सत्यनारायण व्रत कथा | Satyanarayan Vrat Katha
पहला अध्याय
एक बार भगवान नारद जी भगवान विष्णु जी की आराधना करते हुए उनके पास चले जाते हैं और तभी भगवान विष्णु जी नारद जी से कहते हैं कि तुम किस प्रयोजन से मेरे पास आए हो? तुमको क्या चाहिए? तभी नारदजी ने भगवान विष्णु जी से कहा कि प्रभु पृथ्वी लोक पर सभी लोग अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न प्रकार की योनि में जन्म लेने वाले जानवर और मानव विभिन्न प्रकार के रोगों से पीड़ित है और वह किसी ना किसी मानसिक तनाव या शारीरिक तनाव से भी पीड़ित हैं।
आप मुझे उन सभी के इस कष्टों को दूर करने का कुछ उपाय बताइए। उसके बाद भगवान विष्णु जी ने नारद जी से कहा तुमने संसार के भले के लिए कुछ मांगा है। मैं तुमको इसका उपाय अवश्य बताऊंगा। जिसके बाद भगवान विष्णु ने सत्यनारायण की व्रत करने के लिए कहा कि जो भी व्यक्ति इस व्रत को करेगा, वह मोह माया से मुक्ति पा जाएगा।
भगवान सत्यनारायण का व्रत स्वर्ग लोक और मृत्यु लोक में पुण्यप्रद व्रत है। इस व्रत को करने से मनुष्य पृथ्वी लोक में सुख और समृद्धि के साथ-साथ मृत्यु हो जाने के बाद परलोक में मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
जिसके बाद नारद जी ने भगवान विष्णु जी से इस व्रत को करने की विधि पूछी। तब भगवान विष्णु जी ने बताया कि यह व्रत दुख, शारीरिक और मानसिक शोक आदि का दमन करता है। इस व्रत को करने से धन धान्य की वृद्धि होती है। संतान प्राप्ति के लिए व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने के लिए सच्चे मन से भक्ति और श्रद्धा के साथ साथ धर्म में तत्पर होकर सायकाल के समय सत्यनारायण भगवान की पूजा आराधना करें और विभिन्न प्रकार के भोजन बनाकर नैवेध लगाए।
प्रसाद बनाने के लिए केले का फल, घी, दूध, साठी, गेहूं या चावल का आटा या शक्कर को एकत्र करके भगवान का भोग लगाएं और पूजा करने के बाद सभी लोगों को प्रसाद के रूप में बांटे सत्यनारायण भगवान की पूजा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन ग्रहण कराएं और उनको दक्षिणा दे।
दूसरा अध्याय
काशी नगर में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण रहा करता था। वह रोज पृथ्वी में इधर-उधर भटकता रहता था और अपने भोजन और पानी की तलाश में इधर उधर घूमा करता था। जिसको देखकर एक बार भगवान पृथ्वी पर बुजुर्ग व्यक्ति का रूप लेकर ब्राह्मण के पास आए और कहने लगे कि तुम इधर-उधर पृथ्वी में क्यों भटकते रहते हो और तुम इतने दुखी क्यों रहते हो?
