Dr Rajendra Prasad Biography in Hindi: डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का नाम भारत का बच्चा-बच्चा जानता है क्योंकि यह भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारत के युवा स्वतंत्रता संग्रामी थे। वे बढ़ चढ़कर भारतीय आजादी आंदोलन में हिस्सा लिया करते थे।
भारत 1950 में एक गणतंत्र देश के रूप में दुनिया के समक्ष आया। उस वक्त भारतीय संविधान को बनाने वाले कुछ दिग्गजों में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का नाम भी शामिल था। उन्हें सबसे पहले भारत का खाद और कृषि विभाग सौंपा गया था, जिसमें अतुलनीय काम करने के बाद वह भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में सबके समक्ष आए।
इस डॉ राजेंद्र प्रसाद की जीवनी में हम डॉ राजेंद्र प्रसाद के परिवार, डॉ राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा, उनको प्राप्त सम्मान, उनके द्वारा किये गये कार्य आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का जीवन परिचय (Dr Rajendra Prasad Biography in Hindi)
नाम | डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद |
जन्म और जन्मस्थान | 3 दिसंबर 1884, जीरादेई गांव, पटना (बिहार) |
पिता का नाम | महादेव सहाय |
माता का नाम | कमलेश्वरी देवी |
पत्नी का नाम | राजवंशी देवी |
संतान | मृत्यृंजय प्रसाद |
शिक्षा | पोस्ट ग्रेजुएट (कोलकाता यूनिवर्सिटी), LLM और लॉ में डॉक्ट्रेट |
सम्मान एवं पुरस्कार | भारत रत्न (1962) |
राष्ट्रीयता एवं धर्म | भारतीय (राष्ट्रीयता), हिन्दू (धर्म) |
निधन | 28 फरवरी 1963, सदाक़त आश्रम, पटना (बिहार) |
डॉ राजेंद्र प्रसाद कौन थे?
3 दिसंबर 1884 को बिहार की राजधानी पटना के समीप एक छोटे से गांव जीरादेई में भारत के महान स्वतंत्रता सैनानी और प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम महादेव सहाय था, जो एक किसान थे और इनकी माता का नाम कमलेश्वरी देवी था।
इनके पिता संस्कृत और फारसी भाषा के अपने जमाने के बहुत बड़े ज्ञानी हुआ करते थे। इन्हें अपने पिता से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान हुआ और अपनी माता से धर्म ग्रंथ के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। उस जमाने में बाल विवाह एक साधारण बात होती थी, जिस वजह से 12 साल की कम उम्र में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से कर दिया गया।
राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा
उनका बचपन का खेल कूद बहुत जल्द खत्म हो गया और 5 साल की उम्र में उन्हें शिक्षा देने के लिए उनके पिता ने गांव के एक मौलवी के पास राजेंद्र प्रसाद को भेजना शुरू किया। राजेंद्र ने अपने गांव के मौलवी से फारसी और उर्दू भाषा का ज्ञान हासिल किया।
राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा उसी जीरादेई गांव में हुई। बचपन से ही राजेंद्र प्रसाद का झुकाव पढ़ाई के तरफ बहुत था। वह पढ़ना लिखना बहुत पसंद करते थे, जिस वजह से उन्हें पटना के टीके एकेडमी में स्नातक की पढ़ाई करने का मौका मिला। जिसके बाद कोलकाता विश्वविद्यालय में उन्होंने प्रवेश लिया और अच्छे अंक से अपनी स्नातक और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की।
राजेंद्र प्रसाद की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए ₹30 प्रति माह का स्कॉलरशिप मिलना शुरू हुआ। उस जमाने में आपने गांव से विश्वविद्यालय में दाखिला पाने में सफलता प्राप्त करने वाले वह पहले व्यक्ति थे।
1907 में इकोनॉमिक्स से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1915 में कानून में मास्टर डिग्री हासिल की, जिसके लिए उन्हें गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया। उसके बाद वह पटना आकर वकालत का काम करने लगे, जिसमें उन्होंने पूरे पटना में बहुत धन और नाम हासिल किया।
