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मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध

Essay On My Favorite Book in Hindi: पुस्तक वहां ज्ञान का भंडार है, जिसके जरिए व्यक्ति महान बनता है। पुस्तक ही व्यक्ति को सही रास्ता दिखाती है। उत्तम और आदर्श पुस्तक व्यक्ति को नर्क से स्वर्ग तक ले जा सकती है।

पुस्तक की हमेशा इज्जत करनी चाहिए। पुस्तक जो व्यक्ति को मित्र और गुरु दोनों का ज्ञान और सहारा देने में सक्षम है। पुस्तक से व्यक्ति को आदर्श संस्कार मिलते हैं।

Essay On My Favorite Book in Hindi

हम यहां पर मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध हिंदी में शेयर कर रहे है। इस निबंध में मेरी प्रिय पुस्तक के संदर्भित सभी माहिति को आपके साथ शेयर किया गया है। यह निबंध सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों के लिए मददगार है।

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मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध | Essay On My Favorite Book in Hindi

मेरी प्रिय पुस्तक पर 10 लाइन

  1. जीवन में सफलता दिलाने के लिए पुस्तक एक मार्गदर्शक काम करती है।
  2. एक सही पुस्तक में मनुष्य के विचार, आचार और मानसिकता को बदलने की ताकत होती है।
  3. पुस्तक एक सच्चे मित्र और गुरु दोनों की दोहरी भूमिका अदा करती है।
  4. सभी पुस्तक में से मेरी सबसे पसंदीदा पुस्तक गीता है।
  5. हिन्दू शास्त्रों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है।
  6. जीवन के सभी प्रश्नों और समस्या का समाधान गीता में है।
  7. गीता हमें बताती है कि कर्म करना मनुष्य का अधिकार है। कर्म करो और फल की इच्छा मत रखो।
  8. गीता बताती है की मनुष्य को क्रोध और मन पर नियंत्रण बनाये रखना चाहिए क्योंकि दोनों ही शांति के दुश्मन है।
  9. गीता हमें विश्व बंधुत्व का संदेश भी देती है।
  10. गीता ही एक ऐसी पुस्तक है, जिसका कई भाषा में अनुवाद भी किया गया है।

मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध 200 शब्दों में (Meri Priya Pustak Par Nibandh)

पुस्तक ज्ञान का भंडार होता है। एक सही पुस्तक में मनुष्य के विचार, आचार और मानसिकता को बदलने की ताकत होती है। पुस्तक से बढ़कर दुनिया में कोई भी सच्चा मित्र नहीं है। मैंने मेरे जीवन में 100 से भी ज्यादा पुस्तकें लगभग सभी विषयों पर पढ़ी है, जिस में से मेरी प्रिय पुस्तक है गांधीजी की आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’।

सत्य के प्रयोग गांधीजी की आत्मकथा है। यह पुस्तक गाँधीजी के जीवन का दर्पण है। इसमें बताया गया है कि किस तरह एक साधरण लड़का एक असाधारण सी जिंदगी जीता है। इस पुस्तक को लिखने में गांधीजी ने बड़ी ईमानदारी बताई है। उन्होंने  मांस खाना, छुपकर धूम्रपान करना, पैसों की चोरी करना, आत्महत्या की कोशिश और पत्नी के प्रति कठोर व्यवहार आदि प्रसंगों को प्रेरक प्रसंग के रूप में प्रस्तुत किया है।

दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के सभी प्रसंगों का इतनी सहजता से वर्णन किया है। ऐसा लगा रहा है सभी घटनाएं आंखों के सामने हो। इसके अलावा गांधीजी ने सत्य और अहिंसा, धर्म, भाषा, जाति आदि अनेक विषयों पर अपने विचार सहज ढंग से व्यक्त किए हैं।

वाक्यों को इतना सरल लिखा है कि उसमें प्रेम और भाव दोनों नजर आते है। इस पुस्तक ने मुझे काफी प्रभावित किया है। मेरी जीवन जीने की सोच को बदल दिया है और मुझे सत्य की राह दिखाई है।

meri priya pustak nibandh
Image: meri priya pustak nibandh

मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध 500 शब्दों में (My Favourite Book Essay in Hindi)

