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रजिया सुल्तान का इतिहास और जीवन परिचय

Razia Sultan History in Hindi: मध्यकालीन भारतीय इतिहास में हमने कई ताकतवर राजाओं को देखा है कि वो कितने महान व ताकतवर थे। ऐसे ही इतिहास में हमें कई रानियों की भी कहानी मिलती है, जो खुद में काफी मशहूर व महान थी। ऐसे ही एक रानी है “रजिया सुल्तान”।

Razia Sultan History in Hindi
Razia Sultan History in Hindi

यहां पर हम रजिया सुल्तान का इतिहास और जीवन परिचय (Razia Sultan in Hindi) के बारे में विस्तार से जानने वाले है। रजिया सुल्तान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए आप इस लेख को अंत तक पूरा जरूर पढ़े।

रज़िया सुल्तान का इतिहास (Razia Sultan History in Hindi)

पूरा नामरज़िया अल-दिन
जन्म और जन्मस्थान1205,बदायूँ
पिता का नामइल्तुतमिश
माता का नामकुतुब बेगम
पति का नाममलिक अल्तुनिया
राज्याभिषेक10 नवंबर 1236
शासनावधि1236 – 1240
वंशगुलाम वंश
धर्मइस्लाम
निधन14 अक्टूबर 1240, कैथल (हरियाणा)

रजिया सुल्तान कौन थी? (Razia Sultan Kaun Thi)

हम जिस महिला शासक रजिया सुल्तान की बात कर रहे हैं वह उन महिलाओं की सूची में शामिल है, जिसने कभी महलों की शानो शौकत के बारे में नहीं सोचा और इन बंदिशों से बाहर निकलकर राज्य की बागडोर संभाली। दिल्ली की इस महिला शासक ने अस्त्र-शस्त्र का भी प्रशिक्षण लिया था, जिसकी बदौलत वह अपने प्रतिद्वंदियों से युद्ध भी लड़ती थी।

वह एक महिला शासक होते हुए भी खुद को एक सुल्तान कहकर पुकारना पसंद करती थी। उनका मानना था कि वह औरत केवल शरीर से है। पर वह जो काम करती है, वह केवल एक पुरुष ही नहीं कर सकता बल्कि एक महिला भी कर सकती है।

रजिया सुल्तान को कूटनीति में काफी चालाक माना जाता था। वह खुद इतनी सोच विकास करने वाली थी कि उसने दिल्ली की प्रजा से न्याय मांगने के साथ रुखुद्दीन फिरोज के विरूध माहौल पैदा कर दिया।

रजिया सुल्तान द्वारा सिहासन पाने के लिए किया गया संघर्ष

दिल्ली के सिहासन पर बैठना रजिया सुल्तान के लिए इतना आसान नहीं था। इस गद्दी को प्राप्त करने के लिए रजिया सुल्तान को काफी संघर्ष करने पड़े। दरअसल रजिया सुल्तान के पिता इल्तुतमिश रजिया सुल्तान से पहले उनके बड़े बेटे को दिल्ली के उत्तराधिकारी के रूप में तैयार किए थे। लेकिन दुर्भाग्यवश उनके बड़े बेटे की मृत्यु अल्पआयु में ही हो गई।

रजिया सुल्तान बचपन से ही सैनिक प्रशिक्षण लेती थी, उनमें कुशल प्रशासनिक एवं सैन्य गुण थे। जिसे देखते हुए उनके पिता ने रजिया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा कर दी। हालांकि इल्तुतमिश का यह घोषणा मुस्लिम समुदाय को बिल्कुल भी पसंद नहीं थी। क्योंकि उस समय औरत के द्वारा राज सिहासन का संचालन करना मुस्लिमों को अपमानजनक लग रहा था।

इसीलिए वे लोग इल्तुतमिश के घोषणा के विरोध थे। लेकिन 1236 ईस्वी में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई। उसके बाद जब रजिया सुल्तान को दिल्ली के सिहासन पर बैठाने का समय आया तब सभी मुस्लिम समुदायों ने सुल्तान के रूप में उन्हें स्वीकार करना मना कर दिया और उनके स्थान पर उनके भाई रुकनुद्दीन फिरोज को दिल्ली के राज सिंहासन पर बैठा दिया।

