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पहले फ़कीर की कहानी (अलिफ लैला की कहानी)

पहले फ़कीर की कहानी (अलिफ लैला की कहानी) | Pahale Fakeer Ki Kahani Alif Laila Ki Kahani

पहले फकीर का जब नंबर आया तो, पहले फकीर ने अपनी कहानी सुनाते हुए कहा की,”रानी, यदि तुम मेरी कहानी जानना चाहती हो तो सुनो।” वह फकीर अपने घुटनों के बल बैठ गया और कहा कि,” यह मेरी दशा जो हुई है, इसका कारण बहुत बड़ा हैं। मैं बादशाह का बेटा हूं। मेरे चाचा जी भी एक बादशाह है। उनकी एक पुत्र और एक पुत्री थी, जो मेरे उम्र की थी। अक्सर मैं अपने चाचा के यहां घूमने के लिए जाया करता था। हर वर्ष एक महीने दो महीने मैं वहां रुक कर आता था।”

लेकिन आश्चर्य मुझे तब लगा जब मैं एक दिन गया और मेरे चाचा के पुत्र अर्थात मेरे चचेरे भाई ने मेरा स्वागत बहुत ही प्रसन्नता और हर बार की तरह ज्यादा किया और उसने कहा कि,” मैंने तुम्हारे लिए एक महल बनवाया है लेकिन इसके विषय में तुम किसी को मत बताना और बहुत बातें की।” फिर कहा,”अब रात बहुत हो गई है, चलो हम सो जाते हैं। मैं तुम्हें वह महल कल दिखाऊंगा।”

Pahale Fakeer Ki Kahani alif laila ki kahani
Image: Pahale Fakeer Ki Kahani alif laila ki kahani

अगले दिन मेरे चचरे भाई, उसी शाम को एक स्त्री को लेकर आया। मैंने उससे पूछा नहीं कि,”वह कौन है?” उसने भी नहीं बताया और हम दोनों एक ही स्थान पर बैठ गए, खूब मजे किए। कुछ खेल खेलें। कुछ इधर-उधर की बातें की। वह स्त्री बहुत सुंदर थी।

कुछ समय के पश्चात मेरे भाई ने कहा कि,”चलो यहां से चलते हैं।” उसने मुझसे कहा कि तुम इस स्त्री को लेकर कब्रिस्तान जाओ और वहां पर नई कब्र जो गुमद के जैसे हो वह समझ लेना, वह नए महल का रास्ता है और उस जगह प्रवेश करके तुम मेरे राह का इंतजार करना।

मैं उस स्त्री को लेकर रात के समय में चारों तरफ चांदनी बिखरी हुई थी तथा उसी चांदनी रात में उसको लेकर मैं कब्रिस्तान पहुंच गया। जहां पर वह दरवाजा था, वह स्थान आसानी से मिल गया। वहां पर उसका चचेरा भाई फावड़ा और कुछ गागर जैसी सामान लेकर खड़ा हुआ था। उसने वहां से उस कब्र को हटाकर उसके नीचे से मिट्टी हटाई और वहां पर रखे पत्थरों को हटाकर एक दरवाजे को खोला।

उसके नीचे एक लकड़ी की सीढ़ी लगी हुई थी। चचेरे भाई ने उस स्त्री से कहा की वही रास्ता है, जिसका मैंने तुमसे उल्लेख किया था। वह स्त्री और उसका चचेरा भाई दोनों उसी रास्ते से नीचे उतर गए जाते है। चचेरे भाई ने राजकुमार से कहा कि भगवान से प्रार्थना है तथा तुम से भी प्रार्थना है कि इस विषय में किसी को मत बताना और हो सके तो उसको भूल जाना और जाने के उपरांत इस स्थान को मिट्टी से समतल कर देना।

जिस रास्ते से आए थे, उस रास्ते से तुम चले जाना। मैंने उसे बहुत पूछा कि तुम कहां जा रहे हो और क्यों ऐसा कर रहे हो लेकिन उसका कोई जवाब नहीं दिया और वह चला गया। अंत में उस स्थान को मैं समतल करके वापस अपने महल मैं चला आया। मुझे काफी नशा चढ़ा हुआ था और मेरा सर भी दर्द कर रहा था, जिसकी वजह से मैं अपने शयनकक्ष में जाकर सो गया।

सुबह उठने पर मुझे एहसास हुआ कि मैंने बहुत बड़ी गलती की है। मैं बहुत बड़ी चिंता में था लेकिन मुझे संदेह था कि वह कोई बुरा सपना तो नहीं था। इसलिए मैंने वहां के सेवक को बुलाकर अपने भाई के बारे में पूछा तू सेवक ने जवाब दिया कि राजकुमार तो रात से ही गायब है। वह अपने शयनकक्ष में थे ही नहीं।

