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बेस्ट देशभक्ति पर कविताएँ

यदि आप desh bhakti poem in hindi का कलेक्शन सर्च कर रहे हैं तो आप बिलकुल सही जगह पर है यहां पर हमने देशभक्ति कविता का संग्रह शेयर किया है।

देशभक्ति कविता बच्चों के लिए जरूरी इसलिए है। क्योंकि शुरू से ही बच्चों में देश प्रेम जाग्रत हो सके और उनमें देशभक्ति की भावना का संचार हो सके। इसलिए 15 अगस्त, 26 जनवरी या फिर देशभक्ति कार्यक्रम में देश भक्ति गीत कविता का प्रदर्शन किया जाता है।

desh bhakti kavita सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि हर व्यक्ति जो देशभक्त है चाहे वह बड़ा हो या बूढा हो में राष्ट्र के प्रति नई ऊर्जा का प्रवाह करती है और देशभक्ति की भावना भर देती है।

desh bhakti poem in hindi
Poem on Desh Bhakti in Hindi

यहां पर हमने 15 से भी अधिक देश भक्ति कविता इन हिंदी (Poem on Desh Bhakti in Hindi) शेयर की है, जिन्हें आप पढ़ सकते हैं और सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते हैं।

विषय सूची

देशभक्ति पर कविताएं (Desh Bhakti Poem in Hindi)

वीर तुम बढ़े चलो

यह एक देश भक्ति पर छोटी कविता है, जिसे आप आसानी से याद करके देश भक्ति कार्यक्रम में प्रस्तुत कर सकते हैं।

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो

आज प्रात है नया
आज साथ है नया
आज राह है नयी
आज चाह है नयी

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

देश को करो नया
वेष को करो नया
जीर्ण वस्त्र छोड़ दो
जीर्ण अस्त्र छोड़ दो

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो

अन्न भूमि में भरा
वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो
रत्न भर निकाल लो

वीर तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

एक ध्वज लिए हुए
एक प्रण किए हुए
मातृ भूमि के लिए
पितृ भूमि के लिए

वीर, तुम बढ़े चलो
धीर, तुम बढ़े चलो।

प्यारा हिंदुस्तान है (डॉ. गणेशदत्त सारस्वत)

अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है-
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा, यमुना सरस्वती से सिंचित जो गत-क्लेश है।
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण है-
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण वह अपना भारत देश है।

यहीं मिला आकार ‘ज्ञेय’ को मिली नई सौग़ात है-
इसके ‘दर्शन’ का प्रकाश ही युग के लिए विहान है।

वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका निर्भ्रांत है।
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है-
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता बहती शांत है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न आक्षेपों से धूमिल कभी हुई-
अति उदात्त आदर्शों की निधियों से यह धनवान है।।

योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है।
जिस धरती की आध्यात्मिकता, का शुचि रूप ललाम है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहें अब भी जहाँ-
कोटि-कोटि उस जन्मभूमि को श्रद्धावनत प्रणाम है।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता महनीय है-
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष महान है।

क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है।
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु कि जिसके चरणों पर है लोटता-
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता अजेय है।
समता, ममता और एकता का पावन उद्गम यह है
देवोपम जन-जन है इसका हर पत्थर भगवान है।

-डॉ. गणेशदत्त सारस्वत

हमें मिली आज़ादी (सजीवन मयंक)

आज तिरंगा फहराता है अपनी पूरी शान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।
आज़ादी के लिए हमारी लंबी चली लड़ाई थी।
लाखों लोगों ने प्राणों से कीमत बड़ी चुकाई थी।।
व्यापारी बनकर आए और छल से हम पर राज किया।
हमको आपस में लड़वाने की नीति अपनाई थी।।

हमने अपना गौरव पाया, अपने स्वाभिमान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

गांधी, तिलक, सुभाष, जवाहर का प्यारा यह देश है।
जियो और जीने दो का सबको देता संदेश है।।
प्रहरी बनकर खड़ा हिमालय जिसके उत्तर द्वार पर।
हिंद महासागर दक्षिण में इसके लिए विशेष है।।