लेकिन रजिया के भाई रुकनुद्दीन फिरोज में रजिया की तरह कुशल प्रशासनिक योग्यता नहीं थी, वह मूर्ख और सक्षम साबित हुआ। उसके बाद रजिया सुल्तान ने आम जनमानस का सहयोग लिया और राज्य पर धावा बोल दिया और दिल्ली के सिंहासन पर कब्जा प्राप्त कर लिया। हालांकि उसके बाद रजिया के भाई और उनकी मां दोनों की हत्या कर दी गई। इस तरीके से 10 नवंबर 1236 ईस्वी में रजिया सुल्तान दिल्ली की पहली मुस्लिम शासक बनी।

इस तरीके से रजिया सुल्तान अपनी बुद्धिमता और विवेकशीलता के तर्ज पर दिल्ली का सिहासन पाने में कामयाब रही। भले ही उस समय रूढ़िवादी मुस्लिम समाज ने रजिया सुल्तान को एक शासक के रूप में स्वीकार करना बिल्कुल भी पसंद नहीं किया।

लेकिन रजिया सुल्तान एक दूरदर्शी, व्यवहारकुशल, न्याय प्रिया और प्रजा के हित करने वाली शासिका साबित हुई, जिन्होंने अपने राज्य का जमकर विस्तार और विकास किया। उन्हें पर्दा प्रथा बिल्कुल भी पसंद नहीं था और इस रूढ़िवादी रीति रिवाज को खत्म करने के लिए रजिया बिना नकाब पहने पगड़ी पहन कर और सैनिकों का कोट पहनकर दरबार में बैठती थी।

रजिया सुल्तान का जीवन कार्य

रजिया सुल्तान ने अपने जीवन व अपने शासन कार्य के दौरान ऐसे कई कार्य किये, जिसके लिए उनको याद रखा जाता है।

  • रजिया सुल्तान ने अपने राजनीतिक जीवन के दौरान उसके अधीन पूरे राज्य में कानूनी व्यवस्था को बेहतर बनाने का कार्य किया था।
  • दिल्ली की राजगद्दी को संभालने के दौरान रजिया सुल्तान ने कई सिक्के जारी किए थे, उन सिक्को पर उसने समय की रानी, सुल्ताना रजिया, महिलाओं का स्तंभ और समसुद्दीन अल्तमस की बेटी लिखवाया था।
  • उसने अपने राज्य में कई इमारतों का निर्माण करवाया। साथ ही राज्यों में सड़कों व पानी की व्यवस्था हेतु कुओं का निर्माण करवाया।
  • रजिया सुल्तान ने अपने शासनकाल के दौरान राज्य में शिक्षा को महत्व देने हेतु कई स्कूलों, संस्थानों और साथ ही राजकीय पुस्तकालयों का भी निर्माण करवाया।
  • रजिया सुल्तान में साम्प्रदायिक एकता को साथ लाने के उद्देश्य से मुस्लिम व हिन्दू शिक्षा को एक साथ ला दिया।
  • सुल्तान ने अपने राज्य में कई कवियों, कलाकारों और साथ ही कई संगीतकारों को भी सम्मानित किया।

सुल्ताना के समय सरदार अपना अपमान समझते थे

हम बात कर रहे है कि प्राचीन समय में भी पुरुषों में व महिलाओं में कितना भेदभाव था। इस बात की जानकारी हमें इतिहास के पन्नों से मिलती है। सुल्तान इल्तुतमिश के कोई बेटा न था और यह एक बेटी थी। इसमें सुल्तान चाहते थे कि उनकी बेटी सुल्ताना बने।

पर वहां के सरदार राजा की इस बात से नाराज हो गये और वे इस बात पर अड़ गये कि अगर एक महिला को सुल्ताना बनाते है तो ऐसे में उन्हें एक महिला के सामने अपना सर झुकाना पड़ेगा, जिससे वे अपनी शान के खिलाफ समझते थे।

रजिया सुल्तान का शासनकाल

रजिया सुल्तान ने अपने जीवन में केवल 4 वर्ष तक की शासन किया है। उसने अपने पिता की मृत्यु के बाद 1236 में गद्दी संभाली थी और 1240 तक शासन किया था। इस बीच रजिया सुल्तान नें कई अहम कार्य किये व कई अहम घटनाओं कों अंजाम दिया।

रजिया के असफलता का कारण क्या था?

