Shankaracharya Biography in Hindi: आदि शंकराचार्य एक ऐसे व्यक्तित्व वाले महापुरुष थे, जिन्होंने मानव जाति को ईश्वर की वास्तविकता का अनुभव कराया।
इतना ही नहीं कई बड़े महा ऋषि मुनि कहते हैं कि जगतगुरु आदि शंकराचार्य स्वयं भगवान शिव के साक्षात अवतार थे। जगतगुरु आदि शंकराचार्य के जीवन एवं उनके कार्यों के बारे में वर्णन करना समुंद्र के सामने एक छोटी सी बूंद के सामान है।
जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने मानव जाति को ईश्वर क्या है और ईश्वर की क्या महत्वता इस मृत्युलोक में है, इन सभी का अर्थ पूरे जगत को समझाया। इन्होंने अपने पूरे संपूर्ण जीवन काल में ऐसे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिनका महत्व हमारे भारत की संस्कृति के लिए वरदान के भाती है।
आदि शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म को बहुत ही खूबसूरती से निखारा है और इसका पूरे विश्व भर में प्रचार-प्रसार किया है। इन्होंने अपने ज्ञान के प्रकाश को अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशमान किया और लोको सुबुद्धि और आस्था के प्रति सुदृढ़ रास्ता भी दिखाया।
आदि शंकराचार्य ही ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने विभिन्न मठों की स्थापना की और इसके साथ ही कई शास्त्र और उपनिषद की भी रचना की थी।
इस लेख में आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय जानेंगे। इस जीवन परिचय में शंकराचार्य कौन थे, उनका जन्म, परिवार, माता-पिता, गुरु का नाम, प्रमुख साहित्य, मृत्यु आदि के बारे में विस्तार से बताया है।
आदि शंकराचार्य का जीवन परिचय (Shankaracharya Biography in Hindi)
नाम | आदि शंकराचार्य |
जन्म | वैशाख शुक्ल पंचमी, 788 ई., विक्रम संवत (ईसा से 1235 वर्ष पूर्व) |
जन्मस्थान | कालड़ी गांव, चेर साम्राज्य (वर्तमान में केरल, भारत) |
पिता | श्री शिवागुरू |
माता | श्रीमति अर्याम्बा |
जाति | नाबूदरी ब्राह्मण |
धर्म | सनातन |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
भाषा | संस्कृत, हिन्दी |
गुरु | गोविंदाभागवात्पद |
प्रमुख उपन्यास | अद्वैत वेदांत |
मृत्यु | 820 ईस्वी |
शंकराचार्य का जन्म कब हुआ?
आदि शंकराचार्य के जीवन काल को लेकर अलग-अलग विद्वानों द्वारा काफी भेद देखने को मिलता है। महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा प्रकाशित पुस्तक सत्यार्थ में उन्होंने लिखा है कि शंकराचार्य का जीवन काल लगभग 2200 वर्ष पूर्व का है।
आज के इतिहासकारों शंकराचार्य के जन्म को आज से करीब ढाई हजार साल पहले 788 ईस्वी को बताते हैं और उनकी मृत्यु 820 ईस्वी को बताया जाता है।
महा ज्ञानी एवं महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। भारत देश के केरल राज्य के कालड़ी नामक स्थान पर इनका जन्म हुआ है और वहां के लोगों का मानना है कि धन्य है, वह पावन भूमि जहां पर साक्षात भगवान शिव ने अवतार लिया था।
उनके पिता शिवगुरु और माता आर्यम्बा को कोई भी बच्चा नहीं था और उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि उनके घर एक पुत्र धन की प्राप्ति हो। कुछ विद्वानों का मानना है कि आदि शंकराचार्य की मां आर्यम्बा को भगवान शिव ने स्वप्न में वचन दिया था कि उनके घर स्वयं हुआ पुत्र रूप में अवतरित होंगे।
