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दशहरा क्यों मनाया जाता है? (कारण, महत्व, पूजा विधि, इतिहास)

Dashara Kyon Manaya Jata Hai: भारत एक सांस्कृतिक देश है, जहां पर प्राचीन काल से ही कई तरह के त्यौहार मनाए जाते हैं और इन त्यौहारों का यहां निवास कर रहे हर एक व्यक्ति के लिए बहुत ही महत्व रखता है। क्योंकि त्यौहार न केवल सांस्कृतिक महत्व के रूप में बल्कि लोगों में एकता बनाए रखने और परिवार में आनंद लाने का भी काम करता है। इसीलिए तो किसी भी त्यौहार का बहुत ही जोर-शोर से इंतजार किया जाता है और उसकी तैयारी की जाती है।

भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न तरह के त्यौहारों में दशहरा एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। दशहरा जिसे विजयदशमी या दुर्गा पूजा के नाम से भी जाना जाता है। राम के विजय के रूप में इस दिन को विजयदशमी एवं मां दुर्गा के द्वारा महिषासुर का वध करके बुराई पर जीत के कारण इसे दुर्गा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है।

Dashara Kyon Manaya Jata Hai
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भारत में मनाए जाने वाले हर त्यौहारों के पीछे कुछ ना कुछ कारण होता है, दशहरा मनाने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण है। दशहरा क्यों मनाया जाता है, किस दिन मनाया जाता है, दशहरा क्या महत्व रखता है और विभिन्न राज्यों में दशहरा किस तरह मनाया जाता है, इसी से संबंधित आज का यह लेख हम लेकर आए हैं, जिसमें आपको दशहरा के बारे में सब कुछ जानकारी मिलेगी तो आप इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

दशहरा क्यों मनाया जाता है? (कारण, महत्व, पूजा विधि, इतिहास) | Dashara Kyon Manaya Jata Hai

दशहरा कब और क्यों मनाया जाता है?

दशहरा का त्यौहार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि इस दिन भगवान राम ने रावण का वध कर बुराई पर विजय प्राप्त की थी। इसी तरह मां दुर्गा ने भी नवरात्र एवं 10 दिन के युद्ध के उपरांत महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था और असत्य पर सत्य की विजय प्राप्त की थी, इसीलिए यह त्यौहार विजय का पर्व है।

दशहरा त्यौहार का महत्व

दशहरा त्यौहार सांस्कृतिक दृष्टि से सभी हिंदुओं के लिए बहुत महत्व रखता है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, लोग खेती करते हैं और जब सुनहरी फसल अनाज बन जाती है और उस अनाज रूपी लक्ष्मी को जब वे अपने घर लाते हैं तो उन किसानों में उल्लास और उमंग छा जाती है। इस तरह दशहरे का त्यौहार मना कर वे भगवान को धन्यवाद व्यक्त करते हैं।

दशहरे के दिन मां दुर्गा एवं भगवान राम की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इस दिन मां दुर्गा ने भी महिषासुर का वध कर बुराई का अंत किया था और असत्य पर सत्य का विजय प्राप्त किया था। वहीँ भगवान राम ने भी दुष्ट रावण का वध करके बुराई का अंत किया था। इस तरह यह दिन विजय का प्रतीक है। इसीलिए इस दिन भारत के कई जगहों पर रावण दहन भी होता है, जिसमें रावण के बहुत बड़े पुतले का निर्माण किया जाता है और उसका दहन किया जाता है।

भगवान राम के द्वारा रावण का वद्ध करने के पश्चात ही यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक बन चुका है। इसलिए इतिहास में भी कई महत्वपूर्ण युद्धों में हमारे वीरों ने इसी दिन का चयन किया है। मराठा के छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिंदू धर्म का रक्षण किया था।

