Polygraph Test Kya Hota Hai: समाज में कई सारी बुराइयां है। दिन प्रतिदिन सैकड़ों आपराधिक मामलों की खबर आ रही है। मर्डर, किडनैपिंग जैसी संगीन अपराध तो आज आम बात हो चुकी है। यहां तक कि बढ़ती टेक्नोलॉजी के साथ अपराधी भी नए-नए तरीके से जुर्म को अंजाम देने लगे हैं।
लेकिन जब भी किसी अपराधी को पकड़ा जाता है तो सबसे पहले उससे सच उगलवाया जाता है। लेकिन अपराधी लोग इतने धीट रहते हैं कि वे पुलिस कस्टडी में आते ही झूठ बोलना, बहाना बनाना शुरु कर देते हैं। जिस कारण पुलिस ऑफिसर और इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को उनके साथ सख्ती से बर्ताव करना पड़ता है।
लेकिन पुलिस के डंडे से कुछ कमजोर अपराधी ही सच उगल पाते हैं। कुछ शातिर दिमाग के अपराधी पुलिस के लाखों टॉर्चर और अकर्मक बर्ताव के बावजूद अपने जूर्म को स्वीकार नहीं करते। ऐसे में ऐसे अपराधी सबूत के अभाव से छूट ना जाए इस कारण अब पुलिस और इन्वेस्टिगेशन एजेंसी अब आरोपी के जुर्म को कबूल करवाने के लिए नारको टेस्ट, पॉलीग्राफ टेस्ट जैसे तकनीकी का प्रयोग करने लगी है।
हो सकता है बहुत से लोगों को इन तकनीकों के बारे में मालूम नहीं। इसलिए आज की इस लेख में हम पॉलीग्राफ टेस्ट के बारे में बताने वाले हैं, जो किसी भी अपराधी से जुर्म कबूलवाने में काफी मददगार साबित होती है। अब तक कई मामलों में इस टेस्ट का इस्तेमाल किया जा चुका है। यदि आप इस टेस्ट के बारे में विस्तार पूर्वक जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
पॉलीग्राफ टेस्ट क्या होता है? (Polygraph Test Kya Hota Hai)
आपने लाई डिटेक्टर के बारे में तो सुना ही होगा, जिसके जरिए हम किसी भी व्यक्ति के सच एवं झूठ बोलने का पता बहुत ही आसानी से लगा सकते हैं। उसी मशीन को पॉलीग्राफ कहा जाता है। इस मशीन को झूठ पकड़ने वाली मशीन भी कहा जाता है।
हालांकि बहुत से लोगों को लगता है कि इस मशीन के जरिए व्यक्ति के दिल की बात पता चल जाती है, जिससे पता चल जाता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। लेकिन ऐसी कोई भी बात नहीं है। दरअसल इस मशीन में साइंटिफिक तरीके से ही पता चलता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
क्योंकि इस मशीन में पॉलीग्राफ का मतलब है ग्राफ में कई तरह के बदलाव आना और इस ग्राफ में बदलाव इस मशीन के साथ जुड़े व्यक्ति के रक्तचाप, हृदय की गति, उसके स्वसन की गति के आधार पर आते हैं और उन्हीं को नोट करके यह जाना जाता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच।
दरअसल जब इंसान झूठ बोलता है तो उसके शरीर में डर का भाग होता है, उसके शरीर से पसीना निकलता है, घबराहट पैदा होती है और इन कारणों से उसके रक्तचाप, हृदय गति, उसकी श्वसन गति तेजी से बढ़ने लगते हैं और इन सब चीजों को नोट करके ही यह मशीन सच्चाई का पता लगाती है।
पॉलिग्राफिक (POLYGRAPH) का कार्य
