अनुच्छेद-लेखन क्या हैं? (विशेषताएं और उदाहरण) | Anuched Lekhan | Paragraph Writing
अनुच्छेद लेखन क्या है?
किसी विषय या विषय-वस्तु पर संक्षेप में कुछ इस तरह उसका वर्णन करना कि उसके अर्थ स्पष्ट हो, उसे अनुच्छेद कहते है। इसमें केवल एक विषय पर ही लिखते है, विषय से बाहर का कुछ भी इसमें इसमें नही जोड़ा जाता है। यह स्वयं में ही इतनी पूर्ण और स्वतंत्र रचना है कि इसे निबंध का सुक्ष्म रूप भी कह सकते है अथवा लघु निबंध भी मान सकते है। अंग्रेजी भाषा में इसको paragraph writing बोलते हैं।
“किसी भी भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए जो सम्बद्ध और लघु वाक्य-समूह लिखा जाता है, वह अनुच्छेद-लेखन कहलाता हैं।”
अनुच्छेद लेखन में विषय-वस्तु से जुड़ी हुई चीजों को इस स्तर से वर्णित करते है कि वह बिलकुल सटीक संतुलित तथा पूर्ण होती हैं, अनुच्छेद के लेखन में विषय को आवश्यकता के अनुसार ही रूप देना चाहिए अर्थात बिना जरूरत के अत्यधिक विस्तारित रूप नही होना चाहिए। इसमें विषय-वस्तु से जुड़े हुए सभी सकारात्मक पक्षों का लिखा जाना महत्वपूर्ण होता हैं, इसमें अनावश्यक विस्तार नही देना चाहिए। लिखे गए सभी वाक्य परस्पर एक दूसरे से जुड़ाव रखते हो, कुछ इस प्रकार अनुच्छेद लेखन होना चाहिए। अच्छे अनुच्छेद लेखन में कुछ मुख्य विचार होते हैं जो अनुच्छेद के अंत में बताए जाते है।
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अनुच्छेद लेखन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
- अच्छे अनुच्छेद लेखन में सर्वप्रथम रूपरेखा और संकेत बिंदु अवश्य बनाना चाहिए। (कुछ प्रश्न-पत्रों की रूप रेखा और सांकेतिक बिंदु पहले से तैयार होते है, लिखने वाले को चाहिए की वह उन रूप रेखाओं और बिंदुओं को ध्यान में रखकर ही अपना अनुच्छेद लेखन करें।)
- अनुच्छेद में एक विषय के एक पक्ष का वर्णन करना अति उत्तम होता हैं। (किसी भी विषय के दो पक्ष होते है एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक तो पहले ही यह विचार कर ले की कौन सा पक्ष लिखना है। यह इसीलिए भी आवश्यक हो जाता हुआ क्योंकि अनुच्छेद में लिखना और शब्दो की संख्या सीमित होती हैं।)
- लिखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अनुच्छेद की भाषा सरल तथा सुस्पष्ट हो और पढ़ने वाले को प्रभावशाली लगे ताकि समीक्षक प्रभावित हो। विराम चिन्ह और कौमा का प्रयोग आवश्यकतानुसार करना चाहिए।
- अनुच्छेद लेखन में कभी भी दोहराव की स्थिति भी होनी चाहिए। एक बात का जिक्र कई बार ना होकर एक बार ही हो तो अच्छा है, यदि अनुच्छेद में शब्दो का बार बार दोहराव होगा तो दिए गए सीमित शब्दो मे लिखने वाले का संदेश समीक्षक तक स्पष्ट रूप से नही पहुंच पाएगा।
- अनावश्यक रूप से लेखन का रूप विस्तृत नही होना चाहिए। लेकिन ऐसा भी न हो की विस्तृत और संक्षेप रूप के ध्यान में विषय से ही अलगाव हो जाए, यह ध्यान रखना होगा की अनुच्छेद का जो विषय है लेखन उसी पर हो।
- लिखते समय शब्दों की सीमित अवस्था को ध्यान में रखना आवश्यक है। एक अनुच्छेद में 100 से 120 शब्द लिखे जा सकते है। यदि शब्दो की समय सीमा को ध्यान में रखा जाएगा तो अनुच्छेद के अंदर महत्वपूर्ण बातें ही लिखी जाएंगी।
