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अमरनाथ यात्रा का इतिहास और सम्पूर्ण जानकारी

Amarnath ki Yatra in Hindi: अमरनाथ की गुफा जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर हिमालय पर्वत श्रेणी में समुद्र तल से 3978 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भारतीय हिंदू धर्म के लोगों के लिए यात्रा इतनी महत्वपूर्ण है कि वे इतनी ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा में मौजूद शिवलिंग को देखने के लिए दो-तीन किलोमीटर की पैदल की चढ़ाई करते हैं।

हर साल लगभग जून महीने में अमरनाथ की यात्रा शुरू होती है और लगभग 40 से 45 दिनों तक की यह यात्रा चलती है। अमरनाथ की यात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होती है और सावन महीने तक चलती है। इस यात्रा में भाग लेने के लिए आवेदन की प्रक्रिया 1 महीने पहले ही शुरू हो जाती है।

Amarnath ki Yatra in Hindi

हालांकि 2 सालों तक कोरोना महामारी के कारण अमरनाथ यात्रा को स्थगित कर दिया गया था। यदि आप भी इस पावन यात्रा को करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही लेख पर आए हैं। क्योंकि आज के इस लेख में हम अमरनाथ यात्रा के बारे में पूरी जानकारी बताने वाले हैं।

विषय सूची

अमरनाथ में शिवलिंग निर्माण प्रक्रिया (Amarnath ki Yatra in Hindi)

अमरनाथ की गुफा का अंदरूनी भाग की परिधी 150 फुट है और इस गुफा के ऊपर से जगह-जगह पर बर्फ के पानी की बूंद टपकती है। हालांकि इन बूंदों से भगवान शिव जी की शिवलिंग नहीं बनती है, केवल इस गुफा के केंद्र वाले हिस्से में ऊपर से गिरने वाली बर्फ के बूंदों से ही 10 फुट लंबा शिवलिंग बनता है।

सबसे पहले तो गुफा के मध्य में पहले बर्फ का एक बुलबुला बनता है। थोड़ा-थोड़ा करके यही बर्फ की बूंदे 15 दिन तक रोजाना बढ़ते-बढ़ते भगवान शिव जी के शिवलिंग का एक रूप ले लेता है, जो 2 गज से भी अधिक पहुंचा होता है।

माना जाता है इस शिवलिंग का चंद्रमा की कलाओं के साथ घटना बढ़ना होता है। जिस तरीके से अमावस्या के बाद चंद्रमा धीरे-धीरे बढ़ना शुरू होता है, उसी तरह यह शिवलिंग भी धीरे-धीरे बढना शुरू होता है और फिर जिस तरीके से पूर्णिमा के बाद चांद घटना शुरू हो जाता है, उसी तरीके से यह शिवलिंग भी धीरे-धीरे विलुप्त होने लगते हैं।

माना जाता है यह बहुत ही रहस्यमय है। क्योंकि अमरनाथ गुफा की तरह अमरावती नदी के तट पर भी आगे बढ़ते समय कई छोटे-बड़े गुफाएं दिखाई देते हैं और उन प्रत्येक गुफाओं में बर्फ की बूंदे टपकती रहती है, लेकिन अमरनाथ गुफा को छोड़कर अन्य किसी भी गुफा में शिवलिंग का निर्माण नहीं होता है।

अमरनाथ से जुड़ी पौराणिक कथा (Amarnath Story in Hindi)

भगवान शिव के 5 प्रमुख स्थान कैलाश पर्वत, केदारनाथ, काशी, पशुपतिनाथ और अमरनाथ है। हर एक प्रमुख स्थान से जुड़ी प्रसंग है, उसी तरह अमरनाथ से भी जुड़ी एक पौराणिक कथा है।

एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव जी से पूछा कि आप अमर है, लेकिन मुझे हर जन्म में नए रूप लेकर आपको प्राप्त करने के लिए वर्षों की तपस्या करनी पड़ती है। जब यह निश्चित है कि मुझे आपको पाना है तब मेरी इतनी कठिन परीक्षा क्यों होती है और आप क्यों हमेशा अमर है।

हालांकि भगवान शिव जी मां पार्वती के इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। लेकिन, मां पार्वती ने हठ कर दिया, जिसके बाद भगवान शिव अमर होने के गुप्त रहस्य को बताने के लिए गुप्त स्थान की तलाश करने लगे। वह स्थान अमरनाथ की गुफा थी, जहां पर आज भगवान शिव जी के बर्फ की शिवलिंग है।

इस स्थान को ढूंढने के लिए भगवान महादेव ने सबसे पहले अपने वाहन नंदी को छोड़ दिया और जिस जगह पर नंदी को छोड़े थे, उस जगह का नाम पहलगाम कहलाया और अमरनाथ की यात्रा इसी जगह से शुरू होती हैं।

उसके बाद कुछ दूरी पर भगवान शिव जी ने अपनी जटा से चंद्रमा को अलग करके छोड़ दिया और वह जगह चंदनवाड़ी कहलाया। उसके बाद भगवान शिव जी ने अपनी जटा से गंगा जी को भी पंचतरणी में और उनके गले में विराजमान सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, जिसके बाद वह जगह का नाम शेषनाग पड़ गया।

भगवान शिव ने जिस जगह पर पिस्सू नामक कीड़े को त्यागा था, वह जगह पिस्सू घाटी कहलाता है। इसके बाद भगवान शिव जी ने अपने पुत्र गणेश को भी एक जगह पर छोड़ा था, जो आज गणेश टॉप के नाम से प्रख्यात है। इस जगह को महागुना का पर्वत भी कहा जाता है। अमरनाथ की यात्रा के दौरान इन सभी जगहों के दर्शन होते हैं।

इस तरीके से महादेव ने जीवनदायिनी पांचों तत्वों को स्वयं से अलग करके मां पार्वती के साथ अमरनाथ की गुफा में प्रवेश किए, जहां पर कोई भी नहीं था। क्योंकि भगवान शिवजी नहीं चाहते थे कि इस रहस्य के बारे में किसी को पता चले। उसके बाद वहां पर भोलेनाथ जी ने चारों ओर अग्नि को प्रज्वलित कर दिया और फिर अमृत्व के गूढ़ रहस्य की कथा मां पार्वती को सुनाने लगे।

भगवान शिव जी के द्वारा सुनाई जा रही कथा बहुत लंबी थी। कथा को सुनते सुनते मां पार्वती जी नींद में आ गई और वह सो गई। महादेव भी कथा को सुनाने में बहुत मग्न थे, जिस कारण उन्हें पता नहीं चला कि मां पार्वती सो चुकी है। उस गुफा में उस समय मां पार्वती और शिव जी के अतिरिक्त एक कबूतर का जोड़ा भी था। दोनों कबूतर महादेव के अमर कथा को सुन रहे थे और बीच-बीच में गू-गू की आवाज निकाल रहे थे, जिससे भोलेनाथ जी को लगा कि शायद मां पार्वती उनकी कथा को सुनकर हामी भर रही है।

लेकिन कथा खत्म होने के बाद जब महादेव ने मां पार्वती को देखा तो पता चला कि वह तो सो रही है। उनके मन में प्रश्न आया कि आखिर उनकी कथा को सुन कौन रहा था। तब उनकी नजर उन दो कबूतर पर पड़ी, जिसके बाद उन्हें बहुत ही क्रोध आया। महादेव को क्रोध में देख दोनों कबूतर भगवान शिव जी के चरणों में जाकर प्रार्थना करने लगे कि प्रभु हमें माफ कर दीजिए। यदि आप हमारी हत्या कर देंगे तब आपकी अमर कथा झूठी हो जाएगी। आप हमें पथ प्रदर्शित कीजिए।

