वट सावित्री व्रत कथा | Vat Savitri Vrat Katha
प्राचीन काल में एक शहर में एक राजा रहा करता था। राजा बहुत ही धनवान और शक्तिशाली था। राजा अपनी प्रजा से बहुत प्रेम किया करता था। प्रजा भी अपनी राजा से बहुत प्रेम करती थी और अपने राजा की हर बातों का पालन किया करती थी। राजा के राज्य में सभी लोग मिल जुल कर रहा करते थे। राजा का नाम अस्वपति था। राजा का विवाह एक बहुत ही सुंदर स्त्री से हुआ था।
विवाह के कुछ समय पश्चात राजा और रानी को एक पुत्री की प्राप्ति हुई। राजा पुत्री पाकर बहुत प्रसन्न था राजा अपनी पुत्री से बहुत प्रेम किया करता था। राजा की पुत्री बहुत सुंदर और आकर्षक थी। राजा ने अपनी पुत्री का नाम सावित्री रखा था। राजा ने अपनी पुत्री का पालन पोषण बहुत अच्छी तरीके से किया था। राजा ने सावित्री को शिक्षा संगीत और कई कलाओं में निपुण बनाया था।
धीरे धीरे सावित्री का बचपन बीता गया और वह बड़ी हो गई। जिसके बाद राजा ने अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए उसके लिए एक अच्छा वर को तलाश करना शुरू कर दिया। राजा के पड़ोसी राज्य पर एक बहुत ही प्रतापी राजा रहा करता था जिसका नाम धूमत्स्यसेन था। उसका एक पुत्र था, जिसने अपने पुत्र का नाम सत्यवान रखा था।
सावित्री का विवाह राजा ने धूमत्स्यसेन के लड़के सत्यवान के साथ कराने का निर्णय ले लिया और कुछ ही दिनों में अपनी पुत्री सावित्री का विवाह सत्यवान से करवा दिया। एक दिन भगवान नारद जी सावित्री के पिता के पास आएं और कहने लगे कि तुमने अपनी पुत्री सावित्री का विवाह जिस युवक से कराया है, उसके भाग्य में अल्पायु का योग्य है और वह एक साल के अंदर ही मर जाएगा।
नारद की बात सुनकर सावित्री के पिता बहुत डर गए। जिसके बाद सावित्री के पिता ने सावित्री को जाकर नारद जी के द्वारा कही हुई सारी बातें बता दी और अपनी पुत्री सावित्री से कहने लगे कि तुम कोई दूसरा विवाह कर लो लेकिन सावित्री ने ऐसा करने से मना कर दिया और अपने पिता से कहने लगी कि मैं दूसरा विवाह नहीं करूंगी। मेरा एक विवाह हो चुका है मैं अपने पति सत्यवान के साथ ही रहूंगी।
सत्यवान अपने माता पिता के साथ जंगल में रहा करता था। सावित्री भी अपने पति सत्यवान के साथ जाकर जंगल में रहने लगी और कुछ समय पश्चात देखते एक साल बीत गया और नारद जी के द्वारा बताया हुआ समय नजदीक आ गया। सावित्री को यह बात पहले से ही पता थी। उसके पिताजी ने उसको सत्यवान के बारे में बता दिया था। जिसके कारण सावित्री ने पहले से ही अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया था।
वह दिन भी आ गया जिस दिन के बारे में नारद जी ने बताया था। सावित्री के पति सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जा रहे थे जिसके पीछे पीछे सावित्री भी जाने लगी। सावित्री के पति सत्यवान जैसे ही बरगद के पेड़ पर चढ़ने लगे तो, उनके सर पर बहुत तेज दर्द होना शुरू हो गया जिसके बाद वह तुरंत बरगद के पेड़ से नीचे आ गए।
जब सावित्री ने देखा कि उनके पति सत्यवान के सर में बहुत तेज दर्द हो रहा है तो, सावित्री ने अपने पति सत्यवान को अपनी गोद पर सिर रखकर लिटा लिया और जैसे ही सत्यवान की मृत्यु का समय आ गया।