भगवान से कहा कि प्रभु मैं बहुत ही दरिद्र ब्राह्मण हूं। मैं भिक्षा मांगने के लिए इस पृथ्वी पर चारों तरफ घूमता रहता हूं। आप मुझे इस दरिद्रता को दूर करने का कुछ उपाय बताइए। तभी व्यक्ति के रूप में आए हुए भगवान ने उस ब्राह्मण से कहा कि तुम सत्यनारायण व्रत करो। इस व्रत को करने से तुम्हारा सारा दुख दूर हो जाएगा।
तभी भगवान ने ब्राह्मण को सत्यनारायण व्रत करने के लिए पूरी विधि बता दी और वहां से चले गए। जिसके बाद उस ब्राह्मण ने ऐसा करने के लिए पूरी रात सोचता रहा। अगले दिन जब सुबह हुई तब वह ब्राह्मण भिक्षा मांगने के लिए गया। भिक्षा में उसको बहुत सारा धन प्राप्त हुआ, जिससे उसने भगवान सत्यनारायण जी का व्रत किया।
व्रत के प्रभाव से उस ब्राह्मण का सारा दुख नष्ट हो गया और ब्राह्मण को बहुत सारी संपत्ति भी प्राप्त हो गई। जिसके बाद ब्राह्मण ने प्रत्येक महीने सत्यनारायण भगवान का व्रत किया जिससे उसके सभी पाप दूर हो गए और ब्राह्मण को मोक्ष की प्राप्ति प्राप्त हुई।
तीसरा अध्याय
बहुत समय पहले एक उल्का मुख नामक राजा रहा करता था। राजा बहुत ही सत्यवादी सुंदर और बहुत ही बुद्धिमान था। राजा प्रतिनिधि वाले जाकर ब्राह्मणों को दान दिया करता था। राजा की पत्नी शीला बहुत ही सुंदर गुणवान और सुशील थी। राजा एक दिन अपनी पत्नी के साथ भद्र शीला नदी के किनारे बैठकर पुत्र प्राप्ति के लिए सत्यनारायण भगवान का व्रत और उनकी पूजा कर रहा था। जब राजा और उसकी पत्नी सत्यनारायण भगवान की पूजा कर रहे थे तभी वहां पर एक साधु नाम का व्यापारी आया।
उस व्यापारी ने राजा और उसकी पत्नी को सत्यनारायण भगवान की पूजा करते हुए देखा तो, व्यापारी में राजा से पूछा कि आप किस भगवान की पूजा कर रहे हैं? मुझे भी बताइए। तब राजा ने साधु से कहा कि मैं पुत्र प्राप्ति के लिए सत्यनारायण भगवान की पूजा कर रहा हूं। जिसके बाद साधुओं ने राजा से कहा कि मुझे भी कोई संतान प्राप्त नहीं हुई है।
मुझे इस व्रत की विधि बताइए। जिसके बाद राजा ने साधु नाम के बनिए को व्रत करने की विधि बता दी और बनिया ने विधि जाकर अपनी पत्नी से बताया और कहने लगा जब मुझे संतान की प्राप्ति होगी तब मैं यह व्रत करूंगा।
कुछ ही समय में बनिए को संतान की प्राप्ति हो गई। उसने अपनी बेटी का नाम कलावती रखा और व्यापार करने के लिए बाहर चला गया। उधर बनिए की बेटी धीरे-धीरे बड़ी हो गई और विवाह करने योग्य हो गई। जिसके बाद बनिया अपनी बेटी के लिए एक सुंदर सा वर ढूढने लगा और तभी उसकी पत्नी ने उसको याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण व्रत करने का संकल्प लिया था, जो आप अभी तक पूरा नहीं किया है।
उस बनिए ने कहा कि अपनी पुत्री के विवाह के बाद मैं यह व्रत करूंगा और तभी बनिए ने अपनी जाति के एक वाणी के बेटे से अपनी पुत्री का विवाह करवा दिया। विवाह करवाने के पश्चात भी बनिया सत्यनारायण व्रत करना भूल गया, जिसे भगवान विष्णु बनिए पर बहुत क्रोधित हो गए।
जब एक बार बनिया और उसका दामाद व्यापार करने के लिए समुद्र के उस पार रत्नसानपुर नामक एक नगर में व्यापार करने के लिए गए और वहां पर दोनों ने अपना व्यापार करना शुरू कर दिया। भगवान विष्णु बनिए से बहुत क्रोधित हो चुके थे। इसीलिए भगवान विष्णु ने दारुण कठिन और बहुत दुख होगा श्राप दे दिया।
जिसके बाद जब एक दिन व्यापार करते-करते बनिया और उसका दामाद राजा चंद्रकेतु के नगर में आ गए। तब वह वहां पर व्यापार करने लगे थे। राजा चंद्र केतु के घर से एक चोर बहुत सारा धन चुरा कर ले आया था। चोर के पीछे कई सैनिक पड़े हुए थे। जिससे कारण चोर भागता हुआ बनिए और उनके दामाद के पास पहुंचा। उसने धन से भरी थैली को बनिए के पास ही रख दिया।