प्रस्तावना

पुस्तक जो ज्ञान का महासागर है और यहीं से व्यक्ति सब कुछ सीखता है। बच्चा जब छोटा होता है तब से लेकर बुढ़ापे तक पुस्तक ही एक सहारे के रूप में लकड़ी बनकर खड़ी रहती है। पुस्तक के जरिए ही हर व्यक्ति विद्वान होता है और हर जगह पुस्तक अपना सहयोग और मुख्य भूमिका निभाती है।

मेरी पसंदीदा पुस्तक राम चरित्र मानस है। रामचरित्र मानस पुस्तक सिर्फ एक कहानी मात्र नहीं है। इस पुस्तक से यदि ज्ञान अर्जित किया जाए तो राम चरित्र मानस जो ज्ञान का भंडार है। यहां से सीखने वाला सब कुछ सीख सकता है।

रामचरित्र मानस के बारे में

राम चरित्र मानस पुस्तक अयोध्या के राजा भगवान श्रीराम पर लिखित एक महान पुस्तक है। इस पुस्तक के जरिए सुख और दुख रहते हुए व्यक्ति को किस प्रकार जीना चाहिए, इसका विस्तृत ज्ञान इस पुस्तक के जरिए व्यक्ति सीख सकता है।

राम चरित्र मानस पुस्तक में भगवान श्रीराम पर जो घटनाएं घटी उनका विस्तृत वर्णन है। इस प्रकार से भगवान श्री राम और हनुमान जी वनवास में मिले। उसके पश्चात भगवान श्री राम की पत्नी माता सीता को रावण हरण करके श्री लंका ले गया। उसके बाद भटकते भटकते भगवान श्री राम और हनुमान जी लंका पहुंचे।

लंका जाने के बाद रावण को समझाने का प्रयास किया। लेकिन रावण नहीं माना तो आखिरकार भगवान श्रीराम ने युद्ध करके लंका को जीता और माता सीता के साथ पुनः आयोजकों ने इस दौरान कई रक्षकों और असुरों का नाश हुआ। अयोध्या लौटने के पश्चात भगवान श्रीराम ने अयोध्या में पुनः कई सालों तक अपना राज किया।

रामचरित्र मानस पुस्तक की खास बात

रामचरित्र मानस में लिखी गई बातें जो व्यक्ति को विद्वान बनाती है। इस किताब के जरिए व्यक्ति को सुख और दुख में कैसे जीना है और हर परिस्थिति में भाई-बहन माता-पिता पत्नी और प्रिय जनों के साथ किस प्रकार का बर्ताव करना है। इसके बारे में जानकारी है।

व्यक्ति राम चरित्र मानस जैसी किताब पढ़कर इस बातों को सीख सकता है। मैंने भी अपने जीवन में राम चरित्र मानस किताब से अपने अहंकार और गुस्से को कैसे काबू रखना है और कैसे आगे बढ़ना है इसकी शिक्षा ग्रहण की है।

उपसंहार

किताब मनुष्य का एक अद्भुत सहारा है। पुस्तक मनुष्य को हर परिस्थिति से उबारने और आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध हिंदी में 600 शब्दों में (Meri Priya Pustak Essay in Hindi)

प्रस्तावना

हमारे जीवन में पुस्तक का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। जीवन में सफलता दिलाने के लिए पुस्तक एक मार्गदर्शक काम करती है। पुस्तक ज्ञान की पूंजी होती है। पुस्तक एक सच्चे मित्र और गुरु दोनों की दोहरी भूमिका अदा करती है। एक अच्छी किताब सौ दोस्तों के बराबर होती हैं, जो विपरीत परिस्थितियों में भी इंसान का साथ नहीं छोड़ती।

एकांत में पुस्तक जैसा कोई साथी नहीं है। हमारे जीवन के लिए पुस्तकें प्रेरणादायक होती है। बचपन से ही मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौख रहा है। मैंने अब तक लगभग घार्मिक, सांस्कृतिक, हॉरर, पौराणिक, नवलकथा, रोमेंटिक लगभग सभी विषयों पर पुस्तकें पढ़ी है।