भगवान शिव जी ने कहा कि तुम दोनों अमर हो चुके हो और अब जीवन पर्यंत तुम दोनों इसी गुफा में शिव और पार्वती के प्रतीक के रूप में निवास करोगे। इस तरीके से यह कबूतर के जोड़े इस गुफा के अमर कथा के साक्षी हो गए और इस तरह से स्थान का नाम अमरनाथ पड़ा। माना जाता है आज भी ये कबूतर इन गुफाओं में निवास करते हैं।

अमरनाथ यात्रा का इतिहास (Amarnath History in Hindi)

पवित्र अमरनाथ गुफा की यात्रा आधुनिक नहीं है बल्कि इसका इतिहास तो प्राचीन काल से है। कहा जाता है महाभारत के काल से ही अमरनाथ की यात्रा चली आ रही है। बुध काल में भी इस मार्ग पर यात्रा करने के प्रमाण मिले हैं।

यहां तक कि कल्हन के द्वारा लिखी गई “राज तरंगिणी तरंग द्वितीय” में भी इन्होंने इस यात्रा के बारे में उल्लेख करते हुए कहा है कि कश्मीर के राजा सामदीमत जो भगवान शिव के परम भक्त थे, वह इस इलाके के पहलगाम के वनों में स्थित बर्फ के शिवलिंग की पूजा किया करते थे। इससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि इसमें अमरनाथ गुफा की जिक्र हो रही है।

केवल कलाम के राज तरंगिणी ही नहीं बल्कि नीलमत पुराण और बृंगेश संहिता में भी अमरनाथ यात्रा के बारे में उल्लेख मिलता है। एक अंग्रेज लेखक लॉरेंस द्वारा लिखी गई पुस्तक वैली ऑफ कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के बारे में जिक्र करते हुए बताया है कि कश्मीरी ब्राह्मण अमरनाथ गुफा की यात्रा यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों को कराते थे। क्योंकि उन्हें यहां के बारे में अच्छी जानकारी थी, इसलिए वे गाइड के रूप में जिम्मेदारी निभाते थे।

अमरनाथ की गुफा को लेकर एक गलत धारणा यह भी है कि माना जाता है 18वीं से 19वीं शताब्दी के मध्य में गुर्जर समाज का एक मुस्लिम गडरिया ने इस गुफा की खोज की थी। लेकिन प्रश्न है यह उठता है कि इतनी ऊंचाई पर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है तो ऐसे में क्या गडरिया इतनी ऊंचाई पर बकरे को चराने के लिए आता होगा?

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि 1869 में ग्रीष्म काल में दोबारा इस गुफा की खोज की गई थी और फिर औपचारिक रूप से 1872 में इस गुफा तक की यात्रा आयोजित की गई थी। इतिहासकारों के अनुसार कहा जाता है कि जल्द ही शताब्दी के मध्य में अमरनाथ पर आक्रमण हुआ था, जिसके बाद 300 वर्ष तक के लिए अमरनाथ की यात्रा रोक दी गई थी।

जिसके बाद 1420-70 ईस्वी के बीच में कश्मीर के शासकों में से एक जैनुलआब्दीन ने पहली बार अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी। उसके बाद आठवीं शताब्दी में फिर से इसकी यात्रा शुरू हुई थी, लेकिन 1991 से 95 के दौरान आतंकी हमलों के कारण दोबारा इस यात्रा को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया था।

कहा जाता है 1898 में स्वामी विवेकानंद ने भी अमरनाथ गुफा की यात्रा की थी और इस गुफा में स्थित बर्फ के शिवलिंग को देख कर बहुत आश्चर्यचकित हुए थे। इस बात का जिक्र करते हुए कहा था कि इतनी प्रेरणादायक चीज उन्होंने आज से पहले कभी नहीं देखी।

