह कंगन अपनी रानी को भेंट कर दिया, रानी को वह कंगन बहुत पसंद आया। उसने कहा क्या यह एक ही कंगन है, मुझे उसके जैसा दूसरा कंगन चाहिए।

राजा ने पूरे नगर में सूचना भिजवा दी इस ब्राह्मण को ढूंढा जाए और उससे कहा जाए ऐसा दूसरा कंगन लाकर दे और यदि वह ऐसा दूसरा कंगन नहीं लाएगा तो वह दंड का पात्र होगा। यह सुनकर ब्राह्मण डर गया। वह रविदास जी के पास गया, उसने जाकर पूरी घटना बताई तो रविदास जी ने कहा तुम्हें कंगन मिला तुमने मुझे बिना बताए राजा को दे दिया। यह मुझे बता दिया होता तो मैं तुमसे नाराज नहीं होता और ना ही अब नाराज हूं।

मैं गंगा मैया से प्रार्थना करता हूं कि तुम्हें वह ऐसा दूसरा कंगन दे। रविदास जी गंगा मैया से प्रार्थना करके कहां हे मैया इस बामण की लाज रखकर ऐसा ही दूसरा कंगन दे दो। प्रार्थना करने के बाद संत रविदास जी ने अपने कठौती उठाई उसमें जल भरा हुआ था। उन्होंने गंगा मैया का आह्वान करते हुए जल को छिडका और गंगा मैया प्रकट हो गई और उनकी प्रार्थना पर एक और कड़ा ब्राह्मण को दे दिया। ब्राह्मण खुश होता हुआ राजा के पास गया। संत रविदास जी ने उस ब्राह्मण को अपने बड़प्पन का जरा सा भी एहसास नहीं बताया, संत रविदास जी बहुत ही महान थे।

निष्कर्ष

भारत में रविदास जयंती का माहौल कुछ अलग ही रहता है। इस दिन कई प्रकार के अलग-अलग कार्यक्रम का आयोजन होता है। देश के महान लोगो की सूची में रविदास का नाम शामिल है। साल 2021 में संत रविदास जी की 644 जंयती का आयोजन किया गया है। रविदास जी ने जातिप्रथा से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण कार्य किये थे।

अंतिम शब्द

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