इस लेख में शकुन्तला देवी की जीवनी (Shakuntala Devi Biography in Hindi) विस्तार से जानेंगे। साथ ही शकुंतला देवी की शिक्षा, उनका परिवार, वैवाहिक जीवन एवं बच्चे, उनको मिले अवॉर्ड्स और पुरस्कार, उन पर बनी फिल्म आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।
यह दुनिया विविधताओं से भरी पड़ी है। ईश्वर ने प्रत्येक मनुष्य को अनूठा बनाया है और हर एक को कोई न कोई ऐसा कौशल जरुर दिया है, जो उसे दूसरों से अलग बनाता है।
इसी तथ्य के साथ आज हम आपको इस लेख में ऐसी शख्सियत के बारे में बताने जा रहे है, जिन्होंने अपने गणित के अद्भुत कौशल से उस समय के सबसे तेज माने जाने वाले कंप्यूटर को भी पीछे छोड़ दिया।
हम बात कर रहे है मानव कंप्यूटर के नाम से विख्यात गणितज्ञ और ज्योतिषी शकुन्तला देवी की, उनकी संख्यात्मक परिगणना की फुर्ती और सरलता के कारण उन्हें मानव कंप्यूटर भी कहा जाता है।
शकुन्तला देवी भारत की महान शख्सियत प्रसिद्ध गणितज्ञ, ज्योतिषी, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता थी। आज भारत सहित पूरी दुनिया में उनका नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है।
शकुन्तला देवी की जीवनी एक नजर में
नाम | शकुंतला देवी |
उपनाम | मानव कंप्यूटर |
जन्म तिथि व स्थान | 4 नवंबर 1929, बैंगलोर, मैसूर राज्य, ब्रिटिश भारत |
निधन | 21 अप्रैल 2013, बैंगलोर, कर्नाटक (सांस की बीमारी के कारण मृत्यु) |
आयु | 83 वर्ष |
नागरिकता | भारतीय |
जाति (Caste) | कन्नड़ ब्राह्मण |
शिक्षा | कोई भी औपचारिक शिक्षा नहीं प्राप्त की |
कार्य | लेखिका एवं गणितज्ञ |
पति का नाम (Husband Name) | परितोष बनर्जी (साल 1960 में शादी और साल 1979 में तलाक) |
बच्चे (Childrens) | अनुपमा बेनर्जी (बेटी) |
शकुंतला देवी जी का जीवन परिचय
ऐसा कहा जाता हैं कि 1980-90 के दशक में जब कोई गाँव शहर में कोई बच्चा गणित में अधिक होशियार हो जाता तो कहते कि ये लड़का तो शकुन्तला देवी बन रहा है।
शकुन्तला देवी बचपन से ही सभी प्रकार के गणितीय सवालों के जवाब देने में सक्षम थी। वे हमेशा अपनी इस प्रतिभा से लोगों में गणित के प्रति रूचि पैदा करने के लिए प्रेरित करती रहती थी।
वे एक कुशल गणितज्ञ होने के साथ-साथ एक ज्योतिष, लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता भी थी। उनके लेख आज भी हजारों लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत है।
प्रारंभिक जीवन एवं शिक्षा
इस अद्भुत प्रतिभा की धनि शकुन्तला देवी का जन्म 4 नवम्बर 1929 को कर्नाटक राज्य के बैंगलोर शहर में हुआ। एक रुढ़िवादी कन्नड़ ब्राह्मण परिवार ने जन्म लेने वाली शकुन्तला देवी का परिवार बेहद गरीब था, इसी गरीबी के चलते वे प्रारंभिक शिक्षा भी नहीं प्राप्त कर पाई।
रुढ़िवादी ब्राह्मण परिवार के कारण इनके पिता पर मंदिर में पंडित का काम करने का दबाव था। लेकिन इनके पिता ने ऐसा करने से मना कर दिया और इसके बजाय उन्होंने एक सर्कस में काम करना पसंद किया।