मेरी प्रिय पुस्तक- गीता

सभी पुस्तक में से मेरी सबसे पसंदीदा पुस्तक गीता है। हिन्दू शास्त्रों में गीता का सर्वप्रथम स्थान है। शायद ही कोई ऐसा हिंदू घर होगा, जहाँ यह पुस्तक न हो। गीता संस्कृत में लिखी गई है। विदेशों में भी गीता को बेहद पसंद किया गया है। गीता ही एक ऐसी पुस्तक है, जिसका कई भाषा में अनुवाद भी किया गया है।

जीवन के सभी प्रश्नों और समस्या का समाधान गीता में है। गीता का ज्ञान भगवन श्री कृष्ण ने खुद अपने मुंह से गाकर बताया है। गीता किसी जाति और धर्म का नहीं बल्कि पुरे मानवता का ग्रन्थ है। गीता को पढने से लोगों का पाप दूर हो जाते है।

महाभारत युद्ध के आरम्भ में जब अर्जुन अपने भाइयों को युद्ध के मैदान में अपने सामने खड़ा हुआ देखता है, तब वो विचलित हो जाता है और युद्ध करने से मना कर देता है। तब भगवान श्री कृष्ण सारथी बनकर अर्जुन को कर्म के सिद्धांत के बारे में बताते है।

गीता में कुल १८ अध्याय और ७२० श्लोक हैं। गीता मनुष्य, इस ब्रह्मांड में उसकी स्थिति, उसकी आत्मा, उसके कर्तव्य और जीवन में भूमिका पर एक उत्कृष्ट ग्रंथ है। गीता में कर्मयोग, भक्तियोग, राजयोग और जन योग के बारे में बताया गया है।

गीता की सीख

गीता हमें बताती है कि कर्म करना मनुष्य का अधिकार है। कर्म करो और फल की इच्छा मत रखो। मनुष्य को अपना कर्तव्य करना चाहिए और परिणाम भगवान पर छोड़ देना चाहिए। भगवान सर्वोच्च न्यायाधीश हैं और और पूरी सृष्टि उनकी इच्छा के आधीन है। हर परिस्थिति में मनुष्य को खुश और शांत रहने की कोशिश करनी चाहिए।

चीजें वैसी नहीं हैं जैसी वे दिखती हैं। इसलिए मनुष्य को ईश्वर में विश्वास रखना चाहिए और अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए। गीता में यह भी बताया है कि आत्मा मृत्युहीन है। शरीर ही है जो मरता है। मृत्यु केवल वस्त्रों का परिवर्तन है। मनुष्य को मृत्यु से डरने का कोई कारण नहीं है। इस ग्रन्थ से भटके हुए मनुष्य को राह मिलती है। गीता हमें विश्व बंधुत्व का संदेश भी देती है।

गीता बताती है की मनुष्य को क्रोध और मन पर नियंत्रण बनाये रखना चाहिए क्योंकि दोनों ही शांति के दुश्मन है। भगवान बताते है की जो भी मेरे शरण में आता है मैं उसे परम पद तक पहुंचाता हूँ।

निष्कर्ष

बड़े बड़े संत, ज्ञानी पुरुष और गुरुओं भी गीता का शरण ले चुके है। हमारे प्रिय महात्मा गाँधी भी समस्याएं आने पर गीता का ही शरण लेते थे। गीता मेरे जीवन में मेरे लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत रही है। जीवन में समस्याएं आने पर में भी गीता की शरण लेता हूं।

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान कृष्ण स्वयं मुझसे व्यक्तिगत रूप से बात कर रहे हैं और मैं खुद को एक अलग ब्रह्मांड में ऊंचा पाता हूं। यह वह पुस्तक है जिसने मुझे मेरे जीवन के विभिन्न उतार-चढ़ावों के माध्यम से बनाए रखा है। यही कारण है कि मैं इसकी प्यार और पूजा करता हूँ। इससे मुझे मानसिक शांति और खुशी मिलती है।

मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध 800 शब्द (Essay on My Favourite Book in Hindi)

