Valmiki ka Jivan Parichay: भारत में अनेक ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया और उन्होंने अनेकों रचनाएं लिखी परंतु उन सभी रचनाओं में से रामायण एक ऐसी रचना है, जो कि भारत के धार्मिक ग्रंथ के रूप में विकसित है। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की है।
यहां महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय (Maharishi Valmiki Biography in Hindi) जानेंगे। इस जीवन परिचय में वाल्मीकि का जन्म कब और कहां हुआ, पुराना नाम, जाति, जयंती, रामायण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली आदि के बारे में जानेंगे।
महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय (Valmiki ka Jivan Parichay)
नाम | महर्षि वाल्मीकि |
वास्तविक नाम | रत्नाकर |
अन्य नाम | ब्रह्मर्षि, आदिकवि, योगर्षि, महर्षि |
जन्म | अश्विन मास की पूर्णिमा |
पेशा | महाकवि (इससे पहले डाकू) |
पिता | प्रचेता (ब्रह्मा जी के पुत्र) |
शास्त्र | रामायण, अक्षर-लक्ष्य, योगवासिष्ठ |
महर्षि वाल्मीकि कौन थे?
महर्षि वाल्मीकि भारतीय इतिहास के ऋषि-मुनियों में सबसे प्रसिद्ध ऋषि हुए। इनका पालन पोषण भील जाति में हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि इनका पालन पोषण भले ही भील जाति में हुआ था परंतु वह भील जाति से संबंध नहीं रखते थे।
कुछ ग्रंथों के माध्यम से यह पता चलाता है कि महर्षि वाल्मीकि का जन्म अश्विन मास की पूर्णिमा को हुआ था। वास्तव में वाल्मीकि के पिता प्रचेता थे। महर्षि वाल्मीकि के पिता प्रचेता ब्रह्मा जी के पुत्र थे, ऐसा पुराणों में व्याख्यान देखने को मिलता है।
महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बाद से उन्हें बचपन में ही एक भीलनी के द्वारा चुरा लिया गया था, जिसके कारण इनका पालन-पोषण भील समाज में ही हुआ और यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि अपनी वास्तविकता पहचानने से पहले एक डाकू हुआ करते थे।
महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक घटनाएं
महर्षि वाल्मीकि के बचपन का नाम रत्नाकर था और इनका पालन-पोषण जंगल में ही हुआ था। इन्होंने अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए राहगीरों को अर्थात जंगल के रास्ते से आने जाने वाले लोगों को लूटते थे और यदि उनसे हाथापाई हो जाए तो यह उन्हें मार ही देते थे।
वह प्रतिदिन इसी घटना को दोहराते हुए और राहगीरों को लूटते थे। ऐसा करके उन्होंने अपने पाप का घड़ा लगभग भर ही लिया था।
कहा जाता है कि 1 दिन उसी जंगल से देवताओं के मुनि नारद गुजर रहे थे। तभी वहां पर रत्नाकर ने उन्हें देख लिया और तुरंत बंदी बना लिया। तब नारद मुनि ने रत्नाकर से पूछा कि यह पाप क्यों कर रहे हो?, रत्नाकर ने हंसते हुए जवाब दिया “अपने और अपने परिवार के जीवन यापन के लिए मैं यह काम करता हूं।”
रत्नाकर की आवाज सुनने के बाद नारद मुनि ने पुनः पूछा कि क्या जिस परिवार के लिए तुम यह सभी पाप किए जा रहे हो, वह परिवार तुम्हारे पापों के फल को वहन करेगा?