पूरा राज महल उनको ढूंढ रहा है और राजकुमार भी चिंतित हैं। मुझे भी बहुत चिंता होने लगी। इसलिए मैं उस कब्रिस्तान में फिर से गया और उस घुमद वाली जगह को ढूंढने लगा परंतु वह मुझे नहीं मिली। इस तरह से मैं तीन-चार दिन लगातार जाता रहा लेकिन वह स्थान मुझे नहीं मिला।

मुझे चिंता इस बात की हो रही थी कि मेरे चाचा अर्थात बादशाह महल में नहीं थे। वह कुछ दिनों पहले ही शिकार के लिए निकल गए थे। उनके आने में समय था इसलिए मैं और भी व्याकुल और चिंतित हो रहा था और मैं किसी को यह बात बता भी नहीं सकता था।

इसलिए मैंने वहां के मंत्री से कहा कि मंत्री मुझे अपने घर जाना है क्योंकि मैं यहां अधिक दिन रुक चुका हूं और मेरे पिताजी मुझे को लेकर चिंतित हो रहे होंगे। इसलिए मुझे मेरे राज्य के लिए जाने की व्यवस्था करा दी जाए। मंत्री भी चिंतित था क्योंकि शहजादे का कोई अता पता नहीं था क्योंकि पूरे राज्य की जिम्मेदारी मंत्री पर महाराज छोड़ कर गए थे हैं। इसलिए वह भी व्याकुल और चिंतक हो रहा था।

जैसे ही शहजादे अपने राज्य में गया तो वहां पर बहुत बड़ी सेना थी और उस सेना ने उसे पकड़कर बंदी बना लिया। शहजादे ने तेज अवाज में कहा यह सब क्या है? तो सैनिकों में से एक सैनिक ने कहा कि यह सेना तुम्हारी नहीं है। शहजादे तुम्हारे पिता की मृत्यु के उपरांत तुम्हारे मंत्री ने राज्य की सेना को परिवर्तित कर दिया है और तुम्हें देखते ही बंदी बनाने का आदेश दिया है। शुक्र हो ईश्वर का कि तुम अपने आप ही बंदी बनने के लिए आ गया।

उस सैनिक ने मुझे बंदी बनाकर उस मंत्री के पास लेकर गया। जहाँ राज सिंहासन का अधिकारी था। परंतु वह मेरा शत्रु भी था। बचपन में मैं चिड़िया को एक गुलेल से मार रहा था। संयोगवश उस गुलेल का पत्थर इस मंत्री की आंख में जाकर लगा और उसकी आंख फूट गई। मुझे बड़ा बुरा लगा इसलिए मैं जाकर उनसे अपने अपराध क्षमा मांगी।

उसने मुझसे कुछ नहीं कहा मुझे क्षमा भी नहीं किया लेकिन वह हमेशा इस ताक में रहता था कि मैं इसका बदला अवश्य लूंगा। जैसे ही उसने मुझे देखा वैसे ही अपने आसान से उतर कर मेरे पास आया और अपनी उंगली से मेरी दाहिनी आंख मैं अपनी उंगली डालकर मेरी आंखें फोड़ दी।

इतना ही नहीं उसने मुझे पिंजड़े में बंद करवा कर जल्लाद से कहा कि इसे ले जाकर शहर के बाहर मृत्यु दंड दे दो और इसके शरीर के टुकड़े करके जंगली जानवर पशु पक्षियों को दे देना। उस जल्लाद ने मुझे जिसमें में बंद था उस पिंजरे को लेकर तथा कुछ सैनिकों को लेकर वह जंगल के रास्ते से राज्य के बाहर गया और उसने मारने के लिए एक तेजधार तलवार निकाली।

जैसे इसने बार किया मैंने उसे क्षमा मांगी और खूब रोया। अपने प्राणों की भीख मांगी और उसे याद दिला कि तुम मेरे पिता के लिए काम करते थे। तुमने मेरे पिता का नमक खाया है। मेरे पिताजी तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों और बीवी सबका ख्याल अच्छे से रख देते हैं। पूरे राज्य को एक परिवार की तरह समझते थे। उसने कहा कि तुम यहां से तुरंत निकल जाओ। इस तरफ मुड़ कर भी मत देखना। अगर तुम आए तो तुम मारे जाओगे और साथ में मुझे भी मृत्युदंड मिलेगी।