हालांकि रजिया सुल्तान इल्तुतमिश के उत्तराधिकारिओं में सर्वाधिक योग्य एवं राज्य पद के सर्वाधिक उपयुक्त थी। लेकिन रजिया सुल्तान साडे 3 साल तक ही दिल्ली के सिंहासन पर बैठ सकी। उसके बाद उनका पतन हो गया। उनकी असफलता के बारे में मध्यकालीन इतिहासकारों ने प्रधान कारण के रूप में उनका स्त्री होना बताया है।

क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पैगंबर मोहम्मद के अनुसार स्त्री संसार की सबसे पवित्र और अमूल्य वस्तु है। लेकिन जो लोग स्त्री को अपना शासक बना लेंगे, उन्हें कभी भी मानसिक शांति प्राप्त नहीं होगी। यही कारण था कि जब इल्तुतमिश द्वारा रजिया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया गया तो सभी मुस्लिम समुदाय उनके विरोध हो गए।

इसकी मृत्यु के बाद किसी भी मुस्लिम समुदाय ने रजिया सुल्तान को एक शासक के रूप में स्वीकार नहीं किया और इसी कारण उनके जगह पर उनके भाई को राजगद्दी पर बिठा दिया था। हालांकि बाद में रजिया सुल्तान दिल्ली के सिहासन को पाने में सफल रही, लेकिन उसके बावजूद भी वह मुस्लिम प्रजा में आदर का पात्र नहीं बन पाई।

रजिया सुल्तान के निसफलता का कारण तुर्की अमीरों का स्वार्थ भी माना जाता है। तुर्की अमीरों ने कुतुबुद्दीन ऐबक के शासन काल से ही तुर्की राज्य की शक्ति को अपने हाथों में कर लिया, जिस कारण दिल्ली सल्तनत में तुर्की अमीरों का प्रभाव काफी ज्यादा बढ़ चुका था। ऐसे में सुल्तान के लिए उनसे विरोध करके शासन करना बहुत ही कठिन कार्य था।

लेकिन, रजिया सुल्तान ने उनके शक्ति को एक सीमा तक घटा दिया था। रजिया सुल्तान बहुत ही अच्छी शासक थी, उसने अपनी बड़ी सतर्कता के साथ तुर्की अमीरों के प्रतिद्वंदी दलों को संगठित करना शुरू किया और अपने विपक्षियों पर विजय प्राप्त करने के उपरांत स्वेच्छाचारिता और नीरंकुश शासन स्थापित करने का प्रयत्न किया। लेकिन तुर्की अमीरों के शक्ति के सामने रजिया सुल्तान टिक नहीं सकी।

एक शासक के रूप में रजिया सुल्तान की असफलता का कारण उसकी स्वातंत्र्य प्रियता भी माना जाता है। क्योंकि जब रजिया सुल्तान दिल्ली के सिंहासन पर बैठी तब वह रूढ़िवादी पर्दा प्रथा को त्याग करके और औरतों का कपड़ों का त्याग करके पुरुषों के समान कपड़े धारण करती और सिर पर पगड़ी पहन के दरबार में बैठा करती थी, जिसके कारण तुर्की अमीरों के अहंकार को गहरी चोट पहुंची।

तुर्की अमीर तलवार को ही योग्यता का एकमात्र आधार मानते थे, जिस कारण उन्हें औरत के अधीन रहकर काम करना बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं था। शायद इस जगह पर रजिया सुल्तान एक पुरुष होती तो वह निश्चित ही काफी सफल होती। क्योंकि उनका और याकूत के प्रेम का अपवाद नहीं होता और उनके मोहब्बत के कारण तुर्की अमीर उनके विरूध खड़े नहीं होते।