रत्नाकर ने मुनि नारद का सवाल सुनते ही तुरंत पूरे जोश में आ गया और कहा हां क्यों नहीं करेगा, मेरा परिवार मेरे पापों के फल को भी वहन करेगा। मेरा परिवार सदा मेरे साथ रहता है।
ऋषि नारद मुनि ने पुनः रत्नाकर से कहा कि तुम एक बार अपने परिवार वालों से भी तो पूछ लो। यदि वे तुम्हारे पापों के फल को वहन करने के लिए कहते हैं तो मैं तुम्हें हंसते-हंसते मेरा सारा धन दे दूंगा।
रत्नाकर तुरंत वहां से गुस्से से निकल गया और उसने अपने सभी परिवार वालों एवं मित्र जनों से यही सवाल पूछा। परंतु उसके किसी भी परिवार वाले ने या फिर उसके मित्रों ने इस बात के लिए हामी नहीं भरी।
अपने परिवार वालों और मित्रों की यह बात सुनकर रत्नाकर को बहुत ही बड़ा दुःख हुआ और वह वापस नारद मुनि के पास आया। नारद मुनि ने पूछा कि क्या तुम्हारे किसी भी परिवार वाले ने इसकी हामी भरी। तो रत्नाकर बोलता है नहीं।
पुराणों के अनुसार महर्षि ब्रह्मा के आज्ञा अनुसार श्री हरि नारद मुनि ने उन्हें उनके ज्ञान को पहचानने को कहा। परंतु इन्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा था, जिसके कारण नारद मुनि ने अपनी चतुराई से इन्हें मारने-पीटने जैसे शब्द से ही भगवान श्री राम का नाम लेने का सुझाव दिया।
नारद मुनि ने महर्षि वाल्मीकि को राम के नाम के स्थान पर मरा शब्द का उच्चारण बार-बार करने को कहा। नारद मुनि की आवाज सुनकर रत्नाकर ने घोर तपस्या करने की ठानी और मरा शब्द के उच्चारण से इन्होंने योग सिद्धि हासिल की।
महर्षि नारद ने इन्हें मरा शब्द का उच्चारण इसलिए करने को कहा। क्योंकि मरा शब्द को बार बार कहने पर राम का नाम सामने आता है। यही कारण है कि महर्षि वाल्मीकि ने अपनी घोर तपस्या को सफल किया और योग सिद्धि हासिल की।
इसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने अपनी तपस्या को पूरा किया और अपनी तपस्या के फलस्वरूप इन्होंने अपना नाम महर्षि वाल्मीकि एवं संस्कृत भाषा में भारत के सबसे सुसज्जित एवं पवित्र ग्रंथ महाभारत की रचना संस्कृत भाषा में पूरी की।
इस प्रकार से महर्षि वाल्मीकि ने अपने डाकू जीवन को त्यागा और भारत के महान रचयिता महर्षि वाल्मीकि के रूप में बदल गए।
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महर्षि वाल्मीकि को रामायण लिखने की प्रेरणा कैसे मिली थी?
जिस समय महर्षि वाल्मीकि अपने पुराने अवतार अर्थात डाकू के रूप में अपने पापों को आए दिन अंजाम देते जा रहे थे, उसी समय उन्होंने अपने इस जीवन को त्याग करके अपना एक नया रास्ता अपनाने की सोची।
परंतु इस नए रास्ते के बारे में उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं था। इसके बाद महर्षि वाल्मीकि ने नारद जी की सहायता से राम नाम का जप करके विशेष प्रसिद्धि हासिल की।
इन्होंने बड़े ही लंबे समय तक राम नाम का जप किया और राम नाम के जब मात्र से ही महर्षि वाल्मीकि ने अपनी अज्ञानता को दूर किया और विशेष सिद्धि हासिल की।
ऐसा भी कहा जाता है कि जिस समय महर्षि वाल्मीकि अपनी तपस्या में लीन थे, उस समय इनका शरीर बहुत ही ज्यादा दुर्बल हो गया था और पूरे शरीर पर चीटियां लग गई थी। पुराणों के अनुसार कहा गया है कि यही इनके जीवन में किए गए पापों का भोग था।
महर्षि वाल्मीकि ने अपने कठिन परिश्रम के बाद इनका नाम ब्रह्मदेव के द्वारा महर्षि वाल्मीकि रखा गया। महर्षि वाल्मीकि ने अपनी कठिन साधना के माध्यम से ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया और ब्रह्मदेव से ज्ञान प्राप्त किया।
इसके बाद इन्होंने रामायण लिखने का अपना कार्य शुरू किया और बाद में महर्षि वाल्मीकि ने संपूर्ण रामायण (जो कि भारत का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है) की रचना की।
महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखा गया सबसे पहला श्लोक
जिस समय महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना को शुरू किया था, उस समय इन्होंने एक बार अपनी तपस्या करने के लिए गंगा नदी पर भी गए थे।
जहां पर उन्होंने पास में ही नर पक्षी और मादा पक्षी को प्रेम करते हुए देखा था। तभी वहां पर एक शिकारी आता है और वह पक्षी की तीर मार कर हत्या कर देता है।
इस दृश्य को देखने के बाद महर्षि वाल्मीकि के मुख से स्वयं ही एक श्लोक बाहर निकला, जो निम्नवत् है:
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम शाश्वति समः।
यतक्रौंचमिथुनादेकम अवधी ही काममोहितम्।।
इस श्लोक का यह अर्थ है कि जिस किसी भी दुष्ट व्यक्ति ने यह आपराधिक कार्य किया है, उसे उसके जीवन में कभी भी सुख नहीं मिलेगा। उस दुष्ट व्यक्ति ने प्रेम में लिप्त पक्षी का वध किया है।
वाल्मीकि जयंती कब है 2023
2023 में 28 अक्टूबर वाल्मीकि जयंती मनाई जाएगी। महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास के पूर्णिमा को हुआ था और महर्षि वाल्मीकि ने ही इस संसार को संस्कृत भाषा का बोध कर आया।
क्योंकि इन्होंने ही सर्वप्रथम संस्कृत भाषा में श्लोक लिखा था और महर्षि वाल्मीकि के जन्म तिथि को ही हिंदी धर्म के कैलेंडर के अनुसार बाल्मीकि जयंती कहा जाता है।
निष्कर्ष
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