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नाथूराम गोडसे का जीवन परिचय

नाथूराम गोडसे पुणे के एक हिंदू राष्ट्रवादी थे, जो आरएसएस के सदस्य भी थे। नाथूराम गोडसे अपने राजनीतिक करियर से ज्यादा इस बात के लिए प्रख्यात हुए कि इन्होंने देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर गोली चलाई थी। महात्मा गांधी का इनके द्वारा हत्या होने पर कई लोगों ने उनका विरोध किया तो वहीं कुछ लोगों ने उनका समर्थन भी किया।

नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की, उसके बाद जब उन्हें कारावास में बंद कर दिया गया था तो वहां पर बयान लेते वक्त भी उन्होंने बताया कि इन्हें गांधी जी की हत्या पर कोई भी अफसोस नहीं है। इनका मानना था कि गांधी जी ने बहुत से क्षणों में हिंदुओं के साथ पक्षपात किया है, इन्होंने मुसलमानों का सहयोग किया है।

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भारत विभाजन के दौरान भी इन्होंने मुसलमानों की राजनीतिक मांगों का समर्थन किया। यहां तक कि यह भी माना जाता है कि जब यह कारावास में थे, उस दौरान गांधीजी के एक पुत्र इनसे मिलने के लिए गए थे, जो इनके द्वारा गांधीजी के हत्या का कारण सुनने के बाद इनकी सजा को कम करना भी चाहते थे। लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री और अन्य लोगों ने इसे खारिज कर दिया और फिर अंत में नाथूराम गोडसे को फांसी हो गई।

आज के इस लेख में हम नाथूराम गोडसे के जीवन परिचय जानेंगे। यदि आप भी उस इनके बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

नाथूराम गोडसे का जीवन परिचय (जन्म, शिक्षा, परिवार, विचारधारा, आन्दोलन, अंतिम बयान, मृत्यु)

नाथूराम गोडसे की जीवनी एक नजर में

नामनाथूराम गोडसे
पूरा नामनाथूराम विनायक राव गोडसे
जन्म19 मई 1910
जन्म स्थानबारामती, जिला पुणे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
पिता का नामविनायक वामनराव गोडसे
माता का नामलक्ष्मी गोडसे
भाई का नामगोपाल गोडसे (छोटा भाई)
पेशासामाजिक कार्यकर्ता
मृत्यु15 नवंबर 1949
मृत्यु स्थानअंबाला जेल, उत्तर पंजाब, भारत
मृत्यु का कारणगांधी जी की हत्या के कारण फांसी की सजा
राष्ट्रीयताहिंदू
उम्र40 साल
जातिब्राह्मण
समूहराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं हिंदू महासभा
राशिवृषभ
प्रसिद्ध किताबव्हाय ई किल्ड गांधी

नाथूराम गोडसे का प्रारंभिक जीवन

नाथूराम गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के बारामती गांव में हुआ था। नाथूराम गोडसे एक हिंदू परिवार से संबंध रखते थे, जो पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों को करने वाला एक ब्राह्मण परिवार था। जिस कारण नाथूराम गोडसे को शुरुआत से ही पूजा-पाठ, धार्मिक कार्यों में रुचि थी।

नाथूराम गोडसे के छोटे भाई का कहना था कि नाथूराम बचपन में ध्यान अवस्था में ऐसे ऐसे श्र्लोक बोला करते थे, जिसे वे कभी पढे भी नहीं होते थे, जो बहुत ही आश्चर्यजनक होता था। नाथूराम गोडसे के पिता का नाम विनायक वामनराव गोडसे था, जो गांव के एक पोस्ट ऑफिस में कर्मचारी थे। वहीं उनकी माता का नाम लक्ष्मी गोडसे था, जो ग्रहणी थी।

नाथूराम गोडसे के एक छोटे भाई भी थे, जिनका नाम गोपाल गोडसे था। वहीं इनकी एक बड़ी बहन भी थी, जिसका नाम के बारे में ज्ञात नहीं है। नाथूराम गोडसे का पहला नाम रामचंद्र था। हालांकि इनका नाम बाद में नाथूराम पड़ा, जिसके पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है।