प्रस्तावना

वैसे तो हमें किताबें पढ़ना बहुत पसंद है, किताबों को पढ़ने से हमें विद्या की प्राप्ति होती है और किताबों से हम बहुत कुछ सीखते हैं, बच्चों पर किताबों का प्रभाव बहुत पड़ता है, बच्चे किताबों में जो पढ़ते हैं वही सीखते हैं, जिससे बच्चे किताबों में से अपना बुरा, भला, लाभ, हानि, हमें क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए ऐसी बातों को सीखते हैं।

किताबे पढ़ना तो लगभग सभी लोगों को पसंद है। परंतु साथ ही साथ अलग-अलग लोगों को अलग-अलग किताबें पढ़ना पसंद है। किसी व्यक्ति को महान योद्धाओं की पुस्तक पढ़ना पसंद है तो किसी को कहानियों की किताब पढ़ना पसंद है तो किसी को भक्ति की कहानियां पढ़ना बहुत पसंद होता है।

मेरी प्रिय पुस्तक

ऐसे में मेरी प्रिय पुस्तक रामचरितमानस है, रामचरितमानस में भगवान राम के संपूर्ण जीवन का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, रामचरितमानस किताब पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता है। इस किताब से मैंने बहुत कुछ सीखा है, इस किताब से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं जैसे कि हमें अपने जीवन में कौन-कौन से आचरण करने चाहिए, हमें किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए।

इस किताब को पढ़ने के बाद मैं इस किताब में पढ़ी हुई चीजों को अपने अंदर धारण करने की कोशिश करता हूँ। रामचरितमानस की किताब को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा15 वीं शताब्दी-16 वीं शताब्दी के मध्य में किया गया है। रामचरितमानस की किताब को गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखा है तथा गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस को सात खंडों में विभाजित किया है और वे सातों खंड निम्नलिखित हैं:

  • बालकांड
  • अयोध्या कांड
  • अरण्यकांड
  • किष्किंधा कांड
  • सुंदरकांड
  • लंका कांड
  • उत्तरकांड

चलिए हम जानते हैं कि इन सभी भागों में क्या हुआ था, इन सभी भागों के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।

बालकांड

बालकांड में भगवान श्री राम जी के बचपन से लेकर विवाह तक का संपूर्ण वर्णन है। रामचरितमानस के बालकांड में 7 श्लोक, 341 दोहे, 25 सोरठा, 39 छंद तथा 358 चौपाई है।

राजा दशरथ की कोई संतान नहीं थी, जिस के दुख से उन्होंने एक एक करके तीन शादियां की। परंतु उनकी तीनों रानियों से उन्हें संतान के सुख की प्राप्ति नहीं हुई। राजा दशरथ ने संतान की प्राप्ति के बहुत उपाय सोचे। परंतु उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था और वह संतान की प्राप्ति ना होने के कारण हमेशा हो जाते थे। बाद में उनके मंत्रियों ने भारत को सलाह दिया कि आप एक यज्ञ कराएं जिसमें सभी देवी देवताओं की पूजा करें और सभी संसाधनों को उस यज्ञ में बुलाएं।

इस जगह को करने के पश्चात संत साधुओं ने उन्हें खीर दिया और कहा आप इस खीर को सभी रानियों को खिला दें, जिससे कि सभी रानियों को संतान की प्राप्ति हो जाएगी और राजा ने ऐसा ही किया और ऐसा हुआ भी। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को बड़ी रानी कौशल्या गई को बसे भगवान राम ने जन्म लिया और रानी कैकेई ने भारत को जन्म दिया तथा रानी सुमित्रा ने 2 बच्चों को जन्म दीया लक्ष्मण और शत्रुघ्न।

बाद में ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण जी को अपने आश्रम में जाने की अनुमति मांगी और राक्षस ने उन्हें उनके आसन जाने की अनुमति भी दे दी और महर्षि विश्वामित्र जी राम लक्ष्मण को अपने आश्रम में गए थे।