इल्तुतमिश ने अपने शासन कार्य को चलाने के लिए 40 गुलामों का एक मंडल तैयार किया था और इस मंडल ने सुल्तानों को अपने हाथों की कठपुतली बनाना चाहा। लेकिन रजिया सुल्तान उनके अंकुश को स्वीकार नहीं किया और विवेक से काम किया, जिस कारण यह सभी 40 गुलाम सुल्तान का सहयोग करने के बजाय उसके विरुद्ध खड़े हो गए और रजिया का सुल्तान पद पर होने के बावजूद भी उन्होंने रजिया के भाई बहराम को सुल्तान घोषित कर दिया। हालांकि उन लोगों में स्वयं में एकता नहीं थी, जिस कारण बहराम को सुल्तान के पद पर बैठाने में सफल नहीं हो पाए थे।

रजिया सुल्तान के निसफलता में इल्तुतमिश के व्यस्त पुत्रों का भी बहुत बड़ा हाथ था। क्योंकि उनके होने के बावजूद रजिया सुल्तान दिल्ली के सिंहासन पर बैठी थी। ऐसे में षड्यंत्रकारी और रजिया सुल्तान के जितने भी विरोधी थे, वे उन शहजादों के आड़ में रजिया पर प्रहार करते थे। अंत में इन्हीं शहजादों में से एक बहराम शाह को विरोधियों ने मिलकर दिल्ली की सिंहासन पर बिठा दिया था।

रजिया सुल्तान के निसफलता का कारण उनका और याकूत के मोहब्बत की प्रचलित अपवाद भी थी। दरअसल रजिया सुल्तान को उनके गुलाम जमालुद्दीन याकूत से मोहब्बत हो गई थी। उन्होंने उसे गुडसाल का अध्यक्ष बना दिया और घुड़सवारी करते समय वह उसे अपने साथ लेकर जाती थी। यहां तक कि रजिया ने यहां खुद को किसी भी समय सुल्तान के समक्ष उपस्थित होने का अधिकार दे दिया था।

धीरे-धीरे इन दोनों के प्रेम का अपवाद प्रचलित होते गये और यह किस्सा तुर्की अमीरों के कान में पड़ा तो उन्हें यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। क्योंकि वह तुर्की अमीरजादे जो अपने आपको उच्च रक्त वंशी मानते थे और सुल्तान से विवाह करने का स्वप्न देखा करते थे, उन्हें इससे बहुत ठेस पहुंचा।

जिसके कारण वे रजिया के विरोधी हो गए। यहां तक कि रजिया सुल्तान के द्वारा इस्लाम की शिक्षाओं के वितरित किए गए कार्यो के कारण दिल्ली की जनता ने भी रजिया सुल्तान का सहयोग देना छोड़ दिया और वह भी उनके विपरीत खड़े हो गए।

यह भी पढ़े: रजिया सुल्तान की प्रेम कहानी

रजिया सुल्तान की मृत्यु

रजिया सुल्तान की मृत्यु का कारण उनकी मोहब्बत है। इतिहास के पन्नों में रजिया सुल्तान और उनके गुलाम जमालुद्दीन याकूत की मोहब्बत की कहानी दर्ज है। रजिया सुल्तान को उनके गुलाम जमालुद्दीन याकूत से मोहब्बत हुई थी। धीरे-धीरे यह मोहब्बत परवाने चढ़ने लगा।

लेकिन इसी बीच भटिंडा के गवर्नर इख्तियार अल्तूनिया को भी रजिया सुल्तान की खूबसूरती बेहद ही पसंद थी, जिसके कारण वे किसी भी कीमत पर रजिया सुल्तान को पाना चाहते थे। रजिया सुल्तान के साथ-साथ दिल्ली पर भी शासन पाने की उनकी इच्छा थी। रजिया सुल्तान तो अपने गुलाम जमालुद्दीन याकूत से मोहब्बत करती थी। लेकिन इन दोनों की मोहब्बत तमाम मुस्लिमों को पसंद नहीं थी, जिस कारण वे इनके विरुद्ध हो गए और इसीका फायदा अल्तूनिया ने लिया।