तब सावित्री ने देखा कि आसमान से यमराज अपने दूत के साथ सत्यवान को लेने के लिए आ रहे है और यमराज कुछ ही समय पर पृथ्वी पर पहुंच गए। सत्यवान के पास आकर यमराज ने उसके प्राण ले लिए और सत्यवान को अपने साथ ले जाने लगे।
सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे आने लगी जिसके बाद यमराज ने थोड़ी दूर ही जाकर सावित्री से कहा कि तुम यहां से चली जाओ तुम्हारा साथ केवल धरती तक ही था।लेकिन सावित्री ने यमराज की बात नहीं मानी और यमराज के पीछे पीछे चलना शुरू कर दिया और सावित्री ने यमराज से कहा कि मेरा इनसे विवाह हुआ है और मेरे पति जहां जहां जाएंगे मैं उनके पीछे-पीछे जाऊंगी यह मेरा कर्तव्य है।
सावित्री की बात सुनकर बहुत खुश हो गए जिसके बाद यमराज ने सावित्री से कहा कि मैं तुम्हारी पतिव्रता होने से बहुत खुश हुआ हूं। जिसके कारण मैं तुमको एक वरदान मांगने का अवसर दे रहा हूं।
जिसके बाद सावित्री ने कहां की मैं आपसे वरदान के रूप में अपने ससुर की आंखों की रोशनी मांगती हूं क्योंकि सत्यवान के पिता आंख से अंधे थे। वह देख नहीं पाते थे। जिसके बाद यमराज ने सावित्री की बात मांग कर उनके ससुर की आंखों की रोशनी वापस दे दी और आगे की ओर जाने लगे लेकिन सावित्री यहां भी नहीं रुकी। यमराज के पीछे पीछे जाने लगी।
कुछ दिन चलने के पश्चात यमराज ने सावित्री से फिर कहा कि तुम मुझसे एक वरदान मांगो। जिसके बाद सावित्री ने यमराज से वरदान के रूप में अपने ससुर का खोया हुआ राज काज वापस मांगा। यमराज ने सावित्री के इस वरदान को भी पूरा कर दिया और उसके ससुर यानी सत्यवान के पिता का खोया हुआ राज काज वापस दिलवा दिया और फिर यमराज आगे की ओर जाने लगे। लेकिन फिर भी सावित्री नहीं मानी और यमराज के पीछे पीछे जाने लगी।
जब यमराज ने देखा की सावित्री अभी भी पीछे पीछे आ रही है, तो यमराज ने थोड़ी दूर चलने के बाद फिर सावित्री से कहा की तुम एक और वरदान मांगो। जिसके बाद सावित्री ने इस बार बड़ी चालाकी से यमराज से वरदान मांगा और सावित्री से यमराज से वरदान के रूप में मांगा की आप मुझे एक सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान दीजिए। यमराज ने सावित्री के इस वरदान को भी स्वीकार लिया और सावित्री को एक सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान दे दिया।
और जब यमराज ने सावित्री को एक सौ पुत्रों की माता बनने का वरदान दे ही दिया था तो, यमराज को मजबूरी में आकर सावित्री के पति सत्यवान को पुना जीवित करना पड़ा और फिर यमराज ने सत्यवान को जीवित कर दिया और फिर सावित्री अपने पति सत्यवान को लेकर वापस आ गई।
इस प्रकार सावित्री ने यमराज से लड़कर अपने पति सत्यवान को जान बचा ली और तभी से ही शादीशुदा महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु के वट सावित्री का व्रत रखने लगी और पूजा करने लगी।
दोस्तों उम्मीद करते हैं आपको यह कहानी रोचक लगी होगी। ऐसे बहुत ही कहानियां है जो हमारी वेबसाइट में उपलब्ध हैं। आप इन्हें पढ़ सकते हैं और अपने बच्चों आदि को पढ़ा कर उनका मनोरंजन करवा सकते हैं और इस कहानी को साझा कर हमारा हौसला अफजाई कर सकते हैं और कहानी से संबंधित यदि कोई भी प्रश्न है, तो आप कमेंट बॉक्स के माध्यम से पूछ सकते हैं।
यह भी पढ़ें:
गणेश चतुर्थी की पौराणिक एवं प्रचलित कथा