मैंने भगवान को धन्यवाद कहा और उस जल्लाद को धन्यवाद कहकर निकल पड़ा। मुझे इतना दर्द हो रहा था। एक तो भूख प्यास तथा उस आंख का दर्द मुझसे रहा ना जा रहा था। दिन में मैं जंगल में छुपा रहता था। रात में मैं अनजान रास्तों पर निकल कर अपने चाचा के राज्य में पहुंचा। जैसे ही मैंने अपने हाल का वृतांत अपने चाचा को सुनाया चाचा जोर जोर से रोने लगे।

उन्होंने कहा कि एक तो मैं अपने बेटे के दुख भरा नहीं ऊपर से मेरे प्राण प्रिय मेरे भाई की मृत्यु की खबर या मुझसे सहा नहीं जा रहा और वह बहुत देर तक अपने बेटे की याद में रोते रहें ,यह मुझसे सहा न गया। मैंने उस दिन का वृतांत सारा अपने चाचा को बता दिया।

चाचा ने कहा तुम ठीक कहते हो मुझे भी मालूम हुआ था कि उसने एक घुमत वाली कब्र कब्रिस्तान में बनवाई है लेकिन वह बात पूरे राज्य में किसी को नहीं पता थी। उस रात मैं और मेरे चाचा महल के पीछे वाले रास्ते से कब्रिस्तान की ओर निकल गए। आश्चर्य मुझे तब लगा कि जब वह घुमत वाला कब्र बड़ी आसानी से हम लोगों को मिल गया।

उस कब्र को खोदकर हम और मेरे चाचा ने लोहे के दरवाजे को बड़ी मुश्किल से खोला था कि वह अंदर से बंद था और हम लोग नीचे गए वहां से बहुत बदबू आ रही थी और काफी धुआ भी उठ रहा था लेकिन हम लोग आगे बढ़ते गए। कुछ दूर जाकर देखा तो एक हौदी बनी हुई थी और उसके चारों तरफ कुछ खाने पीने की समाने रखी हुई थी और चारों तरफ आग जल रही थी। उसके आगे हमने देखा कि एक पर्दा लगा हुआ है।

उस पर्दे को खोल कर आगे बढ़ते हैं और मैं भी उनके पीछे-पीछे आगे जाता हूं। हम लोगों ने देखा कि एक पलंग पर शहजादे उस स्त्री के साथ लेटे हुए थे। जिस स्त्री को हमने पहले देखा था लेकिन उनका शरीर कोयले से भी काला हो गया था। ऐसा लग रहा था कि उनको किसी ने आग लगाकर जला दिया हो और कोयला बनने के उपरांत उन्हें पलंग पर लिटा दिया हो ऐसा प्रतीत हो रहा था।

मुझसे तो यह सब देखा नहीं जा रहा था। मैं बहुत विचलित हो गया था लेकिन मेरे चाचा के चेहरे पर तनिक भी विचरन कि रेखा पर नहीं हुई। वह बल्कि और क्रोधित हो रहे थे और उसे बुरा भला कह रहे थे। उसने अपने पैर की जूती निकालकर उस को पीटने लगे और कहा की तुझे इस धरती पर भी सुख नहीं मिला और परलोक में भी तू दुखी रहेगा।

मैंने क्रोधित होकर चाचा से कहा,” एक तो वैसे भी मेरा भाई मृत्यु को प्राप्त हो गया और आप उसे इतना बुरा भला और मार रहे हैं। ऐसा इसने क्या किया, जो आप ऐसा व्यवहार कर रहे हैं?” उनके चाचा ने कहा,” बेटे तुम इस विषय के बारे में नहीं जानते या इनके बचपन की बात है।”

यह अभागा और दुष्ट बेटा अपनी बहन से घनिष्ठता रखा था लेकिन मैंने नजर अंदाज किया। बचपन में लेकिन यह दोनों बड़े हो गए फिर भी इनकी घनिष्ठता कम नहीं हुई। दोनों एक दूसरे से मिलने के लिए तड़पते रहते थे।

मैंने दोनों को अलग करने के लिए काफी प्रयास किया और इन दोनों को अलग किया लेकिन यह तो वैसा था ही लेकिन इसकी बहन नीच थी, जो इससे मिलने के लिए तड़पती रहती और नए नए विचार तथा षड्यंत्र रचती रहती थी। फिर भी इन दोनों का प्रेम तथा इन दोनों का आकर्षण बढ़ता रहा।