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दरअसल इनकी माता ने तीन बेटे और एक बेटी को जन्म दिया था। लेकिन, तीनों बेटे की मृत्यु जन्म के पश्चात तुरंत हो गया था। बस केवल एक बेटी ही जीवित रही थी। जिसके बाद फिर जब नाथूराम इनकी माता के कोख में थे तब उन्हें इस बात का डर था कि कहीं नाथूराम की मृत्यु भी अन्य तीन बेटे की तरह ही ना हो जाए।

इसीलिए डर के मारे इनकी माता ने इनकी नाक में नथनी पहना दिया और इन्हें बेटी की तरह पालना शुरू कर दिया। जब नाथूराम गोडसे को लंबे समय तक कुछ नहीं हुआ तो उसके बाद फिर उनके माता को एक और पुत्र हुआ, जिसे उन्होंने बेटे की तरह ही पाला।

क्योंकि उन्हें विश्वास हो गया था कि किसी भी प्रकार का अपशगुन नहीं है। इसके बाद लंबे समय तक नाथूराम गोडसे के नाक में नथनी देखा गया। यही कारण है कि उनका नाम नाथूराम प्रख्यात हो गया।

नाथूराम गोडसे की शिक्षा एवं करियर

नाथूराम गोडसे बचपन से ही काफी बुद्धिमान बालक थे और शांत स्वभाव के थे। आगे बढ़ने और जीवन में सफलता पाने की चाव इनमें हमेशा से ही था। नाथूराम गोडसे ने अपने गांव के किसी स्थानीय स्कूल से पांचवी कक्षा तक पढ़ाई की उसके बाद उनके माता-पिता ने इन्हें इनके चाचा के साथ पुणे शहर भेज दिया ताकि वहां पर वे हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन कर सकें।

1930 में इनके पिता की बदली महाराष्ट्र के रत्नागिरी शहर में हो गई, जिसके बाद यह अपने माता-पिता के साथ रत्नागिरी हमेशा के लिए रहने के लिए चले गए। इसी दौरान नाथूराम गोडसे हिंदुत्व के समर्थक जिनका नाम वीर सावरकर था, उनसे मुलाकात हुई और राजनीति की ओर कदम बढ़ाने का फैसला लिया। उस समय तक नाथूराम गोडसे गांधी जी के विचारों से काफी ज्यादा प्रेरित थे और उन्हें अपना आदर्श भी मानते थे।

नाथूराम गोडसे का राजनीतिक करियर और आरएसएस में सदस्यता

नाथूराम गोडसे साल 1932 को आर एस एस में शामिल हुए, जहां पर वे एक साथ दोनों दक्षिणापंथी संगठनों के हिंदू महासभा के सदस्य के तौर पर रहे रहे। आर एस एस में रहते हुए अपने विचारों को जनसमूह तक फैलाने के लिए नाथूराम गोडसे अक्सर अखबारों में कई प्रकार के लेख लिखा करते थे।

इन्होंने बाबाराव सावरकर की एक पुस्तक राष्ट्र मीमांसा नाम के शिर्षक से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया था और इसी दौरान नाथूराम गोडसे ने एमएस गोवलकर जो बाद में आर एस एस के प्रमुख बने उनके साथ भी काम किया था। साल 1942 में नाथूराम गोडसे ने विजयादशमी के दिन अपना संगठन “हिंदू राष्ट्रीय दल” के नाम से स्थापित किया। हालांकि इस दौरान वे आर एस एस और हिंदू महासभा के सदस्य बने रहे थे।

भारत विभाजन के मुद्दे पर साल 1946 में नाथूराम गोडसे गांधी जी पर बहुत ही नाराज हुए और इन्होंने आर एस एस को छोड़ने और हिंदू महासभा में जाने का फैसला किया। हालांकि ऐतिहासिक रूप से इस बात की पुष्टि अभी तक नहीं हो पाई है।

