Biography of Madhvacharya in Hindi: नमस्कार दोस्तों, आज हम आप सभी लोगों को अपने महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से बताने वाले हैं, प्राचीन समय के बहुत ही महान एवं सर्वश्रेष्ठ दार्शनिकों में से एक दार्शनिक के विषय में। इन्हें लोगों के द्वारा तत्ववाद के प्रवर्तक और द्वैतवाद के नाम से भी जो जाना जाता है। इन्हें द्वैतवाद एवं वेदांत की प्रमुख 3 दर्शनों में एक स्थान दिया गया है।
अब आप समझ ही गए होंगे कि हम किसकी बात कर रहे हैं। जी हां, आप सभी लोगों ने बिल्कुल ही सही समझा। आज हम अपनी इस महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से बात करने वाले हैं, महान दार्शनिक मध्वाचार्य के विषय में। मध्वाचार्य अपने समय के बड़े ही जाने माने दार्शनिक कहे जा रहे थे। इतना ही नहीं मध्वाचार्य को वायु का तृतीय अवतार भी माना जाता है।
आज हम आप सभी लोगों को अपने इस महत्वपूर्ण लेख के माध्यम से बताने वाले हैं इतिहास के सुप्रसिद्ध दार्शनिक मध्वाचार्य के विषय में। मध्वाचार्य अपने अल्प आयु से ही वेद वेदांग ओं के विषय में अच्छी तरीके से जानते थे और इसके अच्छे ज्ञाता भी हुआ करते थे। इन्होंने अपने उम्र के बढ़ने के साथ-साथ सन्यास ग्रहण कर लिया।
आज आप सभी लोगों को हमारे द्वारा लिखे गए इस महत्वपूर्ण लेख में जानने को मिलेगा कि महर्षि मध्वाचार्य कौन थे? इनका जन्म कब हुआ था? मध्वाचार्य के द्वारा दिया गया प्रमुख सिद्धांत, मध्वाचार्य का प्रारंभिक जीवन, मधु आचार्य को प्राप्त शिक्षा, मध्वाचार्य का अद्वैतवाद सिद्धांत, मध्वाचार्य द्वारा लिखे गए धर्म ग्रंथ एवं साहित्य मध्वाचार्य का देवा अवतार, मध्वाचार्य जी ने किया था आठ माधव मठों की स्थापना, मध्वाचार्य के द्वारा स्थापित की गई मूर्तियां इत्यादि।
मध्वाचार्य का जीवन परिचय | Biography of Madhvacharya in Hindi
मध्वाचार्य के विषय में संक्षिप्त जानकारी
नाम | मध्वाचार्य |
बचपन का नाम | वासुदेव |
उपनाम | पूर्ण प्रजना, जग गुरु, आनंद तीर्थ |
जन्म | 1238 ईस्वी |
जन्म स्थान | पाजक, उडुपी कर्नाटक |
पिता | मध्यगेहा |
माता | वेद आवती |
गुरु | अच्युतप्रेक्ष |
सिद्धांत | द्वैतवाद सिद्धांत |
कार्य | उडुपी श्री कृष्ण मठ की स्थापना |
मृत्यु | 1327 ईस्वी |
मध्वाचार्य कौन है?
मध्वाचार्य जी प्राचीन समय के भक्ति आंदोलन के समय के सबसे प्रमुख दार्शनिक संत कहे जाते थे। इन्होंने हिंदू धर्म के उन सभी जटिल धर्म सूत्रों को सरल भाषा में लिखा, जिन्हें लोग आसानी से पढ़ नहीं सकते थे। इन्होंने भक्ति आंदोलन के कार्य क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया। इन्होंने हिंदू धर्म के जटिल सूत्रों को सरल भाषा में व्यक्त करके लोगों तक पहुंचाया और धर्म का पुनरुत्थान किया।
मध्वाचार्य जी के कथनानुसार इस संपूर्ण सृष्टि के रचयिता कोई और नहीं केवल भगवान विष्णु है। इनका ऐसा मानना था कि ब्रह्मा को भगवान विष्णु ने एक कमल की पंखुड़ी से जन्म दिया था और इसी कारण इनके राजस्थान को कमल का फूल माना जाता है। भगवान श्री हरि विष्णु ने ब्रह्मा को इस सृष्टि के निर्माण कार्य के लिए उत्पन्न किया था और इन्होंने ब्रह्मा के पक्ष में सृष्टि के संचालन एवं सृष्टि के कार्यभार को सौंपा।