अमरनाथ यात्रा के लिए आवश्यक दस्तावेज

अमरनाथ यात्रा के लिए मुख्य दस्तावेज के रूप में आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट, वोटर कार्ड आदि जरुर है। इसके अतिरिक्त मेडिकल फिटनेस प्रमाण पत्र भी आवश्यक है।

अमरनाथ यात्रा के दौरान भोजन की सुविधा

अमरनाथ यात्रा के दौरान भोजन के लिए बिल्कुल भी चिंतित होने की जरूरत नहीं है। अमरनाथ के मार्ग के हर एक प्रमुख स्टॉप पर मुफ्त में लंगर का आयोजन किया जाता है, जहां पर यात्रियों के लिए दूध, बिस्किट, पराठा, रोटी, दाल, चावल, मिठाई, चाय, ब्रेड इत्यादि प्रदान किए जाते हैं। यहां पर स्वच्छता की भी सुविधाएं होती है। साथ में ठहरने के लिए भी सुविधा दी जाती है।

अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए सबसे अच्छा समय

अमरनाथ भारत का सबसे उत्तरी भाग जम्मू कश्मीर में स्थित है और ऐसे में यहां के मौसम का कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता। यहां पर कभी भी बारिश या बर्फबारी हो जाती है, जिस कारण साल का पूरा दिन यहां मौसम बहुत ठंडा रहता है।

वैसे बात करें अमरनाथ यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय जुलाई से अगस्त के दौरान होता है। वैसे भी अमरनाथ यात्रा 2 महीने के लिए खुली रहती है, जो श्रावण पूर्णिमा के दिन खत्म होती है।

अमरनाथ कैसे पहुंचे?

अमरनाथ तक पहुंचने के लिए सड़क, रेलवे या हवाई तीनों में से किसी मार्ग के जरिए सबसे पहले जम्मू या श्रीनगर पहुंचना पड़ता है। उसके बाद अमरनाथ के लिए दो रास्ते हैं पहलगाम और बालटाल।

सड़क मार्ग से अमरनाथ कैसे पहुंचे?

अमरनाथ तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग की अच्छी सुविधा नहीं है क्योंकि यह इलाका बहुत ही जोखिम भरा है। यदि आप सड़क मार्ग से अमरनाथ जाना चाहते हैं तो आप जम्मू जा सकते हैं और फिर सड़क मार्ग से श्रीनगर जा सकते हैं। वहां से आप बालटाल या फिर पहलगाम पहुंच सकते हैं।

बालटाल या पहलगाम से अमरनाथ के लिए ट्रैकिंग कर सकते हैं। यहां ट्रैकिंग लंबा है। हालांकि वयस्कों के लिए सुरक्षित है। बालटाल से ट्रैकिंग कम से कम 1 से 2 दिन का होता है लेकिन पहलगाम से लगभग 3 से 5 दिन का समय लग जाता है। यहां से अमरनाथ तक पहुंचने के लिए पालकी या टट्टू को भी किराए पर लेते हैं। आप अपनी सुविधा के अनुसार उनकी सहायता ले सकते हैं।

ट्रेन से अमरनाथ कैसे पहुंचे?

अमरनाथ जाने के लिए ट्रेन मार्ग का चयन कर सकते हैं। अमरनाथ पहुंचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू है, जो अमरनाथ से 178 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जम्मू के लिए ट्रेन लगभग भारत के कई बड़े शहरों से रेलवे स्टेशन से मिल जाती है। उसके बाद यहां से आप बालटाल या पहलगाम जा सकते हैं। वहां से अमरनाथ पहुंचने के लिए ट्रैकिंग के जरिए 2 से 3 दिन का समय लगता है।

हवाई मार्ग से अमरनाथ कैसे पहुंचे?

