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अनंत चतुर्दशी व्रत कथा

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा | Anant Chaturdashi Vrat Katha

यह कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को वनवास काल में सुनाई। भगवान कृष्ण बोले “हे युधिष्ठिर यदि तुम अनंत चतुर्दशी का व्रत पूर्ण विधि-विधान पूर्वक करते हो तो तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और तुम्हें अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त हो जायेगा।

Anant Chaturdashi Vrat Katha
Images:- Anant Chaturdashi Vrat Katha

प्राचीन काल की बात है हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में सुमंत नाम का एक तपस्वी ब्राह्मण रहता था। जिसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। उनकी एक पुत्री थी वह पुत्री रूपवती एवं ज्योतिर्मयी कन्या थी जिसका नाम सुशीला था। सुशीला के बाल्यकाल में ही उसकी माता दीक्षा की मत्यु हो गई। कुछ समय पश्चात सुशीला के पिता ने कर्कशा नामक स्त्री से विवाह कर लिया।

अब सुशीला विवाह योग्य हो चुकी थी। सुशीला का विवाह उसके पिता सुमंत ने ऋषि कौंडिन्य के साथ कर दिया। जब विदाई के समय कुछ उपहार देने की बात आई तो कर्कशा ने ऋषि कौंडिन्य के साथ कुछ पत्थर बांध दिए। ऋषि कौंडिन्य दुखी होकर अपनी पत्नी के साथ अपने आश्रम की ओर चला दिए।

रास्ते में ही संध्या हो गई तो ऋषि ने नदी तट पर रात्रि विश्राम के लिए रुक गए। वहा सुशीला ने देखा की कुछ औरतें नए वस्त्र धारण करके कोई पूजा कर रही थी। सुशीला उनके पास गई और उस पूजा के बारे में पूछा, औरतों ने सुशीला को अनंत चतुर्दशी व्रत की कथा का महत्व और पूजन विधि बताई।

सुशीला ने वही बैठ कर उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला सूत का धागा गले में पहन के ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई। जब ऋषि ने उस धागे के बारे में पूछा तो सुशीला ने सारी बात बता दी। ऋषि ने उस धागे को तोड़कर अग्नि में जला दिया जिससे भगवान अनंत जी का अपमान हुआ।

इसके परिणाम स्वरूप उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई उन्हें बहुत ही दुख दर्द में अपना जीवन यापन करना पड़ रहा था। एक शाम ऋषि ने अपनी पत्नी सुशीला से इस दरिद्रता का कारण पूछा तो सुशीला ने बताया कि प्राणनाथ जो आपने भगवान अनंत का धागा तोड़कर अग्नि में जला दिया था उसी के कारण यह हुआ है।

अगले दिन सुबह ऋषि अनंत भगवान के धागे की खोज में जंगल की ओर निकल पड़े। कई दिनों तक ढूंढने पर वह नहीं मिला। अंत में ऋषि ढूंढते ढूंढते भूख प्यास के मारे रास्ते में ही गिर पड़े। तभी भगवान अनंत ऋषि के सामने प्रकट हुए और बोले “हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था

जिसके कारण तुम्हें इतना कष्ट भोगने पडे अब तुमने वापस पश्चाताप कर लिया है, मैं तुमसे प्रसन्न हूं। तुम यहां से अपने आश्रम चले जाओ और पूर्ण विधि विधान पूर्वक अनंत चतुर्दशी का व्रत चौदह वर्ष तक करो जिससे तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।” भगवान अनंत की बात मान कर ऋषि कौंडिन्य ने ऐसा ही किया तो उनके सभी कष्ट दूर हो गए।

श्री कृष्ण के कहने पर युधिष्ठिर ने भी अनंत चतुर्दशी का व्रत पूर्ण विधि-विधान पूर्वक किया। जिसके प्रभाव से महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजय प्राप्त हुई और उन्होंने जीवन पर्यंत राज किया।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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