राजा के सैनिकों ने बनिए और उसके दामाद को बंदी बनाकर राजा के पास से गए। राजा ने बनिए की बात नहीं सुनी और बनिए और उसके दामाद को जेल में डाल दिया और उससे सारा धन छीन लिया तथा उधर भगवान के श्राप कारण बनिए के घर पर भी चोरों ने सारा धन लूट लिया।
उसकी पत्नी मानसिक तनाव में रहने लगी और भूख प्यास के कारण इधर-उधर भटकने लगी है और बनिए की पुत्री कलावती भी भूख प्यास में विचलित रहकर इधर-उधर भटकने लगी।
एक बार कलावती इधर-उधर भटकते हुए एक ब्राह्मण के घर पहुंच गई जहां पर उसने ब्राह्मण को सत्यनारायण कथा का व्रत करते हुए देखा और वहां पर कलावती ने सत्यनारायण की व्रत की कथा सुनी और ब्राह्मण से इस व्रत को करने की सारी विधि भी पूछी।
जब कलावती अपने घर वापस गई तब उसकी माता लीलावती ने उससे पूछा कि तुम इतनी रात को कहां से आ रही हो? तब कलावती ने बताया कि मैंने एक ब्राह्मण के घर में मनोरथ पूर्ण करने वाले व्रत को देखा है। कलावती और उसकी माता लीलावती ने दोनों ने मिलकर सत्यनारायण का व्रत किया और उनकी कथा भी सुनी।
तथा पूजा विधि विधान से पूजा को संपन्न किया और भगवान विष्णु से माफी मांगी। कहा कि पति और दमाद से हुए अपराध को क्षमा करिए प्रभु। भगवान सत्यनारायण जी ने बनिए और उसकी दमाद को श्राप से मुक्त कर दिया और तभी सत्यनारायण भगवान राजा चंद्र केतु की सपने में आए और कहने लगे कि तुमने बनिए और उसके दमाद को अपनी जेल में कैद करके रखा है, उसको तुरंत छोड़ दो नहीं तो मैं तुम्हारा सब कुछ नष्ट कर दूंगा।
राजा ने बनिए और उसके दमाद को रिहा कर दिया और राजा ने बनिए और उसके दम आपको बहुत सारा धन दिया और बहुत सारे तोहफे भी दिए। जिसके बाद बनिया और उसको दमाद अपने घर वापस आ गए।
चौथा अध्याय
जब साधु बनिया और उसका दमाद ब्राह्मणों को दान देता हुआ अपने घर की ओर जा रहा था तभी सत्यनारायण भगवान ने साधु की परीक्षा लेना चाहा। जिसके लिए वह उस बनिया और उसका दमाद जो नाव में बैठकर अपने घर जा रहे थे तभी उस नाव में भगवान सत्यनारायण अपना रूप बदलकर आए और बनिया से कहने लगे कि तुम्हारे इस नाव में क्या है? राजा के द्वारा धन को पाकर बनिया और उसका दामाद बहुत लोभी हो गए।
बनिया ने भगवान सत्यनारायण जो रूप बदलकर उसकी नाव में आए थे उनको भला बुरा कहना शुरू कर दिया और कहने लगा दंडी संन्यासी मेरी इस नाव में लता और बेल की पत्ती हैं, जिसके बाद भगवान सत्यनारायण ने कहा तुम्हारी यह बात सत्य हो जाए और ऐसा कहकर वह समुद्र के किनारे जाकर बैठ गए।
जब भगवान सत्यनारायण बनिया की नौका से चले गए और बनिया और उसको दमाद नित्य क्रिया करने के लिए नाव से बाहर आएं तब उसकी नाव एकदम से जल के ऊपर उठने लगी और उसने देखा कि नाव में बेल की पत्ती और लता की पत्ती है। यह देखकर बनिया तुरंत बेहोश हो गया।
बनिए के दामाद ने बनिए को उठाकर कहा कि दंडी संन्यासी के श्राप के कारण हुआ है। अब वही हम लोगों की मदद कर सकता है। जिससे बात बनिया और उसका दमाद समुद्र के किनारे बैठे दंडी सन्यासी का रूप लिया भगवान सत्यनारायण के पैरों में जाकर गिर गया और उनसे क्षमा मांगने लगा और जोर जोर से रोने लगा।
तभी भगवान सत्यनारायण ने बनिया और उसके दामाद को रोता हुआ देख भगवान ने कहा कि मूर्ख रो मत। भगवान की यह बात सुनकर वह तुरंत उनकी स्तुति करने लगा। साधु बनिया ने भगवान सत्यनारायणसे कहा की हे प्रभु काम आपके गुण और रूप को देख कर पहचान नहीं पाएं।