अमरनाथ पहुंचने के लिए हवाई मार्ग का भी चयन किया जा सकता है। अमरनाथ के लिए श्रीनगर एयरपोर्ट या जम्मू एयरपोर्ट का चयन किया जा सकता है। यह दोनों ही एयरपोर्ट पहलगाम से क्रमशः 90 किलोमीटर और 263 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह दोनों ही एयरपोर्ट देश के लगभग सभी बड़े शहरों से जुड़े हुए हैं।

श्रीनगर या जम्मू पहुंचने के बाद आप बस या टैक्सी के द्वारा पहलगाम पहुंच सकते हैं। श्रीनगर से बस के द्वारा पहलगाम की यात्रा करीबन 3 घंटे का है। वंही जम्मू से पहलगाज्ञ तक का रास्ता 12 से 15 घंटे का है।

आगे का मार्ग

पहलगाम और बालटाल तक किसी भी वाहन से पहुंच सकते हैं लेकिन आगे का रास्ता पैदल है। श्रीनगर से यह दोनों ही रास्ता बहुत अच्छी तरीके से जुड़ा हुआ है, इसीलिए ज्यादातर श्रद्धालु श्रीनगर से ही यात्रा की शुरुआत करते हैं।

अमरनाथ जल्दी पहुंचना चाहते हैं तो आप बालटाल रास्ते का चयन कर सकते हैं। यहां से अमरनाथ के गुफा की दूरी 14 किलोमीटर है। हालांकि यह रास्ता छोटा है लेकिन काफी कठिन और सीधी चढ़ाई वाला है। ऐसे में बुजुर्ग और बीमार लोगों के लिए रास्ता बहुत ही कठिन हो सकता है।

लेकिन यदि आप पहलगाम रास्ते का चयन करते हैं तो भले ही रास्ता अमरनाथ तक पहुंचने के लिए 3 दिन लेता है लेकिन यह रास्ते की चढ़ाई इतना कठिन नहीं है, जितना कि बालटाल है। पहलगाम से पहला पड़ाव चंदनबाड़ी का आता है। यहां तक का रास्ता लगभग सपाट होता है, उसके बाद धीरे धीरे चढ़ाई शुरू हो जाती है।

उसके बाद अगला स्टॉप पिस्सू स्टॉप है, जो यहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और फिर तीसरा पड़ाव यहां से 9 किलोमीटर की दूरी पर है, जिसका नाम शेषनाग है। उसके बाद आगे पंचतरणी स्टॉप आता है, जहां तक का रास्ता 14 किलोमीटर दूर है और उसके बाद 6 किलोमीटर दूर तक पवित्र गुफा अमरनाथ स्थित है।

अमरनाथ यात्रा के दौरान कहां पर रूकें?

यदि आप सोच रहे हैं कि अमरनाथ यात्रा के दौरान कहां पर रुक सकते हैं तो अमरनाथ यात्रा के दौरान पहलगाम में आप नुनवान में बेस कैंप में रह सकते हैं। यहां पर रुकने के लिए आपसे प्रति व्यक्ति चार्ज लिया जाएगा। आप चाहे तो एक टेंट में 10 से 12 लोग साथ में रह सकते हैं।

इतना ही नहीं यहां पर कैंप में रजाई, तकिए, गद्दे और मिट्टी के तेल के लालटेन भी प्रधान किए जाते हैं। यदि आप थोड़ा अलग से पैसे देते हैं तो आपको गर्म पानी भी मिलता है। यहां पर कई सारे रिसॉर्ट्स भी है, जहां पर आप अच्छी सुविधा के साथ रह सकते हैं। जैसे कि गोल्फ व्यू रिज़ॉर्ट, ग्रैंड मुमताज रिसॉर्ट्स, होटल कोहिनूर, होटल राम्बा पैलेस रिसॉर्ट्स आदि।

