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सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा (अलिफ लैला की कहानी)

हर बार की तरह इस बार भी सिंदबाद जहाजी ने अपनी तीसरी यात्रा को सुनाने के लिए दरबार में सभी को बुला लिया और अपनी तीसरी जहाजी यात्रा के बारे में बताने लगा। सिंदबाद ने बताया कि अपनी दूसरी यात्रा करने के दौरान मैं थक गया था और मैंने कुछ दिन आराम करने के बाद दोबारा यात्रा करने का निर्णय लिया।

हर बार की तरह इस बार भी मैंने व्यापार करने के लिए कुछ सामान खरीद लिया और तीसरी यात्रा के लिए चल पड़ा। यात्रा के दौरान एक दिन समुद्र में अचानक से तूफान आने के कारण हमारा जहाज अपने रास्ते से भटक गया और एक टापू पर जा कर रुक गया।

वह टापू कोई ऐसा वैसा टापू नहीं था, उस टापू को मौत का टापू कहा जाता था और वहां पर कोई आता जाता नहीं था। हमारे जहाज के कप्तान ने बताया कि यहां पर बहुत से आदमखोर आदिवासी रहते हैं, जो मनुष्य को मार कर उनको खा जाते हैं। कप्तान की यह बात सुनकर हम लोग बहुत ही डर गए। लेकिन हम लोग कुछ कर नहीं सकते थे और देखते ही देखते कुछ देर में वह भयानक आदिवासी हम लोगों के करीब आ गए।

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हम लोगों को चारों तरफ से घेर कर अपने घर ले गए और अपने घर ले जाकर एक बड़ी सी कोठरी में हम लोगों को बंद कर दिया। कोठरी के अंदर हम लोगों को बहुत से जानवर और मनुष्यों की हड्डी पड़ी हुई नजर आ रही थी। जिसको देखकर हम लोग बहुत डर गए और और अपने भगवान की तरफ देख कर अपने आप को कोसने लगे कि हम लोग यहां क्यों आए हैं।

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बहुत ज्यादा डरे होने के कारण हम लोग बेहोश हो चुके थे। जब हम लोगों को होश आया तब हम लोगों ने देखा कि हम लोगों के सामने से राक्षस के जैसा दिखने वाला आदिवासी हम लोगों के पास आ रहा है। वह दिखने में इतना भयानक था कि उसका आधा शरीर मानो जानवर का और आधा इंसान का था।

उसका मुंह घोड़े के जैसा था, उसके कान हाथी के जैसे और दांत अत्यधिक लंबे और बहुत ही ज्यादा नुकीले थे। तभी उस भयानक दिखने वाले राक्षस ने सबसे पहले मुझे अपने हाथ में उठाकर मेरे शरीर का अंदाजा लगाने लगा। मेरा शरीर बहुत ही दुबला पतला होने के कारण उसने मुझे वापस जमीन में रख दिया और मेरे सारे साथियों को मेरी तरीके देखने लगा।

हमारे समूह में सबसे ज्यादा हमारे जहाज के कप्तान साहब बहुत मोटे और शरीर से बहुत अच्छे थे। उस भयानक दिखने वाले राक्षस में कप्तान साहब को अपने हाथ में उठाकर उनके ऊपर एक लंबी छड़ी से वार किया और आग जला कर उन को मारकर खाने लगा और कुछ देर बाद में भयानक दिखने वाला राक्षस वहां से चला गया।

हम लोगों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि हम लोग क्या करें और इस भयानक राक्षस से अपनी जान कैसे बचाएं। सुबह होते ही हम लोग उसके कमरे से बाहर तो आ गए लेकिन कुछ देर इधर-उधर भटकने के बाद जब रात हो गई तो हम लोगों के पास उस भयानक राक्षस की कोठरी में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था।

तभी हम लोगों ने यह निर्णय लिया कि हम लोग एक बार फिर से भगवान का नाम लेकर उस भयानक राक्षस की कोठरी में जाएंगे और रात को गुजार कर वहां से सुबह होते ही भाग निकलेंगे। लेकिन पिछली बार की तरह रात को वह राक्षस कोठरी में आया और हमारे एक साथी को उठाकर उसको मार कर खा गया और कोठारी से वापस चला गया।

सुबह होते ही जैसे तैसे हम लोग वहां से भाग निकले और यह सोचने लगे कि उस भयानक राक्षस के हांथो मरने से अच्छा है, हम लोग समुद्र के पानी में डूब कर मर जाएं। तभी हम में से एक साथी बोला कि हम लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए। हम लोग बिना मरे ही अपनी जान बचा सकते हैं।