दशहरा की पूजा विधि

  • दशहरा की पूजा के लिए घर का पूर्व दिशा और इसान कोण बहुत शुभ माना जाता है। दशहरे के दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए। उसके बाद जिस स्थान पर पूजा करनी है, उस स्थान को अच्छे तरीके से साफ कर देना चाहिए और फिर वहां पर चंदन के लेप लगाकर 8 कमल की पंखुड़ियों से अष्टदल चक्र बनाना चाहिए।
  • अब देवी अपराजिता से परिवार की सुख और समृद्धि की कामना करनी चाहिए। उसके बाद अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ मां देवी की प्रतिमा विराजमान करके उनका आवाहन करना चाहिए।
  • यहां पर ध्यान रखना चाहिए कि मां जया को दाई तरफ और मां विजया को बाई तरफ विराजमान करना चाहिए। उसके बाद उनके मंत्र क्रियाशक्त्यै नमः और उमायै नमः से उनका आह्वान करना चाहिए।
  • अब मां जया, विजया और मां दुर्गा तीनो माता की विधि विधान से पूजा अर्चना करनी चाहिए।
  • जब तीनों माता की पूजा हो जाए तो उसके बाद भगवान श्री राम माता सीता और हनुमान जी की भी पूजा करनी चाहिए। अंत में आरती उतार कर प्रसाद का वितरण करना चाहिए।
  • हर एक भक्तों की अपनी अलग अलग क्षमता होती है और वह अपनी क्षमता के अनुसार ही पूजा कर पाता है। इसलिए अंत में माता से प्रार्थना करना चाहिए कि हे देवी मां मैंने यह पूजा अपनी क्षमता के अनुसार की है इसीलिए इस पूजा को स्वीकार करें।
  • दशहरे की पूजा में रावण दहन के बाद शमी के पेड़ की भी पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह शमी के पत्ते मां दुर्गा को अर्पित करने से आर्थिक लाभ होते हैं और कार्यों में आ रही बाधा भी दूर होती है। इसीलिए इस दिन पूजा करने के बाद शमी के पेड़ के नीचे दीपक भी जलाया जाता है।

भारत के विभिन्न राज्यों में दशहरा पूजा

दशहरा का पर्व भारत के हर एक कोने में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां तक कि दूसरे देश में निवास कर रहे भारत के लोग भी इस त्यौहार को मनाते हैं, जिस कारण भारत की संस्कृति दूसरे देशों में भी अपनाई जा रही हैं। भारत के हर राज्यों में बहुत ही विशेष तरीके से दशहरा का पर्व मनाया जाता है। सभी राज्यों की रहन-सहन और खान-पान में अंतर होने के कारण प्रत्येक राज्य में निवास कर रहे लोग अपनी रीति रिवाज और परंपरा के अनुसार इस त्यौहार को मनाते हैं।

बंगाल का दुर्गा पूजा पूरे देश दुनिया में बहुत ही ज्यादा प्रख्यात है। बंगाल के अतिरिक्त ओडिशा और आसाम के लोगों के लिए भी यह महत्वपूर्ण त्यौहार है। पूरे बंगाल में दुर्गा पूजा को 5 दिनों के लिए मनाया जाता है। वहीँ उड़ीसा और असम में इस त्यौहार को 4 दिनों तक मनाया जाता है। बंगाल में इस त्यौहार के दिन देवी दुर्गा की भव्य प्रतिमा स्थापित की जाती है, एक बड़ा सा पंडाल भी लगाया जाता है, जिसे पूरी तरीके से सजा दिया जाता है।

दशहरा में बंगाल में हर एक जगह पर मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा देखने को मिलती है। दुर्गा पूजा के दौरान बंगाल के हर एक शहरों में हर एक जगह छोटे-मोटे ठेले पर भी तरह-तरह की मिठाई देखने को मिलते हैं। चारों तरफ हर्ष और उमंग का वातावरण छाया रहता है। यहां पर षष्ठी के दिन दुर्गा मां का बोधन, आमंत्रण एवं प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन किया जाता है। सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रातः काल एवं सांयकाल मां दुर्गा की पूजा में लोग व्यतीत रहते हैं।

अष्टमी के दिन यहां पर महापूजा होता है, जिसमें बलि भी दी जाती हैं। दशमी के दिन धूमधाम से माता की पूजा अर्चना करने के बाद प्रसाद चढ़ाया जाता है और प्रसाद वितरण किया जाता है। यहां पर मां दुर्गा की पूजा करने के बाद स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर लगाती है और देवी को अश्रुपूरित विदाई भी देती हैं।