इन सबके अतिरिक्त बलताल में भी कई सारे रिजॉर्ट्स और होटल है जैसे ईडन रिसॉर्ट्स और स्पा, होटल माउंटव्यू सोनमर्ग, चिनार रिज़ॉर्ट और स्पा, वन हिल रिसॉर्ट्स आदि। इसके अतिरिक्त अमरनाथ की यात्रा के दौरान बलताल, मनिगांव, पंजतरणी और अमरनाथ गुफा में आपको झोपड़ियाँ भी मिलती है, जहां पर कुछ शौचालय की सुविधा भी रहती हैं। आप चाहे तो यहां पर भी ठहर सकते हैं।

अमरनाथ यात्रा के लिए शारीरिक स्वास्थ्य आवश्यकताएँ

अमरनाथ की यात्रा बहुत ही कठिन यात्रा होती है। अमरनाथ की गुफा लगभग 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जहां पर मौसम कभी भी बिगड़ जाता है और इतनी ऊंचाई पर हवा का दबाव भी बहुत ही कम रहता है। इतना ही नहीं अल्ट्रावायलेट किरणों का भी यहां पर संपर्क हो जाता है।

ऐसे में यहां तक पहुंचने पर बहुत से यात्रियों को सिर दर्द, जी मचलना, सांस लेने में कठिनाई, उल्टी जैसी समस्या होने लगती हैं। ऐसे में अमरनाथ की यात्रा पर जाने से पहले अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान रखना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। इतनी ऊंचाई तक की यात्रा के लिए आपका शारीरिक रूप से फिट होने की जरूरत है।

ऐसे में अमरनाथ की यात्रा करने से कुछ सप्ताह पहले से ही अपने आपको फिट रखने के लिए एक्सरसाइज कर सकते हैं। इसीलिए आप हर दिन कम से कम 6 किलोमीटर पैदल चलने का अभ्यास कर सकते हैं। यदि आपको हार्ड ब्लड प्रेशर, हृदयरोग, फेफड़े के रोग जैसी कोई भी समस्या हो तो इसके लिए पहले आप डॉक्टर की राय लेने के बाद ही अमरनाथ की यात्रा पर जाएं।

अमरनाथ यात्रा के दौरान इन चीजों को अपने साथ रखें

  • अमरनाथ यात्रा के दौरान बेस कैंप में ठंड से बचने के लिए चटाई और कंबल दिए जाते हैं लेकिन ज्यादा उम्मीद नहीं करना चाहिए। जम्मू-कश्मीर बहुत ही ठंडा वाला इलाका है, इसीलिए यात्रा के दौरान अपने साथ ऊनी कपड़े, जैकेट, दस्ताने, टोपी अवश्य रखें।
  • अमरनाथ के मौसम का कोई भरोसा नहीं होता यहां कभी भी बर्फबारी और कभी भी बरसात होती है। इसीलिए अपने साथ रेनकोट भी जरूर रखें। साथ ही एक मशाल भी रख सकते हैं कभी भी काम आ सकती हैं। बारिश से बचने के लिए प्लास्टिक या रबड़ वाले जूते भी अपने साथ रखें। जिसका पकड़ अच्छा होता ताकि आप पानी और बर्फबारी के दौरान भी अमरनाथ के मार्ग पर अच्छे से चल सके।
  • अमरनाथ की यात्रा के दौरान वहां पर तंबू में शौचालय मौजूद नहीं होता है। यात्रियों को सामान्य शौचालय का इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसे में अपने साथ साबुन, टॉयलेट पेपर या नेपकिन जरूर लेकर जाएं।
  • अमरनाथ की यात्रा के समय अपने साथ सन स्क्रीन जरूर रखें क्योंकि ज्यादा ऊंचाई पर सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों के साथ यात्रियों का संपर्क होता है। ऐसे में त्वचा को उस किरण से बचाए रखना जरूरी है।
  • यदि आपको ट्रेकिंग करने का शौक है और अमरनाथ यात्रा के दौरान ट्रैकिंग करना चाहते हैं तो अपने साथ सहारे के लिए एक लाठी भी ले जा सकते हैं।
  • अमरनाथ की यात्रा के दौरान मौसम वहां पर ज्यादा ठंड वाला रहता है, इसीलिए अपने साथ गर्म पानी की बोतल भी जरूर ले जाएं।
  • अमरनाथ की यात्रा के लिए आपातकालीन स्थिति फर्स्ट एड किट भी अपने साथ जरूर रखें।