क्योंकि साल 2020 में एक खबर प्रकाशित हुई, जिसमें पता चला था कि नाथूराम गोडसे अपने अंतिम दिनों तक भी आरएसएस के बैठकों के रिकॉर्ड में एक सदस्य के रूप में इनका नाम दर्ज किया गया है।

इसके अतिरिक्त इनके परिवार का भी कहना था कि नाथूराम गोडसे ने कभी आर एस एस को छोड़ा ही नहीं था। इन्होंने आर एस एस की सदस्यता बनाए रखने के साथ ही साथ हिंदू महासभा के भी सदस्य रहे।

हैदराबाद आन्दोलन आंदोलन में नाथूराम गोडसे की भूमिका

सन 1980 में हैदराबाद का शासक निजाम वहां रहने वाले हिंदुओं पर बलात जजिया कर लगा दिया, जिसका विरोध हिंदू महासभा ने किया। हिंदू सभा द्वारा विरोध करने के लिए उस समय के तत्कालीन अध्यक्ष विनायक दामोदर सावरकर के आदेश पर हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं का पहला गुट नाथूराम गोडसे के नेतृत्व में हैदराबाद भेजा गया और यहां पर निजाम के जजिया कर के निर्णय के विरुद्ध आंदोलन हुआ।

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वहां पर निजाम ने नाथूराम गोडसे को बंदी बना लिया और नाथूराम गोडसे को दंड भी दिया। लेकिन, वह हार नहीं माने और लगातार आंदोलन होता रहा, जिसके बाद निजाम हार मानकर अपने निर्णय को वापस ले लिया और नाथूराम गोडसे को रिहा कर दिया।

गाँधी जी की हत्या

जिस दिन गांधी जी की हत्या हुई थी, उसी दिन शाम को गांधीजी रोज की तरह प्रार्थना कर रहे थे और वह समय करीब 5:15 का था जब नाथूराम गोडसे ने वहां पर प्रवेश किया और गांधीजी के पास सीधे जाकर उनके सीने में 3 गोलियां दाग दी। कहा जाता है गांधी जी को गोली मारने के बाद भी नाथूराम गोडसे वहां से भागे नहीं बल्कि वहीं पर खड़े रहे और अपने आप को गिरफ्तारी दे दी।

हालांकि उनको अपने अपराध का कोई भी अफसोस नहीं था, उनके साथ छह अन्य साथियों को भी गिरफ्तार किया गया और घायल गांधीजी को तुरंत उनके कमरे में ले जाया गया। हालांकि तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वहां जाते ही उनकी मृत्यु हो गई।

गांधी जी की मृत्यु के बाद हिंदू महासभा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दोनों को अवैध घोषित कर उस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि आर एस एस का गांधीजी के हत्या में कोई लेना देना नहीं था, लेकिन फिर भी लोगों का दावा था कि आर एस एस राष्ट्रीय वाद का सहयोग करता है। ऐसे में निश्चित ही उसका भी गांधी जी की हत्या में हाथ है।

लेकिन बाद में इस बात की पुष्टि हो गई, जिसके बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आरएसएस पर लगे प्रतिबंध को 1949 में दोबारा हटा दिया और फिर से उस को वैध घोषित कर दिया। गांधी जी की मृत्यु के बाद देश में दंगे शुरू हो गए।

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हिंदू और मुस्लिमों के बीच काफी मारामारी हुई, महाराष्ट्र के सांगली और मेरा क्षेत्रों में काफी ज्यादा दंगे फैले। यहां तक कि ब्राह्मणों के घर को जला दिया गया। कुछ लोगों का मानना था कि गांधीजी की हत्या में भारत सरकार भी दोषी है और उनकी भी आलोचना की गई।

क्योंकि ऐसा माना था कि गांधी जी को मारने की कोशिश पहले भी की गई थी, लेकिन सरकार द्वारा कोई भी एक्शन नहीं लिया गया था। इस कारण गांधी जी की इस बार हत्या हो गई।

किस पिस्तौल से गाँधी जी को मारा गया था?