मध्वाचार्य इतने बड़े ज्ञाता थे कि इन्होंने महान ऋषि शंकराचार्य के द्वारा प्रतिपादित किए गए अद्वैतवाद सिद्धांत का विरोध किया और इन्होंने अद्वैतवाद सिद्धांत को गलत सिद्ध किया। इसके बाद उन्होंने अपना खुद का एक सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे वर्तमान समय में मध्वाचार्य का द्वैतवाद सिद्धांत कहा जाता है। इन्होंने द्वैतवाद की पूर्ण रूप से व्याख्या की और मधु आचार्य जी का यह तर्क था कि जीव और ब्रह्मा (आत्मा एवं विष्णु) दोनों अलग है।
मध्वाचार्य जी के कथन अनुसार आत्मा विष्णु के साथ केवल भक्ति के माध्यम से एक एकचित अर्थात जुड़ सकती है ना की किसी अन्य माध्यम से। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आत्मा से परमात्मा का मिलन करना है तो हमें निस्वार्थ भाव से परमात्मा में खो जाना चाहिए और सन्यास ग्रहण करने के बाद ही कोई व्यक्ति परमात्मा का पूर्ण रुप से ध्यान कर पाएगा और परमात्मा की प्राप्ति उसे तभी होगी जब वह निस्वार्थ रूप से परमात्मा को याद करेगा।
मध्वाचार्य जी के द्वारा प्रतिपादित किए गए इस द्वैतवाद सिद्धांत को हिंदू वैष्णव संप्रदाय के लोगों के द्वारा स्वीकार किया जाता है और पूर्ण रूप से इस सिद्धांत पर अमल भी किया जाता है। मधु आचार्य जी के द्वारा लिखित द्वैतवाद सिद्धांत को इन लोगों के द्वारा इसलिए स्वीकार किया गया, क्योंकि यह एक ऐसा सिद्धांत था जो कि जनसाधारण को भी आसानी से समझ में आ जाता था।
मध्वाचार्य का जन्म
आइए हम सभी लोग जानकारी प्राप्त करते हैं मध्वाचार्य जी के जन्म के विषय में। मध्वाचार्य के विषय में कोई विशेष मत अब तक प्रस्तुत नहीं हुआ है और ना कोई ऐसा प्रमाण मिला है, जिससे कि सिद्ध हो सके की मध्वाचार्य का जन्म इसी समय में हुआ था। मध्वाचार्य कोई पुख्ता जानकारी प्राप्त नहीं है, परंतु अनेक इतिहासकार के माध्यम से बताया जाता है कि इनका जन्म 1238 ईस्वी में हुआ था।
वहीं इसके विपरीत बहुत से ऐतिहासिक जानकारों ने इस तर्क को गलत बताया और इन्होंने इनके जीवन काल अर्थात इनके जन्म को एक 1199 ईसवी के मध्य बताया। अनेकों वैज्ञानिकों के माध्यम से बताया जाता है कि इनका जन्म इस तिथि को हुआ था। परंतु उनके जन्म के विषय में कोई पुख्ता जानकारी ना होने के कारण इनके जन्म को 1238 ईस्वी में माना जाता है। परंतु यह पूर्ण रूप से सच है कि मध्वाचार्य जी का जन्म कर्नाटक राज्य के उड़ूपी शहर के पास स्थित पजाक नामक एक स्थान पर हुआ था।
मध्वाचार्य का पारिवारिक संबंध
मध्वाचार्य जी का पारिवारिक संबंध बहुत ही अच्छा था। इनके माता-पिता इनसे बहुत ही ज्यादा प्यार करते थे और इन्होंने अपने माता-पिता के द्वारा ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। भद्राचार्य जी एक तुलु वैष्णव ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते हैं। इनके जन्म के बाद इनके पिताजी के द्वारा इनका नाम वासुदेव रखा गया था, परंतु उन्होंने बाद में अपना नाम बदलकर मध्वाचार्य रखा।
मध्वाचार्य जी के पिता का नाम मध्यगेह तथा इनके माता का नाम वेदावती है। इस विषय में कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं है कि इनके माता-पिता आखिर करते क्या थे। इनके पिता एक बात ब्राह्मण थे। इन्होंने अपने पिताजी से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा अर्थात ज्ञान की प्राप्ति की इनके पिता तथा माता के द्वारा इन्हें सदैव प्रोत्साहन दिया गया। अतः वर्तमान समय में मृत्यु के बाद भी इनका नाम अमर है।
मध्वाचार्य को प्राप्त शिक्षा