किसी भी केस की सुनवाई के लिए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का नाम सबसे पहले लिया जाता था। इस महान हस्ती की वकालत की कला की कहानी गांधीजी तक पहुंच गई थी और उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में देश के आजादी के लिए आंदोलन में हिस्सा लेने का आमंत्रण दिया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद के बहुत सारे पढ़ाई के किस्से आज भी अलग-अलग जगहों पर सुनाए जाते हैं। उनमें से एक प्रचलित किस्सा है कि किसी परीक्षा में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को पांच प्रश्नों के सही उत्तर लिखने को कहा गया था और 10 प्रश्न पूछे गए थे।
उन्होंने दसों प्रश्न का सही उत्तर लिखा और परीक्षा पत्र के अंत में लिख दिया कि कोई भी पांच चुनकर चेक कर लें। इसके बाद उन्होंने सबको पूरा संविधान याद करके भी दिखाया। डॉ राजेंद्र प्रसाद को पूरा संविधान मुंह जबानी याद था।
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राजनीति और आंदोलन में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पहला कदम
डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने जमाने के बहुत नामी और प्रचलित वकील हुआ करते थे। ना केवल भारतीय बल्कि अंग्रेज भी इसी समस्या पर उनकी राय लेने आते थे। 1917 में गांधीजी बिहार आए और यहां पर नील मजदूर को बहुत परेशान किया जा रहा था।
वह जितना फसल उगाते थे, उसकी सही कीमत नहीं दी जाती थी और जबरदस्ती उनसे नील की ही फसल उगाई जाती थी। इस तरह बिहार में किसान और मजदूरों की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही थी। इस समस्या का निराकरण करने के लिए गांधीजी चंपारण पहुंचे और सबसे पहले राजेंद्र प्रसाद से मिलकर इस समस्या के बारे में विचार विमर्श किया।
राजेंद्र प्रसाद जब पहली बार गांधी जी से मिले तो उनके व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए और उनकी मदद करने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ इस आंदोलन में खड़े हुए। परिणाम स्वरूप अपनी वकालत के दम पर राजेंद्र प्रसाद ने गांधी जी समेत अन्य मजदूरों को उनका हक दिलवाने में कामयाब रहे।
इसके कुछ साल बाद जब 1919 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की लहर पूरे भारत में दौड़ी तो गांधी जी ने सभी लोगों को स्कूल, कॉलेज और अंग्रेजों के द्वारा दी गई प्रत्येक चीज का बहिष्कार करने को कहा। जिसमें डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने अपनी नौकरी छोड़ दी और एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में बिहार से आजादी की लड़ाई का आगाज किया।
बिहार में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने बढ़-चढ़कर विभिन्न आंदोलन में हिस्सा लिया और अंग्रेजों को यहां से भगाया। 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को गिरफ्तार कर लिया गया और कई महीनों तक नजरबंद करके रखा गया। जिसके बाद 15 अगस्त 1947 को अंत तक हमारा देश आजाद हुआ।
इसके बाद भी हमारे देश में किस प्रकार संविधान होगा और किस तरह का नियम कानून बनेगा इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। जिस वजह से लॉर्ड माउंटबेटन ने देश को कुछ सालों तक चलाने की जिम्मेदारी ली और भारतीय लोगों को संविधान और कानून बनाने का मौका दिया।
इस संविधान बनाने वाले महान दिग्गजों में एक नाम डॉ राजेंद्र प्रसाद भी था। इस दौरान डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में लॉर्ड माउंटबेटन की मदद करते थे और संविधान बनाने का कार्य भी करते थे।
अंततः 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू किया गया और भारत का एक गणतंत्र देश के रूप में घोषणा किया गया। इस समय इलेक्शन में 26 जनवरी 1950 को डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में कार्यरत किया गया।