शकुन्तला देवी के पिता शहर-शहर और गाँवों में घूम-घूमकर मदारी जैसे खेल दिखाते थे, बांस पर तनी रस्सी पर चलकर लोगों का मनोरंजन करते थे।
शकुन्तला देवी के पिता को इनकी प्रतिभा का पता तब चला जब उन्होंने मात्र 3 वर्ष की आयु में अपने पिता को ताश के खेल में हराया। तभी इनके पिता को अपनी बेटी की इस अद्भुत मानसिक योग्यता का पता चला।
इसके बाद इनके पिता ने सर्कस के खेल को छोड़कर शकुन्तला देवी पर सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन करना शुरू कर दिया। जिसने शकुन्तला देवी को स्थानीय स्तर पर काफी लोकप्रिय बना दिया।
जब शकुन्तला देवी 6 वर्ष की थी तब मैसूर विश्वविद्यालय के बड़े कार्यक्रम में अपनी गणना क्षमता का प्रदर्शन किया था। सन 1977 में इन्होनें 201 अंकों की संख्या का 23वां वर्गमूल बिना कागज व कलम की मदद से निकाल लिया। मात्र 26 सेकंड में इन्होनें 13 अंकों की 2 संख्याओं का गुणनफल बता दिया।
अत्यधिक आर्थिक तंगी के कारण 10 वर्ष की आयु में शकुतंला देवी को संत थेरेसा कॉन्वेंट चमाराजपेट में प्रथम कक्षा में दाखिला दिलाया गया। उस समय इनके माता-पिता के पास स्कूल की फ़ीस जो की मात्र 2 रूपये थी, वे वह भी देने में असमर्थ थे। जिसके चलते 3 महीने के भीतर ही उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।
शकुतंला देवी अपनी गणितीय दक्षता के चलते स्थानीय क्षेत्र में तो लोकप्रिय थी ही, लेकिन इन्हें राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान 15 वर्ष की आयु तक मिली।
शकुतंला देवी पहली बार मीडिया की नज़रों में तब आई जब बीबीसी रेडियो के कार्यक्रम के दौरान इन्हें अंकगणित का एक बेहद जटिल सवाल पुछा गया। यहाँ शकुतंला देवी ने पलक झपकते ही इसका जवाब दे दिया।
यह घटना और भी मज़ेदार तब बनी जब शकुतंला देवी का जवाब सही था और रेडियो कार्यक्रम प्रस्तोता का जवाब गलत।
शकुंतला देवी की लोकप्रियता
50 से अधिक देशों में यात्रा करने के पश्चात और विभिन्न शैक्षणिक संस्थान, थियेटर्स और टेलीविजन पर अपनी गणितीय क्षमता का प्रदर्शन करने के बाद शकुंतला देवी काफी ज्यादा लोकप्रिय होते जा रही थी।
इसी दौरान 27 सितंबर 1973 को रेडियो चैनल बीबीसी के द्वारा नेशनवाइड नाम का एक प्रोग्राम प्रसारित होता था। उस प्रोग्राम में शकुंतला देवी को निमंत्रित किया गया था और उसमें शकुंतला देवी से उस समय के चर्चित व्यक्ति बॉब वेल्लिंग्स उनसे गणित से संबंधित कई जटिल प्रश्न पूछे थे।
उन प्रश्नों का जवाब शकुंतला देवी ने इतनी तेजी से दिखते कि खुद बाॅब भी अचंभित हो गए। इस प्रोग्राम को देखने के बाद भारत सहित विश्व भर के लोग शकुंतला देवी के प्रशंसक बन गए।
इस प्रोग्राम के बाद शकुंतला देवी काफी ज्यादा चर्चाओं में आने लगी थी। उनके गणित कौशल के हर कोई दीवाने हो चुके थे। वह गणित में धूम मचा रही थी।
उसी दौरान 18 जून 1980 को लंदन के इंपीरियल कॉलेज में आयोजित एक टेस्ट में शकुंतला देवी से और जटिल प्रश्न पूछा गया था और उस जटिल प्रश्न का उत्तर उन्होंने कुछ ही सेकंड में देकर वहां उपस्थित सभी दर्शकों को आश्चर्यचकित कर दिया।