मध्वाचार्य जी ने अपने उपनयन संस्कार के बाद प्रारंभिक शिक्षा लेना शुरू किया। मध्वाचार्य जी को अपनी किशोरावस्था से ही सन्यास ग्रहण करने का एक अलग ही रूचि उत्पन्न हुई और उन्होंने अपनी किशोरावस्था में ही सन्यास धारण कर लिया। सन्यास लेने के बाद इन्होंने गुजरात में स्थित एक अद्वैतवाद सिद्धांत पर आधारित मठ में प्रवेश ले लिया।
यहां से इन्होंने औचित्यप्रेक्षा जी के द्वारा शिक्षा प्राप्त की और इन्होंने औचित्यप्रेक्षा को ही अपना गुरु माना और औचित्यप्रेक्षा जी ने भी इन्हें अपने शिक्षक के रूप में स्वीकार किया। यहां से मध्वाचार्य जी ने अद्वैतवाद की शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। परंतु मध्वाचार्य जी इस अद्वैतबाद शिक्षा से सहमत नहीं थे। क्योंकि मध्वाचार्य जी के लिए इनकी विचारधारा और अनुभव के आधार पर अद्वैतवाद का सिद्धांत इन के लिए व्यवहारिक नहीं था।
मध्वाचार्य जी ने इसी को लेकर अपने गुरु से सदैव वाद विवाद करते रहते थे और इसी कारण मध्वाचार्य जी का इनके गुरु के साथ सदैव वाद विवाद रहता था। बाद में इन्होंने इस्मठ को छोड़ने का फैसला कर लिया और स्वार्थ को छोड़कर चले गए मर छोड़ने के बाद मध्वाचार्य जी ने अपने सिद्धांत द्वैतवाद का प्रचार प्रसार करना शुरू किया।
मध्वाचार्य जी ने अपनी एक द्वैतवाद मठ की स्थापना करने की सोची और इन्होंने इस मठ की स्थापना की। मधु आचार्य जी के द्वारा स्थापित किए गए इसी मठ के माध्यम से उनके बहुत से शिष्य बने जैसे कि जय तीर्थ, वादी राजा तीर्थ, राघवेंद्र तीर्थ और व्यास तीर्थ ने मिलकर द्वैतवाद के सिद्धांत का प्रचार प्रसार करना शुरू किया।
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मध्वाचार्य जी का प्रारंभिक जीवन
मध्वाचार्य जी ने अपने जीवन में अनेकों प्रकार के कठिनाइयों का सामना किया और जीवन के अनेकों सफर में कई नामों से जाने गए। भद्राचार्य जी को किशोरावस्था से ही सन्यास दीक्षा के समय ही पूर्ण प्रजना के नाम से जाना जाने लगा। इतना ही नहीं मत दो सारे जीजा अपने मठ के प्रमुख महंत बने थे तब इन्हें आनंद तीर्थ के नाम से जाना गया।
मध्वाचार्य का जीवन शुरुआत में कुछ विशेष परिस्थितियों से होकर गुजरा है और इन्होंने अपने किशोरावस्था में ही संयास ले लिया था और इसके बाद इन्होंने अद्वैतवाद सिद्धांत पर आधारित एक मठ में प्रवेश लिया और बाद में इसी सिद्धांत का विरोध किया ना केवल इन्होंने इस सिद्धांत को गलत ठहराया बल्कि यह सिद्ध भी किया। इन्होंने अपना एक नया सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसे उन्होंने द्वैतवाद सिद्धांत कहा।
मध्वाचार्य के द्वारा दिए गए प्रमुख सिद्धांत
मध्वाचार्य जी के कथना अनुसार ब्रह्मा विशेष और सगुण है। ब्रह्मा जी को ही भगवान विष्णु या नारायण का रूप कहा जाता है, अर्थात भगवान विष्णु का ही एक रूप ब्रह्मा है। ब्रह्मा जी निरपेक्ष सत् सर्वगुण संपन्न परम तत्व है। ब्रह्मा जी को ही परब्रह्म, नारायण, परमेश्वर, वासुदेव, परमात्मा, ईश्वर, हरि, विष्णु आदि नामों से जाना जाता है।
श्री हरि विष्णु एक चैतन्य स्वरूप है, परंतु निर्गुण नहीं। जगत को नियमित करने वाले अर्थात जगत का उत्पन्न करने वाले श्री हरि विष्णु है। ब्रह्मा अपनी इच्छा से जगत का सृजन करते हैं। ब्रह्मा उपादान कारण नहीं है। जिस प्रकार प्रकाश एवं अंधकार एक साथ नहीं रह सकते। ठीक उसी प्रकार सच्चिदानंद ब्रह्मा का अविधा से प्रभावित होना असंगत है। यह रविदास शत है तो अद्वैत सिद्धांत गलत है और यदि अद्वैत असत है तो उसका कुछ भी प्रभाव कैसे पड़ सकता है।
अद्वैतवाद सिद्धांत क्या था?
