Ram Prasad Bismil Biography in Hindi: जिस समय हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी कह रहा थी, उस समय देश को आजाद करने के लिए बहुत से ऐसे कर्मवीर और जागरूक क्रांतिकारी सामने आए, जिन्होंने देश के हित के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। देश को आजाद करने के लिए कर्मवीर और क्रांतिकारियों के रूप में चंद्रशेखर आजाद, महात्मा गांधी, भगत सिंह तो आपको याद ही होंगे।
इन सभी कर्मवीर क्रांतिकारियों के साथ-साथ आपको राम प्रसाद बिस्मिल भी याद ही होंगे। यदि नहीं तो हम आपको इस लेख में आपको राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में संपूर्ण जानकारी प्रदान करेंगे।
आज हम आपको इस लेख के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल कौन है?, राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म कब और कहां हुआ था?, राम प्रसाद बिस्मिल प्रारंभिक जीवन कैसा था? इत्यादि के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी प्रदान करने वाले हैं। यदि आपको राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में विस्तार पूर्वक से जानकारी प्राप्त करनी है तो कृपया हमारे द्वारा लिखी गई इस महत्वपूर्ण लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
राम प्रसाद बिस्मिल का जीवन परिचय | Ram Prasad Bismil Biography in Hindi
राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में संक्षिप्त जानकारी
नाम | राम प्रसाद बिस्मिल |
जन्म | 11 जून 1897 |
जन्म स्थान | शाहजहाँपुर |
माता का नाम | फूलमती |
पिता का नाम | मुरलीधर |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 19 दिसंबर 1927 |
राजनीतिक आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन |
राम प्रसाद बिस्मिल कौन है?
राम प्रसाद बिस्मिल भारत के एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। राम प्रसाद बिस्मिल का वास्तविक नाम पंडित राम प्रसाद बिस्मिल था। रामप्रसाद बिस्मिल भारत के आर्य समाज और हिंदुस्तानी रिपब्लिकन एसोसिएशन के प्रमुख सदस्यों में से एक थे।
राम प्रसाद बिस्मिल ने लखनऊ में हुए काकोरी कांड में भाग लिए थे, काकोरी कांड लखनऊ में घटित हुआ ऐसा कांड था, जिसमें वहां का एक ट्रेन लूटा गया था, इस ट्रेन में ब्रिटिश शासकों के द्वारा भारत के कुछ अमूल्य रत्नों (खजाना) को विदेश ले जाया जा रहा था। इस ट्रेन को लूटने में राम प्रसाद बिस्मिल ने भी भाग लिया और राम प्रसाद बिस्मिल भारत देश के सबसे प्रसिद्ध क्रांतिकारियों में से एक बन गए।
राम प्रसाद बिस्मिल को भारत का सबसे निडर क्रांतिकारी माना जाने लगा, क्योंकि राम प्रसाद बिस्मिल ने भारत में औपनिवेशिक अर्थात ब्रिटिश शासन के खिलाफ खतरनाक से खतरनाक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए साहस और निडरता दिखाई थी।
राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म कब और कहां हुआ था?
भारत के महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 1897 में हुआ था। राम प्रसाद बिस्मिल भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित सहारनपुर जिले में जन्मे थे। लोगों का ऐसा कहना है कि राम प्रसाद बिस्मिल के पूर्वज ग्वालियर में ब्रिटिश प्रभुत्व राज्य में निवास करते थे।
राम प्रसाद बिस्मिल को प्राप्त शिक्षा
राम प्रसाद बिस्मिल को कितनी शिक्षा प्राप्त है, इस संदर्भ में अब तक किसी भी प्रकार की कोई भी जानकारी प्राप्त नहीं हुई है।
राम प्रसाद बिस्मिल का पारिवारिक संबंध
भारत के कर्म प्रिय और कर्तव्यनिष्ठ क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल को जन्म देने वाले उनके माता-पिता के द्वारा उन्हें काफी प्रेम प्राप्त हुआ। राम प्रसाद बिस्मिल के माता का नाम फूलमती और इनके पिता का नाम मुरलीधर था।
ऐसा कहा जाता है कि किसी बच्चे को उसके माता-पिता से ज्यादा उनके दादा-दादी से ज्यादा प्रेम मिलता है, ठीक ऐसा ही राम प्रसाद बिस्मिल के साथ भी हुआ था। राम प्रसाद बिस्मिल को उनके दादाजी के द्वारा काफी प्रेम प्राप्त हुआ। राम प्रसाद बिस्मिल के दादा का नाम नारायण लाल था।
अस्त्र शास्त्र से लगाव का राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन पर क्या असर पड़ा?
