Nariyal Ki Pauranik Katha: प्राचीन समय में एक बहुत ही बहादुर और शक्तिशाली राजा रहा करता था, जिसका नाम राजा सत्यव्रत था। राजा सत्यव्रत भगवान में पूर्ण श्रद्धा रखते थे और भगवान पर अटूट विश्वास रखते थे। राजा सत्यव्रत के राज्य में सभी लोग खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे और वह राजा के तौर-तरीकों से बहुत प्रसन्न थे। राज्य में सभी लोग अपने राजा से बहुत प्रेम करते थे।
उनके राज्य में सभी लोग मिल जुल कर रहा करते थे। राजा सत्यव्रत का कोई भी दुश्मन नहीं था। राजासत्यव्रत के पास सब कुछ था। वह अपना जीवन बहुत खुशी खुशी व्यतीत करते थे। राजा सत्यव्रत बहुत ही दयालु और उदार किसम के व्यक्ति थे। राजा सत्यव्रत बहुत दान और पुण्य किया करते थे लेकिन राजा सत्यव्रत की एक मनोकामना थी कि वह मरने के बाद स्वर्ग लोक में जाएं।
जिसके लिए राजासत्यव्रत बहुत सारा उपाय किया करते थे और बहुत सारा दान दक्षिणा दिया करते थे, जिससे वह खूब पुण्य कमा सके। राजा सत्यव्रत चाहते थे कि वह सीधा मरने के पश्चात पृथ्वी से स्वर्ग लोक में जाएं। राजा सत्यव्रत को स्वर्ग लोक बहुत पसंद था स्वर्ग लोक की सुंदरता से बहुत मोहित हो चुके थे।
बहुत उपाय और प्रयास के बाद भी राजा सत्यव्रत को पृथ्वी से सीधा स्वर्ग लोक जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था। जिसके कारण वह बहुत चिंतित रहने लगे थे। एक समय की बात है कि जब ऋषि विश्वामित्र जी तपस्या करने के लिए अपने घर को छोड़कर बहुत दूर जंगल में चले गए थे और ऋषि विश्वामित्र जी जंगल में जाकर अपनी तपस्या करने लगे थे।
तभी ऋषि विश्वामित्र जी के गांव में अचानक से सूखा पड़ गया, जिसके कारण गांव के सभी लोग इधर उधर भटकने लगे। विश्वामित्र जी के परिवार के लोग भी इधर उधर भटकने लगे थे। जब यह बात राजा सत्यव्रत को पता लगी तो उन्होंने ऋषि विश्वामित्र जी के परिवार को अपने महल में बुला लिया।
ऋषि विश्वामित्र जी के परिवार को अपने साथ ही अपने महल में रहने के अपने नौकरों को आदेश दिया और राजा सत्यव्रत ने ऋषि विश्वामित्र जी के परिवार का बहुत आदर सम्मान किया, उनका ध्यान रखा और कुछ दिनों के बाद जब ऋषि विश्वामित्र जी तपस्या करके वापस आए।
तब उन्होंने देखा कि उनके गांव में सूखा पड़ा है और चारों तरफ पानी की एक बूंद भी नहीं है। जिसके बाद ऋषि विश्वामित्र जी अपने परिवार से मिले, उनके परिवार के सभी लोगों ने ऋषि विश्वामित्र जी को बताया कि आपके जाने के बाद यहां पर सूखा पड़ गया था। जिसके बाद राजा सत्यव्रत ने हम लोगों को अपने घर में आसरा दिया था और हमारा बहुत अच्छे से ध्यान रखा था। जिसके बाद ऋषि विश्वामित्र यह सुनकर बहुत प्रसन्न हो गए और उन्होंने राजा सत्यव्रत से मिलने जाने का फैसला लिया।
जिसके बाद अगली सुबह ऋषि विश्वामित्र जी राजा सत्यव्रत के दरबार में पहुंच गए और उन्होंने राजा सत्यव्रत को बहुत सारा धन्यवाद दिया। उन्होंने राजा सत्यव्रत से कहा कि मेरे ना होने पर आपने मेरे परिवार का बहुत सारा ध्यान रखा है, जिसके लिए मैं आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं।
मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूं, जिसके कारण आप मुझसे एक वरदान मांग सकते हैं। जिसके बाद राजा सत्यव्रत मैं ऋषि विश्वामित्र से वरदान के रूप में कहा कि क्या आप मुझको मरने के बाद पृथ्वी से सीधा स्वर्ग लोक में पहुंचा सकते हैं। मैं आपसे वरदान के रूप में यही मांगता हूं।
जिसके बाद ऋषि विश्वामित्र जी ने राजा सत्यव्रत की मनोकामना को स्वीकार कर लिया और तभी ऋषि विश्वामित्र जी ने अपनी दिव्य शक्तियों से पृथ्वी से सीधा स्वर्ग जाने का एक रास्ता बना दिया। जिसको देखकर राजा सत्यव्रत बहुत प्रसन्न हो गए और वह तुरंत स्वर्ग की ओर जाने के लिए प्रस्थान करने लगे। कुछ ही समय में जब राजा सत्यव्रत स्वर्ग लोक पहुंच गए।