इसी सिद्धांत से कुछ विद्वानों का मत है कि आदि शंकराचार्य के रूप में स्वयं भगवान शिव ने पुनर्जन्म लिया था। आदि शंकराचार्य को शिक्षा दीक्षा देने का कार्य उनकी माता ने ही किया, क्योंकि उनके पिता की मृत्यु जब शंकराचार्य 7 वर्ष के थे तभी हो गई थी।
आदि शंकराचार्य को वेद और उपनिषद पढ़ाने में उनकी मां ने अपनी अहम भूमिका निभाई थी।
आदि शंकराचार्य का प्रारंभिक जीवन व सन्यास
आदि शंकराचार्य अपने बचपन के उम्र से ही ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति थे, जो कई लोगों को अपने बुद्धि एवं विवेक के ज्ञान से चकित करने में सक्षम थे।
उन्होंने छोटी उम्र में ही उपनिषदों, ब्रह्म सूत्रों एवं भागवत गीता का विश्लेषण करके उनके बारे में लिखना शुरु कर दिया था। अपितु आदि शंकराचार्य कि बचपन से ही इच्छा थी कि वह एक सन्यासी के रूप में अपने जीवन को व्यतीत करें। मगर उनकी मां उनकी इच्छा के विरोध में थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि जब आदि शंकराचार्य की उम्र मात्र 18 वर्ष की थी तब वह अपने मां के साथ प्रतिदिन नदी में स्नान करने के लिए जाया करते थे।
जब एक दिन आदि शंकराचार्य अपने मां के साथ रोज की भांति स्नान करने गए तभी नदी में स्नान करने के दौरान उनको एक मगरमच्छ जकड़ लेता है। फिर वह अपनी मां से बोलते हैं, कि मां मुझे सन्यासी बनने की अनुमति दे दो वरना यह मगरमच्छ मुझे भक्षण कर ले जाएगा।
उनकी मां ने घबराहट में आकर उन्हें सन्यासी बनने की अनुमति प्रदान कर दी। परिणाम स्वरूप मगरमच्छ उनको छोड़कर वापस नदी में लौट जाता है।
अपने मां द्वारा अनुमति मिलने के बाद वह अपने गृहस्थ जीवन को छोड़कर सन्यासी जीवन धारण करके अपने गुरु की तलाश में और अध्यात्म के ज्ञान की ओर अपनी यात्रा को शुरू कर देते हैं।
ज्ञान और गुरु की तलाश में उनकी मुलाकात आचार्य गोविंद भगवत्पाद जी से हुई। जिसे इन्होंने अपने गुरु के रूप में और गोविंद भगवत्पाद ने आचार्य शंकराचार्य को अपने शिष्य के रूप में स्वीकारा।
कई प्राचीन एवं धार्मिक लिपियों के अनुसार यह बताया गया है कि जब तक वे अपने गुरु से नहीं मिले थे, तब तक उन्होंने ज्ञान और गुरु की तलाश में लगभग 2000 किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी कर ली थी।
आदि शंकराचार्य ने अपने गुरु की छत्रछाया में रहकर ‘गौड़पादिया कारिका’, ‘ब्रह्मसूत्र’, वेद और उपनिषदों का अध्ययन किया। अपने गुरु के छत्रछाया में रहकर उन्होंने सभी वेदों एवं धार्मिक ग्रंथों का संपूर्ण रूप से अध्ययन कर लिया था।
जब वह पूरी तरह से प्राचीन हिंदू धर्म की लिपियों को समझ चुके थे, तब उन्होंने ‘अद्वैत वेदांत’ और ‘दशनामी संप्रदाय’ का प्रचार करते हुए पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। उनकी इस यात्रा के दौरान उनको कई दार्शनिकों का विरोध झेलना और विचारकों का सामना करना पड़ा था।
सभी के अतिरिक्त आदि शंकराचार्य हिंदू धर्म और उसकी मान्यताओं से संबंधित कई बहस में शामिल हुए थे और उन्होंने अपनी बुद्धिमता और स्पष्टता के साथ अपने सभी विरोधियों को उनका सही सही उत्तर देकर उनको आश्चर्यचकित कर दिया था।
सभी प्रकार की समस्याओं से निपटने के बाद वे अपने उद्देश्य की ओर आगे बढ़े और उनको कई सारे इससे भी मिलते गए, जिन्होंने उन्हें गुरु के रूप में भी स्वीकार किया।
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आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों के नाम
