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जाति प्रथा पर निबंध

Essay On Caste System in Hindi : जाति प्रथा समाज की एक ऐसी बुराई है, जो समाज के विकास में बाधा उत्पन्न करती है। यह बुराई कई प्रतिभाशाली लोगों के लिए अवसर के दरवाजे बंद कर देती हैं। बात करें भारत में जाति प्रथा की तो यह प्राचीन काल से चली आ रही है। हालांकि समय-समय पर इसमें कुछ ना कुछ बदलाव आते रहे। वर्षों से लोगों द्वारा इसके ऊपर काफी आलोचना भी हुई।

मुगल शासन और ब्रिटिश राज के दौरान इसमें काफी बदलाव हुआ। अब जाति के नाम पर लोगों के साथ पहले की तरह ज्यादा अत्याचार तो नहीं होते लेकिन देश की सामाजिक और राजनीतिक प्रणाली में अभी भी इसकी मजबूत पकड़ बनी हुई है। बात करें जाती प्रथा की उत्पत्ति की तो यह वर्ण के आधार उत्पन्न हुआ है। प्राचीन काल में जाति को चार वर्णों के आधार पर आंका जाता था ब्रह्म, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।

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Image : Essay On Caste System In Hindi

इन वर्ण को उनके कर्म और व्यवसाय के आधार पर बांटा गया था और लोगों को उनके वर्ण के आधार पर ही कुछ अधिकार सीमित थे। हालांकि आज के समय में जाति के नाम पर किए जाने वाले भेदभाव काफी हद तक कम हो गए हैं। लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों को इस प्रथा का शिकार बनना पड़ता है। वैसे आज के लेख में हम जाति प्रथा के ऊपर 250 और 800 शब्दों में निबंध लेकर आए हैं।

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जाति प्रथा के ऊपर निबंध | Essay On Caste System in Hindi

जाति प्रथा के ऊपर निबंध (250 शब्द)

भारतीय समाज में प्राचीन काल से कई सारी बुरी प्रथा का प्रचलन था। हालांकि समय के साथ उन प्रथाओका अंत भी हुआ परंतु जाति के नाम पर समाज में निश्चित वर्ग के प्रति घृणा की भावना आज भी पूरी तरीके से खत्म नहीं हो पाई है। कहने के लिए तो आज भारत विकासशील देश हो चुका है और लोग भी आधुनिकरण को अपना रहे हैं।

ग्रामीण इलाकों में लोग आज भी प्राचीन काल की भावनाओं को लिए जीते हैं। हालांकि पहले के समय में लोगों के कार्य और उनके व्यवसाय के आधार पर उन्हे साथ ऊंच-नीच का भेदभाव होता था, परंतु आज लोगों की आर्थिक स्थिति के आधार पर उच्च नीच का भेदभाव होता है ।

पहले के समय में कार्य व्यवसाय के आधार पर जहां पर लोगों को ब्रह्म, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में बांटा गया था वंही आज लोगों को सामान्य, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों में विभाजित किया गया है और यह वर्ग उनके कार्य और व्यवसाय के आधार पर ना होकर उनके आर्थिक स्थिति के आधार पर बांटा गया है।

इससे हम यह तो जरूर कह सकते हैं कि अभी के समय में कोई भी काम जाति के आधार पर निर्भर नहीं करता पहले के समय में निम्न वर्ग के लोग नाई का कार्य करते थे, वंही आज उच्च वर्ग के लोग भी बाल काटने का शौक रखते हैं जिसके कारण वे सैलून चलाते हैं।

इसके अतिरिक्त भी अन्य कई सारे उदाहरण है जो साबित करते हैं कि आज के समय में कार्य और व्यवसाय लोगों की जात को तय नहीं करती। आज के समय में आर्थिक रूप से जो कमजोर है वही निम्न वर्ग में आता है। इस तरीके से आज का समाज आर्थिक विकास पर उच्च और निम्न दो वर्गों में बंटा हुआ है।

जाति प्रथा के ऊपर निबंध (850 शब्द)