मात्र 16 वर्ष की उम्र में शकुंतला देवी ने मात्र 28 सेकंड में 13 अंकों के संख्याओं का गुणनफल निकालकर उस समय संसार का सबसे तेज कंप्यूटर को भी 10 सेकेंड के अंतर से हरा दिया था।
वैवाहिक जीवन एवं बच्चे
वर्ष 1960 में शकुन्तला देवी ने कोलकाता के भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी परितोष बनर्जी से शादी की।
हालांकि दुर्भाग्य से इस शादी का अंत 19 साल बाद एक-दुसरे को तलाक देकर हुआ। शकुन्तला देवी की एक बेटी भी है, जिसका नाम अनुपमा बनर्जी है।
राजनीति में शकुतंला देवी
शकुतंला देवी बहुमुखी प्रतिभा की धनी थी। लिहाजा उन्होंने वर्ष 1980 में दक्षिण मुंबई और मेडक (वर्तमान में तेलंगाना का एक भाग) से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। चुनाव क्षेत्र मेडक से वे इंदिरा गाँधी की प्रतिद्वंदी थी। उस समय उनका चुनावी नारा था।
“मैं इंदिरा गाँधी द्वारा मेडक की जनता को मुर्ख बनाये जाने से बचाना चाहती हूँ।“
मेडक के उस चुनाव में शकुतंला देवी 6514 वोटों के साथ 9वां स्थान प्राप्त किया। हालाँकि इस चुनाव में उनको हार का सामना करना पड़ा और करीब 1980 में वे बेंगलूरु लौट गयी।
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मानव कंप्यूटर नाम मिलना
साल 1977 में शकुंतला देवी अमेरिका गई थी और वहां उन्हें डलास की एक यूनिवर्सिटी में उस समय के आधुनिक तकनीकों से लैस और तेज कंप्यूटर “यूनीवैक” से उनका मुकाबला करवाने के लिए उन्हें आमंत्रित किया था।
इस मुकाबले में शकुंतला देवी से प्रोग्राम के जजों ने 201 अंको की एक संख्या का 23वां वर्गमूल निकालने के लिए कहा था। आप यह जानकर दंग रह जाएंगे कि शकुंतला देवी ने इस प्रश्न का जवाब मात्र 50 सेकंड में ही दे दिया था।
जबकि उस यूनीवैक नामक कंप्यूटर ने इस सवाल को हल करने में 62 सेकंड का समय लिया था, जो वहां उपस्थित सभी लोगों के लिए आश्चर्य की बात थी। इस घटना के बाद शकुंतला देवी पूरी दुनिया में “भारतीय मानव कंप्यूटर” के नाम से प्रख्यात हो गई थी।
शकुंतला देवी को मिले अवॉर्ड्स और पुरस्कार
- 1970 में शकुन्तला देवी को फिलीपिंस युनिवर्सिटी द्वरा मोस्ट डिस्टिंग्विश्ड वुमेन ऑफ द ईयर सम्मान दिया गया।
- वर्ष 1982 में शकुन्तला देवी को गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स के लिए सबसे बेहतरीन गणितज्ञ के रूप में दर्ज किया गया, उन्होंने 13 अंकों की संख्या को गुना करने में उस समय के सबसे तेज कंप्यूटर को मात दी थी।
- 1988 में अमेरिका के तत्कालीन भारतीय राजदूत रामानुज मैथमेटिकल जीनियस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
- उनकी मृत्यु 2013 में करीब एक महीने बाद उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
- इसके साथ ही भारत की महान गणितज्ञ शकुंतला देवी को बीबीसी द्वारा मानव कंप्यूटर की उपाधि दी गई थी।
- इसके अलावा 4 नवंबर 2014 को शकंतुला देवी के 84 जन्मदिवस पर गूगल ने अपने डूडल पर विशेष तरह से सम्मानित किया और इनके बारे में विस्तार से लिखा।