जिस भी आरोपी का पॉलीग्राफ टेस्ट करने का आदेश मिलता है, उस आरोपी को सबसे पहले एक्सपर्ट्स की मौजूदगी में खास तरह की मशीनों के साथ जोड़ा जाता है। दरअसल पोलीग्राफिक टेस्ट में आरोपी के हृदय गति, उसके रक्तचाप, उसकी स्वसन गति को मेजर करना पड़ता है। इस कारण छोटी-छोटी बारीकी पर ध्यान देना होता है।
जिस कारण इस परीक्षण में अच्छे एक्सपर्ट की जरूरत पड़ती है। इस टेस्ट के दौरान आरोपी के सीने पर एक बेल्ट बांधी जाती है, जिसे न्यूमोग्राफ ट्यूब कहते हैं। इससे उस आरोपी के हार्टबिट मेजर की जा सकती है। वहीं उसके बाजूओ पर पल्स कप बांधा जाता है, जिससे ब्लड प्रेशर मेजर होता है और उसके उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स पहनाया जाता है।
जब आरोपी को इस मशीन के साथ पूरी तरीके से जोड़ दिया जाता है तब एक प्रश्नकर्ता उस व्यक्ति से सबसे पहले सामान्य से प्रश्न पूछते हैं। उसके बाद वह घटना और अपराध से संबंधित प्रश्न पूछना शुरु करते हैं। उसके बाद व्यक्ति के दिमाग से निकलने वाले सिग्नल को नोट किया जाता है।
यदि व्यक्ति इस टेस्ट के दौरान झूठ बोलता है तो उसके दिमाग से P300 (P3) सिग्नल निकलता है, जिसे मेजर कर लिया जाता है। उसके बाद उस व्यक्ति के ब्लड प्रेशर और उसके हार्ट रेट भी बढ़ जाती हैं, उन्हें भी कंप्यूटर में मेजर कर लिया जाता है।
इस तरीके से यदि आरोपी अपराध से संबंधित कुछ भी नहीं जानता तो उसके दिमाग से कोई भी सिग्नल नहीं निकलता, जिसके कारण उसका रक्तचाप और हृदय की गति सामान्य रहती हैं। लेकिन यदि अपराध से संबंधित कुछ भी जानता है तो उसके दिमाग से निकलने वाले सिग्नल के कारण उसके रक्तचाप, उसके हृदय गति में परिवर्तन आ जाता है, जिससे पता चल जाता है कि वह व्यक्ति अपराध से संबंध रखता है कि नहीं।
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पॉलीग्राफ टेस्ट में किन चीजों को मेजर किया जाता है?
- व्यक्ति का पल्स
- सांस की गति
- ब्लड प्रेसर
- हाथ पैरों की मूमेंट को
- शरीर से निकलने वाले पसीने
पॉलीग्राफ टेस्ट का इतिहास
पॉलीग्राफ टेस्ट जिसे लाइव डिटेक्टर के नाम से हम लोग जानते हैं, यह कोई आज की तकनीकी नहीं है। इसके बारे में सबसे पहले 1730 ईस्वी में डैनियलडिफो नाम के ब्रिटिस उपन्यासकार ने “An Effectual Scheme for the Immediate Preventing of Street Robberies and suppressing all Other Disorders of the Night,” के नाम से शीर्षक लिखा था।
इसी लेख में इन्होंने सबसे पहले पॉलीग्राफ के बारे में बताया था। उसके बाद 1878 में, इतालवी फिजियोलॉजिस्ट एंजेलो मोसो के द्वारा कुछ इसी से मिलता-जुलता एक यंत्र का प्रयोग किया गया था। 1895 में लोमब्रोसो नाम के एक इंजीनियर ने इस मशीन में ब्लड प्रेशर नापने की भी इकाई को शामिल किया था। उसके बाद 1921 में जॉन लार्सन ने इस मशीन में श्वसन दर को भी मेजर के लिए एक और ईकाई जोड़ा था।
पॉलीग्राफ टेस्ट की आवश्यकता किन मामलों में होती है?