लगी गूँजने दसों दिशाएँ वीरों के यशगान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

हमें हमारी मातृभूमि से इतना मिला दुलार है।
उसके आँचल की छैयाँ से छोटा ये संसार है।।
हम न कभी हिंसा के आगे अपना शीश झुकाएँगे।
सच पूछो तो पूरा विश्व हमारा ही परिवार है।।

विश्वशांति की चली हवाएँ अपने हिंदुस्तान से।
हमें मिली आज़ादी वीर शहीदों के बलिदान से।।

-सजीवन मयंक

सबेरा हुआ है (वंशीधर शुक्ल)

उठो सोने वालो! सबेरा हुआ है,
वतन के फ़कीरों का फेरा हुआ है।

जगो, अब निराशा-निशा खो रही है,
सुनहली-सी पूरब दिशा हो रही है।
उषा की किरण कालिमा धो रही है,
न अब क़ौम कोई कहीं सो रही है।

तुम्हें किसलिए मोह घेरा हुआ है।
उठो सोने वालो! सबेरा हुआ है।

जवानो! जगो, क़ौम की जान जागो,
पड़े किसलिए देश की शान जागो।
ग़ुलामी मिटे देश उत्थान जागो,
शहीदों की सच्ची सुसंतान जागो।

हटा दूर आलस-अँधेरा हुआ है।
उठो सोने वालो! सबेरा हुआ है।

उठो देवियो! वक़्त खोने न देना,
कहीं फूट के बीज बोने न देना।
जगें जो, उन्हें फिर से सोने न देना
कभी राष्ट्र-अपमान होने न देना।

घड़ी शुभ महूरत का डेरा हुआ है।
उठो सोने वालो सबेरा हुआ है।

नई रोशनी मुल्क में उग रही है,
युगों बाद फिर हिंद-माँ जग रही है।
ख़ुमारी बचा प्राण को भग रही है,
दिलों में निराली लगन लग रही है।

मुसीबत से अब तो निबेरा हुआ है।
उठो सोने वालो सबेरा हुआ है।

हवा क्रांति की झूमती डाली-डाली,
बदल जाने वाली है शासन प्रणाली।
जगो, देख लो कैसी रौनक़-निराली,
सितारे गए, आ गया अंशुमाली।

घरों में, दिलों में उजेरा हुआ है।
उठो सोने वालो! सबेरा हुआ है।

-वंशीधर शुक्ल

तराना-ए-बिस्मिल (राम प्रसाद बिस्मिल)

यह राम प्रसाद बिस्मिल द्वारा रचित देशभक्ति कविता छोटी सी है, जिसे पढ़ने के बाद आप में देशभक्ति की भावना जाग्रत हो जाएगी और देशप्रेम की अलख जगेगी।

बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।

लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।

खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।

कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।

यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।

राम प्रसाद बिस्मिल

patriotic poem in hindi
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अब तक हमने desh bhakti kavita in hindi के कलेक्शन में 5 देशभक्ति कविताएं पढ़ी है। चलिए और देशभक्ति कविता हिंदी में पढ़ते हैं।

भारत की आरती (शमशेर बहादुर सिंह)

भारत की आरती
देश-देश की स्वतंत्रता देवी
आज अमित प्रेम से उतारती।

निकटपूर्व, पूर्व, पूर्व-दक्षिण में
जन-गण-मन इस अपूर्व शुभ क्षण में
गाते हों घर में हों या रण में
भारत की लोकतंत्र भारती।

गर्व आज करता है एशिया
अरब, चीन, मिस्र, हिंद-एशिया
उत्तर की लोक संघ शक्तियां
युग-युग की आशाएं वारतीं।

साम्राज्य पूंजी का क्षत होवे
ऊंच-नीच का विधान नत होवे
साधिकार जनता उन्नत होवे
जो समाजवाद जय पुकारती।

जन का विश्वास ही हिमालय है
भारत का जन-मन ही गंगा है
हिन्द महासागर लोकाशय है
यही शक्ति सत्य को उभारती।

यह किसान कमकर की भूमि है
पावन बलिदानों की भूमि है
भव के अरमानों की भूमि है
मानव इतिहास को संवारती।

-शमशेर बहादुर सिंह

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Desh Bhakti Poems in Hindi by Harivansh Rai Bachchan

स्वतन्त्रता दिवस (हरिवंशराय बच्चन)

आज से आजाद अपना देश फिर से!