राम प्रसाद बिस्मिल को अस्त्र-शस्त्र से भी काफी लगा था क्योंकि वेजिस विद्यालय में विद्यार्थी थे, उस समय उस विद्यालय के कुमार सभा की बैठकों में भाग लिया करते थे। ऐसे दिनों में मिशन स्कूल के एक ऐसे विद्यार्थी से राम प्रसाद बिस्मिल का परिचय हुआ जो कि इस बैठक में प्रति सप्ताह अपना योगदान देता था।
राम प्रसाद बिस्मिल बहुत ही निडर और साहसी व्यक्ति थे, वह निडरता पूर्वक भाषण देते थे, राम प्रसाद बिस्मिल के भाषण को सुनने के बाद उस व्यक्ति पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। धीरे-धीरे राम प्रसाद बिस्मिल और उस व्यक्ति के मध्य गहरी मित्रता हो गई।
राम प्रसाद बिस्मिल का वह मित्र जिस गांव में रहता था, उस गांव में सभी के पास एक या दो या उससे अधिक बिना लाइसेंस के हथियार रहते थे। राम प्रसाद बिस्मिल के एक मित्र के पास में गांव में ही बना हुआ एक नली के आकार का पिस्तौल हुआ करता था। अपने मित्र के स्टॉल का उपयोग करते करते हैं, राम प्रसाद बिस्मिल को भी अस्त्र शास्त्र से लगाव होने लगा, जो कि स्वतंत्रता संग्राम में राम प्रसाद बिस्मिल की काफी सहायता किया।
राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा विदेशी राज्य के विरुद्ध की गई प्रतिज्ञा
राम प्रसाद बिस्मिल स्वतंत्रता के लिए लड़े गए अनेकों प्रकार के युद्ध में और आंदोलन में हिस्सा लिया करते थे। वर्ष 1915 में लाहौर षड्यंत्र के मामले में सबसे प्रसिद्ध क्रांतिकारी परमानंद को फांसी की सजा सुनाई गई। फांसी की सजा सुनाने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल को काफी क्रोधित हुए, क्योंकि वह परमानंद को अपने जीवन का आधार मान चुके थे और इनके विचारों से काफी प्रभावित भी थे। परमानंद को फांसी की सजा सुनाई गई, ऐसा समाचार सुनकर राम प्रसाद बिस्मिल के अंदर का क्रांतिकारी झलकने लगा।
राम प्रसाद बिस्मिल ने ऐसा प्रण कर लिया, कि “अब मैं अंग्रेजी शासन के अत्याचारों को मिटाने तथा मातृभूमि की स्वतंत्रता लौटाने के लिए अपना सारा जीवन न्योछावर कर दूंगा।”
अब राम प्रसाद बिस्मिल ने एक स्वयं का क्रांतिकारी दल बनाया जिसमें उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए जागरूक नवयुवक को भर्ती किया। राम प्रसाद बिस्मिल एक ऐसे यूनिवर्सिटी में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे जहां पर उनकी मित्रता बहुत से ऐसे व्यक्तियों से हुई, जो कि देश को स्वतंत्र कराने के लिए काफी जागरूक थे।
जब इन लोगों ने राम प्रसाद बिस्मिल के द्वारा की गई प्रतिज्ञा को सुना दो इन्होंने अपना अपना योगदान देने के लिए राम प्रसाद बिस्मिल के दल में शामिल हो गए हैं और इन्होंने अपने प्राणों की बलि देकर भी इस दल और आंदोलन की रक्षा की।
राम प्रसाद बिस्मिल का क्रांतिकारी जीवन कैसा था?
राम प्रसाद बिस्मिल ने परमानंद को फांसी हो जाने के बाद यह प्रण कर लिया कि अब वह देश की स्वतंत्रता एवं हित के लिए अपने प्राणों की बलि भी दे देंगे और देश को आजाद कर आएंगे। ऐसा करने के बाद उन्होंने अपना एक स्वयं का दल बनाया दल बनाने के बाद उन्होंने ऐसे नव युवकों को अपने दल में शामिल किया जो कि देश की स्वतंत्रता के लिए काफी ज्यादा इच्छुक और जागरूक थे। राम प्रसाद बिस्मिल लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए गए। यहां पर राम प्रसाद बिस्मिल कुछ और क्रांतिकारियों के बारे में छानबीन की और उनसे संपर्क बनाया।
राम प्रसाद बिस्मिल की भाषा शैली इतनी अच्छी थी कि इन्होंने सभी व्यक्ति को अपना मित्र बना लिया। राम प्रसाद बिस्मिल जिन व्यक्तियों से मिले थे उन सभी का ऐसा कहना था कि अपने भारतवर्ष की दुर्दशा केवल अंग्रेजी शासनो के कारण ही है। इन सभी लोगों को अपने दल में शामिल करने के बाद राम प्रसाद बिस्मिल ने एक नई समिति का गठन किया। इस समिति का एकमात्र कार्य क्रांतिकारी रूप से देश की स्वतंत्रता करना था।
इस प्रकार से राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना योगदान दिया। वर्तमान समय में राम प्रसाद बिस्मिल के द्वारा दिए गए योगदान को प्रत्येक व्यक्ति बड़े ही अच्छे से जानते हैं है और राम प्रसाद बिस्मिल का आदर भाव करता है। हमारे भारतवर्ष में प्रत्येक क्रांतिकारी भाई को बराबर का सम्मान दिया जाता है।
राम प्रसाद बिस्मिल की मृत्यु कब हुई थी?
राम प्रसाद बिस्मिल ने काकोरी कांड को भी अंजाम दिया था, राम प्रसाद बिस्मिल को काकोरी षड्यंत्र में दोषी पाने के बाद ब्रिटिश सरकार के द्वारा राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी की सजा सुनाई गई। राम प्रसाद बिस्मिल को कुछ दिनों के लिए गोरखपुर में स्थित जेल में बंद कर दिया गया। उसके बाद राम प्रसाद बिस्मिल को वर्ष 1927 ईस्वी में 19 दिसंबर को फांसी दे दी गई। जिस वर्ष राम प्रसाद बिस्मिल को फांसी की सजा दी गई, उस समय रामप्रसाद बिस्मिल की उम्र महज 30 वर्ष थी।
राम प्रसाद बिस्मिल एक क्रांतिकारी थे।
राम प्रसाद बिस्मिल के माता का नाम फूलमती और उनके पिता का नाम मुरलीधर था।
लेखन कार्य का।
19 दिसंबर 1927।
30 साल।
निष्कर्ष
आज के इस लेख और हमने आप सभी लोगों को भारतवर्ष के सबसे निडर और साहसी क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल के बारे में संपूर्ण जानकारी बड़े विस्तारपूर्वक से बताया है। हमें उम्मीद है कि आप राम प्रसाद बिस्मिल के जीवन परिचय से काफी प्रभावित हुए होंगे।
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