भारत में पॉलीग्राफ टेस्ट अनुमति कोर्ट के द्वारा किसी निश्चित मामलों में ही दिया जाता है। सभी मामलों में आरोपी का पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं किया जाते हैं। निम्नलिखित मामलों में पॉलीग्राफ टेस्ट का आदेश मिलता है:
- नशीली दवाओं के प्रयोग के समय
- गलत ग्राहक बनने के खिलाफ
- यौन दुर्व्यवहार या फिर असंज्ञेय अपराधों में
- गलत तरीके से बर्खास्तगी जैसे मामलों में
- किसी विशेष मामलें में वकील के अनुरोध पर
- निजी अन्वेषक (Private Investigator) में भी करते है।
- बीमा धोखाधड़ी के आदि मामलों में भी इसका प्रयोग किया जा चुका है।
टेस्ट करने के लिए लेनी पड़ती है अदालत से इजाजत
आपके मन में यह तो प्रश्न उठता होगा कि यदि पॉलीग्राफ मशीन से आसानी से सच करवाया जा सकता है। सच और झूठ का पता चल सकता है तो पुलिस अपराधियों को इतना डंडे क्यों खेलवाना, सीधे इस मशीन का प्रयोग करके क्यों ना उनसे सच उगलवाया जाए।
लेकिन यह काम इतना आसान नहीं होता है। भारत में पॉलीग्राफ टेस्ट हो या फिर नारकोटेस्ट हो इस तरह का टेस्ट आरोपी पर करने के लिए सबसे पहले अदालत से आदेश लेना होता है और अदालत किसी गंभीर मामलों में ही इस परीक्षण की अनुमति देती है। इसके अतिरिक्त अपराधियों से भी इस टेस्ट के लिए मंजूरी लेनी होती है।
साल 2010 में सेल्वी बनाम कर्नाटक स्टेट केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अभियुक्त की सहमति के बिना कोई लाई डिटेक्टर टेस्ट नहीं किया जाना चाहिए। 1997 में डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले मेंक् भी सुप्रीम कोर्ट ने पॉलीग्राफ और नार्को टेस्ट का अनैच्छिक प्रशासन अनुच्छेद 21 या जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के बराबर होने का फैसला सुनाया है।
इस तरीके से भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि किसी भी अपराधी को खुद के खिलाफ गवाह नहीं बनाया जा सकता। यही कारण है कि इस तकनीकी का प्रयोग हर एक कैदियों पर नहीं किया जाता और यदि टेस्ट किसी आरोपी पर होता भी है तो सीधे उसको सजा नहीं दी जाती है। इस टेस्ट के होने के बाद भी अन्य सबूतों को इकट्ठा करना पड़ता है।
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क्या पॉलीग्राफ टेस्ट से बच सकता है अपराधी?
इस दुनिया में जितनी भी मशीनें और तकनीक है, उसका आविष्कार स्वयं मनुष्य ने हीं किया है। इसीलिए ऐसा नहीं कह सकते हैं कि आधुनिक मशीनें या तकनीकी इंसान के दिमाग को हरा सकती है। पॉलीग्राफ टेस्ट में भी हम सौ फीसदी यह भरोसा नहीं कर सकते हैं कि इस मशीन के प्रयोग से आरोपी पूरी तरीके से सच ही बोलेगा।
दरअसल जब कोई भी व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसकी सांसों की गति तेज हो जाती है, उसके दिल का धड़कन तेज हो जाती है और उसके रक्तचाप की गति में भी बदलाव आने लगता है, जिसे नोट कर यह पता चल जाता है कि वह व्यक्ति झूठ बोल रहा है या सच। लेकिन कुछ कुछ आरोपी ऐसे शातिर दिमाग के होते हैं कि झूठ को भी इतने आसानी तरीके से बोल देते हैं मानो वह सच ही बोल रहे हैं।