वही खड़े-खड़े मेरा चाचा और मैं दोनों रोने लगे और अपने बेटे और मैं अपने भाई की स्मृति के विषय में सोच कर जोर जोर से विलाप करने लगा लेकिन मेरे चाचा ने कहा,” अच्छा हुआ है, यह मृत्यु को प्राप्त हो गया। अब तू ही मेरा उत्तराधिकारी होगा। तू ही मेरा बेटा होगा। यह कह कर मैं और मेरा चाचा शिरडी के रास्ते से उस कब्रिस्तान में ऊपर आ गया। उस दरवाजे को बंद कर दिया और उस पर मिट्टी डालकर अपने राज्य तथा महल की ओर निकल पड़े।

लेकिन कुछ समय के पश्चात घोड़ों की चलने की आवाज और तलवारों की खनखन हाट और घोड़ों के दौड़ने से उड़ी मिट्टी आकाश में उड़ रही थी क्योंकि मेरे पिता के राज्य को हड़पने वाला मंत्री मेरे चाचा के राज्य में भी आ गया था। मेरे चाचा की सेना उसकी सेना से कम थी। इसलिए वह उसका मुकाबला नहीं कर पा रहे थे।

मेरे चाचा और मैं युद्ध में कूद गए। काफी प्रयत्न करने के बाद मेरे चाचा भी युद्ध में मारे गए। मैं भी कुछ समय तक लड़ता रहा और मैं जब चारों तरफ से गिर चुका था, तो मैंने भागने की सोची। उनमें से एक सैनिक ने मुझे पहचान लिया लेकिन नमक हलाली करने के लिए उसने मुझे भी भागने का अवसर दे दिया।

वहां से निकलने के उपरांत मैंने सबसे पहले अपने दाढ़ी मूछें और बालो को सफाचट करवा दिया अर्थात मैंने उनको कटवा दिया, जिससे कि मुझे कोई पहचान ना सके और फकीरों जैसा भेष बदलकर नगर के बाहर अपने चाचा के राज्य के बाहर निकल पड़ा।

चलते चलते में दयावान, निर्भयता लीडर, न्याय के लिए जाने वाले हारू राशिद की राजधानी में पहुंचा। मुझे यकीन था कि मुझे यहां से न्याय मिलेगा। इसलिए मैं उनसे मिलने के लिए उनके राज्य में प्रवेश किया लेकिन शाम काफी हो गई थी। मैं बढ़ता रहा और अपने रात गुजारने का ठिकाना ढूंढता रहा।

मैं आगे बढ़ता ही रहा। तभी मुझे एक और फकीर मिला, जो मेरी तरह कपड़े पहने हुए था और मेरी तरह देश बदल कर आया था। मैंने उससे पूछा कि तुम भी परदेसी लगते हो तो उसने जवाब दिया, हां भाई मैं भी परदेसी हूं। इतने में मैं बात कर ही रहा था कि, तीसरा फकीर आया। उसने कहा कि हां भाई लोग मैं भी परदेसी हूं और मैं भी अभी अभी उस नगर में आया हूं। हम तीनों एक जैसे ही लग रहे थे हैं और तीनों के कपड़े भी एक जैसे ही लग रहे थे। हम तीनों ने साथ रहने का विचार बनाया और आगे बढ़े।

हम लोग आगे बढ़ते रहें। हम लोगों का कोई ठिकाना नहीं था क्योंकि यहां पर सब पहली बार आए थे और कोई किसी को जानता नहीं था और किसी के पास कोई खाने की सामग्री नहीं थी। बढ़ते बढ़ते हम लोग तुम्हारे दरवाजे पर पहुंचे और तुमने खाना दिया और कुछ पहनने के लिए कपड़े दिए। तुम मुझे हंसमुख लगा इसलिए हम तुम्हारे दरवाजे पर रुक गए।

बस यही मेरा वृत्तांत है। यही मेरी कहानी है।

जुबैदा ने आज्ञा दी कि तुम जा सकते हो फकीर ने कहा कि यदि आप आज्ञा दे तो, मैं भी अपने साथियों की कहानी सुनना चाहता हूं तथा अन्य व्यापारियों की कहानी सुनना चाहता हूं। जुबेदा ने आज्ञा दे दी और वह फकीर एक किनारे जिस किनारे वह मजदूर खड़ा हुआ था, उसकी नारे वह भी खड़ा हो गया और अपने साथियों की कहानी को सुनाने के लिए इंतजार कर रहा था।

इस पोस्ट के माध्यम से हमने पहले फकीर की कहानी को पूर्ण किया है। अगली कहानी आपको अगले पोस्ट के माध्यम से प्रस्तुत की जाएगी। यदि यह कहानी आपको पसंद आए हो और भावपूर्ण लगी हो तो, इस पोस्ट को अधिक शेयर करें और हमें फॉलो करना न भूलें।

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Ripal
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