अमरनाथ यात्रा के समय निम्न बातों का ध्यान रखें

  • जब आप अमरनाथ यात्रा के दौरान ऊंचाई पर उल्टी, मिचकी, सिर दर्द या बीमार महसूस कर रहे हैं तो तुरंत कम ऊंचाई पर जाएं और वहां मौजूद डॉक्टर से पहले अपना चेकअप करवाएं।
  • अमरनाथ की यात्रा के लिए 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चे और 75 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिक अपने परिवार के अन्य सदस्यों के साथ ही अमरनाथ की यात्रा पर जाएं। इसके साथ ही इन्हें ट्रैकिंग करने से भी बचना चाहिए।
  • अमरनाथ की यात्रा के लिए 6 सप्ताह की गर्भवती महिलाओं को जाने की अनुमति नहीं होती है।
  • अमरनाथ की यात्रा के दौरान गुफा के अंदर तस्वीर नहीं खिंच सकते हैं। साथ ही वहां पर कूड़ा फैलाने से भी बचे।
  • यदि अमरनाथ की यात्रा आप अपने कुछ दोस्तों के साथ जा रहे हैं तो प्रत्येक अपने साथ होटल वाउचर की प्रिंट आउट और हेलीकॉप्टर की टिकट अपने पास रखें। इसके अतिरिक्त यदि आप ट्रैकिंग कर रहे हैं तो रास्ता पहले से निश्चित कर लें ताकि कोई भी साथी खोये ना।
  • अमरनाथ की यात्रा के दौरान गुफा वाले इलाकों में बलताल, पंचतरणी जैसे जगहों में मोबाइल का लोकल नेटवर्क काम नहीं करता है। वहां पर केवल बीएसएनल का ही नेटवर्क काम करता है। इसीलिए अपने साथ अपने घर से बीएसएनएल के सिम कार्ड याद करके जरूर ले जाएं।

FAQ

अमरनाथ यात्रा कैसे शुरू करें?

अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए इसकी आधिकारिक वेबसाइट https://jksasb.nic.in/register.aspx पर जाना होता है और वहां पर रजिस्ट्रेशन करवाना होता है।

अमरनाथ गुफा के दर्शन का क्या महत्व है?

अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने भगवान शिव जी की शिवलिंग है। लेकिन इस गुफा के दर्शन का सबसे ज्यादा महत्व इसलिए है क्योंकि पौराणिक कथा के अनुसार इसी जगह पर भगवान शिव जी ने मां पार्वती को अमृत्व का मंत्र सुनाया था।

अमरनाथ के गुफा को किस नाम से जाना जाता है?

अमरनाथ के गुफा में मौजूद शिवलिंग को अमरेश्वर भी कहा जाता है।

अमरनाथ की यात्रा कितने दिनों तक चलती है?

अमरनाथ की यात्रा जुलाई माह में प्रारंभ होती है और यदि मौसम अच्छा रहता है तो अगस्त के पहले सप्ताह तक यह यात्रा चलती है।

निष्कर्ष

आज के इस लेख में आपने भारत का प्रमुख तीर्थस्थल अमरनाथ यात्रा के बारे में और अमरनाथ यात्रा की जानकारी (Amarnath Details in Hindi) जाना। जिसमें हमने आपको अमरनाथ गुफा से जुड़ी पौराणिक कथा, अमरनाथ यात्रा के लिए कैसे जाएं (Amarnath ki Yatra in Hindi) और अमरनाथ यात्रा के लिए आवश्यक दस्तावेज एवं ध्यान रखने वाले बातों के बारे में बताया।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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