उसके बाद वे आपस में भी एक दूसरे को सिंदूर लगाती है और सिंदूर से खेलती हैं। बड़े-बड़े ट्रकों में मां दुर्गा की प्रतिमा को लादकर विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, विसर्जन की यात्रा बहुत ही दर्शनीय होती है। इस दिन यहां पर नीलकंठ पंछी को देखना बहुत शुभ माना जाता है।

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का भी दशहरा पूरे देश में काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां पर दशहरे का आरंभ 10 दिन पहले ही हो जाता है। यहां पर देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ होता है। 10 दिनों तक यहां की स्त्री, पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों को पहनकर बिगुल, ढोल, नगाड़े, बांसुरी जैसे तरह-तरह के वाद्द यंत्रों को लेकर बाहर निकलते हैं।

यहां पर निवास करने वाले पहाड़ी लोग भी अपने ग्रामीण देवता का धूमधाम से झांकी निकालते हैं, पूजा करते हैं। देवी देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुशोभित किया जाता है और जुलूस निकाला जाता है। इस जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक और नर्तकी करते हैं, पूरे शहर में हर्ष और उल्लास का वातावरण रहता है।

कश्मीर में भी दशहरे के पर्व को बहुत ही समर्पित भाव से मनाया जाता है। हालांकि कश्मीर में हिंदुओं की संख्या कम है, लेकिन अल्पसंख्यक सभी हिंदू नवरात्रि के पर्व को श्रद्धा से मनाते हैं। 9 दिनों तक सिर्फ पानी पीकर उपवास करते हैं। यहां पर माता खीर भवानी का एक मंदिर है, जो झील के बीचो-बीच बना हुआ है। इस दिन यहां निवास करने वाले सभी हिंदू लोग इस मंदिर का दर्शन करने के लिए आते हैं।

माना जाता है कि मां ने यहां पर दर्शन दिया था और उन्होंने अपने भक्तों से कहा था कि जब भी कुछ अनहोनी होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा। माना जाता है कि भारत-पाक युद्ध और इंदिरा गांधी की हत्या के 1 दिन पहले भी यहां का पानी काला हो गया था।

छत्तीसगढ़ के बस्तर का दशहरा भी काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। हालांकि यहां पर राम की रावण पर विजय के रूप में दशहरा नहीं मनाया जाता बल्कि यहां पर मां दंतेश्वरी की आराधना को समर्पित दशहरा मनाया जाता है। दंतेश्वरी माता बस्तर अंचल के निवासियों के आराध्य देवी है और यह मां दुर्गा का ही रूप है। यहाँ यह पर्व लगभग 75 दिन तक चलता है, जिसका आरंभ दशहरा के श्रावण मास की अमावस्या होता है और आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है।

गुजरात में भी दशहरा काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां पर दशहरे का आरंभ 9 दिन पहले से ही हो जाता है। यहां पर 9 दिन नवरात्रि मनाने के बाद दसवे दिन दशहरा बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। गुजरात की नवरात्रि और डांडिया रास पूरे भारत में प्रसिद्ध है। इस दिन यहां पर लोग सुशोभित रंगीन घड़े को अपने माथे पर लेकर लोकप्रिय नृत्य करती है। इस घड़े को मां देवी का प्रतीक माना जाता है।

यहां पर सभी पुरुष और महिलाएं 10 दिनों तक दो छोटे रंगीन डंडे को लेकर संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम-घूम कर नृत्य करते हैं। नृत्य करने के बाद अंत में मां देवी की आरती के साथ पर्व का समापन किया जाता है। नवरात्रि के दौरान यहां के लोग सोने की खरीदी को बहुत शुभ मानते हैं। इसीलिए ज्यादातर लोग इस दिन सोने के गहनों की शॉपिंग करते हैं।

दक्षिण भारत में भी दशहरा का त्यौहार बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश में भी दशहरे को 9 दिनों तक मनाया जाता है। यहां पर 9 दिन तक मां लक्ष्मी जो धन और समृद्धि की प्रतीक है, मां सरस्वती जो कला एवं विद्या की देवी है एवं मां दुर्गा जो शक्ति की प्रतीक है, इन तीनों देवियों की स्तुति एवं पूजा अर्चना की जाती है।