ध्यान बापू का प्रथम मैंने किया है,
क्योंकि मुर्दों में उन्होंने भर दिया है
नव्य जीवन का नया उन्मेष फिर से!
आज से आजाद अपना देश फिर से!

दासता की रात में जो खो गये थे,
भूल अपना पंथ, अपने को गये थे,
वे लगे पहचानने निज वेश फिर से!
आज से आजाद अपना देश फिर से!

स्वप्न जो लेकर चले उतरा अधूरा,
एक दिन होगा, मुझे विश्वास, पूरा,
शेष से मिल जाएगा अवशेष फिर से!
आज से आजाद अपना देश फिर से!

देश तो क्या, एक दुनिया चाहते हम,
आज बँट-बँट कर मनुज की जाति निर्मम,
विश्व हमसे ले नया संदेश फिर से!
आज से आजाद अपना देश फिर से!

हरिवंशराय बच्चन

deshbhakti poem in hindi
Image: deshbhakti poem in hindi

आज़ादों का गीत (हरिवंशराय बच्चन)

हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सजतीं गुड़ियाँ,
इनसे आतंकित करने की बीत गई घड़ियाँ,

इनसे सज-धज बैठा करते
जो, हैं कठपुतले।
हमने तोड़ अभी फैंकी हैं
बेड़ी-हथकड़ियाँ,

परम्परा पुरखों की हमने
जाग्रत की फिर से,
उठा शीश पर हमने रक्खा
हिम किरीट उज्जवल!
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सज सिंहासन,
जो बैठा करते थे उनका
खत्म हुआ शासन,

उनका वह सामान अजायब-
घर की अब शोभा,
उनका वह इतिहास महज
इतिहासों का वर्णन,

नहीं जिसे छू कभी सकेंगे
शाह लुटेरे भी,
तख़्त हमारा भारत माँ की
गोदी का शाद्वल!
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
से सजवा छाते
जो अपने सिर पर तनवाते
थे, अब शरमाते,

फूल-कली बरसाने वाली
दूर गई दुनिया,
वज्रों के वाहन अम्बर में,
निर्भय घहराते,

इन्द्रायुध भी एक बार जो
हिम्मत से औड़े,
छ्त्र हमारा निर्मित करते
साठ कोटि करतल।
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!

चांदी, सोने, हीरे, मोती
का हाथों में दंड,
चिन्ह कभी का अधिकारों का
अब केवल पाखंड,

समझ गई अब सारी जगती
क्या सिंगार, क्या सत्य,
कर्मठ हाथों के अन्दर ही
बसता तेज प्रचंड,

जिधर उठेगा महा सृष्टि
होगी या महा प्रलय,
विकल हमारे राज दंड में
साठ कोटि भुजबल!
हम ऐसे आज़ाद, हमारा
झंडा है बादल!

