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पाबूजी महाराज का इतिहास

Pabuji Rathore History in Hindi: गर्व होता है कि हम भारत जैसी भूमि पर जन्म लिए हैं, जहां पर अनेकों वीर और बहादुर व्यक्ति हुए, जिनकी वीरगाथाएं आज भी हर लोगों के जुबान पर हैं। इस देश के इतिहास के पन्नों में केवल वीरों की ही गाथा गाई गई है। फिर भी इस देश में इतने वीर हुए कि कुछ वीरों की कहानी इतिहास के पन्नों में गायब हो गई हैं।

वे अपने समय में लोगों के लिए विरता के मिसाल थे, जिनसे दुश्मन भी थरथरते थे। आज हम ऐसे ही एक महान वीर पाबूजी राठौड़ के इतिहास के बारे में जानेंगे, जिनकी वीरता की कहानी सुनकर आप भी उनसे प्रेरित हो जाएंगे।

Pabuji Rathore History in Hindi
Image: Pabuji Rathore History in Hindi

वह वीर उस स्वाभिमानी और बलिदानी कौम के थे, जिनकी वीरता के दुश्मन भी दीवाने थे। तो चलिए जानते हैं कि कौन थे वीर पाबूजी महाराज और क्यों थे वे राजस्थान के लोगों में इतने प्रचलित?

पाबूजी महाराज का इतिहास | Pabuji Rathore History in Hindi

पाबूजी राठौड़ कौन थे?

पाबूजी राठौड़ राजस्थान के लोक देवता है, जिन्हें ऊंटों का देवता भी कहा जाता है। यहां तक कि ऊंटों के बीमार होने पर इनकी पूजा और भक्ति की जाती है। इन्हें लक्ष्मण का अवतार माना जाता है। ये राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के वंशज थे। इनके पिता का नाम धांधलजी और माता का नाम कमलादे था।

उनका विवाह फूलमदे नाम की महिला से हुआ था, जो राजस्थान के अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की पुत्री थी। पाबूजी राठौड़ के दो वीर प्रसिद्ध साथी भी थे, जिनका नाम “चांदा और डामा” था। उंटो को पालने वाले रेबारी जातियों के लिए पाबूजी राठौड़ आराध्य देव है।

यहां तक कि मेहर जाति के मुसलमान इन्हें पीर मानकर पूजा करते है। ऐसा भी कहा जाता है कि मारवाड़ में सबसे पहले ऊंट लाने का श्रेय इन्हीं को जाता है। इनकी आराधना में लोग थाली लोकनृत्य करते हैं। इतने बहादुर और वीर थे कि इनके जीते जी दुश्मन राजपूत राज्यों की प्रजा को छु तक नही पाते। अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए सिर कटने पर भी धड़ लड़-लड़ कर झुंझार हो गए।

पाबूजी राठौर महाराज के जीवन की दिलचस्प कहानी

कहा जाता है कि पाबूजी राठौड़ ने अपनी शादी में सात फेरे में से आधे फेरे धरती पर लिए थे और आधे फेरे स्वर्ग में लिए। दरअसल बात यह थी कि पाबू जी महाराज एक स्त्री जिसका नाम देवल चारणी था को उसकी रक्षा का वचन दिया था।

एक बार जब उस स्त्री की गायों को कोई व्यक्ति चुरा कर ले जाने लगा तब उस व्यक्ति ने पाबू जी महाराज को मदद के लिए पुकार दिया। तब पाबू जी महाराज ने आधे फेरे छोड़ कर उनकी गायों की रक्षा करने के लिए चले गए और लड़ाई में वीरगति प्राप्त हो गया। इसीलिए कहा जाता है कि इन्होंने आधे फेरे धरती पर किए थे और आधे फेरे स्वर्ग में किए थे।

पाबूजी महाराज ने रक्षा का दिया था वचन

पाबूजी महाराज एक बार कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्हें गायों का झुंड दिखा। झुंड के बीच में एक सुंदर सी घोड़ी भी घास चर रही थी। उस घोड़ी को देखते ही पाबूजी महाराज का चेहरा खिलखिला उठा। महराज को उस घोड़ी को अपने साथ ले जाने का मन किया। लेकिन उन्हें पता चला कि यह घोड़ी देवल चारणी नाम की महिला की है।

पाबूजी महाराज ने उस औरत को अपनी घोड़ी देने के लिए आग्रह किया। लेकिन उस औरत ने उन्हें घोड़ी देने से आनाकानी दिखाई। लेकिन बाद में वह एक शर्त पर मान जाती है। पाबूजी महाराज को वह कहती है कि मैं आपको यह घोड़ी दे दूंगी लेकिन कभी भी मुझ पर या मेरी गायों पर संकट पड़ेगा तो मदद के लिए आना पड़ेगा।