- लिखने वाले का अनुच्छेद एक रुप में होना चाहिए पढ़ते समय पाठक को ऐसा ना लगे कि वह किसी और अनुच्छेद को पढ़ते-पढ़ते दूसरे विषय पर पहुंच गया। ऐसे में पढ़ने वाले का ध्यान विषय से भटक सकता है।
- लिखते समय यदि विषय से संबंधित कोई सूक्ति अथवा कविता ध्यान में है तो उसे भी लिखा जा सकता है, इससे अनुच्छेद रोचक और प्रभावशाली होगा।
- अनुच्छेद को और अच्छा बनाने के लिए कुछ अंग्रेजी शब्दों जैसे टेलीविजन, कंप्यूटर, फोन जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
- अनुच्छेद की समाप्ति में उसके निष्कर्ष की स्पष्टता होनी चाहिए, पढ़ने वाला बिना किसी परेशानी की अनुच्छेद का निष्कर्ष समझ सके।
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अनुच्छेद की कुछ प्रमुख विशेषताएं
- अनुच्छेद लेखन में भावो या विचारो को एक बार में एक ही स्थान पर व्यक्त किया या लिखा जाता है। इसमें अन्य विषय के विचार नहीं रहते।
- अनुच्छेद के वाक्य-समूहो में उद्देश्यों की एकता होती है। बिना प्रसंग की बातों को निकाल दिया जाता है। केवल जो महत्वपूर्ण बाते है उन्हे ही अनुच्छेद में रखा जाता है।
- अनुच्छेद के सभी वाक्य एक-दूसरे से जुड़े हुए और संबंधित होते है। वाक्य छोटे तथा एक दुसरे से लगे हुए होते हैं।
- अनुच्छेद एक स्वतन्त्र और पूर्ण रचना है, जिसका कोई भी वाक्य बिना आवश्यकता के नहीं जुड़ा होता।
- उत्तम कोटि के अनुच्छेद-लेखन में विचारों को क्रम में रखा जाता है कि उनका आरम्भ, मध्य और अन्त आसानी से पता चल जाए और किसी पाठक को समझने में कोई दिक्कत न हो।
- अनुच्छेद सामान्यतः लघु रूप वाले होते है, किन्तु इसका संक्षेप या विस्तार रूप विषयवस्तु पर निर्भर रहता है। लेखन के संकेत बिंदु के अनुसार ही विषय वस्तु का क्रम तैयार होना चाहिए।
- अनुच्छेद की भाषा कठिन न होकर सरल और सुस्पष्ट होनी चाहिए।
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अनुच्छेद लेखन के उदाहरण
उदाहरण-1
परीक्षा के कठिन दिन
परीक्षा का नाम सुनते ही आंखों के सामने परीक्षा भवन का दृश्य नाच उठता है। परीक्षा जब पास आने लगती है, तब सभी विद्यार्थी मौज मस्ती भूलकर पढ़ाई में जुट जाते हैं। जो विद्यार्थी पूरे पूरे साल पढ़ाई करते नही दिखाई देते है वे भी इन दिनों जोर-शोर से पढ़ना प्रारंभ कर देते हैं। परीक्षा समीप आने से पहले ही यदि प्रतिदिन थोड़ी थोड़ी पढ़ाई कर ली जाए, तो इन दिनों इतनी कठिनाई का अनुभव नहीं होगा।
प्रश्न पत्र मिलने से पहले सभी विद्यार्थियों के मन में अजीब सी घबराहट होती है। प्रश्न पत्र हाथ में आते ही घबराहट लगभग दूर हो जाती है। परीक्षा के दिनों में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए पौष्टिक भोजन व आराम भी अत्यंत आवश्यक होता है। कुछ भी कहो चाहे छोटी उम्र का बालक हो या बड़ी उम्र का विद्यार्थी, परीक्षा के कठिन दिन बीत जाने पर सभी प्रसन्नता से नाच उठते हैं।
उदाहरण-2
पराधीनता में सुख नहीं
यदि पक्षी को पिंजरे में बंद रखकर उसे सभी सुख सुविधाएं दी जाए तब भी वह चहचहाना भूल जाता है। खुले आकाश में उन्मुक्त होकर उड़ान भरने में उसे जो सुख प्राप्त होता है वह सुख सोने के पिंजरे में बैठकर दाना चुगने से नहीं होता है। यही दशा पेड़ पौधों और मनुष्यों की भी है, यदि मनुष्य स्वतंत्र ना हो उस पर अनेक बंधन लगा दिए जाएं तो वह सुख सुविधा पाकर भी कभी प्रसन्न नहीं रह सकता।