मैं मूर्ख आपको कैसे पहचानता? पूरे मन से मैं आपकी पूजा करूंगा। मेरी नाव में जो धन था आप उसकी तथा मेरी रक्षा करिए। प्रभु भगवान के प्रति सच्ची भक्ति देखकर भगवान सत्यनारायण ने उसको क्षमा कर दिया और वहां से चले गए तथा जब बनिया और उसको नाव में वापस से गए तो धन से दोबारा परिपूर्ण हो गए।
बनिए ने कहा कि भगवान सत्यदेव की कृपा से हमारा मनोरथ पूरा हो गया और बनिया और उसका दामाद सिर्फ अपनी नगर रत्नपुरी पहुंच गए। रत्नपुरी पहुंचकर बनिया ने अपने दूत को बुलाकर अपने आगमन का समाचार अपनी नगर पहुंचाने को भेजा। दूत की यह बात सुनकर बनिया की पत्नी लीलावती भगवान श्री सत्यनारायण जी का व्रत पूर्णता संपन्न करके अपने पति साधू से मिलने के लिए चली गई।
जिसके बाद कलावती भी व्रत को समाप्त करके और प्रसाद का परित्याग करके अपने पति से मिलने के लिए चली गई। जिसे भगवान विष्णु बहुत नाराज हो गए और उन्होंने बनिए और दामाद को नाव सहित जल में डुबा दिया।
जब कलावती अपने पति से मिलने के लिए आए, तब उसको उसका पति नहीं मिला। वह जोर जोर से रोने लगी। बनिए को भी बहुत आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो गया? तो बनिया समझ गया कि या तो यह सत्यनारायण भगवान की माया होगी और या फिर उन्हीं ने तुम्हारे पति का हरण किया होगा।
जिसके बाद बनिए ने कहां की मैं सतनारायण भगवान की पूजा करूंगा और उन्हें दंडवत प्रणाम करूंगा। तभी आकाश से एक आकाशवाणी हुई थी तुम्हारी पुत्री अपने पति को देखने के लिए प्रसाद को भी ग्रहण नहीं करके चली आई है। वह वापस जाकर उस प्रसाद को ग्रहण करेगी तो उसका पति वापस उसके पास आ जाएगा।
इसके बाद कलावती तुरंत दौड़कर वापस घर गई। घर जाकर उसने प्रसाद को ग्रहण किया जिससे उसका पति वापस आ गया और फिर सभी लोग घर वापस आ गए। घर आकर कलावती ने अपने पति के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा पूरे विधि विधान से की। जिसके बाद पूर्णिमा और सक्रांति को विधि-विधान से भगवान सत्यनारायण की पूजा करते हुए इस लोक से सुबह उठकर वैकुंठ लोक में चला गया।
पांचवा अध्याय
नगर में एक तुग्ध्वज नामक राजा रहा करता था। उसने भगवान सत्यनारायण के प्रसाद का अपमान किया था और उनकी प्रसाद को घर नहीं ले गया था। जिससे वह बहुत दुख भोग रहा था। एक दिन जब राजा बहुत सारे जानवरों को मारकर बरगद के पेड़ के नीचे बैठा था, तब उसने देखा कि कुछ मनुष्य और महिलाएं पूरे भक्ति के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे हैं।
राजा के अंदर बहुत अहंकार हो गया था जिसके कारण न तो राजा ने भगवान को प्रणाम किया और ना ही जहां पूजा हो रही थी वहां गया। जिसके बाद मनुष्य और महिलाओं ने सत्यनारायण भगवान की पूजा करके राजा के पास प्रसाद रख दिया और वहां से चले गए तथा सभी लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।
लेकिन राजा ने प्रसाद का अपमान किया जिसके बाद राजा का धीरे-धीरे सब कुछ नष्ट हो गया। तभी राजा मन ही मन समझ गया कि उसने भगवान सत्यनारायण को क्रोधित कर दिया है और उन्हीं के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए राजा ने यह निर्णय लिया कि जहां पर सत्यनारायण भगवान की पूजा हो रही होगी, वह वहां पर जाएगा और उनके साथ मिलकर भगवान सत्यनारायण की पूजा करेगा।
जिसके बाद राजा मनुष्य के पास गया, जो लोग सत्यनारायण भगवान की पूजा कर रहे थे। उनके साथ मिलकर राजा में भगवान सत्यनारायण की पूजा की जिससे राजा के सभी दुखों का अंत हो गया और राजा को पृथ्वी लोक में सुख भोगने के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई।
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