शकुंतला देवी का निधन (Shakuntala Devi Death)
अप्रैल 2013 को शकुन्तला देवी को तबियत बिगड़ने के कारण बेंगलुरु के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया।
तकरीबन 2 हफ़्तों तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद 21 अप्रैल 2013 के दिन ह्रदय गति रुक जाने से अस्पताल में ही उनका देहांत हो गया।
शकुंतला देवी के बारे में रोचक तथ्य
- शकुतंला देवी अपने पिता के साथ सड़कों पर अपनी कला का प्रदर्शन करती थी, वे बिना किसी औपचारिक शिक्षा के बेहद जटिल गणित के सवालों को आसानी से हल कर देती थी।
- भारत में 1980-90 के दशक में कोई बच्चा अगर गणित में अधिक होशियार हो जाता तो लोग उसकी प्रशंसा में कहते कि यह तो शकुन्तला देवी बन रहा है।
- शकुन्तला देवी ने अपने पिता के साथ ताश खेलते हुए कई बार उनको हराया। अपनी बेटी की इस क्षमता को पहचान कर पिता ने सर्कस की नौकरी छोड़ सार्वजनिक कार्यक्रमों का आयोजन करना शुरू कर दिया।
- शकुंतला देवी ने शुरुआत में अपने कैलकुलेशन को तेज करने के लिए बड़ी संख्या के क्यूब रूट्स को निकालने से शुरुआत की थी। 1930 के दशक में बहुत कम उम्र में ही शकुंतला देवी बड़ी-बड़ी संख्याओं का बहुत तेजी से क्यूब रूट्स निकाल लेती थी।
- साल 1988 में अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में आर्थर जेन्सेन नाम के मनोवैज्ञानिक ने एक टेस्ट का आयोजन किया था, उस टेस्ट में शकुंतला देवी ने 204,336,469 इतनी बड़ी संख्या का क्यूब रूट मात्र 5 सेकेंड में निकाल दिया था।
- शकुंतला देवी का कैलकुलेशन और उनका माइंड इतना तेज था कि किसी भी शताब्दी के तारीख को देखकर वह बता देती थी कि उस तारीख को सप्ताह का कौन सा दिन था।
- अपने करियर में शिखर पर पहुँचने और इतनी शोहरत पाने के बाद उन्होंने दान-पुण्य और सामाजिक कार्यों में भी वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी। विशेषकर वे निर्धन परिवारों की बालिकाओं की मदद के लिए सदैव तत्पर रहती थी।
- शकुन्तला देवी द्वारा लिखित पुस्तक “द वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्सुअल 1977” भारत में पहला समलैंगिक का व्यापक अध्ययन है। इसके अलावा उन्होंने ज्योतिष और स्मरण शक्ति जैसे विषयों पर भी लिखा है।
- वर्ष 2013 में 4 नवंबर को इनके 84 वें जन्मदिन पर गूगल द्वारा इनको Google Doodle से सम्मानित किया था। Google Doodle में गूगल पर सर्च इंजन पेज पर प्रसिद्ध लोगों का चित्र लगाकर उनको सम्मानित करता है।
शकुंतला देवी द्वारा लिखी गई किताबें
- शकुन्तला देवी की किताब “फिंगरिंग – द जॉय ऑफ़ नंबर” में इन्होनें अपनी मानसिक गणनाओं के बारे में विस्तार से लिखा है, उन्होंने बताया हैं कि किस प्रकार से वे नम्बरों के साथ खेलकर बड़े-बड़े कैलकुलेशन मिनटों में पूरा कर लेती है।