कोई भी देश यदि स्वतंत्र नहीं है तो वहां के निवासी खुशहाल कैसे हो सकते हैं? सभी बंधन मुक्त स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं। क्योंकि स्वाधीनता की सूखी रोटी खाने में जो सुख मिलता है वह पराधीनता के पकवान वह ऐसो आराम से प्राप्त नहीं हो सकता इसीलिए किसी ने ठीक कहा है –
“पराधीन सपनेहुं सुख नाही।”
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उदाहरण-3
सूर्यास्त
प्रकृति विभिन्न रूपों में अपना सौंदर्य बिखेर कर इस धरती को संवारती रहती है, पूर्व दिशा से उदय हुआ सूर्य धीरे-धीरे पश्चिम दिशा की ओर बढ़ते हुए क्षितिज के उस पार अस्त हो जाता है। प्रकृति का यह नियम अद्भुत है। सूर्यास्त का दृश्य हृदय की गहराइयों में उतरकर आनंद अवस्था में पहुंचा देता है। सारा आकाश विभिन्न रंगों से रंग जाता है।
अस्त होते सूर्य की उजली, पीली और लाल किरणें नीले आकाश पर ऐसे ऐसे दृश्य उत्पन्न कर देती हैं, जैसे कोई मंझा व चित्रकार अपनी तूलिका से रंग बिखेर रहा हो। उजले प्रकाश से जगमगाता सूर्य धीरे -धीरे लाल और पीले रंग में परिवर्तित होकर क्षितिज की ओर से बढ़ता है, जैसे कोई गेंद लुढ़क रही हो।
मन चाहता है उस गेंद को आगे बढ़कर पकड़ ले। भला उसे पकड़ा जा सकता है और सूर्य क्षितिज का स्पर्श करते ही उसे अपने रंग में रंग लेता है। धीरे-धीरे सूर्य आंखों से ओझल हो जाता है और आकाश परछाई रंग सुरमई हो जाते हैं सांझ अपनी सांवली चादर ओढ़ कर आकाश पर विचरण करने आ जाता है।
उदाहरण-4
मैं नदी हूं
मैं नदी हूं। बचपन से ही पिता के लाड प्यार ने मुझे स्वच्छंदता की प्रवृत्ति दी है। मैं पिता की गोद से निकलकर कल-कल करती हुई अपनी ही गति से आगे चलती गई। चंद्र-सूर्य और तारों ने अपने उज्ज्वल प्रकाश से मुझे आगे के लिए रास्ता दिखाया। कभी कभी छोटे पत्थर मेरे रास्ते में आए मुझे रोकने का प्रयत्न किया लेकिन मेरे तेज वेग आगे कोई अधिक देर तक टिक न सका।
हिम शिखरों को पीछे छोड़ती हुई मैं, मैदानी समतल भागों से होती, अनेक गानों को हरा-भरा करती है। मैं विस्तृत और गहरी हो गई हूं। जब मुझ पर आक्रोश सवार होता है, तो मेरा विवेक नष्ट हो जाता है और मैं कंगारू को तोड़ती हुई, खेत खलिहान में घुस जाती हूं। मेरी अबाध गति के कारण लोग त्राहि-त्राहि करने लगते हैं। इसी तरह बिना रुके मैं अपनी मंजिल तय करती हुई समुद्र में जा मिलती हूं।
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उदाहरण-5
यदि मैं शिक्षक जाऊं
मानव मन कल्पनाओं का सागर है। मैंने भी अपने मन में शिक्षक बनने की कल्पना की है। यदि मैं शिक्षक बन जाऊंगा मुझे एक आदर्श विद्यालय बनाने के लिए कई कार्य करने होंगे। मेरा यह सपना है कि मेरा विद्यालय अन्य विद्यालयों की अपेक्षा सबसे श्रेष्ठ हो। मैं अपने विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की प्रतिभा को उभारने का पूरा प्रयास करूंगा।
विद्यालय में किताबी शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों की शिक्षा भी देने का प्रयास करूंगा। विद्यालय में खेलकूद, योग शिक्षा, सांस्कृतिक क्रियाकलापों पर भी विशेष ध्यान दूंगा। विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास के लिए समय-समय पर भाषण प्रतियोगिता वाद विवाद प्रतियोगिता गायन नृत्य आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन कर कराऊंगा। विद्यालय में अनुशासन का विशेष ध्यान रखूंगा। मेरा यह प्रयास रहेगा कि मेरे विद्यालय में पढ़ने वाले सभी छात्र अनुशासित और अच्छे नागरिक बने।
