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मकर संक्रांति पर कविता

Poem on Makar Sankranti in Hindi: मकर संक्रांति हर वर्ष 14/15 जनवरी को एक निश्चित दिवस पर मनाई जाती है। भारतीय महीनो में यह त्योहार माघ माह में आता हैं। मकर संक्रांति सर्दियो के जाने का ओर गर्मियों के आने का भी संकेत हैं। मकर संक्रांति भारत के हर कोने ने अलग-अलग कल्चर के अनुसार मनाया जाता हैं, कही मकर संक्रांति को माघा तो कही इसे मेला कह कर पुकारते है।

अंग्रेजी नए साल में मकर संक्रांति सबसे पहले आने वाला त्योहार हैं। मकर संक्रांति देश के लगभग हर कोने में उत्साह और उमंग से मनाया जाता हैं। भारत के बाहर नेपाल में इसे माघे संक्रांति भी कहा जाता है, वह इतने ही उत्साह से मनाया भी जाता हैं। मकर संक्रांति एक प्रचीन और नेपाील त्योहर है, जो हिंदु केलेण्डर के हिसाब से 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है।

Poem on Makar Sankranti in Hindi

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मकर संक्रांति पर कविता | Poem on Makar Sankranti in Hindi

पतंग पर कविता इन हिंदी (Makar Sankranti Kavita in Hindi)

Short Poem on Patang in Hindi

ऐसी एक पतंग बनाएं
जो हमको भी सैर कराए
कितना अच्छा लगे अगर
उड़े पतंग हमें लेकर
पेड़ों से ऊपर पहुंचे
धरती से अंबर पहुंचे
इस छत से उस छत जाएं
आसमान में लहराएं
खाती जाए हिचकोले
उड़न खटोले-सी डोले
डोर थामकर डटे रहें
साथ मित्र के सटे रहें
विजय पताका फहराएं
हम भी सैर कर आएं।

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मकर संक्रांति कविता (Hindi Poem on Makar Sankranti)

आज का दिन है अति पावन
मकर संक्रांति का है दिन
आज उड़ेगी आकाश में पतंग
होंगे लाल पिले सब रंग
गंगा में डुबकी लगाओ
करो शीतल तन और मन
दान करो चीनी चावल धान
कमाओ पुण्या बनाओ परमार्थ
जोड़ो हाथ ईशवर से वर माँगो
सब जन जीवन का हो कल्याण

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Hindi Poem on Kite Festival

Makar Sankranti Poems In Hindi

आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
घर में हम सब खुशियाँ फैलाये
पतंगे हम खूब उड़ाये।
सब मिलकर हम नाचे गाये
मौज मस्ती खूब उड़ाये।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।
गली मोहल्ले मे बांटे सारे।
सब मिलकर कर खाये प्यारे
गंगा में डूबकी लगाये।
शरीर अपना स्वस्थ बनाये।
आओ हम सब मकर संक्रांति मनाये
तिल की लड्डू सब मिलकर खाये।।

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Makar Sankranti Kavita

सूरज ने मकर राशि में दाखिल होकर
मकर संक्रांति के आने की दी खबर
ईंटों के शहर में
आज बहुत याद आया अपना घर।
गन्ने के रस के उबाल से फैलती हर तरफ
सोंधी-सोंधी वो गुड की वो महँक
कूटे जाते हुए तिल का वो संगीत
साथ देते बेसुरे कंठों का वो सुरीला गीत।
गंगा स्नान और खिचड़ी का वो स्वाद,
रंगीन पतंगों से भरा आकाश
जोश भरी “वोक्काटा” की गूँज
सर्दियों को अलविदा कहने की धूम।
अब तुम्हारा साथ ही त्यौहार जैसा लगता है
तुम्हारे आँखों की चमक दीवाली जैसी
और प्यार के रंगों में होली दिखती है
तुम्हारे गालों का वो काला तिल
जब तुम्हारे होठों के गुड की मिठास में घुलता है
वही दिन मकर-संक्रांति का होता है!
वही दिन मकर-संक्रांति का होता है!!

