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सिंदबाद जहाजी की चौथी यात्रा (अलिफ लैला की कहानी)

हर बार की तरह इस बार भी सिंदबाद ने अपने दरबार में हिंदबाद और अपने मंत्रियों को बुलाकर अपनी चौथी जहाजी यात्रा सुनाना प्रारंभ किया। हर बार की तरह इस बार भी मैंने कुछ दिन आराम करके विदेश जाने का निर्णय लिया और अपना सारा सामान लेकर फारस की ओर चला गया। रास्ते में मैंने और सभी व्यापारियों ने अपने अपने सामान को बेच कर कुछ धन को एकत्र कर दिया।

इसके अलावा आगे की ओर चल पड़े। कुछ दिन जहाज में सफर करने के बाद अचानक से समुद्र में एक भयानक तूफान आने के कारण हम लोगों का जहाज एक बड़ी चट्टान में जाकर लड़ गया। जहाज की टक्कर इतनी भयानक थी कि यह तुरंत ही दो हिस्सों में बट गया और सभी व्यापारी और मैं तुरंत समुद्र में गिर पड़े। हमारे बहुत से व्यापारी पानी में डूबने के कारण मर चुके थे।

मैं और मेरे दो चार साथी जहाज के टूटी हुई लकड़ी के सहारे अपनी जान बचाते हुए एक टापू पर पहुंच गए। टापू पर पहुंचने में काफी रात हो चुकी थी। हम लोग उसी टापू के किनारे लेट गए और पता ही नहीं चला कि कब हम लोगों को नींद आ गई। सुबह होते ही हम लोगों ने टापू में घूमने का निर्णय लिया और घूमने के इरादे से निकल पड़े।

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तभी अचानक से हम लोगों के सामने बहुत ही भयानक दिखने वाले काले कलर के व्यक्ति आते हुए दिखाई दिए। उन व्यक्तियों ने हम लोगों को चारों तरफ से घेर लिया। हम लोगों को अपने साथ ले गए। फिर भयानक दिखने वाले व्यक्तियों ने हम लोगों को खाने के लिए कुछ ऐसी चीज दी, जिसमें बहुत नशा था और जबरदस्ती खाने के लिए बोलने लगे।

मेरे साथ बचे व्यापारियों ने बिना कुछ सोचे समझे उनके द्वारा दी गई उस चीज को खाने लगे और देखते ही देखते कुछ देर में अत्यधिक नशे में हो गए। मुझे उनकी यह खातिरदारी देखकर कुछ शंका होने लगी थी। जिसकी वजह से मैंने बहुत कम ही खाया और कुछ देर बाद फिर उन्होंने हम लोगों के सामने पके हुए चावल लाकर रख दिया है।

जिसको उन्होंने नारियल के तेल से पकाया था और जबरदस्ती खाने के लिए बोलने लगे। सभी उन चारों को खाने लगे और मैंने पिछली बार की तरह इस बार भी बहुत कम ही खाया। क्योंकि मुझे यह अंदाजा हो गया था कि यह लोग हम लोगों की इतनी खातिरदारी इसलिए कर रहे हैं, जिससे लोगों को मारकर खा सके।

लेकिन मैं उनके इरादे को पहले ही भाप चुका था, जिसके कारण मैंने उनके दिए हुए खाने को बहुत कम खाया और एक दिन जब सभी काले व्यक्ति किसी काम से बाहर गए हुए थे तभी मैं मौका पाते ही वहां से भाग निकला। भागते भागते सात आठ दिन होने के बाद मैं एक समुद्र तट के किनारे पहुंच गया, जहां पर देखा कि बहुत से व्यक्ति काली मिर्च को अपनी झोली में भर रहे थे।

यह देखकर मैं उनके पास चला गया। जैसे मैं उनके पास पहुंचा तो उन लोगों ने मुझे अपने चारों ओर से घेर लिया और पूछने लगे कि तुम कहां से आए हो और कौन हो। उनके पूछने पर मैंने मेरे साथ जो कुछ भी हुआ था, उनको बता दिया। जब मैंने अपनी सारी बात उनको बताई तो वह चिंता में पड़ गए कि तुम उन भयानक व्यक्तियों से कैसे बच कर आ गए।

फिर उन्होंने मुझे अपने साथ काली मिर्च को इकट्ठा करने के लिए कहा। मिर्च को इकट्ठा करने के बाद वह मुझे अपने साथ अपने शहर ले गए और शहर में ले जाकर उन्होंने मुझे अपने बादशाह के पास ले जाकर खड़ा कर दिया। मेरे साथ हुई दुर्घटना के बारे में उनको बताया। मेरे ऊपर बीती हुई सारी बातें सुनकर उनके बादशाह को मुझ पर दया आ गई और उसने मुझे खाने के लिए खाना, पहनने के लिए कपड़े दिए और मुझे अपना दरबारी बनाकर अपने महल में ही रख लिया।

कुछ दिन में मैं उन लोगों के साथ इतना घुल मिल गया कि मैं अपने परिवार को भूल चुका था और कुछ समय बाद मैंने देखा कि बादशाह अपने घोड़े जिस पर उन्होंने लगाम नहीं लगा रखी थी, उस घोड़े पर सवार होकर जाने लगे। तभी मैंने बादशाह से पूछा आपने घोड़े पर लगाम क्यों नहीं लगाई है। लेकिन बादशाह को यह है लगाम के बारे में पता ही नहीं था कि लगाम होती क्या है।

