Chitralekha Book Summary In Hindi: भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित चित्रलेखा हिंदी का उपन्यास है, जिसे 1934 में प्रकाशित किया गया था। इसकी लोकप्रियता हर काल की सीमा को लांगती रही है। इसके प्रकाशन से नौवें दशक तक इसकी ढाई लाख से भी अधिक प्रतियां बिक चुकी थी।
हिंदी भाषा में रचित यह उपन्यास को भारत के अन्य कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस पर केदार शर्मा के निर्देशन में फिल्म भी बनाई गई, जिसमें मिस मेहताब ने चित्रलेखा का किरदार निभाया। वही नंद्रेकर बीजगुप्त के किरदार में नजर आए और कुमार गिरी का किरदार एएस ज्ञानी ने निभाया। अन्य कलाकार अलग-अलग किरदार में थे।
साल 1964 में फिर से चित्रलेखा फिल्म का निर्माण हुआ, जिसमें अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार जैसे मुख्य किरदार नजर आए थे। हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं दिखा पाई थी।
चित्रलेखा बुक समरी | Chitralekha Book Summary In Hindi
चित्रलेखा कथा का आधार
चित्रलेखा कथा पाप और पुण्य की समस्या पर आधारित है, जिसमें पाप किया है?, उसका निवास कहां है? कहानी की शुरुआत इन्हीं प्रश्नों के उत्तर के साथ होता है और इन्हीं प्रश्नों के उत्तर को खोजने के लिए महाप्रभु रत्नाबंर के दो शिष्य जिनका नाम श्वेतांक और विशाल देव है। वे सामंत बिजगुप्त और योगी कुमारगिरी के शरण में जाते हैं, जहां पर रहते हुए उन्हें इन प्रश्नों का जवाब मिलता है।
हालांकि इस कहानी का नाम चित्रलेखा रखा गया है। क्योंकि इस कहानी में बहुत आकर्षक, मनोरम और अति सुंदर स्त्री चित्रलेखा का उल्लेख है और यह कहानी उसी के इर्द-गिर्द घूमती है।
चित्रलेखा एक विधवा नर्तकी है, जो बिज गुप्त की प्रेमिका है। लेकिन कुमार गिरी भी उसके सुंदरता के माया जाल से में फंसे जाते हैं। इस कहानी में एक और स्त्री का उल्लेख किया गया है, जिसका नाम यशोधर नामी है। लेकिन वह चित्रलेखा के सामने उसकी सुंदरता फीकी पड़ जाती है।
इस तरह कहानी में एक तरफ भोग विलास प्रिय पुरुष बीज गुप्त वहीं दूसरी तरफ मोक्ष प्राप्त करने के इच्छुक समाधि पुरुष कुमार गिरी, चित्रलेखा, विशालदेव, मृत्युंजय, श्वेतांक और यशोधारा के प्रमुख चरित्र के अलावा भी छोटे-मोटे अन्य किरदार भी मौजूद हैं। हालांकि उनकी मौजूदगी का कहानी पर कोई खास प्रभाव नहीं है।
कहानी का सारांश
श्वेतांक और विशालदेव पाप के रहस्य को ढूंढने के लिए अपने गुरू बीजगुप्त और कुमारगिरि के पास आते हैं और इन्हीं के साथ एक सेवक की तरह जीवन व्यतीत करते हैं। नर्तकी चित्रलेखा जो विधवा है, वह अब श्वेतांक के गुरु बीज गुप्त की अविवाहित पत्नी बन चुकी है।
हालांकि समाज में उसे इस चीज का मान्यता नहीं मिला है। लेकिन इस गुप्त ने उसे अपनी पत्नी का दर्जा दिया है। चित्रलेखा की मुलाकात एक बार गुरु कुमारगिरी से होता है, जिसके व्यक्तित्व से वह काफी प्रभावित होती है। वहीं दूसरी ओर इस कहानी की दूसरी स्त्री किरदार यशोधरा जो मृत्युंजय की बेटी है और वह उसकी शादी बिजगुप्त से करवाना चाहता है।
लेकिन बिजगुप्त चित्रलेखा के प्रेम सागर में इस कदर से डूबा हुआ है कि वह यशोधरा से विवाह करने के लिए उसका मन उसे मंजूरी नहीं देता।