अल्तूनिया ने कई अन्य विद्रोहियों के साथ मिलकर दिल्ली पर हमला बोला, जहां पर रजिया और अल्तूनिया के बीच युद्ध हुआ और युद्ध में रजिया सुल्तान का गुलाम, जिससे वह मोहब्बत करती थी याकूत मारा गया। जिसके बाद रजिया को अल्तूनिया ने बंदी बना लिया। मरने के डर से रजिया ने अल्तूनिया से विवाह करना स्वीकार किया। लेकिन इसी बीच रजिया सुल्तान का भाई बहराम शाह ने दिल्ली के सिहासन को हथिया लिया था।

जिसके बाद दिल्ली के सल्तनत को वापस पाने के लिए रजिया और अल्तूनिया ने बहराम शाह से युद्ध किया। लेकिन इस युद्ध में रजिया और अल्तूनिया दोनों की हार हुई। जिसके बाद वे भाग कर कैथल पहुंचे, वहां पर उनकी सेनाओं ने भी उनका साथ छोड़ दिया।

जिसके बाद वहीं पर कुछ डाकुओं ने उन दोनों को मार दिया। इस तरीके से 12 अक्टूबर 1240 को रजिया सुल्तान और उनके पति अल्तूनिया दोनों की मृत्यु हो गई। हालांकि उसके बाद रजिया सुल्तान के भाई बहराम को भी अयोग्य मानकर राजगद्दी से हटा दिया गया।

अगर रजिया सुल्तान की हत्या न होती तो क्या होता?

कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि अगर रजिया सुल्तान की हत्या नहीं होती तो परिणाम कुछ और होते। रजिया सुल्तान के बारे में कुछ सामान्य जानकारी निम्न है:

  • रजिया सुल्तान एक लौती ऐसी महिला थी, जो पहली बार एक महिला शासक बनी। यह भारत की पहली महिला शासक और सुल्ताना के रूप में जानी जाती है। यह वह सुल्ताना महिला थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि इस वजह से उसका प्यार छीन लिया गया, सत्ता छीन ली गई और बाद में उसकी जिन्दगी छीन ली गई।
  • यह भारत की पहली महिला सुल्तान थी, जिसका पूरा नाम जलाॅलात उद-दीन रजिया और यह गुलाम वंश से संबंधित थी।
  • रजिया का जन्म कब हुआ था, उसके बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है।
  • यह तुर्की इतिहास की वह शासक थी, जिसने तकरीबन 4 साल तक शासन किया था और उनका यह पूरा समय केवल संघर्षो में ही बीता। रजिया के गद्दी पर बैठते ही रजिया पर संकट की घड़ी शुरू हो गई थी।
  • रजिया को उसके पिता की मृत्यु के बाद उसको सुल्ताना बनाया गया। पर वह खुद को सुल्तान कह कर संबोधित करती थी, इसलिए उसका नाम रजिया सुल्तान पड़ा।
  • रजिया सुल्ताना ने काफी कम समय के लिए शासन किया था। पर उस कम समय में ही उसने कई महान कार्य किए जैसे स्कूल व कॉलेज बनाये इत्यादि।
  • रजिया को शासन करने के बारे में जानने की रुचि तो उनके पिता के शासन से ही थी। उसके बाद जैसे ही वह स्वयं सुल्ताना बनी तो उसने पुरुषों की भांति शासकीय वेशभूषा पहना पसंद किया। रजिया अपने सैनिक और अपनी प्रजा का काफी ख्याल रखती थी।
  • उस समय मुसलमानों को तो इस बात से भी परेशानी थी कि रजिया और उनके सलाहकार जमात-उद-दिन-याकूत एक हब्शी के विकसित होकर अतरंग की बात कर रहे थे।
  • रजिया और याकूत दोनों एक गहन प्रेमी थे और उनके इस प्रेम ने तुर्की वर्ग में स्वयं के प्रति ईर्ष्या को जन्म दिया था। काफी लोगों को उनका यह प्यार मंजूर नहीं था और इस प्यार की वजह से ही रजिया के शासन का समापन हो गया।
  • रजिया अपने शासन में इतनी बहादुर थी कि पंजाब, बंगाल, बिहार जैसे कई राज्य उसके अधीन हो गये थे।
  • रजिया सुल्तान की कब्र पर भी काफी विवाद हुआ था। वर्तमान में उनकी कब्र पर कई अलग-अलग लोगों को दावा है।

FAQ

क्या रजिया सुल्तान की कहानी सच्ची है?