तभी मैंने उनके लिए घोड़े को नियंत्रित करने के लिए लगाम बनाकर दिया और फिर घोड़े की सवारी करने के लिए बादशाह से बोला। जिसके बाद बादशाह ने घोड़े की सवारी की और बहुत खुश हो गया। बादशाह ने मुझे बहुत सारा ही इनाम तोहफे के रूप में दिया। इस प्रकार मैंने सभी मंत्रियों के लिए भी घोड़े की लगाम बनाई और उनसे पैसा इकट्ठा कर लिया।

फिर एक दिन बादशाह ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और मुझसे कहने लगे कि तुम यहीं पर ही रहो और अपने घर मत जाओ। मैं यहीं पर तुम्हारा विवाह एक सुंदर कन्या से कर दूंगा। मैं बादशाह की बात मान गया और वहां पर रहने के लिए राजी हो गया।

बादशाह ने अपनी कहीं हुई बात अनुसार मेरा विवाह एक बहुत ही सुंदर सुकन्या से कर दिया और मैं बहुत ही आनंद के साथ उनके दरबार में रहने लगा। कुछ दिन बीतने के बाद मेरे एक दोस्त की पत्नी का देहांत हो गया था। इसके बाद में उसकी शोक सभा में गया और मैंने अपने दोस्त को सांत्वना दी, जो हुआ गलत हुआ। लेकिन भगवान अगर चाहेगा तो तुम्हारी दूसरी शादी हो जाएगी।

लेकिन मेरे दोस्त ने बताया कि यहां पर ऐसा रीति रिवाज नहीं है कि यहां का रीति रिवाज बहुत ही अलग है। यहां अगर किसी की पत्नी का देहांत होता है। उसको उसके पति के साथ जिंदा दफना दिया जाता है। अगर किसी पति का देहांत होता है तो पत्नी को उसके साथ जिंदा दफना दिया जाता है। यह रीति रिवाज बहुत वर्षों से चला आ रहा है।

जिसको सुनने के बाद वह बहुत डर गया और सोचने लगा कि मेरी भी शादी हो चुकी है, अब मेरा क्या होगा। थोड़ी देर में सभी लोग मेरे दोस्त और उसकी पत्नी को दफनाने के लिए अपने साथ ले जाने लगे। पति और पत्नी दोनों को दफनाने के बाद सभी लोग शोक सभा से वापस आ गए।

मैं उनके इस रीति रिवाज से बहुत डरा हुआ था और यह सोच रहा था कि ऐसा रीति रिवाज कहीं पर भी नहीं है। मैंने बहुत से लोगों से बात की और उनको यह मनाने की कोशिश की कि यह गलत है। लेकिन मेरी बात किसी ने नहीं मानी। मैंने बादशाह से भी यह बात कही तो बादशाह ने भी मुझे यह बताया कि यह है बहुत पुराना रीति रिवाज है। मैं कुछ नहीं कर सकता।

बादशाह की बात सुनकर मैं बहुत डर गया और दिन पर दिन यह सोचने लगा कि कहीं अगर मेरी पत्नी भी मर गई तो मेरा क्या होगा। इसीलिए मैंने अपनी पत्नी का बहुत ध्यान रखना शुरू कर दिया। लेकिन कुछ समय बाद अचानक उसकी तबीयत खराब होने के कारण वह मर गई। जिसके बाद उन लोगों ने पत्नी और मुझे दफन करने के लिए ले जाने लगे। मैंने बहुत कोशिश की और बादशाह से कहा कि मुझे यह दंड क्यों मिल रहा है, मुझ पर ऐसा कठोर दंड मत दो।

लेकिन बादशाह ने मेरी एक बात भी नहीं सुनी और मुझे और मेरी मरी हुई पत्नी दोनों को एक बहुत ही गहरे गड्ढे में फेंक दिया। पत्नी की लाश ज्यादा दिन होने के कारण सढ़ने लगी थी और उस से बदबू आने लगी थी, जिसके कारण मैं उस बदबू को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था और बहुत जोर-जोर से चिल्लाने और रोने लगा।

भगवान को दोष देने लगा कि मैं अच्छा खासा घर पर आनंद उठा रहा था। मेरी मति मारी गई थी, जो मैं यहां आ गया और खूब जोर-जोर से रोने लगा। उस गड्ढे में कई दिन बिताने के बाद अचानक से एक दिन मुझे एक आवाज सुनाई दी, किसी के चलने की थी। तभी मैंने उस आवाज का पीछा करना शुरू कर दिया और आवाज के सहारे आगे बढ़ने लगा।

तभी मैंने देखा कि एक जगह से बहुत रोशनी आ रही थी कि मैंने उस रोशनी के पास जाकर देखा तो वहां पर एक बहुत बड़ा गड्ढा था, जिससे मैं यहां से बाहर निकल सकता था। मैंने तुरंत वहां से सारे जेवर और खाने के लिए सामान उठाकर उस गड्ढे के रास्ते से बाहर आ गया। मैंने देखा कि सामने समुद्र है और उस समुद्र में एक जहाज सामने से चला आ रहा है।

मैंने तुरंत उस जहाज को इशारे से अपनी ओर बुलाया। मेरे ईसारे को समझकर यह मेरी तरफ आया और मुझे अपने साथ लेकर गया। बहुत सारे टापु होकर जहां पर हम लोगों ने बहुत सा व्यापार किया और सारा धन एकत्र करते हैं, आगे की ओर बढ़ते गए। कुछ दिन बीतने के बाद हमारा जहाज बसरा पहुंचा, जहां से मैं अपने घर बगदाद वापस आ गया। घर पहुंच कर मैं बहुत ही आनंद महसूस कर रहा था।

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