लेकिन चित्रलेखा अपने आप को बिजगुप्त की अर्धांगिनी के योग्य नहीं समझती, जिसके कारण वह सारा वैभव त्याग करके संत कुमार गिरी के चरणों में चली जाती हैं। बिजगुप्त चित्रलेखा के यादों में खोया हुआ रहता है, जो बाद में चित्रलेखा को वापस लाना चाहता है लेकिन चित्रलेखा ने अपने आने के सभी मार्ग बंद कर दिए हैं। यहां तक कि वह कुमारगिरी के वासना का शिकार भी बन चुकी है।
अंत में बिजगुपृत यशोधरा से विवाह करने के लिए मान जाता है। लेकिन इसी बीच उसे पता चलता है कि उसका शिष्य श्वेतांक यशोधरा को अपने मन मंदिर में बसा चुका है। तब बीज गुप्त श्वेतांक को अपना पोष्य पुत्र ग्रहण कर सबकुछ त्याग देता है। बाद में चित्रलेखा भी उसके पास वापस लौट आती है।
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हालांकि अभी भी कहानी से जुड़ी काफी प्रश्न है कि इसके बाद चित्रलेखा और बीज गुप्त का क्या होता है?, कुमार गिरी का क्या होता है?, क्या वह साधना का मार्ग छोड़कर वासना के अभिभूत हो जाता है, श्वेतांक और विशाल देव पाप का रहस्य ढूंढ पाते हैं या नहीं? हालांकि इन सभी प्रश्नों का जवाब उपन्यास के संपूर्ण वाचन से ही मिल सकता है।
भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखा उपन्यास के जरिए प्रेम और वासना की अद्वितीय उपमा दी है। भगवती चरण वर्मा ने प्रेम की जितनी सुंदर व्याख्या की है। शायद ही किसी ने इतनी सुंदर व्याख्या पहले की होगी और यह सच में सराहनीय है। इस उपन्यास में भगवती चरण वर्मा ने उल्लेख किया है कि प्रेम मनुष्य का निर्धारित लक्ष्य है।
प्यास और तृप्ति प्रेम के क्षेत्र नहीं है। जीवन में प्रेम प्रधान होता है। एक दूसरे के प्रति गहरी सहानुभूति और एक दूसरे के अस्तित्व को एक कर देना ही प्रेम कहलाता है। इन्होंने इस उपन्यास के किरदार कुमारगिरी के माध्यम से वासना के संदर्भ में उल्लेख करते हुए कहा है कि ईश्वर के 3 गुण है सच, चिढ़ और आनंद।
यह तीनों गुण वासना रहित शुद्ध मन को ही मिल सकता है। लेकिन वासना युक्त मन में महत्व प्रधान रहता है, जिससे वासना के साथ इन तीनों में से किसी एक का भी पाना असंभव हो जाता है। इस तरीके से भगवतीचरण वर्मा द्वारा दी गई है। ऐसी उपमा शायद ही आपने कहीं पड़ी पढी होंगी।
FAQ
“चित्रलेखा” उपन्यास में मनुष्य के दृष्टिकोण की विषमता, प्रेम और वासना के भेद की समस्या को वर्णित किया है।
चित्रलेखा कहानी के लेखक हिंदी साहित्य के जाने-माने उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा है।
चित्रलेखा उपन्यास 1934 में प्रकाशित हुआ।
चित्रलेखा उपन्यास में कुमार गिरी, चित्रलेखा, विशालदेव, मृत्युंजय, श्वेतांक और यशोधारा इत्यादि सहित अन्य छोटे-मोटे किरदार हैं।
श्वेतांक और विशाल देव महाप्रभु रत्नाबंर के शिष्य है।
चित्रलेखा अविवाहित नृतकी है, जो सामंत बिजगुप्त की अविवाहित पत्नी है।
निष्कर्ष
आज के लेख में हमने आपको भगवती चरण वर्मा द्वारा रचित बहु विख्यात उपन्यास चित्रलेखा बुक समरी (Chitralekha Book Summary In Hindi) के बारे में बताया।
हमें उम्मीद है कि इस उपन्यास की कहानी से आपको कुछ जरूर सीखने को मिला होगा। यदि आपके मन में इस लेख को लेकर कोई भी प्रसन्न हो तो आप कमेंट सेक्शन में पूछ सकते हैं। हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको अच्छा लगा होगा।
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