नाथूराम गोडसे ने गांधीजी को जिस पिस्तौल से हत्या की थी, वह पिस्तौल उनके पास आई कैसे यह भी प्रश्न उठता है। दरअसल नाथूराम गोडसे गांधी जी को मारने के उद्देश्य से पुणे से दिल्ली आ रहे थे तो वहां पर वे पाकिस्तान से आए हिंदू और सिख शरणार्थियों के शिविर में घूम रहे थे।

उसी समय उनको एक शरणार्थी के पास पिस्तौल दिखा, उन्होंने इतावली कंपनी की बरोटा पिस्तौल को उस शरणार्थी से खरीद लिया और उसी पिस्तौल से नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की थी। हालांकि बाद में नाथूराम गोडसे पर अवैध पिस्तौल रखने का भी केस दर्ज किया गया।

नाथूराम गोडसे की मृत्यु

नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी जी की हत्या के बाद 27 मई 1948 को केस की कार्यवाही शुरू हुई। नाथूराम गोडसे ने कोई भी सफाई नहीं दी, उन्होंने खुले तौर पर अपना गुनाह स्वीकार किया कि उन्होंने गांधीजी की हत्या की। हालांकि उन्होंने अपने गुनाह को स्वीकार कर लिया था। फिर भी इनके केस को कम से कम 1 साल तक से ज्यादा समय लग गया अंतिम रूप देने में।

फिर 8 नवंबर 1950 को अंतिम फैसला आया, जिसमें नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर को फांसी देने की सजा सुनाई गई। इसी के साथ इनके दोस्त नारायण आप्ते को भी मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। यही नहीं बल्कि हिंदू महासभा के सदस्य सावरकर पर भी इस अपराध में शामिल होने का आरोप लगाया गया था। लेकिन बाद में इस को खारिज कर दिया गया।

जानकारी के लिए बता दें कि जब नाथूराम गोडसे जेल में थे तब गांधीजी के दो पुत्र मणिलाल गांधी और रामदास गांधी नाथूराम गोडसे से मिलने के लिए गए थे, जहां पर उन्होंने गांधी जी की हत्या का कारण पूछा था। वहां पर नाथूराम गोडसे ने गांधी जी के दोनों पुत्रों को सांत्वना दी और यह भी कहा कि उन्हें बिल्कुल भी अफसोस नहीं है, उनके पिता की हत्या पर।

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क्योंकि वे ऐसा नहीं करते तो हिन्दूओ के साथ बहुत बुरा होता। जिसके बाद मणिलाल गांधी और रामदास गांधी ने नाथूराम गोडसे की सजा को कम करने के लिए निवेदन भी किया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और उप प्रधानमंत्री वल्लभभाई पटेल और गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने इस मंजूरी को खारिज कर दिया। जिसके बाद 15 नवंबर 1950 को नाथूराम गोडसे को फांसी पर लटका दिया गया।

नाथूराम गोडसे जब जेल में थे तो अपनी अंतिम इच्छा बताते हुए कहा था कि मेरे मृत्यु होने के बाद मेरी अस्तियों को विसर्जित ना किया जाए बल्कि इन अस्तियों को तब तक संभाल के रखा जाए जब तक भारत और पाकिस्तान फिर से एक ना हो जाए। भारत और पाकिस्तान एक हो जाएगा तो मेरी अस्तियों को सिंधु नदी में जो अभी वर्तमान पाकिस्तान में है, उसमें बहाई जाए।

नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या का कारण

नाथूराम गोडसे शुरुआत में गांधीजी का बहुत समर्थन करते थे। ऐसे में गांधीजी की हत्या उनके द्वारा होने पर यह निश्चित ही प्रश्न उत्पन्न होता है कि आखिर नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को क्यों मारा जब वे गांधी जी को एक आदर्श मानते थे?

नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या के कारण पर सफाया देते हुए 90 पेज का एक बयान दिया था और 5 घंटे तक लगातार उन्होंने गांधी जी को मारने की हर एक कारण की व्याख्या की थी। उन्हें गांधी जी की हत्या पर बिल्कुल भी अफसोस नहीं था।

जब वे जेल में थे तब उन्होंने व्हाय आई किल्ड गांधी शीर्षक नाम से एक पुस्तक भी लिखी थी, जिसमें उन्होंने गांधीजी के हत्या करने के कारण को स्पष्ट रूप से बताया था। लेकिन इस किताब के प्रकाशन पर रोक लगा दिया गया था।

गांधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे ने क्यों की थी, इसके कई सारे कारण थे। क्योंकि गांधीजी धीरे-धीरे हिंदुओं के साथ पक्षपात करना शुरू कर दिए थे और नाथूराम गोडसे निम्नलिखित गांधीजी के दोष जिक्र किए थे:

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13 अप्रैल 1919 को जनरल डायर द्वारा जलियांवाला बाग में गोली कांड करने के बाद हजारों-लाखों लोगों की जान चली गई थी, इसके बाद हर कोई जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मांग कर रहा था। लेकिन गांधीजी ने इस बात को मानने से मना कर दिया तो क्या यह बेसहारे लोगों के साथ अन्याय नहीं था, जो गांधीजी के कारण हुआ।

यही नहीं भगत सिंह को जब फांसी की सजा दी गई थी, उस वक्त भी हर कोई लोग गांधी जी की तरफ उम्मीद करके रखे थे कि शायद गांधी जी कुछ हस्तक्षेप डालकर देशभक्त भगत सिंह को बचा लेंगे और गांधीजी चाहते तो भगत सिंह को बचा भी लेते। लेकिन उन्होंने यह कहते हुए भगत सिंह के सजा को टालने से मना कर दिया कि भगतसिंह ने हिंसा को अनुचित ठहराया है।

यही नहीं महान प्रतापी महाराणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह जैसे देशभक्तों को गांधी जी ने अक्सर पथभ्रष्ट देशभक्त कहकर उनका अपमान किया है।

मोहम्मद अली जिन्ना जैसे राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को उन्होंने अनदेखा कर दिया और खिलाफत आंदोलन को शुरू कर दिया, जहां केरल में पंद्रह सौ हिंदुओं को मुसलमानों ने मार दिया और वहीँ 2000 हिंदुओं को मुसलमान बना दिया। क्या गांधीजी इसका विरोध नहीं कर सकते थे, लेकिन उन्होंने कुछ भी विरोध नहीं किया और उसे खुदा के बहादुर बंदों की बहादुरी के रूप में वर्णन कर दिया।

नाथूराम गोडसे का यह भी कहना था कि पाकिस्तान और भारत का विभाजन गांधीजी की इच्छा के कारण ही हुआ। गांधीजी ने ही मदद किया। क्योंकि मोहम्मद जिन्ना ने जब एक अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की मांग की तो गांधीजी इसका विरोध कर सकते थे।

आखिर जब मोहम्मद जिन्ना ने देश की स्वतंत्रता में योगदान दिया तो क्या भगत सिंह, चंद्रशेखर, सुभाष चंद्र बोस जैसे देशभक्त लोगों ने देश की आजादी में अपना कोई योगदान नहीं दिया था। वह चाहते तो वह भी एक अलग राज्य की मांग कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

लेकिन मोहम्मद जिन्ना ने एक अलग मुस्लिम देश की मांग की और गांधीजी ने उनका सहयोग किया। व्यक्तिगत तौर पर मुझे किसी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं है, लेकिन यही कहना चाहता हूं कि मौजूदा सरकार का सम्मान में नहीं करता क्योंकि उनकी नीतियां मुस्लिमों के पक्ष में थी, जो उस समय साफ तौर पर देखा जा सकता था और यह नीतियां केवल गांधी जी की मौजूदगी के चलते थी, जिसके कारण मजबूरन उनकी हत्या करनी पड़ी।

जिस व्यक्ति के कारण भारत देश का विभाजन हो गया और एक अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान का निर्माण हो गया, उस मोहम्मद अली जिन्ना को गांधी जी ने कायदे आजम की उपाधि दी थी।

1926 में आर्य समाज में  शुद्धि आंदोलन चलाने वाले स्वामी श्रद्धानंद पर अब्दुल नामक एक मुस्लिम व्यक्ति ने हत्या कर दी, यह जानने के बावजूद भी गांधी जी ने उस मुस्लिम व्यक्ति को अपना भाई कहा और उसके इस काम को सही माना तो क्या यह अनुचित नहीं है?