-हरिवंशराय बच्चन

शहीद की माँ (हरिवंशराय बच्चन)

इसी घर से
एक दिन
शहीद का जनाज़ा निकला था,
तिरंगे में लिपटा,
हज़ारों की भीड़ में।
काँधा देने की होड़ में
सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,
पुट्ठे छिले थे।
भारत माता की जय,
इंकलाब ज़िन्दाबाद,
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद
के नारों में शहीद की माँ का रोदन
डूब गया था।
उसके आँसुओ की लड़ी
फूल, खील, बताशों की झडी में
छिप गई थी,
जनता चिल्लाई थी-
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से
दिप गई थी।

इसी घर से
तीस बरस बाद
शहीद की माँ का जनाजा निकला है,
तिरंगे में लिपटा नहीं,
(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास
लोगों के लिये विहित है)
केवल चार काँधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर;
चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,
गली किसी राहत से
छुई छुई।

-हरिवंशराय बच्चन

घायल हिन्दुस्तान (हरिवंशराय बच्चन)

मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।

दबी हुई दुबकी बैठी हैं
कलरवकारी चार दिशाएँ,
ठगी हुई, ठिठकी-सी लगतीं
नभ की चिर गतिमान हवाएँ,

अंबर के आनन के ऊपर
एक मुर्दनी-सी छाई है,

एक उदासी में डूबी हैं
तृण-तरुवर-पल्लव-लतिकाएँ;
आंधी के पहले देखा है
कभी प्रकृति का निश्चल चेहरा?

इस निश्चलता के अंदर से
ही भीषण तूफान उठेगा।
मुझको है विश्वास किसी दिन
घायल हिंदुस्तान उठेगा।

-हरिवंशराय बच्चन

desh bhakti par kavita
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अब तक हमने deshbhakti kavita in hindi के कलेक्शन में 10 deshbhakti kavita पढ़ी है। चलिए और जोश भर देने वाली देशभक्ति कविता पढ़ते हैं।

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गणतंत्र दिवस (हरिवंशराय बच्चन)

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

-हरिवंशराय बच्चन

Desh Bhakti Poems in Hindi by Ramdhari Singh Dinkar

किसको नमन करूँ मैं भारत (रामधारी सिंह दिनकर)

तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं?
मेरे प्यारे देश! देह या मन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत? किसको नमन करूँ मैं?

भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है?
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है?
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है
मेरे प्यारे देश! नहीं तू पत्थर है, पानी है
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं?

तू वह, नर ने जिसे बहुत ऊँचा चढ़कर पाया था,
तू वह, जो संदेश भूमि को अम्बर से आया था।
तू वह, जिसका ध्यान आज भी मन सुरभित करता है,
थकी हुई आत्मा में उड़ने की उमंग भरता है।
गन्ध -निकेतन इस अदृश्य उपवन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं?

वहाँ नहीं तू जहाँ जनों से ही मनुजों को भय है,
सब को सब से त्रास सदा सब पर सब का संशय है।
जहाँ स्नेह के सहज स्रोत से हटे हुए जनगण हैं,
झंडों या नारों के नीचे बँटे हुए जनगण हैं।
कैसे इस कुत्सित, विभक्त जीवन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

तू तो है वह लोक जहाँ उन्मुक्त मनुज का मन है,
समरसता को लिये प्रवाहित शीत-स्निग्ध जीवन है।
जहाँ पहुँच मानते नहीं नर-नारी दिग्बन्धन को,
आत्म-रूप देखते प्रेम में भरकर निखिल भुवन को।
कहीं खोज इस रुचिर स्वप्न पावन को नमन करूँ मैं?
किसको नमन करूँ मैं भारत! किसको नमन करूँ मैं?

भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं!

खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं!

दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं!

उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं!

-रामधारी सिंह दिनकर

सिपाही (रामधारी सिंह दिनकर)

वनिता की ममता न हुई, सुत का न मुझे कुछ छोह हुआ,
ख्याति, सुयश, सम्मान, विभव का, त्योंही, कभी न मोह हुआ।
जीवन की क्या चहल-पहल है, इसे न मैंने पहचाना,
सेनापति के एक इशारे पर मिटना केवल जाना।

मसि की तो क्या बात? गली की ठिकरी मुझे भुलाती है,
जीते जी लड़ मरूं, मरे पर याद किसे फिर आती है?
इतिहासों में अमर रहूँ, है ऐसी मृत्यु नहीं मेरी,
विश्व छोड़ जब चला, भूलते लगती फिर किसको देरी?

