हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत ही धार्मिक महत्व है। यह व्रत मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के नजरिए से भी बहुत महत्वपूर्ण है। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के निर्जला एकादशी को बहुत ही फलदायक माना जाता है।
इस लेख में निर्जला एकादशी की कथा, निर्जला एकादशी कब है, nirjala ekadashi ka mahatva और उसके नियम आदि के बारे में जानेंगे।
निर्जला एकादशी क्या है?
साल के 12 महीने में कुल 24 से 26 एकादशी पड़ती हैं। एक महीने में दो एकादशी आती है पहली एकादशी कृष्ण पक्ष और दूसरी एकादशी शुक्ल पक्ष में आती है।
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। साल में पड़ने वाली हर एकादशी का अपना-अपना महत्व है। लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे ज्यादा विशेष माना जाता है क्योंकि यह एक मात्र ऐसी एकादशी है, जिसे रखने से साल के सभी एकादशी के बराबर फल की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ती है। यह वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष में पड़ता है। निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस व्रत का पालन करके भीमसेन बैकुंठ गए थे।
निर्जला एकादशी का महत्व
- निर्जला एकादशी का महत्व कठिन तप और साधना के बराबर है। क्योंकि इस व्रत को बिना जल ग्रहण किये रखना होता है।
- निर्जला एकादशी व्रत रखने से शरीर को नई ऊर्जा मिलती है, यह संयम सीखाती है।
- साल में अधिक मास की दो एकादशी सहित 25 एकादशी व्रत होते हैं। केवल निर्जला एकादशी को छोड़कर अन्य सभी एकादशी व्रत में जल ग्रहण कर सकते हैं, फल-फूल खा सकते हैं। लेकिन इस व्रत को निर्जल रहकर पालन करना पड़ता है। इस कारण निर्जला व्रत रखने से साल के सभी एकादशी व्रत के बराबर फल मिलता है।
- निर्जला एकादशी व्रत का महत्व पद्म पुराण में भी किया गया है, जिसमें पांडव भाइयों को nirjala ekadashi ka mahatva बताते हुए खुद व्यास जी कहते हैं कि विश्व भगवान विष्णु ने कहा है जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत रखता है, वह एक करोड़ों स्वर्ण मुद्रा दान देने के बराबर पुण्य की प्राप्ति करता है।
- इतना ही नहीं निर्जला एकादशी व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है।
- जो व्यक्ति निर्जला व्रत रखता है, उसकी मृत्यु होने पर उसकी आत्मा को ले जाने भगवान यम के दूत नहीं बल्कि भगवान विष्णु के दूत आते हैं, जो पीतांबर धारण किए हुए होते हैं और अपने विमान में बिठाकर आत्मा को बैकुंठ धाम ले जाते हैं।
निर्जला एकादशी कब है?
निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष को पड़ती है। साल 2024 में निर्जला एकादशी 17 जून सुबह 4:43 को शुरू होगी और दूसरे दिन 18 जून सुबह 6:24 पर समाप्त होगी।
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निर्जला एकादशी व्रत कथा
निर्जला एकादशी की कथा का वर्णन पद्म पुराण में किया गया है, जिसमें भगवान श्री कृष्ण पांचों पांडवों को एकादशी व्रत का महत्व बताते हैं।
उस समय पांडव के ज्येष्ट भ्राता युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं जनार्दन आपने जेठ मास की एकादशी के फल और विधान के बारे में बताया है। अब ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में भी बताइए।
तब भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि जेठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में तुम्हें शास्त्र और धर्म ज्ञाता वेद व्यास जी बताएंगे।
तब व्यास जी पांचों पांडवों को ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष के एकादशी के बारे में बताते हुए कहते हैं कि यह निर्जला एकादशी है। इस दिन आचमन और दंतधावन यानी कि दांत साफ करने के अलावा किसी भी कार्यों के लिए मुंह में जल नहीं लिया जाता है। ऐसा करने से व्रत भंग हो जाता है।
ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक चलता है। इस बीच जल ग्रहण नहीं करना होता है।
जब व्यासजी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के इन नियमों के बारे में बताते हैं तब भीमसेन घबरा जाते हैं। क्योंकि भीमसेन खाने-पीने के बहुत शौकीन होते हैं। उनसे भूख सहन नहीं होता है।
तब व्यास जी से कहते हैं कि हे पितामह मेरे सभी भाई और द्रौपदी एकादशी का व्रत करते हैं। लेकिन मेरे पेट में वृक नामक अग्नि हमेशा जलती रहती है, जिसे शांत रखने के लिए मुझे हमेशा खाते रहना पड़ता है। मैं भूखे नहीं रह सकता और यही मेरी कमजोरी है।
तब व्यासजी ने कहा कि अगर तुम स्वर्ग में जाना चाहते हो तो तुम्हें एकादशी का व्रत करना चाहिए। लेकिन भीमसेन के लिए साल के सभी एकादशी का व्रत करना संभव नहीं था।
भीमसेन व्यास जी से कहते हैं मैं साल के सभी एकादशी नहीं कर सकता। लेकिन एक दिन व्रत जरूर रख सकता हूं, कृपया मुझे ऐसे एक दिन के व्रत के बारे में बताएं, जिसे रखके साल के सभी एकादशी व्रत के बराबर ही फल और स्वर्ग की प्राप्ति कर सकूं।
तब वेदव्यास जी भीमसेन को निर्जला एकादशी के व्रत की सलाह देते हैं, जो पूरे साल की एकादशी के बराबर फल देने वाला है। इस एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।
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निर्जला एकादशी व्रत के नियम
- निर्जला एकादशी के दिन पानी का सेवन बिलकुल भी नहीं करना चाहिए।
- निर्जला एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य नियम का पालन करना चाहिए।
- इस दिन अपने मन को एकाग्र रखना चाहिए और दान पुण्य करना चाहिए।
- इस दिन जल से भरा कलश दान करके प्यास से लोगों को पानी पिलाना चाहिए।
- इस दिन मन में लालच, क्रोध, घृणा जैसे बुरे भाव मन में नहीं लाना चाहिए।
निर्जला एकादशी का पूजन विधि
- निर्जला एकादशी का व्रत सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद सूर्योदय को जल अर्पित करने और व्रत संकल्प लेने से होता है।
- इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी और तुलसी की भी उपासना की जाती है। बिना तुलसी पूजन के एकादशी का व्रत अधूरा माना जाता है।
- उसके बाद जल में तिल मिलाकर ओम नमो: भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए विष्णु जी का अभिषेक करना चाहिए।
- उसके बाद मिठाई में तुलसी दल डालकर विष्णु जी को भोग चढ़ाना चाहिए।
- निर्जला एकादशी व्रत के दिन इस व्रत का कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।
- इस दिन दान पुण्य करना चाहिए, प्यासे को पानी पिलाना चाहिए, पंछियों के लिए पानी और दाना छत पर रखना चाहिए।
- शाम के समय सफेद या काला तिल डालकर तुलसी में घी का दीपक जलाना चाहिए।
निष्कर्ष
उपरोक्त लेख में आपने निर्जला एकादशी व्रत के बारे में जाना। साथ ही निर्जला एकादशी कब है, nirjala ekadashi ka mahatva, निर्जला एकादशी की कथा आदि के बारे में जाना है।
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