सरकारी खर्च पर दोबारा सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाना था और पंडित जवाहरलाल नेहरू मंत्रिमंडल के अध्यक्ष थे गांधी जी तो मंत्रिमंडल के सदस्य नहीं थे, उसके बावजूद भी उन्होंने इस प्रस्ताव को मना करवा दिया और वहीँ 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन पर बैठ कर मस्जिदों का पुनर्निर्माण करवाने का दबाव डाल रहे थे तो क्या यह हिंदुओं के साथ पक्षपात नहीं था?

गांधी जी ने बहुत जगह पर अपनी मनमानी की और पक्षपात दिखाया। लाहौर के कांग्रेस चुनाव में ज्यादातर राज्यों से वल्लभ भाई पटेल को सबसे ज्यादा वोट मिले, लेकिन ज्यादा बहुमत मिलने के बावजूद भी सरदार वल्लभभाई पटेल को उन्हें देश का प्रधानमंत्री ना बनाते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। लेकिन हर कोई गांधी जी को अपना आदर्श मानता था, जिस कारण किसी ने भी इनका विरोध नहीं किया।

गांधी जी ने एक बार कहा था कि भारत का विभाजन कभी नहीं हो सकता, भारत का विभाजन उनकी लाश पर ही होगा। लेकिन फिर भी जब 15 जून 1947 को दिल्ली में भारतीय आखिर कांग्रेस समिति में भारत के विभाजन का फैसला होने वाला था तो वहां पर गांधी जी ने फैसले का समर्थन कर दिया, जिस कारण देश का विभाजन हो गया। तो फिर आखिर उन्होंने अपने कथन पर अमल क्यों नहीं किया।

देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान से आए हिंदू लोग दिल्ली की खली मस्जिद में शरण लेने के लिए आए थे, लेकिन वहां पर गांधी जी ने बेसहारे हिंदुओं को शीतलहर में ठिठुरते हुए छोड़ दिया। उन्हें बाहर खदेड़ कर भगा दिया, जिसमें बुड्ढे स्त्री और बच्चे भी शामिल थे, उन्हें पूरी रात बाहर ठंड में बितानी पड़ी। क्या यह हिंदुओं के प्रति अन्याय और कठोर निर्दय अन्याय व्यवहार नहीं था।

हिंदुस्तान द्वारा पाकिस्तान को कुछ राशि दी जानी थी, लेकिन उसी समय 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। उस समय पाकिस्तान का जवाब देने के लिए हिंदुस्तान उसे राशि नहीं देती लेकिन गांधी जी ने राशि उन्हें देने के लिए मनाना शुरू कर दिया नहीं तो वे अनशन पर बैठ जाते।

इस तरह ना जाने कितने ही क्षणों में गांधी जी ने कितने ही क्षणों में मुसलमानों का सहयोग किया और हिंदुओं पर अन्याय किया?

नाथूराम गोडसे मंदिर

मध्यप्रदेश में नाथूराम गोडसे की एक मंदिर भी बनवाने का प्रयास किया जा रहा था, लेकिन प्रशासन ने इसे नामंजूरी दे दी। दरअसल साल 2014 में जब सत्ता में नरेंद्र मोदी आए तब हिंदू महासभा ने नाथूराम गोडसे को एक देशभक्त का सम्मान दिया और गोडसे के समर्थकों ने तो उनकी मृत्यु के दिन को बलिदान दिवस का नाम देने का भी प्रयास किया।‌

यही नहीं बल्कि नाथूराम गोडसे पर देशभक्त नाथुराम गोडसे नाम से एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई गई, जो 30 जनवरी 2015 को गांधी जी की पुण्यतिथि पर रिलीज किया गया।

FAQ

नाथूराम गोडसे का जन्म कब हुआ था?

19 मई 1910, बारामती, जिला पुणे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत

नाथूराम गोडसे का गोत्र क्या थी?