जग भूले, पर मुझे एक, बस, सेवा-धर्म निभाना है,
जिसकी है यह देह उसीमें इसे मिला मिट जाना है।
विजय-विटप को विकच देख जिस दिन तुम हृदय जुड़ाओगे,
फूलों में शोणित की लाली कभी समझ क्या पाओगे?

वह लाली हर प्रात क्षितिज पर आकर तुम्हें जगायेगी,
सायंकाल नमन कर माँ को तिमिर-बीच खो जायेगी।
देव करेंगे विनय, किन्तु, क्या स्वर्ग-बीच रुक पाऊँगा?
किसी रात चुपके उल्का बन कूद भूमि पर आऊँगा।

तुम न जान पाओगे, पर, मैं रोज खिलूँगा इधर-उधर,
कभी फूल की पंखुड़ियाँ बन, कभी एक पत्ती बनकर,
अपनी राह चली जायेगी वीरों की सेना रण में,
रह जाऊँगा मौन वृन्त पर सोच, न जाने, क्या मन में?

तप्त वेग धमनी का बनकर कभी संग मैं हो लूँगा,
कभी चरण- तल की मिट्टी में छिपकर जय-जय बोलूँगा।
अगले युग की अनी कपिध्वज जिस दिन प्रलय मचायेगी,
मैं गरजूंगा ध्वजा-श्रृंग पर, वह पहचान न पायेगी।

‘न्योछावर में एक फूल’, पर, जग की ऐसी रीत कहाँ?
एक पंक्ति मेरी सुधि में भी, सस्ते इतने गीत कहाँ?
कविते! देखो विजन विपिन में वन्य-कुसुम का मुरझाना,
व्यर्थ न होगा इस समाधि पर दो आँसू-कण बरसाना।

-रामधारी सिंह दिनकर

Desh Bhakti Poems in Hindi by Rabindranath Tagore

जन गण मन (रवींद्र नाथ ठाकुर)

जन गण मन अधि नायक जय हे!
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा,
द्राविण उत्कल बंग।

विंध्य हिमाचल यमुना गंगा,
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय-गाथा।

जन-गण-मंगलदायक जय हे!
भारत भाग्य विधाता।
जय हे! जय हे! जय हे!
जय जय जय जय हे!

रवींद्र नाथ ठाकुर

poem on swatantrata in hindi

चल तू अकेला (रवींद्र नाथ ठाकुर)

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,
जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,
हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,
मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..
ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

-रवींद्र नाथ ठाकुर

Hindi Desh Bhakti Kavita
Hindi Desh Bhakti Kavita

नहीं मांगता (रवींद्र नाथ ठाकुर)

नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से,
मुझे बचाओ, त्राण करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।
नहीं मांगता दुःख हटाओ
व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ
दुखों को मैं आप जीत लूँ
ऐसी शक्ति प्रदान करो
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

कोई जब न मदद को आये
मेरी हिम्मत टूट न जाये।
जग जब धोखे पर धोखा दे
और चोट पर चोट लगाये –
अपने मन में हार न मानूं,
ऐसा, नाथ, विधान करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।
नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी
जीवन नैया पार करो
पार उतर जाऊँ अपने बल
इतना, हे करतार, करो।
नहीं मांगता हाथ बटाओ
मेरे सिर का बोझ घटाओ
आप बोझ अपना संभाल लूँ
ऐसा बल-संचार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

सुख के दिन में शीश नवाकर
तुमको आराधूँ, करूणाकर।
औ’ विपत्ति के अन्धकार में,
जगत हँसे जब मुझे रुलाकर–
तुम पर करने लगूँ न संशय,
यह विनती स्वीकार करो।
विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

-रवींद्र नाथ ठाकुर

निष्कर्ष

यहां पर प्रसिद्ध देशभक्ति कविताएँ (desh bhakti poem in hindi) शेयर की है। उम्मीद करते हैं आपको यह पसंद आई होगी, इसे आगे शेयर जरुर करें। यदि इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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