पंडित रघुनाथ मुर्मू जीवनी: हमारे देश में कई तरह के आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनमें से एक आदिवासी समुदाय संथाल लोग भी होते हैं, जिनकी आबादी झारखंड में ज्यादा है।
19वीं शताब्दी तक संथाल लोगों के पास कोई लिखित भाषा नहीं हुआ करती थी, जिसके कारण पीढ़ी दर पीढ़ी इनका ज्ञान मौखिक रूप से प्रसारित होता था।
लेकिन बाद में यूरोपीय शोधकर्ताओं और कई ईसाई मिशनरियों के द्वारा इस समुदाय के लोगों के भाषा का दस्तावेजीकरण के लिए ओड़िया, बंगाली जैसे अलग-अलग लिपियों का प्रयोग होने लगा। लेकिन अब तक उनके पास कोई भी लिपि खुद की नहीं बन पाई थी।
लेकिन आगे चलकर पंडित रघुनाथ मुर्मू ने संथालियों के लिए खुद की अपनी ओलचिकी लिपि की खोज की, जिससे संथाली समाज के सांस्कृतिक पहचान को और भी ज्यादा समृद्धि मिली।
इस लेख में हम संथाली भाषा की लिपि ओल चिकी के खोजकर्ता पंडित रघुनाथ मुर्मू जीवनी लेकर आए हैं, जिसके जरिए हम उनके जीवन के संघर्षों से परिचित होंगे।
पंडित रघुनाथ मुर्मू जीवनी (Pandit Raghunath Murmu Biography in Hindi)
नाम | पंडित रघुनाथ मुर्मू (Pandit Raghunath Murmu) |
जन्म और जन्मस्थान | 5 मई 1905, मयूरभंज (उड़ीसा) |
पेशा | लेखक, विचारक और नाटककार |
पिता | नंदलाल मुर्मू |
माता | सलमा मुर्मू |
पत्नी | नोहा बास्को |
उम्र | 76 वर्ष |
निधन | 1 फरवरी 1982 |
पंडित रघुनाथ मुर्मू का प्रारंभिक जीवन
रघुनाथ मुर्मू का जन्म वर्तमान उड़ीसा राज्य के रायरंगपुर शहर के पास दहरडीह नामक गांव में 5 मई 1905 को बुद्ध पूर्णिमा यानी कि वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था।
इनके पिता का नाम नंदलाल मुर्मू था, जो कि पेशे से एक गांव के प्रधान थे। वहीं उनकी माता का नाम सलमा मुर्मू था। रघुनाथ मुर्मू के बचपन का नाम चुन्नू मुर्मू था, जो कि संथाल लोगों के पारंपरिक सामाजिक रीति-रिवाज के अनुसार रखा गया था।
लेकिन बाद में उनके यहां नाम संस्करण करने वाले पुजारी ने इनका नाम बदलकर रघुनाथ मुर्मू रख दिया। उनके एक चाचा भी थे, जो कि मयूरभंज राज्य के राजा प्रताप चंद्र भंजदेव के दरबार में मुंशी के पद पर काम किया करते थे।
रघुनाथ मुर्मू की शिक्षा
रघुनाथ मुर्मू ने अपनी शुरुआती पढ़ाई गम्हरिया के स्कूल से की। हालांकि शुरुआती समय में उन्हें पढ़ाई में बिल्कुल मन नहीं लगता था। जिसके कारण वे अक्सर स्कूल को छोड़कर भाग जाया करते थे।
लेकिन उनके माता-पिता हमेशा उन्हें पढ़ाई में मन लगाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। रघुनाथ मुर्मू का पढ़ाई में मन ना लगने का एक महत्वपूर्ण कारण था कि वह बचपन से सोचते थे कि उन्हें दूसरों की मातृभाषा में क्यों पढ़ाया जाता है, खुद के मातृभाषा में क्यों नहीं पढ़ाया जाता है?
उनके स्कूल में दूसरे गांव के एक साव मुर्मू नाम का लड़का पढ़ता था, जो कि रिश्ते में उनके मामा लगते थे। वह रघुनाथ मुर्मू को पढ़ाई में मदद भी करते थे और मेहनत के लिए उकसाते भी थे।
लेकिन बाद में साव मुर्मू की पढ़ाई कंप्लीट हो जाने के बाद वह बडहोदा मिडिल इंग्लिश स्कूल में चले गए। जिससे रघुनाथ मुर्मू यहां पर अकेले हो गए थे।
बाद में उन्होंने भी अपने पिता को कहकर उस स्कूल में अपना एडमिशन करा लिया। उस समय 1914-15 के बीच रघुनाथ मुर्मू कक्षा 3 में भर्ती हुए। वह स्कूल उनके गांव से 12 किलोमीटर दूर था।
शुरुआत में नए स्कूल, नए मास्टर और नए दोस्त के कारण रघुनाथ मुर्मू घबरा गए थे, जिसके कारण वे उस साल अपने स्कूल के वार्षिक परीक्षा में फेल हो गए थे। लेकिन उसके बावजूद उन्हें चौथी क्लास में बैठने का मौका दिया गया था।
1922 में उनका स्कूली पढ़ाई पूरा हो गई, जिसके बाद में आगे की पढ़ाई के लिए वे हाई स्कूल में एडमिशन कराना चाहते थे। लेकिन उनके मयूरभंज जिले में केवल एक ही हाई स्कूल था, जो कि बारिपदा में था। लेकिन घर की आर्थिक तंगी के कारण उनकी भर्ती वहां पर नहीं हो पाई। जिसके कारण 1 साल उन्हें अपने घर पर ही रहकर पढ़ाई करना पड़ी।
लेकिन पढ़ाई के प्रति उनकी अदम्य इच्छा के कारण 1 साल के बाद बारीपदा स्कूल आफ मयूरभंज हाई स्कूल जो कि अब महाराजा कृष्ण चंद्र हाई स्कूल के नाम से जाना जाता है, उसमें उनका भर्ती हो गई और इस तरह इसी स्कूल से रघुनाथ मुर्मू ने सन 1928 में द्वितीय श्रेणी से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