आदि शंकराचार्य ने अपने चमत्कारी जीवन काल में बहुत सारे महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जो हिंदू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों में से चार मठों की स्थापना उनमें से एक है। आइए जानते हैं, कहां पर और किन किन मठों को उन्होंने स्थापित किया।
शृंगेरी शारदा पीठम
जगतगुरु आदि शंकराचार्य का यह पहला मठ है। इस मठ की स्थापना उन्होंने भारत के कर्नाटक राज्य के चिकमंगलुर नामक जिले में स्थित है।
इस जिले के तुंगा नदी के किनारे इस को स्थापित किया गया है। इस मठ की स्थापना यजुर्वेद के आधार पर की गई है।
द्वारका पीठम
भारतवर्ष के गुजरात प्रदेश में द्वारका पीठ की स्थापना की गई है और इस पीठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने सामवेद के आधार पर की हुई है।
ज्योतिपीठ पीठम
इस मठ की स्थापना आदि शंकराचार्य ने उत्तर भारत में की थी। आदि शंकराचार्य ने तोता चार्य को इस मठ का प्रमुख बनाया था। इस मठ का निर्माण आदि शंकराचार्य ने अर्थ वेद के आधार पर किया है।
गोवर्धन पीठम
इस मठ की स्थापना भारत के पूर्वी स्थान यानी कि जगन्नाथपुरी में किया गया था। यहां तक की जगन्नाथ पुरी मंदिर को इस मठ का हिस्सा ही माना जाता है। इस मठ का निर्माण आदि शंकराचार्य ने ऋगवेद आधार पर किया हुआ है।
आदि शंकराचार्य द्वारा चार पीठों की स्थापना एवं उनका हिंदू महत्व
आदि शंकराचार्य ने भारतवर्ष के चारों कोनों में वेदांत मत का प्रचार प्रसार किया और इन्होंने ही इन चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना भी की।
हिंदू धर्म के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति इन चारों मठों की यात्रा कर लेता है, तो वह मोक्ष की प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है।
हिंदू धर्म में आदि शंकराचार्य की महत्वता
आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को बहुत ही अच्छी तरह से समझ कर एवं इसके सांस्कृतिक एवं धार्मिक मान्यताओं को पूरे विश्व में प्रचार प्रसार करने का बीड़ा उठाया था।
आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म के हित में ऐसे बहुत से महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जो आज भारतीय इतिहास के लिए गर्व की बात है।
हिंदू धर्म में पहले एक दूसरे के प्रति भेदभाव एवं ऊंच-नीच आदि के व्यवहार को खत्म करने के लिए अपना बहुत योगदान दिया हुआ है।
शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए ईश्वर के प्रति आस्था और ईश्वर के महत्वता को लोगों को समझाने का कार्य किया है। उनके द्वारा किए गए सभी प्रकार के महत्वपूर्ण कार्यों को आज की पीढ़ी कहीं ना कहीं पर अवश्य याद करती है।
शंकराचार्य के गुरु से संबंधित एक रोचक घटना
शंकराचार्य के गुरु से संबंधित एक कथा है कि एक बार उनके गुरु गुफा में तप कर रहे थे कि तभी अचानक नदी के बहाव से पानी गुफा के अंदर आ पहुंचा तब शंकराचार्य ने गुफा के बाहर घड़े को रख दिया ताकि सारा पानी गुफा के अंदर ना जा पाए और घड़े में भर जाए ताकि उनके गुरु की साधना में कोई भी रुकावट ना हो।
उनके इस कार्य को देखकर गुरु उनसे काफी प्रसन्न हुए और उन्हें काशी जाकर विश्वनाथ करते हुए ब्रम्हासूत्रशाष्य लिखने की सलाह दी। गुरु की आज्ञा पर शंकराचार्य काशी पहुंचे गए, जहां गंगा तट पर उनका एक चाण्डाल से सामना होता है।