अद्वैत का यह सिद्धांत आदिकवि शंकराचार्य जी के द्वारा सातवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य दिया गया था। शंकराचार्य जी निश्चित दांत में कहा है कि मनुष्य आत्मा और परमात्मा में कोई भी अंतर नहीं होता दोनों ही एक ही स्वरुप होते हैं। इस संसार में कुछ भी सत्य नहीं है सब कुछ मिथ्या है और यह सब कुछ स्वप्न के समान है।
मध्वाचार्य जी के द्वारा स्थापित किए गए मठ
मध्वाचार्य जी ने उड़ती में एक नहीं दो नहीं कुल 8 मठों की स्थापना की। भद्राचार्य जी ने इन 8 मठों के बीच में अनंतेश्वरा कृष्ण हिंदू मंदिर की स्थापना भी की है। मध्वाचार्य जी के द्वारा स्थापित किए गए 8 मठों के नाम नीचे निम्नलिखित रूप से दर्शाए गए हैं।
- अदामारू मठ
- पाली मारू मठ
- पुत्तीजे मठ
- कृष्णपुरा मठ
- शिरूर मठ
- पेजावर मठ
- कनियुरू मठ
- सोधे मठ
मध्वाचार्य जी के द्वारा स्थापित की गई मूर्तियां
मध्वाचार्य जी ने अनेकों मूर्तियों की स्थापना की और इन्होंने मूर्तियों की स्थापना करने के साथ-साथ अनेकों प्रकार की योग सिद्धियां प्राप्त की। मध्वाचार्य जी ने अपने जीवन में अनेकों बार समय-समय पर देवी देवताओं को प्रकट भी किया। मध्वाचार्य जी ने अनेकों मूर्तियों की स्थापना की और इनके द्वारा प्रतिष्ठित विग्रह वर्तमान समय में आज भी विद्यमान हैं।
- सुब्रह्मण्य
- उडुपी मठ की स्थापना
- भगवान श्री हरि विष्णु की मूर्ति की स्थापना
मध्वाचार्य जी के द्वारा लिखा गया विशेष धर्म ग्रंथ एवं साहित्य
मध्वाचार्य जी के द्वारा अनेकों प्रकार के साहित्य ग्रंथ एवं धर्म ग्रंथ लिखे गए हैं, जिनका विवरण नीचे निम्नलिखित प्रकार से दर्शाया गया है:
- माधवा भाष्य
- द्वैतवाद (37 ग्रंथ)
- भगवत तात्पर्य निर्णय
- भागवत पुराण का अनुवाद
- गीता भाष्य
- भगवत गीता का अनुवाद
- ऋग्वेद के लगभग 40 लोग का अनुवाद
- विष्णु एवं उनके अवतारों पर श्लोक एवं कविताएं
- ब्रह्मसूत्र का अनुवाद
मध्वाचार्य को कहा जाता है वायु देवता का अवतार
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मध्वाचार्य जी को वायु देवता का तीसरा अवतार माना जाता है। उम्मीद करते हैं कि आपको पता ही होगा कि वह देवता का पहला एवं दूसरा अवतार कौन था। यदि नहीं तो हम आपको बता देना चाहते हैं कि वायु देवता का पहला अवतार हनुमान (बजरंगबली) और दूसरा अवतार भीम को कहा जाता है। इन लोगों के बाद पवन देवता का तीसरा अवतार मध्वाचार्य को कहा जाता है।
ब्रह्म सूत्र पर लिखे गए भाष्य के अनुसार यह सभी बातें स्पष्ट हो चुकी है कि मध्वाचार्य जी द्वैतवाद के अनुयाई के मध्य का एक माध्यम रहे हैं। मध्वाचार्य जी ने अपने तपस्या एवं अनेकों प्रयासों के बाद भगवान को अपने समक्ष प्रस्तुत कर लिया था और भगवान की पोस्ट करने के बाद उन्होंने द्वैतवाद सिद्धांत का प्रतिपादन किया और इन्होंने भगवान की अनेकों मूर्तियां बनवाई। इसी कारण मध्वाचार्य जी को वायु देवता का अवतार कहा जाता है।
निष्कर्ष
हम आप सभी लोगों से उम्मीद करते हैं कि आप सभी लोगों को हमारे द्वारा लिखा गया यह महत्वपूर्ण लेख “मध्वाचार्य का जीवन परिचय (Biography of Madhvacharya in Hindi)” अवश्य ही पसंद आया होगा। यदि आपको यह लेख वाकई में पसंद आया हो तो कृपया इसे शेयर करें। यदि आपके मन में इस लेख को लेकर किसी भी प्रकार का कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में अवश्य बताएं।
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