उदाहरण-6
सत्संगति
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है वह समाज में अपना जीवन यापन करता है, इसी कारण उसपर समाज का सबसे अधिक प्रभाव होता है। समाज में रहते हुए वह अच्छे बुरे हर तरह के लोगो से संपर्क में आता है। उसके व्यक्तित्व तथा आचरण पर बहुत हद तक उन्ही लोगो का प्रभाव दिखाई देता है, जिनकी संगति में वह रहता है संगति का प्रभाव मनुष्य पर बहुत अधिक पड़ता है।
जन्म से ही कोई अच्छा या कोई बुरा नहीं होता है जबतक उसका संपर्क श्रेष्ठ लोगो से होता है, उसमें सद्गुणों की वृद्धि होती है, बुरे लोगों की संगति उसे विनाश और पतन की ओर ले जाती है, पारस के संपर्क में आने से जिस प्रकार लोहा भी सोना बन जाता है, उसी प्रकार अच्छे मनुष्य की संगति में बुरे से बुरे आदमी भी सुधर जाता है। इसलिए यथासंभव कुसंगति से बचकर सत्संगति में रहने का प्रयास करना चाहिए।
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उदाहरण-7
भारतीय साहित्य और संस्कृति
साहित्य और संस्कृति का एक दूसरे से बहुत गहरा सम्बन्ध होता है। यह दोनों एक दूसरे के पूरक होते है। किसी भी देश अथवा जाति की सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक परिस्थितियों एवं रीति रिवाजो का उल्लेख तत्कालीन साहित्य में किया जाता है। अतः साहित्य से ही किसी देश अथवा जाति की संस्कृति का पूरा ज्ञान संभव है, संस्कृति की रक्षा भी साहित्य के द्वारा होती है।
दूसरे शब्दों में संस्कृति को भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने, उसे मूर्त रूप देने या जीवित रखने का काम साहित्य का ही है। भारतीय साहित्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति का उल्लेख मिलता है तभी आज हम भारतीय संस्कृति के बारे में जानते है, भारत विविधताओं का देश है, यहां विभिन्न धर्मो, जातियों और भाषाओ में एकता और सामंजस्य।
उदाहरण-8
समय का महत्त्व
समय निरंतर बीतता रहता है, समय किसी के लिए नहीं रुकता, जो मनुष्य समय का महत्व समझते है वे ही अपने जीवन में उन्नति को प्राप्त करते है। समय के बीत जाने के पश्चात् कभी भी किये गए कार्यो में सफलता नहीं मिलती और
पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं आता जो विद्यार्थी सुबह समय पर उठते है।
अपने दैनिक कार्यो को समय पर करते है और समय पर ही सोते है। वही आगे चलकर सफलता और उन्नति को प्राप्त करते है, जो व्यक्ति आलस में आकर समय गँवा देते है उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। संतकवि कबीर दास जी ने भी कहा है:
“काल करे सो आज करो, आज करे सो अभी।
पल में परलै होएगी, बहुरि करोगे कब।”
समय का एक एक पल बहुत मूल्यवान होता है और बीता हुआ पल कभी लौटकर नहीं आता, इसीलिए समय का महत्व पहचानकर प्रत्येक विद्यार्थी को नियमित रूप से पढाई करनी चाहिए और लक्ष्यों की प्राप्ति की तरफ अपने कदम बढ़ाने चाहिए। जो समय बीत गया उस पर वर्तमान समयन बर्बाद कर आगे की सुधि लेना ही बुद्धिमान मनुष्यो की पहचान है।
भारतीय साहित्य के अध्ययन से पता चलता है कि उसके साहित्य और संस्कृति में समन्वय की भावना प्रमुख है तथा उनमें सांस्कृतिक आदर्श एवं विशेषता विविध रूपों और परिस्थितियों के अनुरूप है।