चाण्डाल ने जैसे शंकराचार्य को स्पर्श किया, शंकराचार्य कुपित हो उठे। तब चांडाल ने हंसते हुए शंकराचार्य से पूछा कि आत्मा और परमात्मा जब एक है तब तुम्हारे देह को स्पर्श करने पर कौन अपवित्र हुआ? तुम या तुम्हारे देह का अभिमान? परमात्मा सभी की आत्मा में है।
इसीलिए एक सन्यासी होकर ऐसा विचार रखना सही नहीं। ऐसा विचार रखोगे तो तुम्हारे संन्यासी होने का कोई अर्थ नहीं होगा।
माना जाता है कि वह चांडाल नहीं था बल्कि चांडाल के रूप में साक्षात भगवान शंकर थे, जिन्होंने शंकराचार्य को दर्शन दिया और उन्हें ब्रह्मा और आत्मा का सच्चा ज्ञान भी दिया है।
इसी ज्ञान को प्राप्त कर के शंकराचार्य दुर्ग रास्ते से होते हुए बद्रिकाश्रम पहुंचे, जहां पर वे चार वर्ष रह कर तहारत पर भाष्य लिखा और वहीं से फिर वे केदारनाथ के लिए रवाना हुए।
केदारनाथ में उनका मंडन मिश्र नाम के कर्मकांडी ब्राह्मण से शास्त्रार्थ हुआ। शंकराचार्य ने मण्डन मिश्र को पराजित किया, फिर वे दक्षिण पहुंचकर कर्मकाण्ड का प्रचार किया। इसी बीच उन्हें अपने बिमार माता के बारे में ज्ञात हुआ। इसीलिए अपने मां के अंतिम दर्शन के लिए वे कालडी ग्राम पहुंचे।
सन्यासी के लिए किसी का भी दाह संस्कार करना वर्जित होता है लेकिन उसके बावजूद भी उन्होंने अपने हाथों से अपने माता का दाह संस्कार किया।
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कार्यकाल
आदि शंकराचार्य एक ऐसे महान विद्वान थे, जिन्होंने अपने जीवन काल में अपने सभी उद्देश्य को पूरा कर लिया। उन्होंने अपने ज्ञान के माध्यम से भारत दर्शन कर हर एक व्यक्ति को ज्ञान का पाठ सिखाया। उन्होंने हिंदू समाज को एकता के अटूट धागे में पिरोने का प्रयास किया।
आदि शंकराचार्य महज 2 से 3 वर्ष की आयु में शास्त्र, वेद जैसे पवित्र पुस्तकों को कंटेस्ट कर लिए थे। अपने महान कार्य के कारण ही वे जगतगुरु के नाम से पूजे जाते हैं।
इनके द्वारा स्थापित चारों मठों में यें प्रमुख गुरु के रूप में पूजे जाते हैं। आदि शंकराचार्य ने अपने जीवन काल में देवी देवताओं की स्तुति के लिए कई सारी कविता और स्त्रोत की रचना की, जिनमें से कुछ प्रसिद्ध स्त्रोत भगवान शिव और कृष्ण को समर्पित हैं।
उपदेसहाश्री, उनकी सबसे प्रसिद्ध साहित्यिक कृतियों में से एक है, जिसका अर्थ एक हजार शिक्षाएं है। शंकराचार्य अपने जीवन काल में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारतवर्ष की यात्रा की और चारों तरफ धर्म का प्रचार प्रसार किया।
अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने कई विद्वानों से शास्त्रार्थ भी किया। इन्होंने समस्त भारतवर्ष में भ्रमण के दौरान बौद्ध धर्म को मिथ्या प्रमाणित किया और वेद धर्म का प्रचार प्रसार किया, जिसके कारण कुछ बौद्ध इन्हें शत्रु समझते थे। लेकिन शंकराचार्य ने उन सभी बौद्धो को शास्त्रार्थ में पराजित करके पुन: स्थापना वैदिक धर्म की स्थापना की।
शंकराचार्य ने अपने कार्यकाल में दशनामी संप्रदाय की भी स्थापना की थी, जो निम्नलिखित हैं:
गिरि, पर्वत और सागर, भृगु को इनका ऋषि माना जाता है। वहीं पुरी, भारती और सरस्वती के ऋषि शांडिल्य कै बताया जाता है। उसके बाद काश्यप को वन और अरण्य के ऋषि माना जाता है। उसके बाद अवगत को तीर्थ और आश्रम के ऋषि माना जाता है।
इन सबके अतिरिक्त शंकराचार्य की 14 से ज्यादा ज्ञात आत्मकथाएं भी हैं, जिनमें उनके जीवन को दर्शाया गया है। उनके कुछ आत्मकथाओं का नाम गुरुविजय, शंकरभ्युदय और शंकराचार्यचरित करके है।
आदि गुरु शंकराचार्य की मृत्यु कैसे हुई?