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पतंग पर कविता (Poem on Makar Sankranti in Hindi)

Patang Par Kavita In Hindi

उत्सव, पतंग
मेरे लिए उर्ध्वगति का उत्सव
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण।
पतंग
मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव,
मेरी डोर मेरे हाथ में
पदचिह्न पृथ्वी पर,
आकाश में विहंगम दृश्य।
मेरी पतंग
अनेक पतंगों के बीच…
मेरी पतंग उलझती नहीं,
वृक्षों की डालियों में फंसती नहीं।
पतंग
मानो मेरा गायत्री मंत्र।
धनवान हो या रंक,
सभी को कटी पतंग एकत्र करने में आनंद आता है,
बहुत ही अनोखा आनंद।
कटी पतंग के पास
आकाश का अनुभव है,
हवा की गति और दिशा का ज्ञान है।
स्वयं एक बार ऊंचाई तक गई है,
वहां कुछ क्षण रुकी है।
पतंग
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण,
पतंग का जीवन उसकी डोर में है।
पतंग का आराध्य (शिव) व्योम (आकाश) में,
पतंग की डोर मेरे हाथ में,
मेरी डोर शिव जी के हाथ में।
जीवन रूपी पतंग के लिए (हवा के लिए)
शिव जी हिमालय में बैठे हैं।
पतंग के सपने (जीवन के सपने)
मानव से ऊंचे।
पतंग उड़ती है,
शिव जी के आसपास,
मनुष्य जीवन में बैठा-बैठा,
उसकी डोर को सुलझाने में लगा रहता है।

Sakrat Poems In Hindi

Short Poem on Makar Sankranti in Hindi

आसमान का मौसम बदला
बिखर गई चहुँओर पतंग।
इंद्रधनुष जैसी सतरंगी
नील गगन की मोर पतंग।।
मुक्त भाव से उड़ती ऊपर
लगती है चितचोर पतंग।
बाग तोड़कर, नील गगन में
करती है घुड़दौड़ पतंग।।
पटियल, मंगियल और तिरंगा
चप, लट्‍ठा, त्रिकोण पतंग।
दुबली-पतली सी काया पर
लेती सबसे होड़ पतंग।।
कटी डोर, उड़ चली गगन में
बंधन सारे तोड़ पतंग।
लहराती-बलखाती जाती
कहाँ न जाने छोर पतंग।।

Makar Sankranti Par Kavita

मकर राशि पर सूर्य जब, आ जाते है आज!
उत्तरायणी पर्व का, हो जाता आगाज!!
कनकअौं की आपने, ऐसी भरी उड़ान!
आसमान मे हो गये, पंछी लहू लुहान!!
फिरकी फिरने लग गई, उड़ने लगी पतंग!
कनकअौं की छिड़ गई, आसमान मे जंग!!
अनुशासित हो कर लडें, लडनी हो जो जंग!
कहे डोर से आज फिर, उडती हुई पतंग!!
कहने को तो देश में, अलग अलग है प्रान्त!
कहीं कहें पोंगल इसे, कहे कहीं सक्रांत!!
उनका मेरा साथ है, जैसे डोर पतंग!
जीवन के आकाश मे, उडें हमेशा संग!!
मना लिया कल ही कहीं, कही मनायें आज!
त्योंहारो के हो गये, अब तो अलग मिजाज!!
त्योहारों में धुस गई, यहांँ कदाचित भ्राँति!
दो दिन तक चलती रहे, देखो अब संक्राँति!

Makar Sankranti Poem in Hindi

आसमान में चली पतंग
मन में उठी एक तरंग
लाल, गुलाबी, काली, नीली,
मुझको तो भाती है पीली
डोर ना इसकी करना ढीली
सर-सर सर-सर चल सुरीली
कभी इधर तो कभी उधर
लहराती है फर फर फर

poem on makar sankranti in hindi

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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