पाबूजी महाराज हामी भर देते हैं। लेकिन उनसे पूछते हैं कि मुझे कैसे पता चलेगा कि आप या आप की गायों पर संकट आया है? तब देवली बोलती है कि जब भी मुझ पर या मेरे गायों पर संकट आएगा तब यह घोड़ी एक विचित्र प्रकार का आवाज निकालेगी। उस आवाज से आप समझ जाइएगा कि मुझ पर या मेरे पशुधन पर संकट आया है और उस वक्त आपको हमारी मदद के लिए आना पड़ेगा।

पाबूजी राठौड़ का विवाह

पाबूजी राठौड़ एक दिन अमरकोट के सोढा राणा सूरजमल के गये थे। राणा सूरजमल की एक पुत्री थी। जिन्होंने पाबूजी महाराज पहली नजर में देखते ही उन्हें पसंद कर लिया और फिर मन में उन्होंने ठान लिया कि वह पाबू जी महाराज से ही शादी करेंगी।

पाबूजी महाराज को अपना प्रस्ताव पहुंचाने के लिए उन्होंने अपने माताजी से इसके बारे में बात की और फिर जब पाबू जी महाराज को इस बारे में पता चला तो उन्होंने बहुत ही विनम्रता से उनसे कहा कि मैं आपका अपमान नहीं करना चाहता। परंतु मेरा सर पहले से ही बीत चुका है। मैंने पहले ही किसी व्यक्ति को वचन दे दिया है कि संकट में उसकी रक्षा करूंगा और उसके रक्षा के लिए में अपनी जान की भी परवाह नहीं करूंगा।

ऐसे में आप कभी भी विधवा हो सकती हैं। यह बात सुनते ही महाराज की पुत्री बोलती है कि जिस व्यक्ति का सर खुद का ना हो। वह किसी व्यक्ति के रक्षा के लिए पहले से ही बिक चुका हो तो वह व्यक्ति तो हमेशा के लिए अमर हो जाता है। ऐसे में मैं कभी भी विधवा नहीं हो सकती। इसलिए विवाह तो मैं आपसे ही करूंगी।

फिर अंत में महाराजा हामी भर देते हैं और फिर दोनों का विवाह होती है। लेकिन विवाह के दिन है जब सात फेरे का समय था तब बीच फेरे में पाबू जी महाराज की घोड़ी विचित्र प्रकार का आवाज निकालने लगती है। इस आवाज से महाराज को पता चल जाता है कि शायद उस वृद्ध महिला पर कोई संकट आया है। इसीलिए वे अपने आधे फेरे छोड़कर ही उस महिला की रक्षा करने के लिए चले जाते हैं।

वहां पर उन्होंने दुश्मन के साथ युद्ध किया और वीरगति प्राप्त हो गए। लेकिन उन्होंने सभी गायों को मुक्त करवा दिया था। राजकुमारी को जब इसके बारे में पता चलता है तब वह हाथ में नारियल लेकर अग्नि को साक्षी मानते हुए बाकी के फेर लेती है और फिर अंत में वह भी स्वर्ग चली जाती है।

इस घटना के बाद आज भी राजस्थान के लोगों में यह मान्यता है कि यदि किसी पशुओं पर संकट आता है तो पाबूजी महाराज का नाम लेते ही वे आज भी पशुओं की रक्षा करने के लिए आ जाते हैं।

पाबूजी राठौड़ महाराज का मेला

जोधपुर के कोलूमंड में स्थित पाबूजी राठौड़ के मुख्य मंदिर में हर वर्ष चैत्र मास की अमावस्या को इनका मेला लगता है। यह मेला इनके यश गान में लगता है। इनकी तारीफ में लोग पावड़े और पवाडे गाते हैं। यह इनके यशगान में गाए जाने वाले गीत हैं।

FAQ

पाबूजी महाराज के घोड़े का क्या नाम था?

पाबूजी महाराज की घोड़ी का नाम केसर कालमी था।

पाबूजी महाराज की पत्नी का क्या नाम था?

इनकी पत्नी का नाम फूलमदे था।

पाबूजी महाराज ने किस औरत को उसके रक्षा के लिए वचन दिया था?

पाबूजी महाराज ने देवल चारणी नाम की औरत को अपनी घोड़ी देने के बदले में उनकी रक्षा का वचन दिया था।

सबसे छोटी फड़ कौन सी है?

सबसे छोटी फड़ देवनारायण की है।

पाबूजी के पिता का क्या नाम है?

पाबू जी के पिता का नाम धांधलजी था।

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Rahul Singh Tanwar
Rahul Singh Tanwar
राहुल सिंह तंवर पिछले 7 वर्ष से भी अधिक समय से कंटेंट राइटिंग कर रहे हैं। इनको SEO और ब्लॉगिंग का अच्छा अनुभव है। इन्होने एंटरटेनमेंट, जीवनी, शिक्षा, टुटोरिअल, टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन अर्निंग, ट्रेवलिंग, निबंध, करेंट अफेयर्स, सामान्य ज्ञान जैसे विविध विषयों पर कई बेहतरीन लेख लिखे हैं। इनके लेख बेहतरीन गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं।

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