विक्रम बेताल की अंतिम कहानी | Vikram Betal ki Antim Kahaani
24 बार बेताल के द्वारा सुनाई गई कहानी और अंत में पूछे गए सवाल का जवाब देकर विक्रमादित्य ने बेताल को बहुत परेशान किया। लेकिन बार-बार सवाल का जवाब दे देने से बेताल पेड़ पर वापस चले जाते थे, उसके बाद बेताल को विक्रमादित्य के हट के सामने हार मानना पड़ा।
उन्होंने विक्रमादित्य से कहा कि तुम भी बड़े हटी हो राजन। इतनी बार मेरे वापस चले जाने के बावजूद तुमने हार नहीं माना और बार-बार तुम मुझे पकड़ कर लेकर आए। लेकिन जैसे मैंने तुम्हें पहले ही कहा कि वह तांत्रिक दुष्ट है, वह तुम्हारे प्राणों का शत्रु है। तुम्हे सावधान रहना चाहिए तुम मेरी बात सुनो।
कुछ समय तक दोनों ही शांत रहे, कुछ देर चलने के बाद बेताल ने विक्रमादित्य से कहा कि राजन यदि तुम्हें मेरे बातों पर विश्वास ना हो तो मैं जो बोल रहा हूं तुम वह करो। जब तुम मेरे शव को उस तांत्रिक के पास लेकर जाओगे तो वह तांत्रिक तुम्हें देवता के मूर्ति के आगे शीश झुकाने के लिए कहेगा, जिसके बाद वह तुम्हारे गर्दन को काटकर तुम्हारी हत्या कर देगा और फिर वह विद्वानों का स्वामी बन जाएगा।
विक्रमादित्य बेताल की यह बात सुनकर बस चुप्पी बनाए रखे और फिर बेताल को तांत्रिक के पास घने जंगल में ले जाने लगे। रात्रि के चौथे प्रहर राजा विक्रमादित्य बेताल की शव को लेकर तांत्रिक के पास पहुंचे। हालांकि बेताल शव को पहले ही त्याग चुके थे।
विक्रमादित्य को शव लाते देख तांत्रिक बहुत प्रसन्न हुआ और उसने राजा से कहा कि हे राजा तुमने मेरी यह इच्छा पूरी कर के बहुत श्रेष्ठ काम किया है। तुम सचमुच सभी राजाओं में से श्रेष्ठ हो। तुमने इतना बड़ा कठिन काम इतने आसानी से कर दिया।
उसके बाद तांत्रिक बेताल के शव को विक्रमादित्य के कंधे से नीचे उतारते हैं और उसे देवता की मूर्ति के सामने लेटा देते हैं और फिर उसे स्नान करवाकर, माला पहनाकर तंत्र पूजा के लिए तैयार करते हैं। तंत्र मंत्र का जाप करने के बाद अंत में तांत्रिक विक्रमादित्य को अपनी देवता की मूर्ति के सामने झुककर प्रणाम करने के लिए कहते हैं।
उसी क्षण विक्रमादित्य को बेताल की कही कथन याद आ जाती है, जिसके बाद विक्रमादित्य तांत्रिक को कहते हैं कि साधु मैं तो एक राजा हूं और आज तक मैं किसी के सामने नहीं झुका, इसीलिए मुझे नहीं पता कि मुझे किस तरीके से झुककर प्रणाम करना है। इसीलिए पहले आप मुझे यह करके बताइए कि मैं किस तरीके से करूं?
विक्रमादित्य की बात सुनकर तांत्रिक स्वयं झुककर विक्रमादित्य को प्रणाम करना बताते हैं। जैसे ही तांत्रिक झुकता है वैसे ही समय न लगाते हुए विक्रमादित्य उसके गर्दन पर वार करते हैं और उनकी हत्या कर देते हैं। बेताल यह देख बहुत प्रसन्न होते हैं और विक्रमादित्य को कहते हैं कि हे राजन यह तांत्रिक गलत तरीके से विद्वानों का स्वामी बनना चाहता था।
लेकिन तुमने इसका नाश करके बहुत बड़ा पुण्य का काम किया है। अब तुम विद्वानों के स्वामी बनोगे, मैं तुम्हारे कार्य से बहुत प्रसन्न हूं। हालांकि मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया। लेकिन अब तुम मुझसे जो भी मांगना चाहो मांगो, मैं तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरा करूंगा।
बेताल की बात सुन विक्रमादित्य ने कहा कि अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो मैं चाहता हूं कि आपने जो भी 24 कहानियां मुझे सुनाई, उन कहानियों के साथ यह कहानी भी सारे संसार में प्रसिद्ध हो जाएं, जिसे लोग आदर और सम्मान से पढ़ें।
बेताल ने कहा राजन ऐसा ही होगा। यह अंतिम कहानी बेताल पच्चीसी के नाम से सारे जगत में प्रसिद्ध होगी और इस कहानी के जरिए लोग तुम्हारी वीरता से अवगत हो पाएंगे।
यह कथा जो भी व्यक्ति ध्यान लगाकर पड़ेगा, उसके सभी पाप दूर हो जाएंगे। यह कहकर बेताल वापस लौट जाता है, जिसके बाद भगवान शिव जी प्रकट होते हैं और विक्रमादित्य को कहते हैं कि तुमने आज बहुत वीरता का कार्य किया है। इस दुष्ट साधु को मार के तुमने पुण्य का काम किया है।
अब तुम जल्द ही सातो द्वीपों सहित पाताल और पृथ्वी पर शांति और धर्म स्थापित करोगे। अंत में जब तुम्हारा इन सब से मन भर जाएगा तब तुम मेरे शरण में आ सकते हो।
जिसके बाद विक्रमादित्य अपने राज्य वापस लौटते हैं, जहां पर इनकी वीरता के चर्चे चारों तरफ फैलते हैं। लोग इनकी बहुत सराहना करते हैं। कुछ ही समय के बाद विक्रमादित्य पूरे पृथ्वी के राजा बन जाते हैं। अपने शासन का आनंद लेने के बाद अंत में भगवान शिव की शरण में चले जाते हैं।
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