तभी अचानक से मैंने अपने चारों तरफ लकड़ियां और रस्सी को देखा, जिसको देखकर मुझे एक तरकीब आई। मैंने अपने सभी साथियों से कहा कि हम लोग इन लकड़ियों की नाव बनाकर यहां से भाग सकते हैं। मेरे द्वारा यह बताई हुई तरकीब सबको पसंद आई और सब ने नाव बनाना शुरू कर दिया और यह तय किया कि राक्षस के सोने के बाद हम लोग यहां से भागेंगे।

नाव को एक जगह छुपाने के बाद हम लोग वापस उस राक्षस की कोठरी में गए। हर बार की तरह इस बार भी उस राक्षस ने हमारे एक साथी को मारकर खा लिया और जब वो राक्षस सो रहा था तब हम लोगों ने लोहे की एक सरिया को गर्म करके उस भयानक दिखने वाले राक्षस की आंख पर मार दिया और वहां से भाग निकले। कोठरी से बाहर निकलने के तुरंत बाद हम लोगों ने अपनी नाव को समुद्र के पानी में उतारकर वहां से भाग निकले।

जैसे तैसे समुद्र में अपनी जान बचाते हुए हम लोग एक दूसरे टापू के पास पहुंचे, वहां पहुंचकर हम लोगों ने राहत की सांस ली और वहां पर लगे पेड़ों से फल को खाकर अपनी भूख को शांत किया और आराम करने के लिए वही पेड़ के नीचे सो गए। अचानक से जब हम लोगों की आंख खुली तो मैंने देखा कि एक पेड़ के बराबर अजगर मेरे साथी को निगल गया है।

अब मेरे साथ केवल मैं और मेरा एक और साथी बचा था। हम दोनों बहुत ही डरे हुए थे कि हम लोगों ने बड़ी मुश्किल से जाने कैसे हम लोगों ने राक्षस से अपनी जान बचाई थी और अब एक और नया संकट आ पड़ा है। थोड़ी दूर चलने के बाद एक बहुत बड़ा पेड़ दिखाई दिया, जिस पर मैं तुरंत चड़ गया और मैंने अपने साथी को भी पेड़ पर चढ़ने के लिए बोल दिया।

मैं तो पेड़ की अधिक ऊंचाई पर पहुंच गया था और मेरा दोस्त नीचे ही था। तभी अचानक से अजगर वहां आया और मेरे दोस्त को निगल गया और वहां से चला गया। इस पूरी घटना को देख कर मैं बहुत ही बुरी तरीके से डर गया था और अपनी जान बचाने के लिए मैंने पेड़ के चारों ओर नुकीली झाड़ियों से एक सुरक्षा कवच बना लिया, जिससे अजगर मेरे पास ना आ सके।

रात होते ही अजगर पुनः पेड़ पर चढ़ा और मेरी ओर आने लगा। लेकिन वह मेरे द्वारा बनाया हुआ सुरक्षा कवच को पार नहीं कर पा रहा था और वह हार कर वहां से चला गया। सुबह होती ही मैंने वहां पर देखा कि एक जहाज समुद्र में जा रहा था। तभी मैंने जोर से आवाज लगाई और जहाज को अपनी ओर बुलाया और जहाज में बैठ कर आगे की ओर चल पड़ा।

तभी जहाज में बैठे सभी व्यापारियों ने मुझसे पूछा कि तुम यहां कैसे पहुंचे और तुम यहां जीवित कैसे बच गए। तभी मैंने उनको अपना सारा किस्सा सुनाया कि किस तरह मैंने अपनी जान बचाई है। मेरी यह कहानी सुनकर जहाज में सभी बैठे व्यापारियों को मेरे ऊपर दया आ गई और वह मुझे अपने साथ ले गए।

कई दिन जहाज में बिताने के बाद हम लोग के टापू पर पर पहुंचे, जहां पर चंदन के बहुत बड़े-बड़े पेड़ थे, जिस पर सभी व्यापारियों ने चंदन की लकड़ी का व्यापार किया और बहुत सारा धन एकत्र कर लिया और बहुत सारे टापू घूमते हुए और कई वस्तुओं का व्यापार करते हुए बसरा नमक बंदरगाह पर पहुंच गए और वहां से मैं वापस अपने घर आ गया।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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