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उदाहरण-9
कोरोना – एक वैश्विक महामारी
हम सभी जानते है इस समय विश्व एक बुरे दौर से गुजर रहा है, कोरोना नामक फैले वायरस ने सबका जीना दूभर कर रखा है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया है। दुनिया में ऐसा कोई भी देश नहीं बचा है जो इस वायरस के प्रभाव से अछूता हो। कोरोना चीन कर वुहान शहर की देन है। यही से इस बीमारी की शुरुआत हुई, 2019 के दिसंबर माह से, इस कारण इसे COVID-19 या Corona Virus Disease -19 कहा जानें लगा।
इसका आकार एक सामान्य मनुष्य के बालों के आकार से भी लगभग 900 गुना सूक्ष्म है। लेकिन इसका प्रभाव इतना भयानक है कि ना जाने कितने लाख लोगों की इसी कोरोना वायरस के चलते मृत्यु हो गई। एक मनुष्य के दूसरे मनुष्य से संपर्क में आने से होता है। यदि एक कोरोना वायरस पीड़ित मनुष्य किसी दूसरे सामान्य मनुष्य को छू ले अथवा पीड़ित द्वारा छुई गई। किसी सतह को भी यदि सामान्य मनुष्य छू ले तो वह भी पीड़ित हो जाएगा। इसी कारण यह विश्व में बहुत तेजी से फैला है।
यह वायरस पूरी दुनिया को आश्चर्य में डाल देने वाला वायरस है। इसके लक्षण बहुत ही सामान्य है, जैसे सर्दी, खांसी, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ यह सीधा मनुष्य के फेफड़ों को नुकसान पहुंचाती है। इसके बचाव के लिए अभी दुनिया के पास कोई ठोस टीका या वैक्सीन नहीं है। इसीलिए स्वयं की सावधानी ही इस बीमारी से बचने का सबसे बड़ा उपाय है।
पीड़ितों के संपर्क में आने से बचना, मास्क पहनना, भीड़भाड़ वाले इलाकों से बच के रहना, किसी सामाजिक कार्यक्रम या समारोह से दूरी बनाए रखना ये इस बीमारी से बचे रहने के आसान तरीके हैं और यदि किसी व्यक्ति में सामान्य लक्षण भी दिखे तो तुरंत डॉक्टर से इलाज कराएं।
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उदाहरण-10
लॉकडाउन
कोरोना वायरस का संक्रमण पूरे विश्व में इतनी तेजी फैला है कि कोई दवा या वैक्सीन उपलब्ध न होने के कारण इस वायरस से बचने का तरीका सिर्फ और सिर्फ सोशल डिस्टेंसिग यानी सामाजिक दूरी है। इसीलिए मानव हित में उनकी जान की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत (25 मार्च 2020) और साथ ही विश्व के कई देशों ने पूर्णत लॉकडाउन यानी पूर्ण तालाबंदी की घोषित कर दी है। लॉकडाउन की व्यवस्था का प्रयोग तब किया जाता है जब किसी भी देश में कोई भयंकर आपदा या बड़ी महामारी फैली हो ताकि आम जनता की जान की सुरक्षा हो सके।
लॉकडाउन के समय बाजारों, स्कूलों, कॉलेजो, दफ्तरों, सार्वजनिक स्थल और शॉपिंग मॉल तथा सभी धार्मिक स्थल, शादी-ब्याह जैसे सार्वजनिक कार्यक्रम पर पूर्णतः पाबंदी होती हैं। सिर्फ दवाइयों और खाने-पीने की जरूरी चीजों के लिए ही दुकानें खुली होती है ताकि आम लोगों की जो मूलभूत आवश्यकताएं हैं, उसमें विघ्न न हो उसे पूरा किया जा सके।
लॉकडाउन लगाने का प्रमुख कारण है लोग एक दूसरें से मिलते जुलते या बाहर आते जाते है वह कम हो सके। सार्वजनिक स्थलों पर सिनेमा हॉल जहां भी लोगों की ज्यादा भीड़ होती है, वह भीड़ ना हो सभी लोग अपने घरों के अंदर रहे, जिससे वे कोरोना से बच सकें। इस लॉकडाउन से मनुष्य का भला तो हुआ ही है साथ ही प्रकृति में भी अनेक फायदे देखे गए हैं।
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