Poem on Soldiers in Hindi: नमस्कार दोस्तों, यहां पर हम हमारे वीर भारतीय वीर जवानों पर कविता शेयर कर रहे हैं। सैनिक ही होते हैं जो खुद अपनी नींद का त्याग करके हमें चैन से नींद लेने देते हैं।
हमारी सुरक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देते हैं। जब-जब देश पर संकट के बादल छाएँ है, वीर सैनिकों ने बड़ी ही कुशलता और जबाजी से धरती माता की रक्षा की है।
हमारी सुरक्षा के लिए अपने प्राण त्याग करने वाले सैनिकों को हम नमन करते हैं। भारतीय सैनिकों की जितनी प्रशंसा की जाएं उतनी कम ही है। कुछ शब्द मात्र से उनके बलिदान का व्याख्यान करना संभव नहीं है।
हम यहां पर सैनिकों पर हिंदी में देशभक्ति कविता शेयर कर रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि यह देश के जवान पर कविताएं आपको पसंद आएगी इन्हें आगे शेयर जरूर करें।
सैनिकों पर कविता – Poem on Soldiers in Hindi
सिपाही (Poem on Soldiers in Hindi)
गिनो न मेरी श्वास,
छुए क्यों मुझे विपुल सम्मान?
भूलो ऐ इतिहास,
खरीदे हुए विश्व-ईमान!!
अरि-मुड़ों का दान,
रक्त-तर्पण भर का अभिमान,
लड़ने तक महमान,
एक पँजी है तीर-कमान!
मुझे भूलने में सुख पाती,
जग की काली स्याही,
दासो दूर, कठिन सौदा है
मैं हूँ एक सिपाही!
क्या वीणा की स्वर-लहरी का
सुनूँ मधुरतर नाद?
छि:! मेरी प्रत्यंचा भूले
अपना यह उन्माद!
झंकारों का कभी सुना है
भीषण वाद विवाद?
क्या तुमको है कुस्र्-क्षेत्र
हलदी-घाटी की याद!
सिर पर प्रलय, नेत्र में मस्ती,
मुट्ठी में मन-चाही,
लक्ष्य मात्र मेरा प्रियतम है,
मैं हूँ एक सिपाही!
खीचों राम-राज्य लाने को,
भू-मंडल पर त्रेता!
बनने दो आकाश छेदकर
उसको राष्ट्र-विजेता
जाने दो, मेरी किस
बूते कठिन परीक्षा लेता,
कोटि-कोटि कंठों’
जय-जय है आप कौन हैं, नेता?
सेना छिन्न, प्रयत्न खिन्न कर,
लाये न्योत तबाही,
कैसे पूजूँ गुमराही को मैं हूँ एक सिपाही?
बोल अरे सेनापति मेरे!
मन की घुंडी खोल,
जल, थल, नभ,
हिल-डुल जाने दे,
तू किंचित् मत डोल!
दे हथियार या कि मत दे
तू पर तू कर हुंकार,
ज्ञातों को मत, अज्ञातों को,
तू इस बार पुकार!
धीरज रोग, प्रतीक्षा चिन्ता,
सपने बनें तबाही, कहतैयार’!
द्वार खुलने दे,
मैं हूँ एक सिपाही!
बदलें रोज बदलियाँ, मत कर
चिन्ता इसकी लेश,
गर्जन-तर्जन रहे, देख
अपना हरियाला देश!
खिलने से पहले टूटेंगी,
तोड़, बता मत भेद,
वनमाली, अनुशासन की
सूजी से अन्तर छेद!
श्रम-सीकर प्रहार पर जीकर,
बना लक्ष्य आराध्य
मैं हूँ एक सिपाही, बलि है
मेरा अन्तिम साध्य!
कोई नभ से आग उगलकर
किये शान्ति का दान,
कोई माँज रहा हथकड़ियाँ
छेड़ क्रांन्ति की तान!
कोई अधिकारों के चरणों
चढ़ा रहा ईमान,
‘हरी घास शूली के पहले
की’-तेरा गुण गान!
आशा मिटी, कामना टूटी,
बिगुल बज पड़ी यार!
मैं हूँ एक सिपाही! पथ दे,
खुला देख वह द्वार!!
-माखनलाल चतुर्वेदी
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पथ-भ्रष्ट होने का कलंक जो लगाया गया,
हमने वो आत्म बलिदान से मिटा दिया।
देश की सुरक्षा हेतु देश की जवानियों ने,
सीमाओं पर बूद-बूंद रक्त को चढ़ा दिया।
गोलियों के आगे जो वक्ष को अड़ाते रहे,
देश को एक भी ना घाव लगने दिया।
आप समझौता वाली मेज पे ना जीत पाए,
चोटियों पे हमने तिरंगा लहरा दिया।
सैनिक की मौत
शहीद सैनिक पर कविता
तीन रंगो के
लगभग सम्मानित से कपड़े में लिपटा
लौट आया है मेरा दोस्त
अखबारों के पन्नों
और दूरदर्शन के रूपहले परदों पर
भरपूर गौरवान्वित होने के बाद
उदास बैठै हैं पिता
थककर स्वरहीन हो गया है मां का रूदन
सूनी मांग और बच्चों की निरीह भूख के बीच
बार-बार फूट पड़ती है पत्नी
कभी-कभी
एक किस्से का अंत
कितनी अंतहीन कहानियों का आरंभ होता है
और किस्सा भी क्या?
किसी बेनाम से शहर में बेरौनक सा बचपन
फिर सपनीली उम्र आते-आते
सिमट जाना सारे सपनो का
इर्द-गिर्द एक अदद नौकरी के
अब इसे संयोग कहिये या दुर्योग
या फिर केवल योग
कि दे’शभक्ति नौकरी की मजबूरी थी
और नौकरी जिंदगी की
इसीलिये
भरती की भगदड़ में दब जाना
महज हादसा है
और फंस जाना बारूदी सुरंगो में
’शहादत!