महर्षि विश्वामित्र के आश्रम वाले जंगल में ताड़का और उनके दो असुर पुत्र रहते थे, जो ऋषि यों को यज्ञ नहीं करने देते थे। भगवान राम और लक्ष्मण जी ने ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ में कोई बाधा ना आने दिया और उन्होंने राक्षसी तारिका तथा उनके दोनों पुत्रों मारीच तथा सुबाहु इन तीनों राक्षसों का अंत किया और ऋषियों को आजाद कर दिया।

विश्वामित्र जी के कहने पर भगवान राम ने जनक जी द्वारा आयोजित उसी कार्यक्रम में भाग लिया और उसे जीतकर सीता जी से स्वयंबर किया और बाद में विवाह भी कर लिया भगवान श्री राम के विवाह के साथ-साथ उनके सभी भाइयों का विवाह माता सीता के बहनों के साथ हो गया।

अयोध्या कांड

इस भाग में राधा कृष्ण भगवान श्रीराम का राजा अभिषेक करना चाहा। परंतु देवी-देवताओं ने ऐसा ना होने दिया वे जानते थे कि यदि भगवान श्री राम का राज्याभिषेक हो जाएगा तो वे राज्य संभालने लग जाएंगे और रावण का वध कभी नहीं हो पाएगा।

अरण्यकांड

वनवास के कुछ काल पश्चात भगवान श्री राम और माता सीता ने चित्रकूट को प्यार दिया और वह ऋषि के आश्रम पहुंच गए। वहां ऋषि अत्री और उनकी पत्नी अनुसूया ने माता सीता को भगवान श्री राम के प्रति उन्हें कैसी पतिव्रता स्त्री रहनी चाहिए, इसके बारे में विस्तारपूर्वक समझाया।

किष्किंधा कांड

किष्किंधा कांड में भगवान श्री राम के हनुमान जी से मिलन से लेकर बाली के वध से लेकर माता सीता के खोज की तैयारी तक का संपूर्ण वर्णन है की वानर सेना ने कैसे माता सीता को ढूंढने का असीमित प्रयास किया।

सुंदरकांड

इस भाग में हनुमान जी के सभी कार्यों का वर्णन किया गया है कि उन्होंने माता सीता का पता कैसे लगाया, लक्ष्मण जी को कैसे बचाया इत्यादि सभी कार्यों का विस्तार पूर्वक वर्णन है।

लंका कांड

इस भाग में जामवंत के आदेश है नल और नील ने अपनी वानर सेना को लेकर समुद्र में एक पुल का निर्माण कर दिया। अंगद जी भगवान श्री राम का दूत बनकर रावण के पास गए और उन्होंने रावण के सामने एक प्रस्ताव रखा रावण भगवान श्री राम के शरण में आ जाए, परंतु रावण नहीं माना और उसने युद्ध के लिए ललकारा।

युद्ध के अंत में भगवान श्रीराम ने रावण का अंत कर लंका पर जीत हासिल की और माता सीता को आजाद कराया भगवान श्रीराम ने सभी का अंत कर दिया। पर विभीषण ने भगवान श्री राम की शरण ले ली थी, इसलिए भगवान श्री राम ने विभीषण को लंका सौप कर वापस लौट गए।

उत्तरकांड

यह भाग अंतिम मान गए इस भाग में भगवान श्री राम, लक्ष्मण जी और माता सीता अयोध्या पहुंचे और वहां भगवान श्री राम जी का राज्याभिषेक हुआ और इसी भाग में माता सीता के ऊपर लांछन लगाया गया और प्रजा की खुशी के लिए भगवान श्री राम जी ने माता सीता को त्याग दिया तथा अंत में माता सीता ने अपने आप को अग्नि मैं समर्पित कर दिया।

उपसंहार

रामायण में बताये गए राम के जीवन से हमें अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हर किसी के जीवन में उतार चढाव आते हैं, हमें कभी भी हार मान कर नहीं बैठना चाहिए और हर विकट परिस्थिति का खुलकर सामना करना चाहिए।

अंतिम शब्द

हमने यहां पर “मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध (Essay On My Favorite Book in Hindi)” शेयर किया है। उम्मीद करते हैं कि आपको यह निबंध पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करें। आपको यह निबन्ध कैसा लगा, हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।