ऐसे में ऐसी मशीन भी उनके दिमाग के सामने फेल हो जाते हैं। हालांकि यह सभी के लिए आसान नहीं है कुछ ही शातिर अपराधी इस टेस्ट से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि कोई आरोपी पॉलीग्राफ का पहले से ही झूठ बोलने का प्रैक्टिस कर ले तब भी वह इस टेस्ट से बच सकता है।
FAQ
पॉलीग्राफ एक झूठ पकड़ने वाली मशीन है जिसका उद्देश्य इस डिवाइस के साथ जोड़े गए व्यक्ति के हृदय की गति, रक्तचाप, स्वसन, उसकी त्वचा की चालकता इत्यादि को माप कर यह साबित करना कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ।
पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान जिस व्यक्ति का टेस्ट होता है उसे इस डिवाइस के साथ जोड़ा जाता है। उसके बाद उसे अपराध से संबंधित कुछ प्रश्न पूछे जाते हैं। जवाब देते वक्त उसके दिल की गति, ब्लड प्रेशर , स्वसन इत्यादि की गति को नोटिस किया जाता है।
अधिकांश पॉलीग्राफ टेस्ट 1 से 2 घंटे का होता है हालांकि इसमें व्यक्ति को डिवाइस के साथ केवल 15 से 20 मिनट के लिए ही जोड़ा जाता है। लेकिन उसके बाद परिणाम आने में लगभग 1 से 2 घंटे का समय लग जाता है। कभी कबार इससे कम समय भी लगता है और कभी इससे ज्यादा भी समय लग सकता है इसका कोई भी निश्चित समय नहीं है।
नारको टेस्ट और पॉलीग्राफ दोनों का ही प्रयोग अपराधी से सच उगलवाने के लिए किया जाता है। लेकिन पॉलीग्राफ टेस्ट में जहां पर अपराधी होश में रहकर जवाब देता है वंही नारकोटेस्ट में व्यक्ति अर्ध चेतना में जवाब देता है। क्योंकि नारकोटेस्ट में आरोपी को ट्रुथ सिरम नाम की दवा इंजेक्शन के जरिए उसके शरीर में डाली जाती है जिससे वह दवा जैसे उसके खून में पहुंचता है, उस व्यक्ति के सोच समझने और तर्क करने की क्षमता कुछ समय के लिए कमजोर हो जाती हैं। जिसके कारण वह व्यक्ति ज्यादा बोल नहीं पाता है और ना ही ज्यादा सोच पाता है। ऐसे में उसे जो भी पूछा जाता है उसका जवाब वह सही सही जवाब देता है। लेकिन पॉलीग्राफ में किसी भी तरह की दवाई का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
हालांकि कई अपराधिक मामलों में पॉलीग्राफ मददगार साबित रहा है। लेकिन उसके बावजूद केवल पॉलीग्राफ टेस्ट के आधार पर किसी भी अपराधी को सजा नहीं दिया जा सकता। क्योंकि भारतीय संविधान में प्रावधान है कि किसी भी अपराधी को उसी के खिलाफ गवाह नहीं बनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में आपने पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test Kya Hota Hai) जिसे लाइव डिटेक्टर और झूठ पकड़ने वाली मशीन के नाम से भी जाना जाता है इसके बारे में जाना। आज के इस लेख के जरिए आपको पॉलीग्राफिक मशीन किस तरह काम करती है, किस तरीके से इसके जरिए अपराधियों से जुर्म कबूल पाया जाता है और इस मशीन का आविष्कार कब किया गया था और इस मशीन से जुड़ी अन्य कई जानकारी आपको मिली।
हमें उम्मीद है कि आज का यह लेख आपके लिए जानकारी पूर्ण रहा होगा। इसे व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए अन्य लोगों के साथ जरूर शेयर करें ताकि जो लोग अभी भी ऐसे तकनीकों से अनजान है, उन्हें भी इनके बारे में जानकारी मिले। इस लेख से संबंधित कोई भी प्रश्न या सुझाव आपके मन में हो तो आप हमें कमेंट में लिख कर बता सकते हैं।
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