रजिया सुल्तान का जन्म 1205 में हुआ था। रजिया के पिता का नाम इल्तुतमिश था। यह भारत की सबसे पहली महिला थी, जिसने राज्य की सुरक्षा का जिम्मा अपने हाथ में लेने का फैसला किया था।

रजिया सुल्तान को दिल्ली का शासक क्यों बनाया गया था?

दरअसल रजिया सुल्तान इल्तुतमिश की बेटी थी। वह अपने बड़े बेटे को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, लेकिन दुर्भाग्यवश उनके बड़े बेटे की मृत्यु अल्पायु में ही हो गई। जिसके बाद रजिया सुल्तान के प्रशासनिक और सैनिक कुशलता को देखते हुए इल्तुतमिश ने रजिया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी बनाने की तैयारी की।

महिला होने के बावजूद सुल्ताना खुद सुल्तान क्यों कहती थी?

रजिया को उसके पिता की मृत्यु के बाद उसको सुल्ताना बनाया गया, पर वह खुद को सुल्तान कह कर संबोधित करती थी, इसलिए उसका नाम रजिया सुल्तान पड़ा।

तुर्की अमीर रजिया सुल्तान के विरोधी क्यों थे?

दरअसल तुर्की अमीर तलवार को ही योग्यता का एकमात्र आधार मानते थे, जिस कारण उन्हें औरत के अधीन रहकर काम करना बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं था। इसके अतिरिक्त रजिया सुल्तान से विवाह करने के भी सपने देखते थे। ऐसे में रजिया सुल्तान का उनके गुलाम याकूत से मोहब्बत के किस्से सुनकर भी वे रजिया सुल्तान के विरोध हो गए थे।

रजिया सुल्तान की शादी किससे हुई थी?

रजिया सुल्तान की शादी अल्तुनिया से हुई थी, जिसके बाद इनका प्यार रजिया सुल्तान की मौत का कारण बना था।

रजिया सुल्तान कौन से कार्यों में नींपूण थी?

रजिया सुल्तान बचपन से ही मुस्लिम राजकुमारों की तरह सेनाका नेतृत्व तथा प्रशासन के कार्यों में निपुण थी।

रजिया सुल्तान का जन्म किस स्थान पर हुआ था?

रजिया सुल्तान का जन्म बदायूँ में गुलाम वंश में हुआ था।

रजिया सुल्तान का पूरा नाम क्या था?

रजिया सुल्तान का पूरा नाम रज़िया अल-दिन था।

रजिया सुल्तान क्यों प्रसिद्ध है?

रजिया सुल्तान भारत की पहली मुस्लिम शासिका थी, जिसने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया था और पर्दा प्रथा को त्याग कर मर्दों की तरह कपड़े पहन के दरबार में बैठा करती थी।

रजिया सुल्तान के पिता का नाम क्या था?

रजिया सुल्तान के पिता का नाम इल्तुतमिश था।

रजिया ने कितने वर्ष तक सत्ता संभाली थी?

रजिया ने 1236 से 1240 तक 4 वर्ष सत्ता संभाली थी।

रजिया सुल्तान किस वंश की थी?

रजिया सुल्तान गुलाम वंश की थी।

निष्कर्ष

इस लेख में आपको रजिया सुल्तान कौन थी (Rajiya Sultan Kon Thi) तथा रजिया सुल्तान के बारे में विस्तार से बताया। रजिया सुल्तान अपने जमाने की पहली महिला शासक थी। रजिया सुल्तान ने केवल 4 साल तक शासन किया था, पर यह 4 साल भी उनके लिए आसान नहीं थे, इन सालों में भी रजिया सुल्तान ने कई संघर्ष झेले है।

उम्मीद करते है आपको यह लेख रज़िया सुल्तान का इतिहास (Razia Sultan History in Hindi) पसंद आया होगा। इस लेख में बताई गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। आप अपने सुझाव हमें नीचे कमेंट करके बता सकते है।

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Rahul Singh Tanwar
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राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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