इसके बाद देश सही तरीके से चलने लगा और दुबारा इलेक्शन हुआ तो 1957 में डॉ राजेंद्र प्रसाद दोबारा भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुनाव जीत गए और 1962 तक इस सर्वोच्च पद पर विराजमान रहकर भारत की बागडोर को संभाला।
डॉ राजेंद्र प्रसाद का कार्य और सम्मान
डॉ राजेंद्र प्रसाद एक विद्वान, दार्शनिक और अपने जमाने के सबसे नामी वकील में से एक थे। उन्होंने वकालत में गोल्ड मेडल हासिल किया था और भारत के प्रथम और दूसरे राष्ट्रपति भी बने। आज़ादी के समय भारत एक गरीब एक देश था, जिसे संभालना काफी मुश्किल था।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद जैसे विद्वान ने इस देश की बागडोर इतनी मजबूती से संभाला कि आज हमारा देश विश्व के सम्मानित देशों में से एक बना। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपने कार्य आजादी आंदोलन और ज्ञान की वजह से हमेशा हमें याद रहेंगे।
1962 में डॉ राजेंद्र प्रसाद को सामाजिक और राजनैतिक योगदान की वजह से सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। अंत में 28 फरवरी 1963 को डॉ राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया। वह एक गंभीर और प्रभावशाली राष्ट्रपति और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में प्रत्येक भारतीयों को सदैव याद रहेंगे।
FAQ
राजेंद्र प्रसाद का जन्म पटना के समीप जीरादेई नाम के गांव में 3 अक्टूबर 1884 को हुआ था।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति अपने जमाने के सबसे प्रचलित वकील कानून में गोल्ड मेडलिस्ट, पूरा संविधान मुंह जबानी याद रखने वाले और एक महान विद्वान जिनके राजनैतिक और सामाजिक नेतृत्व में भारत ने कई आंदोलन में विजय प्राप्त की और उनके इस राजनीतिक और सामाजिक योगदान को सम्मान देने के लिए भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया गया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में 26 जनवरी 1950 को विराजमान हुए। मगर इसके बाद 1957 को दूसरी बार भारत के राष्ट्रपति के रूप में जाना जाता है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता सेनानी बनने से पहले पटना के सबसे नामी वकीलों में से एक हुआ करते थे, जो 1917 में चंपारण आंदोलन में गांधीजी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भारतीय आजादी आंदोलन में हिस्सा लिया।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का पूरा नाम डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ही है।
डॉ राजेंद्र प्रसाद राष्ट्रपति होने के अलावा भारत के पहले मंत्रिमंडल में 1946 एवं 1947 मेें कृषि और खाद्यमंत्री का दायित्व निभाया था।
डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारत रत्न 1972 में मिला।
डॉ राजेंद्र प्रसाद के पिता संस्कृत और फारसी भाषा के अपने जमाने के बहुत बड़े ज्ञानी हुआ करते थे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद अगस्त 1961 में एक बड़ी बीमारी से ठीक हो गये थे। राष्ट्रपति का कार्यक्रम पूर्ण करने के बाद वे पटना आ गये और उनको उस समय पेंशन के रूप में 1100 रुपये मिलते थे। 28 फरवरी 1963 को सदाक़त आश्रम (पटना) में उनका निधन हो गया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद 26 जनवरी 1950 से 14 मई 1962 तक राष्ट्रपति पद रहे।
निष्कर्ष
ऊपर बताई गई सभी जानकारियों को पढ़ने के बाद आप डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के राजनीतिक और सामाजिक योगदान को समझ पाए होंगे। किस प्रकार उन्होंने भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए अपना जीवन देश को समर्पित किया और एक राजनेता के रूप में उन्होंने भारत की बागडोर बहुत विषम परिस्थिति में संभाली।
परिणाम स्वरूप आज हमारा देश विश्व के कुछ सम्मानित देशों में से एक बन पाया। डॉ राजेंद्र प्रसाद अपनी वकालत और आंदोलन की वजह से भी हमें हमेशा याद रहेंगे।
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