तब जैसे ही स्वर्ग लोक के अंदर जाने लगे तब भगवान इंद्र देव ने राजा सत्यव्रत को लात मार कर वापस पृथ्वी में वापस भेज दिया। जिससे राजा सत्यव्रत बहुत आहत हो गए और राजा सत्यव्रत तुरंत ऋषि विश्वामित्र जी के पास पहुंच गए और उन्होंने वहां जाकर अपने साथ हुए अपमान को ऋषि विश्वामित्र जी को बताया।
ऋषि विश्वामित्र जी ने राजा सत्यव्रत की बात सुनी और जब राजा सत्यव्रत ने जैसे ही ऋषि विश्वामित्र जी को सारी बात बताई तो वह राजा सत्यव्रत की बात सुनकर बहुत क्रोधित हो गए और फिर ऋषि विश्वामित्र जी तुरंत खुद ही स्वर्ग लोग चले गए।
वहां पहुंच कर उन्होंने सभी देवताओं से बात की और ऋषि विश्वामित्र जी और देवताओं ने आपस में बात कर कर एक उपाय निकाला कि एक नया स्वर्ग लोक तैयार किया जाएगा, जो पृथ्वी और स्वर्ग लोक के बीच में होगा। राजा सत्यव्रत देवताओं के इस फैसले से बहुत खुश थे।
लेकिन राजा सत्यव्रत को अंदर ही अंदर एक चिंता जताई जा रही थी कि यह नया स्वर्ग लोक पृथ्वी और स्वर्ग लोक के बीच में होगा और यह कहीं तेज हवा के झोंके से हिल गया और यह तो गिर जाएगा, जिससे मैं वापस पृथ्वी पर आ जाऊंगा।
जिसके बाद राजा सत्यव्रत में यह बात ऋषि विश्वामित्र जी को बताएं ऋषि विश्वामित्र जी ने राजा सत्यव्रत की बात सुनी और ऋषि विश्वामित्र जी ने नए स्वर्ग लोक के नीचे एक बहुत बड़ा पेड़ लगा दिया। पेड़ लगने के कारण नया स्वर्ग लोक उस पर स्थिर हो गया, जिसके बाद राजा सत्यव्रत अपने नए स्वर्ग लोक में चले गए।
कुछ ही समय में राजा सत्यव्रत का निधन हो गया। उनके निधन होने के बाद राजा सत्यव्रत का सर ही नारियल का फल बना, जो आगे चलकर नारियल का पेड़ कहलाने लगा। जिसके बाद राजा सत्यव्रत को ना इधर का रहने और ना उधर का रहने की उपाधि दी गई।
ऐसा उनको इसलिए दिया गया था क्योंकि राजा सत्यव्रत दो ग्रहों के बीच में रहते थे। नारियल के फल को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी जी का बहुत प्रिय फल कहा जाता है। नारियल का फल किसी भी शुभ काम करने से पहले फोड़ा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि नारियल के पेड़ पर त्रिदेव का वास होता है। नारियल के पेड़ पर ब्रह्मा विष्णु महेश त्रिदेव निवास करते हैं।
जिसके कारण नारियल के पेड़ को और नारियल के फल को बहुत शुभ माना जाता है। नारियल का फल भगवान शंकर जी का बहुत प्रिय फल है। नारियल के फल को भगवान पर चढ़ाने से घर में धन की प्राप्ति होती है। नारियल के फल को मनुष्य के समान ही माना गया है क्योंकि नारियल के फल में जो नारियल की जटा होती हैं को मनुष्य के बालों की तुलना दी गई है और नारियल के बाहर के हिस्से को मनुष्य की खोपड़ी की तुलना दी गई है।
क्योंकि नारियल के बाहर का हिस्सा बहुत मजबूत होता है और नारियल के अंदर के पानी को मनुष्य के खून की तुलना दी गई है और जब नारियल की जटाओं को हटाया जाता है तो उसमें तीन छेद दिखाई देते है, जो दो आंख और एक मुंह की तरह दिखाए देती है।
बहुत समय पहले जब भगवान को प्रसन्न करने के लिए हिंदू धर्म के लोग जानवरों की बलि दिया करते थे। जानवरों की बलि देकर भगवान को खुश किया करते थे, जिसके बाद शंकराचार्य जी ने यह देखा तो उनको बहुत बुरा लगा और उन्होंने इस प्रथा को रोकने के लिए जानवरों की बलि देने की जगह पर नारियल के फल की देने के लिए कहा कि आप लोग किसी निर्दोष जानवर की हत्या कर के इसकी जगह पर आप लोग नारियल के फल को फोड़कर उसकी बलि दीजिए।
जिससे आपकी यह प्रथा पूरी हो जाएगी और किसी जानवर की भी बलि नहीं देनी पड़ेगी। जिसके बाद लोगों ने जानवरों की बलि देना बंद कर दिया और जानवरों की जगह पर नारियल के फल की बलि देना शुरू कर दिया।
आप लोगों ने देखा होगा कि जब हम लोग पूजा करते हैं, कहीं पर हवन होता है तो एक कलश पर नारियल रखा जाता है। कलश पर नारियल इसलिए रखा जाता है क्योंकि नारियल समृद्धि और शक्ति का प्रतीक होता है और नारियल का जो पानी होता है, वह प्रकृति की क्षमता का प्रतिनिधित्व करता है।
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