- सन 1977 में शकुन्तला देवी ने “द वर्ल्ड ऑफ होमो सेक्सुअल” लिखी। यह भारत की ऐसी पहली पुस्तक थी, जिसमें समलैंगिकता के बारे में इतना विस्तार से लिखा था। वे कहती थी कि उन्होंने इसे बेहद करीब से देखा है, इसलिए इस विषय पर लिख है। दरअसल इनके पति एक समलैंगिक पुरुष थे, इसलिए इसका अनुभव उन्होंने बड़े करीब से किया था। इस पुस्तक को लिखने के लिए शकुन्तला देवी ने 2 लोग जो होमोसेक्सुअल थे, उनका इंटरव्यू लिया था। इसमें एक मंदिर का पुजारी था तो दूसरा पंडित, इनके विचार जानकर उन्होंने इस विषय पर विस्तार से यह किताब लिखी।
- इसके अलावा उन्होंने मेंटल कैलकुलेशन पर काफी काम किया और कई पुस्तकें लिखी। इसके साथ ही वे एक अच्छी ज्योतिष भी थी, इस विषय पर भी इन्होनें किताबें और नॉवेल लिखे है।
शकुंतला देवी पर बनी फिल्म की रिलीज़ डेट
शकुन्तला देवी पर बनी फिल्म 31 जुलाई 2020 को अमेज़न प्राइम विडियो पर रिलीज हुई, जिसमें शकुन्तला देवी का मुख्य किरदार प्रसिद्ध अभिनेत्री विद्या बालन निभाया है। इस फिल्म में अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा उनकी बेटी का अनुपमा बनर्जी का रोल अदा किया।
शकुंतला देवी पर बनी फिल्म के कास्ट
- विद्या बालन As शकुंतला देवी
- जिनशु सेनगुप्ता As परितोष बनर्जी, शकुंतला के पति
- सान्या मल्होत्रा As अनुपमा बनर्जी, शकुंतला की बेटी
- अमित साध As अजय, अनुपमा के पति
- स्पंदन चतुर्वेदी As युवा शकुंतला
FAQ
1982 शकुंतला देवी ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपने नाम को शामिल करवाया था।
शकुंतला देवी की फिल्म अमेजॉन प्राइम वीडियो पर 31 जुलाई 2020 को रिलीज हुई थी, जिसमें शकुंतला देवी की मुख्य केदार का भी अभिनय अभिनेत्री विद्या बालन ने किया है।
शकुंतला देवी की कैलकुलेशन की स्पीड आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि 1977 में शकुंतला देवी ने 201 अंकों की संख्या का 23 वां वर्गमूल बिना कागज कलम की ही निकाल दिया था। यहां तक कि 13 अंकों वाली संख्या का गुणनफल भी मात्र सेकंडो में वह निकाल सकती थी।
शकुंतला देवी की मृत्यु 83 वर्ष की उम्र में बेंगलुरु में हुआ था। उनकी मृत्यु और हृदय संबंधित समस्या के कारण हुई थी।
शकुंतला देवी फास्ट गणितय कैलकुलेशन स्पीड के कारण प्रसिद्ध थी। वह चंद सेकंड में बड़े-बड़े अंको के वर्गमूल और उनके गुणनफल को निकाल लेती थी।
शकुंतला देवी की मृत्यु 21 अप्रैल 2013 को हुई।
निष्कर्ष
प्रसिद्ध गणितज्ञ शकुन्तला देवी ने कोई भी शैक्षणिक योग्य हासिल नहीं की थी, लेकिन बावजूद इसके उनके अन्दर ऐसी असाधारण प्रतिभा किसी चमत्कार से कम नहीं थी।
उन्होंने भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। भारत के साथ साथ विदेशों में भी लोग आज उन्हें अपनी प्रतिभा के कारण याद करते है।
यह लेख में शकुंतला देवी के बारे में (shakuntala devi in hindi) के विस्तार से जानकारी प्राप्त की है हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह लेख शकुंतला देवी गणितज्ञ का जीवन परिचय (Shakuntala Devi Biography in Hindi) पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरुर करें।
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