प्रस्तावना

भारत में सदियों से कई बुरी प्रथा समाज में व्याप्त थी उन्हीं में से एक जाति प्रथा भी है। हालांकि समय-समय पर कुछ प्रथाओं का अंत हो गया लेकिन कुछ प्रथा आज भी समाज में व्याप्त है। हालांकि अब पहले के समय की तुलना में काफी बदलाव हो चुका है।

अब लोग ज्यादा से ज्यादा शिक्षित हो रहे हैं और वह इन रूढ़िवादी विचारों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी हम यह नहीं कह सकते कि भारतीय समाज में अब जाति प्रथा पूरी तरीके से खत्म हो चुकी है क्योंकि अभी भी भारत के कई हिस्सों में जाति के नाम पर भेदभाव होता है।

समाज में चार वर्ण

प्राचीन समय में जाति प्रथा लोगों के कार्य और व्यवसाय के आधार पर था। और उसी कार्य और व्यवसाय के आधार पर लोगों को चार वर्णों में बांट दिया गया था जिसमें ब्रह्म ,क्षत्रिय ,वैश्य और शुद्र आते थे। हालांकि कर्म और व्यवसाय के आधार पर उन्हें वर्ण में बांटना सबसे बड़ी बुराई नहीं थी उससे भी बड़ी बुराई तो यह थी कि वर्ण के आधार पर अधिकार भी सीमित थे।

जो ब्रह्म वर्ण में आते थे उन्हें शिक्षा का अधिकार था, मंदिरो में पूजा करने का अधिकार था, वे पंडित होते थे। वही छत्रिय में आने वाले राजाओं को भी सभी प्रकार के अधिकार थे लेकिन वैश्य और शुद्र के लिए बहुत सीमित अधिकार थे। यहां तक कि शुद्र वर्ण के लोगों के साथ तो बहुत ज्यादा अत्याचार और भेदभाव होता था।

शुद्र वर्ण के लोगों के साथ भेदभाव

शुद्र, वर्ण में आने वाले लोगों को ना ही मंदिर जाने का अधिकार था ना ही शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार था और यह प्रथा वंशागुनत था जिसके कारण आने वाले हर पीडियो को इस प्रथा से गुजरना पड़ता था। शुद्र वर्ण के लोगों को रास्ते पर चलते वक्त झाड़ू बांध कर चलना पड़ता था ताकि उनके पैरों के निशान साफ होते जाएं।

यहां तक कि वे रास्ते पर नहीं थुंक नहीं सकते थे ना ही उन्हें सार्वजनिक मटको से पानी पीने का अधिकार था। यहां तक कि उच्च वर्ग के लोग उनके परछाइयों को भी अशुभ मानते थे। यदि किसी उच्च वर्ग के लोगों पर निम्न वर्ग के लोगों की छाया पड़ जाती थी तो वे तुरंत जाकर नहा लिया करते थे। भारतीय समाज में व्याप्त ऐसी जाति प्रथा के कारण उन लोगों का जीवन नर्क से कम नहीं था।

भारतीय संविधान के निर्माण के समय आरक्षण की घोषणा

लेकिन भारत में विदेशी शासकों के आने के बाद जाति प्रथा समेत प्राचीन काल से भारत में चली आ रही केई सारी बुरी प्रथा का अंत होना शुरू हुआ। भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बीआर अंबेडकर शुद्र जाति में आते थे जिसके कारण उन्हें भी काफी अत्याचारों और भेदभाव से गुजरना पड़ा।

लेकिन कहते हैं ना कि शिक्षा समाज के हर बुराइयों को खत्म कर सकती हैं। डॉ. बी.आर. आम्बेडकर बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे और इस बालक ने बचपन में जाति प्रथा के नाम पर होने वाली सभी बुराइयों का सामना करते हुए उच्च शिक्षा ग्रहण की और बाद में भारतीय संविधान के निर्माण के समय आरक्षण लाकर निम्न वर्ग के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ‌।