यहां पर पहले 3 दिनों तक मां लक्ष्मी का पूजन होता है, उसके अगले 3 दिनों तक मां सरस्वती की पूजा होती है और उसके बाद अंतिम दिन देवी दुर्गा की पूजा होती है। पूजा स्थल को साफ सफाई करके फूलों और दीपक से सजा दिया जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे को कपड़े और मिठाई भी देते हैं।

महाराष्ट्र में भी 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की जाती है एवं दसवें दिन मां सरस्वती जो ज्ञान की देवी है, उनकी वंदना की जाती है। यह दिन महाराष्ट्र के लोग गृह प्रवेश, नया घर खरीदने एवं विवाह जैसे शुभ शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त समझते हैं। इस दिन विद्यालय जाने वाले बच्चे मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिन्हों की पूजा करते हैं।

कर्नाटक के मैसूर शहर में आयोजित दशहरे का पर्व भी पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यहां पर भी इस पर्व को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन मैसूर के पूरे शहर के गलियों को रोशनी से सजा दिया जाता है। इस दिन यहां पर हाथियों का श्रृंगार करके चारों तरफ जुलूस भी निकाला जाता है। शहर के सभी लोग टॉर्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का भी आनंद लेते हैं। यह एक ऐसा शहर है जहां पर रावण दहन का आयोजन नहीं होता।

नीलकंठ के दर्शन है शुभ

नीलकंठ पंछी को भगवान शिव का प्रतिनिधि माना जाता है और माना जाता है कि दशहरे के दिन नीलकंठ पंछी के दर्शन करने से धनधान्य एवं सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

FAQ

दशहरा को अन्य किस नाम से जाना जाता है?

दशहरा को दुर्गा पूजा एवं विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है।

दशहरा के दिन कौन से देवता की पूजा की जाती है?

दशहरा के दिन मां दुर्गा के द्वारा महिषासुर का वध कर असत्य पर विजय प्राप्त करने के शुभ अवसर पर मां दुर्गा की पूजा की जाती है। इसके साथ ही रावण का वध करके भगवान श्रीराम ने भी असत्य पर सत्य का विजय प्राप्त किया था, इसीलिए इस दिन भगवान राम की भी पूजा की जाती है।

विजयदशमी में शमी पूजन क्यों है महत्वपूर्ण?

विजयदशमी के दिन मां दुर्गा और भगवान राम की पूजा करने के पश्चात शमी की भी पूजा की जाती है। इसके पीछे की पौराणिक कथा यह है कि जब पांडव कौरवों से जुए में पराजित हो गए थे और फिर जब उन्हें अज्ञातवास दिया गया था। तब उनके बारे में किसी को पता ना चल जाए, इसीलिए उन्होंने अपने धनुष को शमी के वृक्ष पर छुपा दिया था। उसके बाद जब गोरक्षा के लिए विराट के पुत्र ने अर्जुन की सहायता मांगी तब अर्जुन ने दोबारा इसी पेड़ से अपने धनुष को उठाकर युद्ध किया था, जिसमें उनका विजय हुआ था। इसी तरह भगवान राम चंद्र जी के लंका पर चढ़ाई करने के समय भी इसी वृक्ष ने भगवान राम की विजय की उद्घोषणा कर दी थी। इसीलिए विजयदशमी के दिन इस वृक्ष की पूजा करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है।

निष्कर्ष

दशहरा का पर्व हिंदुओं का बहुत ही पवित्र और प्रमुख त्यौहार है। दशहरा के दिन मां दुर्गा जो आदि शक्ति की प्रतीक है उनकी पूजा कर भक्तजन घर में सुख समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं।

हमें उम्मीद है कि आज के इस लेख के जरिए आपको दशहरा पर्व से जुड़ी तमाम प्रश्नों का जवाब मिल गया होगा। यदि यह लेख आपको पसंद आया हो तो इसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ जरूर शेयर करें।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।