विद्वानों का मानना है कि जब आदि शंकराचार्य की उम्र 32 वर्ष की हुई तब उन्होंने हिमालय से अपना सेवानिवृत्त किया और फिर केदारनाथ के पास एक गुफा में चले गए।
ऐसा कहा जाता है कि जिस गुफा में वे प्रवेश किए थे, वहां वे दुबारा दिखाई नहीं दिए और यही कारण है, कि वह गुफा उनका अंतिम विश्राम स्थल माना जाता है।
FAQ
आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म को महत्वता प्रदान करने वाले एवं हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार में अपने जीवन को व्यतीत कर दिए। ऐसे महापुरुष एवं अलौकिक पुरुष का जयंती इस वर्ष 28 अप्रैल को मनाया जाएगा।
शंकराचार्य जी एक ऐसे सन्यासी थे, जिन्होंने बहुत कम उम्र में वेदों और उपनिषदों का ज्ञान ले लिया था। उन्हंं भगवान शिव का साक्षात अवतार भी माना जाता था।
शंकराचार्य जी के जन्म तारीख को लेकर विद्वानों में काफी भेद देखने को मिलता है। हालांकि आज के इतिहासकार के अनुसार शंकराचार्य का जन्म 788 में हुआ था।
शंकराचार्य नाबूदरी ब्राह्मण थे।
शंकराचार्य के गुरु का नाम गोविंदाभागवात्पद था।
जन्म की तरह ही शंकराचार्य की मृत्यु को लेकर भी काफी भेद विद्वानों के मत में देखने को मिलता है। हालांकि अभी के इतिहासकारों के अनुसार उनकी मृत्यु 820 ईस्वी में केदारनाथ के गुफा में हुई थी।
हम यहाँ यूट्यूब विडियो की लिंक भी दे रहे हैं, जहाँ से आप इसे विडियो के रूप में देख सकते हैं।
निष्कर्ष
आज हमारे हिंदू धर्म की महत्वता देश विदेशों में काफी ज्यादा प्रसिद्ध है। हमारे हिंदू धर्म की प्रसिद्धि का कारण केवल ऐसे ही अलौकिक और महापुरुष होते हैं। हमारे हिंदू धर्म में ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे, जो इसका आदर सम्मान नहीं करते हैं।
ऐसे किसी भी धर्म या जाति का निरादर करना आदि शंकराचार्य ने अपने पूरे जीवन काल में किसी को नहीं सिखाया था। हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अपने हिंदू धर्म को महत्वता प्रदान करें और ऐसे अलौकिक पुरुषों को सदैव अपने हृदय में बरसाए रखे।
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Very Nice Information Bro………………… om om om om om
bhai lajwab post….bahut accha lga gurudev ke baare me jankari paakar.. aur aapka likhne ka tarika bhi lajwab tha….god bless you my dear……….
Great work bro, may prabhu bless you