जाति प्रथा का इतिहास

जाति प्रथा के इतिहास को जानना है तो भारत की संस्कृति और मानव इतिहास तक जाना पड़ेगा। ऐतिहासिक रूप से माना जाता है कि जाति व्यवस्था आर्यों के आगमन के साथ लगभग 1500 ईसा पूर्व में देश में आई थी। कहा जाता है कि आर्यों ने उस समय स्थानीय आबादी को नियंत्रित करने के लिए जाती प्रणाली की शुरुआत की थी जिसमें उन्होंने चीजों को व्यवस्थित तरीके से बनाने के लिए निश्चित कार्यों को लोगों के समूह में बांट दिया था।

परंतु कुछ लोग जाति प्रथा के इतिहास की इस सिद्धांत को खारिज करते हैं। कुछ लोग जाति व्यवस्था की शुरुआत वैदिक काल से मानते हैं लेकिन सभी विद्वाननों का इस पर एकमत नहीं है। हालांकि जाति व्यवस्था का उल्लेख हिंदू धर्म शास्त्रों में भी मिलता है और उन धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मांड के निर्माता भगवान ब्रह्मा ने अपने मुख भुजा, जंघा,और पेर से चार वर्णों को क्रमशः ब्रह्मा,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र उत्पन्न किया था।

इस वर्ण के आधार पर पुजारी और शिक्षक ब्रह्म वर्ग में आएंगे, वहीं राजाओं को और वीरों को क्षत्रिय वर्ण में शामिल किया गया था। बाकी सभी प्रकार के व्यापारी को वैश्य में और किसान और श्रमिकों को शुद्र वर्ण में रखा गया था। हालांकि जाति प्रथा का वास्तविक मूल अभी तक अज्ञात है। प्राचीन काल में भले ही जाति के नाम पर लोगों के लिए सीमित अधिकार थे परंतु आज भारतीय संविधान में दिए गए भारतीय नागरिकों के जो भी मौलिक अधिकार है वह सभी जातियों के लिए एक समान है।

हालांकि हम कह सकते हैं कि आज भारतीय समाज में पहले की तरह जाति प्रथा नहीं रही है परंतु अभी समाज में कुछ हद तक यह व्याप्त है। आज भी यह प्रणाली शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण का आधार बनी हुई है। राजनीतिक कारणों के कारण जहां जातियां पार्टियों के लिए वोट बैंक का गठन करती है। देश में आरक्षण की व्यवस्था का हो रहा दुरुपयोग आज भी जाति प्रथा को बढ़ावा दे रही हैं।

निष्कर्ष

आज भारतीय समाज में जाति प्रथा काफी हद तक खत्म हो चुकी है लेकिन आज भी ग्रामीण इलाकों में यह भावना लोगों के अंदर देखने को मिलती है। आज भी निम्न वर्ग के लोगों के प्रति उच्च वर्ग के लोगों का नजरिया अलग होता है। हालांकि यह रूढ़िवादी विचार ग्रामीण लोगों के मन में ज्यादा होते हैं लेकिन बढ़ते आधुनिकीकरण और शिक्षा प्रणाली इस रूढ़िवादी विचार को काफी हद तक कम कर रही है।

परंतु आज भी भारत के निम्न वर्ग के लोगों को दी जाने वाली आरक्षण यह साबित करती है कि आज भी समाज समाज में जाति प्रथा व्याप्त है। हालांकि आज लोगों में एक दूसरे के प्रति ऊंच-नीच का भाव जाति के आधार पर नहीं बल्कि उसके शक्ति, उसकी आर्थिक स्थिति को देखकर आता है।

लेकिन हर एक व्यक्ति को समझना जरूरी है कि ऐसे रूढ़िवादी विचार राष्ट्र के विकास को रोकते हैं। यह रूढ़िवादी विचार लोगो के अंदर एक दूसरे के प्रति घृणा उत्पन्न करते हैं और उनकी एकता को भी तोड़ने का काम करती है। इसीलिए लोगों को इन प्रथाऐ को खत्म करके एक समान नजरिए से सब को देखना चाहिए।

अंतिम शब्द

इस लेख में हमने आपको 250 से 800 शब्दों में जाति प्रथा के ऊपर निबंध ( Essay On Caste System in Hindi) बताया। यदि लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न हो तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं और यदि लेख अच्छा लगा हो तो इस लेख को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें।

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Ripal
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