बचपन में कुत्तों के डर से
रास्ते बदल देने वाला मेरा दोस्त
आठ को मार कर मरा था
बारह दु’शमनों के बीच फंसे आदमी के पास
बहादुरी के अलावा और चारा भी क्या है?
वैसे कोई युद्ध नहीं था वहाँ
जहाँ शहीद हुआ था मेरा दोस्त
दरअसल उस दिन
अखबारों के पहले पन्ने पर
दोनो राष्ट्राध्यक्षों का आलिंगनबद्ध चित्र था
और उसी दिन ठीक उसी वक्त
देश के सबसे तेज चैनल पर
चल रही थी
क्रिकेट के दोस्ताना संघर्षों पर चर्चा
एक दूसरे चैनल पर
दोनों दे’शों के म’शहूर ’शायर
एक सी भाषा में कह रहे थे
लगभग एक सी गजलें
तीसरे पर छूट रहे थे
हंसी के बेतहा’शा फव्वारे
सीमाओं को तोड़कर
और तीनों पर अनवरत प्रवाहित
सैकड़ों नियमित खबरों की भीड़ मे
दबी थीं
अलग-अलग वर्दियों में
एक ही कंपनी की गोलियों से बिंधी
नौ बेनाम ला’शों
अजीब खेल है
कि वजीरों की दोस्ती
प्यादों की लाशों पर पनपती है
और
जंग तो जंग
’शाति भी लहू पीती है!
-शोक कुमार पाण्डेय
सैनिक रों संदेश
Hindi Poems On Soldiers
जान गंवाय के बात न करियोॅ
हमरोॅ घर तोंय जखनी जहियोॅ
हमरोॅ कानै नं पारै माय हो भैया
कहियोॅ तोॅय समझाय।
हमरोॅ पत्नी छै दुलरै तिन
हाल जे हमरोॅ सांझ के पुछतिन
चलती बेर कही दै छियोन
डिबिया दियों भुताय हो भैया। कहियोॅ।
खेतोॅ मेॅ मिलतोॅ हमरोॅ बाबू
कहियोॅ दिल पर राखतै काबू
दुश्मन मारी भगैलकौन लेकिन
जानोॅ के बाजी लगाय हो भैया। कहियोॅ।
छोटकी बहिनियाँ जखनी पुछतोॅ
धीरे-धीरे ”धीरज“ टुटतोॅ
हय बंदूक उलटाय केॅ तोहें
आँखी केॅ लियो झुकाय हो भैया। कहियोॅ।
जों कोय मिलतों बंधू-भाई
गामोॅ में करियोॅ हमरोॅ दुहाई
हाल जे हमरोॅ उ सब पुछतोॅ
सीना लियोॅ फुलाय हो भैया। कहियोॅ।
कहियों तोंय समझाय।
-धीरज पंडित
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Hindi Poem on Veer Jawan
बलिदान पर कविता
मैं जगा रहूँगा रात-दिन,
चाहे धूप हो या बरसात हो,
चाहे तूफान आये या पूस की ठंढी रात हो,
मैं खड़ा रहूँगा सरहद पर सीना ताने,
चाहे गोलियों की बौछार हो,
चाहे न खाने को कुछ भी आहार हो,
अपने “वतन” की खातिर मैं,
हर दर्द हँस के सह लूँगा,
निकले जो खून बदन से मेरे,
मैं खुश हो लूँगा,
कभी आँखों में रेत भी चल जाए तो,
वादा है, मेरी पलकें नहीं झपकेगी,
लहू भी जम जाए अगर जो सीने में,
मेरे हाथ बंदूक नीचे नहीं रखेगी,
दुश्मन के घर मेरे “वतन” के चट्टानों का एक टुकड़ा भी न जा पायेगा,
जमींदोज कर दूँगा मैं काफ़िर तुमको,
जो मेरी धरती की तरफ आँख उठाएगा,
कितना भी दुर्गम रास्ता हो,
किंचित भी नहीं डरूँगा मैं,
चप्पे-चप्पे पर रहेगी नजर मेरी,
देश के गद्दारों पर अब रहम नहीं करूँगा मैं।
Short Poem on Indian Soldiers in Hindi
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुए विनीत जितना ही,
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
सच पूछो, तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की,
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का जिसमें शक्ति विजय की।
Short Poem on Soldiers Sacrifice in Hindi
Poem on Indian Army in Hindi
माथे तिलक लगाती हमको, वीर प्रसूता मातायें,
वीर शिवा, राणा, सुभाष की, भरी पड़ी हैं गाथायें।
सरहद है महफूज हमारी, अपने वीर जवानों से,
लिखते है इतिहास नया नित, जो अपने बलिदानों से।।
देश के सैनिकों से
Poem On Soldiers In Hindi
कटी न थी गुलाम लौह श्रृंखला,
स्वतंत्र हो कदम न चार था चला,
कि एक आ खड़ी हुई नई बला,
परंतु वीर हार मानते कभी?
निहत्थ एक जंग तुम अभी लड़े,
कृपाण अब निकाल कर हुए खड़े,
फ़तह तिरंग आज क्यों न फिर गड़े,
जगत प्रसिद्ध, शूर सिद्ध तुम सभी।
जवान हिंद के अडिग रहो डटे,
न जब तलक निशान शत्रु का हटे,
हज़ार शीश एक ठौर पर कटे,
ज़मीन रक्त-रुंड-मुंड से पटे,
तजो न सूचिकाग्र भूमि-भाग भी।
-हरिवंशराय बच्चन
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Excellent poems i got 10/10 in hindi when i learned it