ब्राह्मण

नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या पर अपना अंतिम बयान क्या दिया था?

नाथूराम गोडसे ने अपना अंतिम बयान देते हुए कहा था कि वे गांधीजी का नतमस्तक होकर सम्मान करते हैं कि उन्होंने देश की सेवा की, लेकिन लोगों को धोखा देकर भारत के बंटवारे अपना समर्थन दिया और जिस देश के लिए हजारों स्वतंत्रता क्रांतिकारियों ने अपनी जान का बलिदान दे दिया, उनके बलिदान को उन्होंने अपमान किया। जिस कारण मैं उनके हत्या करने पर बिल्कुल भी अफसोस नहीं जाता रहा।

नाथूराम गोडसे को कितने साल की सजा दी गई थी?

नाथूराम गोडसे गांधी जी की हत्या करके भी वहां से भागे नहीं बल्कि वहीं पर खड़े रहे, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। कोर्ट में जब उन्हें पेश किया गया तो वहां पर उन्होंने सीधे तौर पर अपना बयान दे दिया और सब कुछ सच बता दिया, लेकिन इसके बावजूद भी उनका केश लगभग 1 साल से ज्यादा समय तक के लिए चला।

नाथूराम गोडसे के साथ और किन व्यक्तियों को फांसी दी गई थी?

गांधी जी की हत्या में नाथूराम गोडसे के साथ नारायण आप्ते का भी शामिल होने का आरोप लगा, इसके बाद नारायण आप्ते को भी फांसी की सजा सुनाई गई।

क्या गांधी जी के हत्या में आरएसएस का भी हाथ था?

शुरुआत में जब गांधी जी की हत्या हुई उस समय पूरे देश में दंगे फसाद शुरू हो गए और लोगों ने आर एस एस पर भी आरोप लगा दिया कि आर एस एस ने भी गांधी जी की हत्या में अपना समर्थन दिया, जिसके कारण उस समय आर एस एस पर प्रतिबंध लगा दिया गया और इस तरह उसे अवैध घोषित कर दिया। लेकिन बाद में इसकी पुष्टि की गई तो पता चला कि आर एस एस का गांधी जी के हत्या के केस में कोई भी हाथ नहीं था, जिसके बाद फिर से आर एस एस पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया।

नाथूराम गोडसे की अंतिम इच्छा क्या थी?

नाथूराम गोडसे ने अपने अंतिम इच्छा बताते हुए कहा था कि इनके मृत्यु के बाद इनके अस्तियों को जल में विसर्जित ना किया जाए बल्कि इनके अस्तियों को तब तक संभाल के रखा जाए जब तक भारत और पाकिस्तान दोबारा एक ना हो जाए और उसके बाद इनके अस्तियों को सिंधु नदी में विसर्जित किया जाए।

नाथूराम गोडसे की मृत्यु कब हुई?

15 नवंबर 1950 को नाथूराम गोडसे को फांसी पर लटका दिया गया।

नाथूराम गोडसे की मृत्यु कैसे हुई?

गांधी जी की हत्या के कारण फांसी की सजा।

निष्कर्ष

आज के लेख में हमने आपको बायोग्राफी ऑफ नाथूराम गोडसे बताई है, जो गांधीजी के हत्या के कारण ज्यादा जाने जाते हैं। इस लेख में हमने आपको नाथूराम गोडसे का प्रारंभिक जीवन, इनकी शिक्षा, इनका राजनीतिक सफर, आर एस एस और हिंदू महासभा के रूप में इनकी सदस्यता और फिर गांधीजी को मारने का कारण और इनके मृत्यु के बारे में बताया।

हमें उम्मीद है कि इस लेख के जरिए आपको नाथूराम गोडसे के जीवन संबंधित सारी जानकारी मिल गई होगी। यदि यह लेख आपको पसंद आई हो तो इसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हाट्सएप, टेलीग्राम, फेसबुक इत्यादि के जरिए अन्य लोगों के साथ जरुर शेयर करें। इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न या सुझाव हो तो कमेंट में लिख कर बता सकते हैं।

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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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