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रघुनाथ मुर्मू का विवाह
पंडित रघुनाथ मुर्मू का विवाह पारिवारिक कारणों से हाई स्कूल के दौरान ही बिहार राज्य के कुचुंग प्रांत के जामजोड़ा गांव की लड़की नोहा बास्को के साथ हो गया था।
वह राम प्रधान दासमत बास्को की छोटी बेटी थी। नोहा बास्को पूरी अनपढ़ थी लेकिन Pandit Raghunath Murmu के हर दुख सुख में उनके साथ रही।
ओल चिकी लिपि का आविष्कार
रघुनाथ मुर्मू जब अपने हाई स्कूल की पढ़ाई करते थे, उसी समय से वे संथाली समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषा के विकास के लिए सोचते रहते थे।
वे उस समय समझ गए थे कि भारत के निर्धन जातियों में से एक संथाली भी है। दूसरे जाति के लोग संथालियों को हीन दृष्टि से देखते हैं, जिसका कारण है अशिक्षित होना।
उन्हें यह पता था कि जब तक संथाली अपने साहित्य, अपनी भाषा-परंपरा और अपनी संस्कृति से परिचित नहीं होंगे तब तक उन्हें जागृत नहीं किया जा सकता है और तब तक उनका आर्थिक और शैक्षणिक उन्नति भी नहीं हो सकती है।
इसीलिए वे एक अपनी लिपि – वर्णमाला की खोज करना चाहते थे, जो मुंडाओं के अक्षरों को समेट सके, उनकी संस्कृति को पहचान मिल सके। संथालियों के अलावा मुंडा, बिरहोड और माहले जैसे आदिवासी की भाषा और संस्कृति काफी मिलती-जुलती थी।
ऐसे में भी इन सबको एकजुट करने के लिए एक लिपि की खोज में लग गए और इस तरह उन्होंने अपने हाई स्कूल के पढ़ाई के दौरान ही ओल चिकी लिपि की खोज कर डाली।
अब इस लिपि को लोगों के सामने लाने और प्रचार प्रसार की जरूरत थी। उन्होंने इस लिपि को मयूरभंज के राजा को भी दिखाया, जो कि इस लिपि को देखकर काफी खुश हुए और इस लिपि के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने राज्य में कई कार्यक्रम भी शुरू किए।
आगे चलकर Pandit Raghunath Murmu के सहयोग से इस लिपि का बहुत ही प्रचार प्रसार किया गया। यहां तक कि संथाली समुदाय के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी लिपि में ही देने की शुरुआत की गई। आगे चलकर ओल चिकी लिपि में कई पाठ्यपुस्तकें भी छापी गई।
रघुनाथ मुर्मू को दी गई उपाधि
रघुनाथ मुर्मू ने संथालियों की खुद की लिपि ओल चिकी लिपि का सृजन करके दिया। इन्हें संथाल समाज में धार्मिक नेता का दर्जा मिल गया। यहां तक कि संथाली लोग आज भी उनके चित्र को अपने घरों में लगाकर भगवान की तरह पूजते हैं।
उनकी लोकप्रियता इस हद तक है कि कई प्रख्यात लोगों ने इन्हें महान उपाधियों से विभूषित किया है। इन्हें महान आविष्कारक और नाटकर की संज्ञा प्रदान की गई है।
मयूरभंज जिले के आदिवासी महासभा के द्वारा रघुनाथ मुर्मू को गुरु गोमके (महान शिक्षक) की उपाधि से सम्मानित किया गया है। रघुनाथ मुर्मू को पंडित रघुनाथ मुर्मू के नाम से भी जाना जाता है और यह संज्ञा नन्हे जयपाल सिंह मुंडा ने दिया था।
उन्हें संथाली समाज के धार्मिक नेता की उपाधि से भी सम्मानित किया गया और यह उपाधि चारुलाल मुखर्जी ने उन्हें दी थी। प्रो मार्टिन उरांव ने “The santhal a tribe in search of the great tradition” नामक पुस्तक में रघुनाथ मुर्मू की प्रशंसा करते हुए इन्हें संथाली समाज के महान गुरु अलंकृत किया है।
संथिली समाज के लोग रघुनाथ मुर्मू को संस्कृतिक और सामाजिक एकता का प्रतीक पुरुष मानते हैं।
पंडित रघुनाथ मुर्मू की लिखी गई कृतियां
पंडित रघुनाथ मुर्मू ने अपनी लिपि ओल चिकी में कई सारी साहित्य, नाटक और लोकगीत की रचना की, जिनमें से कुछ निम्न है:
- हिटल
- एल्खा
- होर सेरेंग
- रोनोर
- सिदु कान्हू
- ओल केमेद
- खेरवाल बीर
- पारसी पोहा
- बिदु चंदन
- डेयर गे धोन
निष्कर्ष
इस लेख में आपने भारतीय संथाली लेखक पंडित रघुनाथ मुर्मू जीवनी जानी है। इसके साथ ही रघुनाथ मुर्मू के प्रारंभिक जीवन, उनकी शिक्षा, उनके जीवन के संघर्ष और उनके आविष्कार के बारे में जाना।
हमें उम्मीद है कि इस पोस्ट के जरिए पंडित रघुनाथ मुर्मू से जुड़े सभी प्रश्नों का जवाब आपको मिल गया होगा। इसे आगे शेयर जरुर करें।
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